राव उदय सिंह राठौड़ का इतिहास और जीवन परिचय Naeem Ahmad, December 13, 2022March 24, 2024 राव उदय सिंह राठौड मारवाड़ के राजा थे, इनका जन्म 13 जनवरी 1538 को जोधपुर में हुआ था। यह राव मालदेव के पुत्र और राव गंगा जी के पौत्र थे। राव मालदेवजी का स्वर्गवास हो जाने पर चन्द्रसिंह जी मारवाड़ की गद्दी पर बिराजे। इनके बाद सन् 1584 में राव उदय सिंह राठौड़ जी सिंहासनारूढ़़ हुए। आपने अपनी लड़की का विवाह शाहज़ादा सलीम से और अपनी बहिन का विवाह सम्राट अकबर के साथ कर दिया था। सम्राट अकबर ने खुश होकर आपको आपका सारा मुल्क लौटा दिया। हाँ, अजमेर को सम्राट ने अपने ही अधीन रखा। राजपूत लोग उदयसिंह जी को मोटा राजा कह कर पुकारते थे। इनका शरीर इतना स्थूल हो गया था कि ये घोड़े पर भी नहीं चढ़ सकते थे। राव उदय सिंह राठौड़ का इतिहास और जीवन परिचय आपने 13 वर्ष राज्य किया। मारवाड़ के प्राय: समस्त भाट-ग्रन्थों में लिखा है कि राठौड़ कुल के राजकुमारों की नीति-शिक्षा उत्तम रीति से हुआ करती थी। उनकी नीति-शिक्षा का भार विश्वासी और बुद्धिमान सरदारों को सौंपा जाता था। सब से पहले सरदार लोग इन्हें इम्द्रिय-दमन की शिक्षा दिया करते थे। पर उदयसिंह जी से इस बात का नितान्त अभाव था। यद्यपि आपके 27 रानियाँ थी पर फिर भी समय समय पर आप अपनी विषय- लोलुपता का परिचय दे ही जाते थे। इस सम्बन्ध की एक घटना को लिख देना आवश्यक समझते हैं। राव उदय सिंह राठौड़ मारवाड़ एक समय उदय सिंह जी बादशाह के दरबार से लौट रहे थे कि रास्ते में बिलाड़ा नामक ग्राम में एक सुन्दरी ब्राह्मण कन्या पर इनकी दृष्टि पड़ी। उस बाला के अद्भुत सौंदर्य को देख कर राव उदय सिंह जी का मन हाथ से जाता रहा। उन्होंने उसके पिता से उसे देने के लिये कहा। पर जब ब्राह्मण ने यह बात स्वीकार न की तो इन्होंने बलात्कार करना निश्चित किया। जब यह बात उक्त ब्राह्यण को मालूम हुई तो वह बड़ा क्रोधित हुआ। उसने निश्चय कर लिया कि प्राण भले ही चले जाये पर अपने जीते जी अपनी लड़की का इस प्रकार अपमान न देख सकूंगा। उसने अपने आंगन में एक बड़ा होम-कुंड खोदा। फिर उस कन्या के टुकड़े टुकड़े करके उस यज्ञ कुंड में डाल दिये। बहुत सी लकडियां और घृत भी उसमें डाला गया। दुर्गन्धमय धूमराशि उसके आंगन में भर गई । ज्वाला की भयंकर लपटे धांय धांय करती हुई आकाश-मंडल को चूमने लगीं। इसी समय उस ब्राह्मण ने खड़े होकर राजा को श्राप दिया “तुझको अब कभी शान्ति न मिलेगी। आज से तीन वर्ष, तीन माह, तीन दिन और तीन पहर के मध्य में मेरी यह प्रतिहिंसा अवश्य पूर्ण होगी।” यह कह कर वह ब्राह्मण भी उस जलते हुए अग्नि कुंड में कूद पड़ा। अग्नि की अगणित लपटों ने उसे भी वहीं भस्मीभूत कर दिया। यह भयंकर और वीभत्स समाचार राजा उदयसिंह जी के कानों तक पहुँचा। कहा जाता है कि इसी समय से ये एक क्षण भरके लिये भी शान्ति प्राप्त न कर सके। उनका अन्तिम काल इसी प्रकार विषाद में व्यतीत हुआ। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— [post_grid id=”13251″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के महान पुरूष जोधपुर का राजवंशराठौड़ राजवंश