लखनऊ का दशहरी आम क्या आप जानते है दशहरी आम क्यों प्रसिद्ध है Naeem Ahmad, June 14, 2022March 3, 2023 आम पकने का एक जमाना एक समय होता है और जिसका सबकों बड़ा इन्तजार रहता है। आम फल ही ऐसा है और आम का नाम ही बड़ा जायकेदार है। किसी उत्तम फल के तीन गुण होते हैं स्वाद, सुगन्ध और सद्गुण उस पर वो सुन्दर भी हो तो फिर कहना ही क्या। आम इस कसौटी पर खरा उतरता है। प्रकृति की ये सबसे मधुर भेंट है। लोक कथाओं में कहा जाता है कि जानकी जी अपने मायके मधुवन से ये श्रेष्ठ उपहार लायी थीं और दोनों बातों का अर्थ एक ही है। संस्कृत का सारा साहित्य आम्रकुंज, आम्रमजरियों के मनमोहक सौरभ से सुरभित हैं। यहीं नहीं हमारे लोक रंग में भी अमवा की डाव पर ही भारतीय मन की कोयल कूकती है। आम फलों का राजा भी कहलाता है, लखनऊ का दशहरी आम अपने स्वाद और साइज के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यूं तो हिन्दुस्तान में आम की हजारों किसमें है। आज आम की दो किस्मों की बड़ी महिमा है बीजू या कलमी। कहावत है कि वो कौन सा मेवा अर्थात स्वादिष्ट फल है जिसे आदमी उगल-उगल के चाटता रहता है और वो सिर्फ आम है। लखनऊ का दशहरी आम जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है दशहरी आम का नाम लेते ही मुंह एक स्वर्गिक स्वाद और सुन्दर सुगंध से भर जाता है। ये दशहरी जो आज संसार का सबसे लोकप्रिय आम है लखनऊ की ईजाद है या यूं कहें कि लखनऊ का दशहरी आम जनपद के दशहरी गांव की देन है। लखनऊ के पश्चिम में हरदोई मार्ग पर नगर से तेरह किलोमीटर दूर बांयी ओर अंधे की चौकी पड़ती है उसी ओर कुछ दूर पर काकोरी शहीद स्मारक है जो स्वतंत्रता संग्राम के क्रान्तिकारी अभियान का पुनीत ऐतिहासिक स्थल है। यहीं उत्तर रेलवे की हावड़ा अमृतसर लाइन के उस पार डेढ़ किलों मीटर दूर बायीं तरफ दशहरी गांव बसा हुआ है। इस दशहरी गांव में ही वो सदियों पुराना पेड़ है जो दुनिया में दशहरी आम का पहला पेड़ माना जाता है। इस पेड़ के करीब ही महंगा का शाही पुल बना हुआ है। जिसकी उतराई में आम के व्यापारियों को 5-5 आम अपनी टोकरी से देने होते थे। गांव के एक जानकार वयों वृद्ध स्वर्गीय कालिका लोध के अनुसार एक बार झगड़ा हो जाने पर सारे सौदागरों ने अपने-अपने आमों की टोकरियां उलट दी थी और उन से ही एक आम के बीज से ये दरख्त तैयार हो गया था। लखनऊ का दशहरी आम का सबसे प्राचीन पेड़दशहरी आम का ये पेड़ न बहुत छोटा है और न बहुत बड़ा है लेकिन खूबसूरत और छतनार है। अब इसका फल पहले की तुलना में कुछ छोटा हो गया है फिर भी गुणों में वैसा ही है। दशहरी के लिए अलग-अलग दास्ताने हैं। लखनऊ के लोगों का कहना है कि नवाब आसफुद्दौला के शासन काल में बड़ें-बड़ें बागबानों की बराबर कोशिशों से कलम लगा कर ये आम इस इलाके में पैदा किया गया जिसमें कई आमों की खूबियों और खुशबू एक साथ गूंध दी गई थी इस काम के लिये फर्रूखाबाद, सहारनपुर और बिहार से आम के काश्तकार बुलाये गये थे कहा जाता है उनमें ही दशरथ नाम के एक किसान ने इस पेड़ को तैयार किया था और उसके ही नाम से ये पेड़ दशरथी कहा जाने लगा जो बाद में दशरही और फिर दशहरी हो गया। लखनऊ का दशहरी आम नवाबों ने ही आम पहले पहल पंजतने पाक की नज़र में रखा।