बीकानेर राज्य के शासक उस पराक्रमी और सुप्रिसिद्ध राठौड़ वंश के है, जिसके शौर्य साहस और रणकौशल का वर्णन हम अपने अन्य लेखों में भी कर चुके हैं। ये उन्हीं शक्तिशाली राव जोधा जी के वंशज हैं जिनका उल्लेख हम अपनेजोधपुर राज्य का इतिहास नामक लेख में कर चुके हैं।बीकानेर राज्य के मूल संस्थापक मारवाड़ के राजकुमार राव बीका जी थे। ये मारवाड़ के प्रसिद्ध वीर महाराजाराव जोधा के पुत्र थे। इन्हीं जोधा जी ने अपने राज्य की प्राचीन राजधानी मंडौर को छोड़कर सन् 1459 में जोधपुर में नवीन राजधानी स्थापित की थी।
राव बीका जी का इतिहास और जीवन परिचय
जिस समय जोधा जी अपनी नवीन राजधानी में आये उस समय आपके वीर पुत्र राव बीका जी अपने चाचा कांधल जी के साथ तीन सौ राठौडो की सेना लेकर अपने पिता जी के राज्य की सीमा दूर दूर तक फैलाने के लिए रवाना हुए। राव बीका इस दिग्विजय प्रस्थान से पहले आपके भाई बीदा ने भारत के प्राचीन निवासी मोहिलो पर आक्रमण कर उन्हें अपने अधीन कर लिया था। राव बीका जी भ्राता की इस विजय से उत्साहित होकर कुमार बीका जी ने एक छोटी सी राठौड़ सेना के साथ देश विजय के लिए प्रस्थान किया। आपने जंगाल नामक सांखला नाम की प्राचीन जाति पर आक्रमण किया। घमासान युद्ध होने पर सांखला लोगों की पराजय हुई। इस विजय से आपका बल, विक्रम और साहस मरूभूमि की चारों दिशाओं में गूंज उठा। इस युद्ध में विजय प्राप्त कर आप भाटियों के पुंगल देश में पहुँचे। पुंगल-पति ने आपके प्रताप की महिमा सुन रखी थी। अतएवं उसने अपनी कन्या का विवाह आपके साथ कर दिया। चतुर पुंगल पति को यह भली भाँति ज्ञात था कि वीर बीका जी को युद्ध में दो दो हाथ दिखाने के बदले उनसे सम्बन्ध कर अपनी स्वाधीनता की रक्षा करना ही श्रेयस्कर हैं। इधर राव बीका जी देखा कि जब भाटी जाति के अधीश्वर पुंगल पति ने अपने वंश में खुद होकर कन्या दी है तो उन्हीं के राज्य को दबा बैठना उचित नहीं। अतएव आपने भाटी जाति की स्वतंत्रता में किसी प्रकार का दखल नहीं दिया। आपने कोडमदेसर नामक स्थान में एक किला बनवाया ओर आप वहीं रहने लगे। धीरे धीरे निकटवर्ती प्रदेशों को अपने अधीन कर आप अपने राज्य की सीमा बढ़ाते रहे। आपकी असीम सहासी राठौड़ सेना के विरुद्ध किसी भी जाति के अधिपति की न चली। जिस जिस जाति ने आपसे युद्ध करने का साहस किया, उसे उलटे मुँह खानी पड़ी तथा आप की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। इस प्रकार धीरे धीरे अपने राज्य को सुदृढ़ बनाकर आपने जाट जाति पर विजय प्राप्त करने का विचार किया। जाट जाति का विस्तृत वृतान्त हम भरतपुर के इतिहास में बता चुके हैं। यह जाति उस समय कृषि से अपनी जीविका उपार्जन करती थी।आप ने जिस जाट प्रान्त पर हमला करने का विचार किया था, वहाँ के जाट अथवा जेहियाण केवल पशुओं के पालन से अपनी जीविका निर्वाह करते थे। वे “गोहरा जाट” शाखा के थे। उसकी धन सम्पत्ति तथा उनका स्वस्थ केवल पशु ही थे।
जिस समय राव बीका जी नवीन राज्य स्थापना की-अभिलाषा से-इन जाट लोगों के देश को जीतने के लिये आगे बढ़े, उस समय आपके उद्देश की पूर्ति के लिये बहुत से उपयुक्त साधन आपको प्राप्त हो गये। कहना न होगा कि जिस फूट से भारतवर्ष की राज्यशक्ति का विध्वंस हो गया है, यदि उसी फूट का अंश जाटों के हृदय से प्रज्वलित न होता तो आपको बिना युद्ध किये इस जाति पर विजय प्राप्त न होती। जाटों की छः सम्प्रदायों में से जाहिया और गोहरा नामक दो अत्यन्त सामर्थ्यवान शाखाओं में परस्पर अनबन थी। बस, यही एक मुख्य कारण था कि आपको अखिल जाट जाति का आधिपत्य प्राप्त हो गया। आपकी विजय का दूसरा कारण यह था कि क्रूर स्वभाव गोहिल जाति के साथ इन जाटों की भयंकर शत्रुता थी। आपके बीर भ्राता-कुमार बीदा ने, कुछ दी दिन हुए, तब अपनी राठौडों की प्रबल सेना द्वारा इस जाति का विनाश कर अपनी वीरता का परिचय दिया था। जाट लोगों के हृदय में उनकी वीरता पूर्ण रूप से अंकित थी। वे जानते थे कि वीर बीका का युद्ध में सामना करना बड़ी टेढ़ी खीर है। इसके अतिरिक्त जैसलमेर के भाटी लोग इन जाटों पर बड़े अत्याचार करते थे। इनके अत्याचारों से बचने की सम्भावना न देख, जाट जाति ने आत्मसम्पर्ण करने का निश्चय किया।
