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रेलगाड़ी का आविष्कार किसने किया और कब हुआ

आज से लगभग तीन सौ वर्ष पहले फ्रांस के एक व्यक्ति सालमन डी कास ने जब भाप से चलने वाली गाडी का विचार जनता और सरकार के सामने रखा तो लोगों ने उसे पागल समझा ओर सरकार ने उसे पागलखाने में बंद कर दिया। सबसे पहला सफल रेलगाड़ी का इंजन जार्ज स्टीफेसन ने बनाया था, अतः उन्हें रेलगाड़ी के इंजन का आविष्कारक माना जाता है।

वैसे सन्‌ 1763 में फ्रांस के एक व्यक्ति निकोलस जोसेफ कूग्नो ने एक वाष्प चालित गाडी बनायी, परंतु यह सफल न हो सकी। सन्‌ 1770 में एक अमेरीकी इंजीनियर आलिवर इवास ने भी भाप चालित गाडी तैयार की थी। गैस बत्ती के आविष्कारक स्काटिश विलियम मर्डोक ने भाप इंजन गाडी पर कुछ अच्छे प्रयोग किए, लेकिन उनकी कम्पनी के मालिको ने उन्हे बीच में ही रोक दिया। इसका कारण यह था कि जेम्स वाट (स्काटिश) भाप इंजन के आविष्कार का पेटेंट प्राप्त कर चुके थे।

रेलगाड़ी का आविष्कार किसने किया और कैसे हुआ

लेकिन मर्डोक के एक अन्य साथी रिचर्ड ट्रेविथिक ने उनके द्वारा बनाए भाप इंजन में कई सुधार किए और एक ऐसी भाप रेलगाड़ी बनायी जो सड़कों पर बिछी लकडी की पटरियो पर चल सकती थी। ये पटरिया वास्तव में माल से भरी गाडियों को घोडा द्वारा आसानी से खीचन के लिए बिछायी जाती थी। ट्रेविथिक ने अपनी भाप गाडी का नाम ‘पफिंग डेविल’ रखा था। एक दिन वह अपनी भाप गाडी के इंजन को बंद करना भूल गए। परिणामस्वरूप इंजन में आग लग गयी। 1803 में ट्रेविथिक ने एक और इंजन बनाया ओर सड़क पर चलाया, लेकिन इंजन सडक पर सफलतापूर्वक नही चल सका। पहली बार ट्रेविथिक ने यह निष्कर्ष निकाला कि भाप-इंजन सडक पर चलने वाला वाहन नही बन सकता। अतः उसी ने सबसे पहलेभाप इंजन को पटरियो पर चलाया। एक लोहे के कारखाने के लिए उसने रेल-परिवहन के लिए पहला भाप-इजन बनाया, लेकिन सफल होने से पहले ही वह आर्थिक संकट मे फंस गया और 1833 में 62 वर्ष की अवस्था में उसकी मृत्यु हो गयी।

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रेलगाड़ी

रेलगाड़ी इंजन का सफल प्रदर्शन जार्ज स्टीफेसन ने किया। वह एक कोयला खदान में खलासी था। अनपढ़ होते हुए भी इंजनों के बारे में उसे अच्छी-खासी जानकारी थी। जार्ज स्टीफेसन का मालिक उनसे बहुत खुश था। स्टीफेसन ने एक रेलगाडी इंजन बनाने मे आर्थिक मदद के लिए अपने मालिक को सहमत कर लिया। दो वर्ष के कडे़ परिश्रम के बाद सन्‌ 1814 में स्टीफेसन ने एक इंजन तैयार किया, जिसका नाम उन्होंने ‘ब्लूचर रखा। यह रेलगाड़ी इंजन आठ डिब्बे जिनमे करीब तीस टन कोयला आता था, थोडी-सी चढाई के बावजूद चार मील प्रति घंटे की रफ्तार से खींच ले जाता था। एक वर्ष बाद उन्होंने कुछ सुधार करके एक दूसरा इंजन बनाया जो अपेक्षाकृत उत्तम सिद्ध हुआ।

इसी बीच ऑकलेंड की विशाल घाटी मे स्टाकटन से डालिगटन तक रेलवे लाइन बिछाने की अनुमति सरकार से प्राप्त हो गयी। इसके लिए रेलगाड़ी इंजन बनाने का काम स्टीफेसन को ही सौंपा गया, क्योंकि तब तक स्टीफेसन रेलगाड़ी इंजनों के अधिकारी विशेषज्ञ मान लिए गए थे। सन्‌ 1825 में दस मील लम्बी रेल लाइन का उद्घाटन हुआ और तैतीस डिब्बो के साथ स्टीफेसन के ‘एक्टिव’ नामक इंजन ने उस पर सफलतापूर्वक यात्रा की। 450 व्यक्तियों के स्थान पर लगभग 600 व्यक्ति उस रेलगाड़ी में सवार हो गए थे। इस प्रकार यह पहली बार लोगों ने भाप से चलने वाले नए वाहन की सवारी का आनद प्राप्त किया।

