नवाबों के शहर के मध्य में ख़ामोशी से खडी ब्रिटिश रेजीडेंसी लखनऊ में एक लोकप्रिय ऐतिहासिक स्थल है। यहां शांत वातावरण में केवल आवाज़ें जो आप सुन सकते हैं, वे हैं मधुमक्खियों का ड्रोन, कभी-कभार कौवे का चिल्लाना और पक्षियों का चहकना। लेकिन रास्तों पर पेड़ों की आड़ से फूलों की महक लेकर आती हवा आपको 1857 के विद्रोह के दौर में वापस ले जाती है, जब ये आवाजें गोले और गोलियों के शोरगुल से थम गई थी, हवा में बारूद की गंध आती, और इमारत पर वफादार मूल निवासियों द्वारा समर्थित ब्रिटिश अधिकारियों का कब्जा होता।
इमारत के कुछ हद तक जीर्ण-शीर्ण अवशेष टिहरी कोठी, शहीद स्मारक और उच्च न्यायालय जैसे अन्य ऐतिहासिक स्मारकों के करीब हैं। रेजीडेंसीनवाब सआदत अली खां द्वितीय द्वारा बनाया गया था। वह अवध प्रांत के नवाब थे। 1780 से 1800 ईस्वी तक रेजीडेंसी को बनाने में लगभग 20 साल लगे। 19वीं शताब्दी में जब जॉन बेली लखनऊ में ब्रिटिश साम्राज्य के आधिकारिक निवासी बने तो नवाब सआदत अली खान ने यहां गार्ड हाउस के निर्माण का आदेश दिया। इसे लोकप्रिय रूप से बेली गार्ड गेट कहा जाता था। रेजीडेंसी के परिसर में प्रवेश करते समय लोग अभी भी प्रसिद्ध बेली गार्ड गेट को देख सकते हैं। पूरा रेजीडेंसी परिसर 33 एकड़ भूमि में फैला हुआ था।
रेजीडेंसी इस इमारत ने ब्रिटिश जनरल के आधिकारिक घर के रूप में कार्य किया। वह नवाब के दरबार में ब्रिटिश प्रशासन के आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता था। वर्ष 1857 में, रेजीडेंसी ने एक विस्तारित लड़ाई देखी। इस लड़ाई या विद्रोह की पहचान लखनऊ की घेराबंदी के रूप में भी की जाती है। विद्रोह 1 जुलाई को शुरू हुआ और 17 नवंबर को समाप्त हुआ। सर कॉलिन कैंपबेल के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों ने भारतीय सेना को पराजित किया। हालाँकि, ब्रिटिश सैनिकों ने जीत हासिल की, लेकिन नरसंहार ने भारतीयों और अंग्रेजों के बीच कड़वे अविश्वास के स्थायी निशान छोड़े। भारत ब्रिटिश साम्राज्य के प्रत्यक्ष प्रशासन के अधीन आ गया।
रेजीडेंसी
रेजिडेंसी की इस इमारत ने बहते हुए गर्म लहू को देखा है। सारी इमारत में गोलों व गोलियों से बने निशान आज भी उस दिल दहलाने वाली जंगे आजादी की कहानी कह रहे हैं। इस इमारत की नींव सन् 1780 मेंनवाब आसफुद्दौला की हुकूमत के वक्त पड़ी और यह सन् 1800 ई० में नवाब सआदत अली खाँ के समय बनकर तैयार हुई। इस विशाल आलीशान इमारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त रेजीडेन्ट रहा करते थे।कलकत्ता कौंसिल के सदस्य शोर साहब का इन रेजीडेंटों के बारे में कहना था कि— ब्रिटिश सरकार इसलिए रेजीडेन्ट नियुक्त करती थी जिससे कि वह राज्य में रहकर वहाँ की सुख, शान्ति और खुशहाली को खत्म करते रहें।
