राव जोधा राठौड़ का इतिहास और जीवन परिचय

राव जोधा जी राठौड़

राव रणमल जी के 26 पुत्र थे। इन सब में राव जोधा जी बड़े थे।
राव जोधा जी बड़े वीर और पराक्रमी राजा थे। काहुनी नामक स्थान से मन्डोर को प्राप्त करने के लिये आपने उस पर कई आक्रमण किये पर सब विफल हुए। इसी बीच एक समय रावजी किसी जाट के मकान में चले गये। जाट वहां न था। जोधा जी ने उसकी स्त्री से खाने के लिये कुछ माँगा। उस दिन जाट के घर में बाजरी का खीच पकाया गया था। अतएव जाटनी ने उसी को थाल में परोसकर जोधा जी के सामने रख दिया। रावजी ने उस खीच में अपनी अगुलियाँ रख दीं, खीच गरम था अतएव उनकी अंगुलियाँ जल गई।

राव जोधा जी का इतिहास और जीवन परिचय

यह देख जाटनी ने कहा “मालूम होता है तुम भी जोधा जी ही के समान मूर्ख हो।” उसे क्‍या मालूम था कि ये ही राव जोधा जी हैं। रावजी ने उक्त जाटनी से जोधा जी को मूर्ख बतलाने का कारण पूछा। जाटनी ने कहा–“जोधाजी ने ( एक मूर्ख आदमी के समान ) एक दम मंडोर पर आक्रमण कर दिया। यही कारण था कि उन्हें उसमें असफलता हुई।” जाटनी की इस बात से जोधा जी को बड़ा उपदेश मिला। उन्होंने इ० स० 1453 में सांकला हरयू , और भाटी जेसा की सहायता से मन्डोर पर आक्रमण किया और राणाजी की सेना को हराकर उस पर अपना अधिकार कर लिया। जब यह समाचार राणाजी के पास पहुँचा तो वे खुद सेना लेकर मारवाड़ पर चढ़ आये। राव जोधा जी ने भी सेना संगठित कर राणाजी का सामना करने के लिये कूच बोल दिया। यह देखकर कि राठौड सैनिक “कार्य साधयामि वा शरीर पातयामि” पर तुले हुए हैं, राणाजी वापस मेवाड़ लौट गये। अब तो जोधा जी का उत्साह बढ़ गया। एक भारी सेना एकत्रित करके, उन्होंने अपने पिताजी की मृत्यु का बदला लेने के लिये मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। गोंडवाड को लूटकर जोधा जी चित्तौड़ की तरफ बढ़े। उन्होंने वहाँ पहुँच कर किले के दरवाजों को जला डाला और शहर में घुस कर धूमधाम मचा दी।

राव जोधा जी राठौड़
राव जोधा जी राठौड़

राणाजी ने देखा कि शत्रु का सामना करना कुछ कठिन है तो वह
अपने पुत्र उदय सिंह को जोधा जी के साथ सन्धि कर लेने के लिये भेज दिया। संधि में तय हुआ कि दोनों राज्यों की सीमाएँ आंवला और बबूल के झाड़ों द्वारा निर्धारित कर ली जायें। उदयपुर की सीमा पर आंवले का झाड़ और मारवाड़ की सीमा पर बबूल का झाड़ लगा दिया गया। इसी समय से जोधा जी अत्याधिक शक्तिशाली होते गये। इं० स० 1408 में जोधा जी ने मन्डोर से तीन कोस के अन्तर पर की एक पहाड़ी पर किला बनवाया। इस किले के किवाड अभी भी जोधा जी के किवाड़ों के नाम से प्रसिद्ध हैं। उक्त पहाड़ी की सतह में जोधा जी ने अपने नाम से जोधपुर नामक शहर बसाया। किले के पास ही “ रानीसर ” नामक एक तालाब है जो कि राव जोधा जी की रानी द्वारा बनाया गया था।

सन् 1474 में जोधा जी ने छपरा, द्रोणपुर (वर्तमान बिदावती)
आदि के राजा को हरा कर मार डाला। फिर अपने पुत्र बिदा को वहाँ का शासक नियुक्त कर दिया। इसी प्रकार आपने सांकला सरदार जेसाल को हरा कर उसका जांगल प्रान्त ( वर्तमान बीकानेर ) हस्तगत कर लिया। इस प्रान्त पर जोधा जी के पुत्र बीकाजी का अधिकार रहा। वर्तमान बीकानेर शहर इन्हीं बीकाजी का बसाया हुआ है। इस समय अजमेर , मालवा-राज्य के आधीन था। राव जोधा जी ने इस प्रान्त के 360 गावों पर अपना अधिकार कर लिया। ये गाँव मेड़ता जिले में मिला लिये गये। बरसिंह जी और दुदाजी वहाँ के शासक नियुक्त कर दिये गये।

एक समय राव जोधा जी गया जी की यात्रा करन गय हुए थे। वहाँ
पर आपने यात्रियों पर भारी टैक्स लगा हुआ पाया। उस समय गया जौनपुर के राजा के अधिकार में था। अतएव उससे कहकर यात्रियों पर का वह टैक्स माफ़ करवा दिया। सन् 1498 में राव जोधा जी का स्वर्गवास हो गया। आपके बीस पुत्र थे। अपनी मृत्यु होने के पहले ही आप अपने पुत्रों को अलग अलग जागीर प्रधान कर गये थे , ताकि वे आपस में झगड़ने न पावें। आपने अपने जीवन का अन्तिम समय बड़ी ही शान्ति के साथ व्यतीत किया। आप बड़े पराक्रमी, दानी एवं दूरदर्शी शासक थे।

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