स्टीफेसन ने जब आम जनता के लिए परिवहन के रूप में रेलगाड़ी के उपयोग का प्रस्ताव रखा तो कुछ विरोधी तत्त्वो ने इसका काफी विरोध किया ओर इसके चलने पर रोक लगाने की मांग की, परंतु अंत में सरकार ने इसकी उपयोगिता को समझते हुए परिवहन के रूप में अपनाने की अनुमति दे दी। सबको समान रूप से अवसर प्रदान करने की ब्रिटिश परम्परा के अनुसार स्टीफेसन के अलावा अन्य इंजन निर्माताओं को भी मौका दिया गया। रेलगाड़ी इंजनों के निर्माण का ठेका देने से पूर्व ब्रिटिश सरकार ने एक इंजन दौड प्रतियोगिता का आयोजन किया।

इस प्रतियोगिता में कुल चार इंजनो ने भाग जिया। इस प्रतियोगिता में दो युवा इंजीनियरों जॉन ब्रेदवेट और जॉन एरिकसन के रेल इंजन ‘नॉवल्टी टिमोथी हेक्वर्थ के ‘सास्पारील’ बस्टार्ल के ‘परसीवरेस’ और स्टीफेसन के ‘राकेट’ नामक इंजनो ने भाग लिया। सबसे पहले ‘राकेट’ ने प्रदर्शन दिया ओर लगभग तेरह मील प्रति घंटे की रफ्तार से दूरी तय की। उसके बाद ‘नॉवल्टी’ इंजन ने प्रदर्शन दिया। शुरुआत में यह जब ‘राकेट’ से दूनी रफ्तार से दौडा तो लोग चकित रह गए,
लेकिन कुछ दूर जाकर ही यह इंजन बेदम होकर रुक गया। ‘सास्पारील’ इंजन का भी कुछ दूर जाकर बायलर फट गया और ‘परसीवरेस’ तो छह मील प्रति घंटे की रफ्तार से अधिक वेग प्राप्त ही न कर पाया। इस प्रतियोगिता मे ‘राकेट” को ही सफलतम इंजन माना गया।

अब स्टीफसन के ड्राइवर डिक्सन ने ‘राकेट’ की वास्तविक शक्ति का प्रदर्शन किया। उसने 3 टन का भार खींचते हुए अपने इंजन को पंद्रह मील प्रति घंटे की रफ्तार से बीस बार दौडाया। अंत मे उसने हजारों दर्शकों की तालियों की गडगडाहट के बीच अपने इंजन को उन्तीस मील प्रति घटे की रफ्तार से दौडाकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया।

राकेट जैसे ही अन्य सात इंजनों से 15 सितम्बर 1830 को मेनचेस्टर, लिवरपुल रेल लाइन का उद्घाटन हुआ। इस प्रकार रेलगाड़ी के आविष्कारक के रूप में जार्ज स्टीफेसन विश्व में प्रतिष्ठित हुए। जार्ज स्टीफेसन के भाप-इंजन में बाद में कई अन्य वैज्ञानिको ने अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए। आज रेलगाड़ी इंजन भाप के अलावाडीजल और विद्युत शक्ति से भी चलने लगे है, जिनकी रफ्तार 100-180 किलोमीटर प्रति घंटे होती है। ये हजारों टन माल एक साथ ले जा सकते है।

भारतमें सबसे पहली रेलगाड़ी 16 अप्रेल 1853 में बम्बई से थाना के बीच चली थी। पूरे एशिया महाद्वीप के देशों में सर्वप्रथम भारत में ही रेलगाड़ी चलना आरम्भ हुई। आज हमारे देश में 126335 किलोमीटर से भी अधिक लम्बा रेलमार्गों का जाल बिछा है। पहले रेल इंजन और डिब्बे विदेशों से मंगवाए जाते थे, परंतु अब पश्चिम बंगाल मे स्थित चितरंजन कारखाने मे भाप और बिजली से चलने वाले बढ़िया किस्म के इंजन बनाए जाते है। मुगल सराय (मडबाडी) के कारखाने में डीजल इंजन बनते हैं। माल और यात्री डिब्बे पेरम्बर (मद्रास) और बंगलोर के कारखाना में निर्मित होते है। देश के समस्त माल का 65% तथा 51% सवारियां आज रेल द्वारा ही ले जायी जाती है।

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Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

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