नवाब आसफुद्दौला के शासनकाल के दौरान मार्निगटन रेजीडेंट बनकर लखनऊ तशरीफ लाए मगर उनको लखनऊ की हवा कुछ रास न आयी ओर वह वापस लौट गये। उनके बाद क्रमशः तीन रेजीडेन्ट लखनऊ आये जॉन ब्रिस्टा, मिस्टर चेरी और ली-लक्स। इस प्रकार नवाब आसफुद्दौला की हुकूमत के दौरान ही चार रेजीडेंट आए गये। सन 1797 में नवाब साहब के बाद वजीर अली खाँ गद्दीनशीन हुए, मगर अंग्रेजों ने उन्हें नवाब साहब की अवेध औलाद करार देकर गद्दी से उतार दिया। अपनी ऐसी तोहीन वजीर अली बर्दाश्त नहीं कर सके उन्होंने एक दिन मोका ताड़कर मिस्टर चेरी को इस दुनियाँ से बाहर भेज दिया।
इधर सआदत अली खाँ ने शासन का भार संभाला और उधर फिर नये रेजीडेंट मिस्टर लीडन लखनऊ आए। इसके बाद क्रमश: जनरल बेली, डेविडसन, शेक्सपियर, मेन्डक, मेजर जॉन ले० कर्नेल रिचर्माड रेजीडेन्ट बनकर लखनऊ पधारे। 29 (उनतीस) नवम्बर, सन् 1848 में रिचर्माड महोदय के जाने के बाद मेजर बर्ड ने कुछ वक्त तक कम्पनी का कार्यभार संभाला। उनके बाद सलीमन लखनऊ आए और वह सात साल तक यहाँ के रेजीडेन्ट रहे। सलीमन बड़ा ही बेरहम इन्सान था। एक दिन एक अरबी घोड़े ने गुस्से में आकर रेजीडेन्ट साहब को इसी रेजीडेन्सी में ऐसा पटका कि कई महीनों तक बिस्तर पर पड़े रहे ठीक भी हुए तो बेचारे उठने बैठने, चलने-फिरने को मोहताज। उनके बाद आउटरम, कंण्टेन, हेज, चार्ली जेक्सन, हेनरी लारेंस रेजीडेन्ट बनकर लखनऊ आए।
रेजीडेंसी कभी लखनऊ की तमाम खूबसूरत इमारतों में से एक थी। जिसके आज केवल खण्डहर ही मौजूद हैं। रेजीडेन्सी में नीचे एक विशाल तहखाना बना हुआ है। जिसमें रेजीडेन्ट भयानक गर्मी से बचने के लिए आराम फरमाया करते थे। कहते हैं इस तहखाने तक एक लम्बी सुरंग भी आया करती थी जो बाद में बन्द कर दी गयी। आजादी की लड़ाई के दौरान इसी तहखाने में तमाम लोगों ने छुपकर अपनी जानें बचाई थी। 86 दिनों तक क्रान्तिकारियों ने इस इमारत पर अपना अधिकार जमाए रखा। मगर तभी कानपुर से कैम्पबेल अपनी विशाल फौज के साथ लखनऊ आ धमका और पुनः अंग्रेजों का इस पर अधिकार हो गया।
रेजीडेंसी की वर्तमान स्थिति
फिलहाल, रेजीडेंसी में कई इमारतों के प्राचीन खंडहर हैं। बताने के लिए हर इमारत की अपनी दुखद कहानी है। रेजीडेंसी परिसर में अलग-अलग इमारतों का नाम आम तौर पर वहां रहने वाले लोगों के नाम पर रखा गया था। सागो हाउस, डॉ. फेयरर हाउस, एंडरसन पोस्ट, ब्रिगेड मेट्स, रेडन बैटरी और कानपुर बैटरी जैसी प्रसिद्ध इमारतों के खंडहर अभी भी मौजूद हैं। रेजीडेंसी में सभी इमारतों की क्षतिग्रस्त दीवारों पर तोप और बंदूक की गोलियों के निशान लोगों को हमारे स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा सामना की गई कठोर परीक्षा की याद दिलाते हैं। लखनऊ घूमने आने वाले पर्यटकों के यह जगह एकदम मुफिद है। बड़ी संख्या में पर्यटक यहां आते है।