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राव रणमल राठौड़

राव रणमल का इतिहास और जीवन परिचय

राव रणमल जी, राव चूडाजी के ज्येष्ठ पुत्र थे। एक समय राव चूडाजी ने इनसे कह दिया था कि ‘मेरे बाद मंडोर कान्ह के अधिकार में रहना चाहिये। कान्ह चूडाजी के छोटे पुत्र थे। अपने पिता को आज्ञानुसार रणमलजी मंडोर को अपने छोटे भाई के हाथ सौंप है और आपचित्तौड़ चल गये। चित्तौड़ की गद्दी पर इस समय राणा लाखा जी आसीन थे। इन्होंने रणमलजी से प्रसन्न हो कर उन्हें 40 गाँव दे दिये। इधर राव कान्हजी सिर्फ 11 माह राज्य कर परलोकवासी हो गये।

राव रणमल का इतिहास और जीवन परिचय

कान्हजी की मृत्यु हो जाने पर चूडाजी के दूसरे पुत्र साला जी गद्दी पर बेठे। पर ये भी तीन या चार साल राज्य कर सके। सालाजी और उनके भाई रणधीरज जी के बीच अनवन हो गई। अतएव रणधीरज जी ने मेवाड़ जाकर अपने ज्येष्ठ बन्धु रणमल जी को समभालाना शुरू किया। उन्होंने रणमल जी से कहा कि “आपने सिर्फ कान्हजी के लिये राज्य छोड़ा है न कि सालाजी लिये। अतएव सालाजी का राज्य पर कोई अधिकार नहीं है। यह बात रणमलजी के भी ध्यान में जम गई। उन्होंने मोकल जी की सहायता से मंडोर पर चढ़ाई कर दी। सालाजी को गद्दी से उतार कर उस पर रणमलजी बेठे। कुछ समय पश्चात्‌ रणमलजी राणाजी की सहायता द्वारा नागोर से मुसलमानों को भगाने में समर्थ हुए। रणमल जी ने नागोर अपने राज्य में मिला लिया।

राव रणमल राठौड़
राव रणमल राठौड़

महाराणा कुम्भ के समय की कुम्भलगढ़ को प्रशस्ति में भी इसका वर्णन आया है। इस प्रशस्ति से इस बात की पुष्टि होती है कि रणमल जी ने मोकल जी की सहायता से नागोर पर विजय प्राप्त की। रणमल जी ने समय समय पर मेवाड़ के राणाओं की अच्छी सहायता की। ई० स० 1433 में राणा खेताजी के चाचा और सेरा नामक दो औरस पुत्रों ने मोकल जी का खून कर डाला। जब यह खबर राव रणमल जी तक पहुँची तो वे तुरन्त मोकल जी के पुत्र कुंभा जी की सहायता पर आ डटे।उन्होंने हत्याकारियों को मारकर कुम्भा जी को राज्य-सिंहासन पर बैठाने में सहायता दी। इसके कुछ ही समय बाद चाचा के पुत्र आका और मोकल जी के ज्येष्ठ बन्धु ने मेवाड़ के सरदारों द्वारा राणा कुम्भा जी तक यह खबर पहुँचाई कि “वे सावधान रहें। कहीं ऐसा न हो कि मेवाड़ का राज्य-सिंहासन राठौड़ों के हाथ में चला जाये।” यह युक्ति काम कर गई।

कुभाजी, रणमल जी को संदेह की दृष्टि से देखने लग गये, इतना ही नहीं प्रत्युत मौका पाकर उन्होंने रणमलजी को मरवा डाला। रणमल जी के पुत्र जोधा जी इस समय मेवाड़ ही में थे। रणमल जी की मृत्यु होते ही जोधा जी के किसी हितेषी ने उनसे मेवाड़ छोड़ देने के लिये कहा। जोधा जी अपने सात सौ सिपाहियों को लेकर वहाँ से चल पड़े। चूडाजी शिशोदिया बड़ी भारी सेना के साथ जोधा जी के पीछे भेजे गये। मेवाड़ी सेना के चलते रास्ते आक्रमण करते रहने के कारण मारवाड़ पहुँचते पहुंचते जोधा जी के पास केवल सात सिपाही शेष रह गये। जोधा जी ने पहले तो मंडोर में रहने का विचार किया पर मेवाडी सेना के पीछे लगी रहने के कारण उन्हें अपना यह विचार स्थगित करना पडा।

वे थली परगने के काहुनी नामक स्थान में जाकर रहने लगे, राणा कुम्भा जी ने समस्त मारवाड पर अपना अधिकार कर लिया। उन्होंने राव चूडाजी के प्रपौत्र सधवदेव को राव की पद॒वी देकर सोजत के शासक नियुक्त कर दिया। मंडोर और चोकडी नामक स्थानों की रक्षा के लिये राणाजी ने अपनी बढ़िया से बढ़िया सेना नियुक्त की। राव रणमल जी के 26 पुत्र थे। इन सब में राव जोधाजी बड़े थे।

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Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

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