लक्ष्मण मंदिर जयपुर – लक्ष्मण द्वारा जयपुर Naeem Ahmad, September 17, 2022February 22, 2024 राजस्थान की गुलाबी नगरी जयपुर के मंदिरों में लक्ष्मणद्वारा या लक्ष्मण मंदिर भी सचमुच विलक्षण है। नगर-प्रासाद मे गडा की ड्योढ़ी के बाहर वेधशाला के सामने ही लक्ष्मण मंदिर स्थित है, सीताराम मंदिर के दक्षिण-पूर्व में। स्वयं महाराज सवाई जय सिंह ने यह दोनो मंदिर शायद साथ-साथ ही बनवाये थे। दोनो ही मे ऐसे देव-विग्रह पूजित है जिनमे आमेर-जयपुर के राजाओं की गहरी आस्था रहीं हैं।लक्ष्मण मंदिर जयपुरलक्ष्मण मंदिर लक्ष्मणाचार्य के नाम पर है जो वैष्णव-भक्ति ओर सगुण उपासना के प्रतिपादक रामानुजाचार्य का ही दूसरा नाम है। रामानुजाचार्य ने दक्षिण भारत मे भक्ति की जो गंगा प्रवाहित की उसमे आमेर के राजा और मुगल बादशाह अकबर के सुबेदार मान सिंह ने भी अवगाहन किया और संवत 1620 (1563 ई) मे भगवान व्येक्टेश (बेकुन्ठनाथ) ओर उनके साथ भूदेवी ओर नीलदेवी की मूर्तिया भी तिरुपति से आमेर भेजी। रामानुजाचार्य द्वारा प्राण-प्रतिष्ठित अष्टधातु की यह मूर्तियां वहां किसी जलूस में ले जाई जा रही थी। मानसिंह ने अपनी राजधानी आमेर को इनसे पवित्र बनाने की सोची थी और इन्हे जुलूस में से ही आमेर भेजा गया था। आमेर में फल बाग, जिसे अब मावलियो का बाग कहते हैं, इन मूर्तियों का देवस्थान बना और जयपुर की स्थापना के बाद सवाई जयसिंह नें इन्हें लक्ष्मण मंदिर में पाट बेठाया।लक्ष्मण मंदिर जयपुरभगवान व्येक्टेश यहां अपनी त्रिविध शक्तियों के साथ तभी से विराजमान हैं। श्रीदेवी या लक्ष्मी को तो वह अपने वक्षस्थल पर ही धारण किये है ओर दोनो ओर भू-देवी तथा नील-देवी की मूर्तिया है। भगवान के दो हाथो में तो शंख और चक्र है, किंतु शेष दो हाथो मे गदा ओर पदम नही है। वह रीते और ‘वर” तथा अभय” मुद्राओ में है। विष्णु मत में यह मुद्राये अन्यत्न नही मिलती बताई। रामानुजाचार्य के सेव्य यह ठाकुर इन मुद्राओ से अलौकिक ओर पारलौकिक, दोनों ही प्रकार के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं।गोवर्धन नाथ जी मंदिर जयपुर राजस्थानलक्ष्मण मंदिर का देवालय नक्काशी, संगतराशी और अन्य अलंकरण से सर्वथा हीन है, किन्तु इसकी दीवारों के आसार कही भी तीन फुट से कम चौडे नही। सीधा-सादा एक मंजिला मंदिर, लेकिन बडा सदृढ़ बना है। दरवाजों और खिडकियों के किवाड आधे आसार ही चिपक कर रह जाते हैं।गोविंद देव जी मंदिर जयपुर – गोविंद देव जी मंदिर का इतिहाससवाई जयसिंह के समय में भगवान व्येकटेश का दैनिक भोग सवा मन चूरमे का हुआ करता था। जितना पैसा तब सवा मन चूरमे में लगता था, अब उतना ही ढाई सेर आटे मे लग जाता है, क्योकि वक्त भागकर कहा से कहा आ गया है। लक्ष्मण मंदिर के भोग के नाम पर ही सवा सेर आटे की बाटियां अभी हाल तक उस सदावर्त से प्रतिदिन बांटी जाती रही है जो महाराजा रामसिंह ने अपनी मृत्यु से कुछ दिन पूर्व स्थापित किया था।राजराजेश्वरी मंदिर कहां स्थित है – राजराजेश्वरी मंदिर जयपुररामसिंह की दी हुई रकम के सूद से चलने वाला यह “सूद सदावत” सिरह ड्योढी बाजार मे महाराजा संस्कृत कॉलेज वाले मंदिर में चलता था, किन्तु अब गोविन्द देव जी के बाहर है। लक्ष्मण मंदिर जयपुर में रामानुज सम्प्रदाय के कीर्तिं-स्तम्भो मे से है। बाला नन्दजी की गादी और गलता के ठिकाने के बाद रामावत भक्तों की यह प्रमुख पीठ है, और अपनी मूर्तियों के कारण तो इसका महत्त्व वास्तव में बडा है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— [post_grid id=’12369′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल जयपुर के दर्शनीय स्थलजयपुर पर्यटनजयपुर पर्यटन स्थलराजस्थान धार्मिक स्थलराजस्थान पर्यटन