आम की सौगात जब कहीं भेजी जाती थी तो झाबे के ऊपर एक आम नज़र का रखा जाता था और सुनहरे रूपहले वरक में लिपटा होता था। आम बड़ी-बड़ी महफिलों में खास दावतों में बड़ी नफासत के साथ पेश किया जाता था। पहले आम की गर्मी निकाल देने के लिये ये फल चादर में बांधकर कुंए में लटका दिये जाते थे फिर मिट्टी के नांद में पानी में डाले जाते थे अब नये-नये तरीकों से आम ठंडें किये जाते हैं। आम मीठे फल के अलावा कच्चे आम, कली खटाई, अमचूर, अचार और अमरस की सूरत में सालों साल इस्तेमाल होता है अवध के आम लोगों में कहावत है। दाल अरहर की, खटाई आम की तोले भर घी, रसोई राम की। आमों की तारीफ में खूब कसीदें पढ़ें गये है और शेर कहे गये है जैसे जरीफ लखनवी का एक शेर है – तैमूर ने कस्दन कभी लंगड़ा न मंगाया लंगड़ें के सामने, कभी लंगड़ा नहीं आया। लखनऊ में दशहरी के ताल्लुकदारों की दशहरी कोठी है जो झाऊलाल पुल और कचहरी रोड के बीच है और दशहरी हाउस के नाम से मशहूर है। दशहरी हाउस के नवाब सैयद मुहम्मद असर जैदी साहब बताते थे कि दशहरी गांव और आस-पास का इलाका पहले भरों की सम्पत्ति था मारशिवों का प्रभाव अवध क्षेत्र में सदियों बना रहा है उन्हीं भरों से नवाब साहब के पूर्वजों ने ये गांव खरीदा था। उनके ननिहाल के बुजुर्गों द्वारा नवाब सआदत अली खां के दरबार में और रेजीडेंसी की दावतों में भी ये आम, तोहफें के तौर पर भेजे जाते थे। कुद्र काकोरवी ने काकोरी के आम के बागों की रौनक को कुछ इस तरह कलम बन्द किया है- आम के बागों में वह, पीना पिलाना याद है मुद्दतें गुजरी हैं लेकिन, वो जमाना याद है,काकोरी के इस पेड़ के रखरखाव और बचाव की बातों को लेकर बहुत सी कहानियां कही जाती हैं जैसे कि फसल के दिनों में पेड़ पर इतना कड़ा पहरा रखा जाता था कि आदमी क्या कोई तोता भी इसकी गुठली इधर से उधर न ले जा सके। जो भी आम कहीं किसी को भेजे जाते थे सब बर्मा कर दिये जाते थे ताकि उसका बीज कहीं उगा न लिया जाये। इस पेड़ की पहली कलम मुहम्मद इमदाद अली खां ने तैयार की और दशहरी के नवाब ने कुछ कलमें मलिहाबाद अपने दोस्तों के यहां भेजी और और कहना न होगा कि वो कलमें वहां ऐसा पनपी की काकोरी किनारे रह गया और मलिहाबाद दशहरी आमों का डेरा हो गया। मलिहाबाद क्षेत्र में दशहरी खासुलखास के अलावा हुस्न आरा, पुखराज, रामकेला, श्यामसुन्दर, जाफरानी, द्वारिकादास, सीपिया, आम्रपाली से फजली, सफेदा, जौहरी, लखनउवा सफेदा और चौसा जैसे नामी निगरामी आम पैदा किये गये। चौसा जिसकी फलत जरा देर से होती है मलिहाबाद में समर बहिश्त कहा जाता है। आमों के नाम रखने का रिवाज भी बहुत पुराना है। औरंगजेब ने शाहजादा आजम के भेजे हुए दक्षिण के दो प्रकार के आम का नाम उसकी प्रार्थना पर “सुधारस” और “रसना विलास” रखा था। शहद जैसे मीठे रसीले लखनउवा सफेदा की प्रशंसा में तो प्रसिद्ध कवि पुष्पेन्दु जी का एक सुप्रसिद्ध छन्द है –लखनऊ का सफेदा और लंगड़ा बनारस का यही दो आम जग में उत्तम कहाये है लखनऊ के बादशाह दूध से सिंचायों वाको वही के वंशज सफेदा नाम पायो है या से लड़न को बनारस से धायो एक बीच में ही टूटी टांग ‘लंगड़ा’ कहायो है कहें पुष्पेन्दु’ वा ने जतन अनेक कीने तबहुं सफेदे की नज़ाकत न पायो है, तो ये है लखनऊ का दशहरी आम की हिस्ट्री। यह लखनऊ का दशहरी आम आज पूरी दुनिया में बहुत प्रसिद्ध है, मलिहाबाद आज इसकी सबसे बड़ी मंडी है। जहां से भारत के कौने कौने और विदेशों तक लखनऊ के दशहरी का का स्वाद पहुंचाया जाता है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें—- [post_grid id=”6023″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on 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