यह बावड़ी जालौन नगर के उत्तरी पश्चिमी सीमा में लक्ष्मी नारायण मन्दिर के करीब पश्चिम में स्थित है। यह एक ऐतिहासिक बावड़ी है। लक्ष्मी नारायण मंदिर को भी बावड़ी के नाम से जाना जाता है, या यूं भी कह सकते हैं इस बावड़ी को लक्ष्मी नारायण मंदिर के नाम से जाना जाता है, क्यों कि लोग इस स्थान को जहां ये दोनों चीजें स्थित है, लक्ष्मीनारायण बावड़ी मंदिर के नाम से पुकारते हैं।
लक्ष्मीनारायण बावड़ी का इतिहास
लक्ष्मीनारायण बावड़ी का निर्माण सम्वत् 1623 के आस पास श्री गोविन्द राव बुन्देला (खेर) द्वारा कराया गया था। बुन्देलखण्ड में ग्रीष्म ऋतु में अधिक गर्मी पड़ने के कारण जल स्तर काफी नीचे चला जाता जिसके कारण जल की सहज प्राप्ति हेतु एवं मन्दिर तथा आस-पास निवासियों को सुगमता से जल प्राप्ति के निमित्त इस बावड़ी का निर्माण किया गया था।
लक्ष्मीनारायण बावड़ी मंदिर
लक्ष्मीनारायण बावड़ी
लक्ष्मीनारायण बावड़ी 143 फुट लम्बी तथा 8 फुट 3 इंच चौड़ी है। इस बावड़ी के पूर्व में एक कुँआ बना हुआ है जिसका ऊपरी व्यास 22 फुट है बावड़ी एवं कुओं के सन्धि स्थल पर एक आयताकार कक्ष बना हुआ है जिसके ऊपर कमल की पत्तियों का अलंकरण है और उनके ऊपर कलश दृष्य निर्मित है। इस कुएं के बगल से होकर सीढ़ियों द्वारा नीचे जाया जाता जिससे इसके कक्ष में प्रवेश किया जा सकता है।
इसके पश्चिम की ओर तीन मेहराबदार दरवाजे हैं। हाई 5 फुट 2 इंच व चौड़ाई 1 फुट 11 इंच है। इस कक्ष के पूर्वी दीवार पर एक दरवाजा है जो कि कुएं की ओर खुलता है। यह दरवाजा 6 फुट ऊँचा है। इस कक्ष की दीवार की मोटाई 2 फुट 3 इंच है। इस आयताकार कक्ष की लम्बाई 10 फुट व चौड़ाई 8 फुट 3 इंच है। इस कक्ष की दक्षिणी दीवार पर एक आला बना हुआ है जिसकी ऊँचाई 2 फुट व 1 फुट चौड़ाई है। इस कक्ष के नीचे पुनः इसी भाँति एक कक्ष और है। वर्तमान में लक्ष्मीनारायण बावड़ी का जल स्तर ऊपर से 25 फुट 6 इंच गहराई में है। बावड़ी के पश्चिम में जल स्तर के बाद लम्बी विशाल चौड़ी सीढ़ियाँ बनी हुई है तथा आयताकार कक्ष के 18 फुट पश्चिम की ओर बावड़ी के दोनों दरवाजों के मध्य एक मध्य दरवाजा खड़ा हुआ है। जिसके आधार तल पर एक मेहराबदार दरवाजा बना हुआ है जो कि लगभग 15 फुट ऊँचा है। पूरी बावड़ी में कुल तीन तल बने हुए हैं। लक्ष्मीनारायण बावड़ी का निर्माण पतली ईटों द्वारा किया गया है। जो कि 6 इंच चौड़ी व 7 इंच लम्बी तथा 1.1/2 इंच मोटी है।