20वीं सदी के प्रारम्भ में ज़ारशाही रूस ने सुदूर पूर्व एशिया (For East Asia) के दो देशों, मंचूरिया औरकोरिया पर अधिकार कर लिया। जापान ने रूस की इन कार्यवाइयों का विरोध किया क्योकि यह इन्हे अपना उपनिवेश बनाना चाहता था। इन देशों को खाली करने के लिएजापान ने पत्र व्यवहार किया किन्तु कोई भी संतोषजनक उत्तर ने मिलने पर 8 फरवरी, 1904 को उसने रूस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और इस युद्ध से रूस न सिर्फ हार गया बल्कि यूरोप की अन्य शक्तियों के समक्ष उसकी साख भी घट गयी जबकि जापान को एक बड़ी सैन्य-शक्ति के रूप में मान्यता मिली। अपने इस लेख में हम इसी रूस जापान युद्ध का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:—
रूस जापान युद्ध कब हुआ था? रूस जापान युद्ध के कारण? रूस जापान युद्ध का वर्णन? रूस जापान युद्ध के कारण और परिणाम? रूस जापानी युद्ध का क्या महत्व था? रूस जापान युद्ध का अंत किस संधि के अनुसार हुआ? मंचूरियन संकट कब प्रारस्भ हुआ? जापान ने मंचूरिया पर कब आक्रमण किया? मंचूरिया कहां है? मंचूरिया की राजधानी कहां थी? मंचूरिया संकट के कारण और परिणाम?
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रूस जापान युद्ध का कारण
ज़ारशाही रूस (Tsarist Russia) और जापान के मध्य लड़ा गया यह युद्ध वर्तमान शताब्दी के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण युद्धों मे से एक है। इसे सुदूर पूर्व के देशो मे रूस और जापान के बीच उपनिवेशवाद की प्रतिद्वंद्विता का युद्ध भी कहा जा सकता है, जिससे न केवल विश्व के मानचित्र पर एशिया एक शक्ति के रूप में उभरा बल्कि कमजोर जारशाही प्रशासन के खिलाफ 1905 की रूस की पहली क्रांति (First Russian Revolution Of 1905) को भी बल मिला। रूस का सैन्य बल जार (Tsar) के कमजोर नेतृत्व में बडा असंगठित और असुरक्षित होता जा रहा था। देश में भुखमरी और गरीबी तो थी ही, सैनिकों को कई-कई महीनों तक वेतन भी नहीं मिलता था। उन्हे न तो ठीक ढंग से रसद (Food Supply) मिल पाता और न ही युद्ध के लिए आवश्यक अन्य साजों समान। जबकि जापान लगातार औद्योगीकरण के साथ-साथ विकास कर रहा था।
इसके अलावा सम्राट मेजी (Empirer Mejji 1852-1912) के शासन-काल में जापान की सेना को नये ढंग से सुसंगठित कर उसका आधुनिकीकरण किया गया। अंग्रेजी विशेषज्ञों को रेलवे, तार जहाजी बेड़े, आदि के निर्माण के लिए बुलाया गया। फ्रासीसी विशेषज्ञों ने जापानियों को सैनिक शिक्षा दी। फलत: जापान की गणना विश्व की महाशक्तियों मे की जाने लगी।

इस प्रगति के कारण जापान की भी कच्चे माल के लिए नये भू क्षेत्रो तथा माल बेचने के लिए बाजारों की आवश्यकता महसूस हुई। कोरिया व चीन को सैनिक दृष्टि से कमजोर पाकर जापान ने इन देशो मे घुसपैठ शुरू कर दी। 1894-95 मे एक साधारण बहाना लेकर जापान ने चीन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और चीन को परास्त कर दिया। रूस ने फ्रांस व जर्मनी से मिल कर जापान को चीन की विजय से लाभ उठाने से रोकने के कई प्रयत्न किये। उसने जापान को चीनी बंदरगाह पोर्ट आर्थर (Port Arthur) पर अधिकार नही करने दिया। पहले तो रूस ने यह बंदरगाह चीन को वापस दिलवा दिया परन्तु 1898 में स्वय इस पर अधिकार कर लिया।
रूस ने ट्रांस साईबेरियन रेलवे (Trans Siberian Railway) को पोर्ट आर्थर तक बढ़ाने का निश्चय किया। सन् 1900 में रूस ने मंचूरिया पर भी अधिकार कर लिया। जापान की सरकार रूस की इन कार्यवाइयों से असंतुष्ट थी और किसी भी उपयुक्त अवसर की तलाश में थी। कुछ वर्षों के पत्र व्यवहार के पश्चात उसने रूस को मंचुरिया खाली करने को कहा संतोषजनक उत्तर न मिलने पर 8 फरवरी, 1904 को बिना किसी पर्व सूचना के जापान की नौसेना ने पोर्ट आर्थर पर सटे रूसी युद्धपोतों पर आक्रमण कर दिया और जनवरी, 1905 में इस पर अधिकार कर लिया।
जापान की सेनाओं ने कोरिया से भी रूसी सेनाओं को बाहर निकाल दिया। पोर्ट आर्थर में जापान की नौसेना ने रूसी बेडे को भी नष्ट कर दिया। 1905 के पश्चात पोर्ट आर्थर में रूसी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया। 1905 में मंचूरिया के युद्ध मे लगभग सवा लाख रूसी सैनिक मारे गये तथा घायल हुए। त्सुशिमा (Tsushima) की खाड़ी में 27 मई 1905 को जापानी नौसेना की पूर्ण रूप से विजय हुई और रूसी जहाजी बैडा नष्ट कर दिया गया। इस रूस जापान युद्ध ने रूस को सन्धि करने पर विवश वर दिया।
रूस जापान युद्ध के परिणाम
संयुक्त राष्ट्र अमेरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति थियोडोर रुजवेल्ट (President Of USA Theodore Roosevelt) के प्रयत्नों से सितम्बर, 1905 में पोटर्समाउथ की सन्धि (Treaty Of Portsmouth) के साथ युद्ध की समाप्ति हुई। इस सन्धि के अनुसार आर्थर बंदरगाह और लाओतुग तथा दक्षिणी सांसालिन द्वीप जापान को दिये गये। कोरिया पर जापान के प्रभुत्व को बरकरार रहने दिया गया। मंचूरिया चीन को लौटा दिया गया।
प्रों. एच जी बेल्स के मतानुसार रूस-जापान युद्ध में एशिया में यूरोपीय राष्ट्र के वर्चस्व की समाप्ति हुई। आधुनिक इतिहास मे वह पहला अवसर था जब कि एक एशियाई शक्ति ने एक यूरोपीय शक्ति को परास्त किया। परिणामस्वरूप एशिया के पिछड़े राष्ट्रों ने अपनी स्वतन्त्रता के लिए आंदोलन प्रारम्भ कर दिये। चीन में क्रांति की तैयारिया होने लगी और भारत में भी स्वतन्त्रता का संघर्ष तीव्र गति से चलने लगा। विश्व एवं एशिया मे एक नयी शक्ति के रूप में उभरने के कारण जापान की अंतर्राष्ट्रीय छवि में असाधारण वृद्धि हुई तथा रूस मे क्रांति की हवा ने जोर पकडा। इस यद्ध मे समुद्री जंगी बेड़े और नौसेना की विशेष भूमिका रही। जापान की सुसंगठित नौसेना के सामने रूस की विशाल सेना कमजोर साबित हुई। फलत: जापान विजयी रहा।