राव बीका जी जोधपुर राज्य के संस्थापकगोहरा जाट जाति की एक साधरण सभा हुई। इसमें निम्नलिखित
तीन प्रस्ताव स्वीकृत करने की शर्त पर जाटों ने वीर बीका जी के हाथ आत्मसम्पर्ण करने का निश्चय किया।
- जोहिया तथा जो अन्यान्य जाट, गोहरा जाति के साथ शत्रुता और अत्याचार करते हैं, उनके खिलाफ बीकाजी युद्ध करें।
- भाटी गण गाहरा जाति पर आक्रमण न करने पावे, इसलिय उनकी पश्चिमी सीमा की रक्षा बीका जी करें
- यहाँ के निवासियों के चिर प्रचलित स्वत्वों में बीका जी किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करें।
”सखासर और रूनिया के दो जाट नेताओं ने बीकाजी के सन्मुख जाकर उपरोक्त तीनों प्रस्ताव उपस्थित किये। नीति-विशारद बीका ने इन प्रस्तावों में तुरन्त ही अपनी सम्मति प्रदर्शित की। आपके इस प्रकार सम्मति देते ही गोहरा लोगों ने आपको तथा आपके उत्तराधिकारियों को अपना अधीश्वर स्वीकृत कर लिया। आपने उक्त प्रस्ताव स्वीकृत करते हुए कहा था–“में तथा मेरे उत्तराधिकारी किसी भी समय तुम्हारे अधिकारों में हस्तक्षेप न करेंगे। यह बात ज्वलन्त रहने के लिये मैं यह नियम बनाता हूं कि में और मेरे उत्तराधिकारी राज्याभिषेक के समय में तुम और तुम्हारे दोनों नेताओं के वंशधरों से राजतिलक ग्रहण किया करेंगे ओर जब तक इस तरह राज तिलक न दिया जायगा, तब तक राज सिंहासन सूना समझा जायेगा।
गोहरा जाट जाति को इस प्रकार अपने अधीन कर आपने उनके
अधिपति के निकट यह प्रस्ताव किया कि “आपका देश मुझे दे दो, में इस स्थान पर अपनी राजधानी स्थापित करूँगा।” इस अधिकारी का नाम ‘नेरा’ था। आपके प्रस्ताव के प्रयुत्तर में नेराजी ने कहा कि, “में अपना देश आपको देने के लिये तैयार हूँ, परन्तु इस देश से मेरे सम्बन्ध की स्कृति कायम रखने के लिये आपको अपने नाम के साथ मेरा नाम जोड़ कर राजधानी का नाम रखना होगा।” यह बात भी आपने तुरन्त ही स्वीकार कर ली। यही कारण है कि आपने जो नगर बसाया उसका नाम बीकानेर रखा गया। कहने की आवश्यकता नहीं कि, आपने उपरोक्त प्रतिक्षाओं का पूरी तौर से पालन किया। आज तक दिवाली और होली के समय में शेखासर और रूणिया के प्रधान जाट नेता बीकानेर के अधीश्वर तथा समस्त राठौड़ सामन्तों को तिलक करते हैं।
जैसा कि हम ऊपर कह आये हैं जोहिया जाटों और गोहरा जाटों
में जानी दुश्मनी थी और राव बीका जी ने जो जोहिया लोगों को परास्त करने का गोहरा जाटों को अभिवचन दिया था। अतएवं अपने विजित प्रदेश की ठीक तौर से व्यवस्था कर लेने के पश्चात् आपने वीर राठौड़ो तथा नबजीत गोहरो के साथ जोहिया जाटों पर आक्रमण किया। जोहियों के सर्व प्रधान नेता का नाम शेरसिंह था। यह मरूपाल नामक स्थान में निवास करता था। इसने अपनी समस्त सेना सहित आपके खिलाफ युद्ध करने की तैयारी कर रखी थी। बराबर कई युद्धों में विजयी होकर भी आप इस युद्ध में सरलता से विजय प्राप्त न कर सके। शत्रुगण अद्भुत पराक्रम दिखाकर आपके छक्के छुड़ाने लगे। अन्त में विजय की कोई सूरत न देख, आपने षड्यंत्र द्वारा शेरसिंह को मार डाला तथा मरूपाल स्थान पर अपना अधिकार कर लिया। विवश होकर जोहिया जाट जाति भी आपके अधीन हो गई। इस प्रकार एक के बाद एक प्रान्त जीत कर आपने एक विस्तृत प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया। भाटी लोगों को भी आपने पूर्ण शिकस्त दी। सन् 1489 की 15 मई को आपने बीकानेर में अपनी राजधानी स्थापित की। राजधानी स्थापन करने के पश्चात आप अधिक दिन तक राज्य न॒ कर सके। सन् 1504 की 17 जून में राव बीका जी स्वर्गवास हो गया।
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