रामानंदी संप्रदाय के संस्थापक, पीठ, नियम व इतिहास Naeem Ahmad, November 19, 2023 रामानंदी संप्रदाय को वैरागी संप्रदाय भी कहते हैं। रामानंदी संप्रदाय के प्रवर्तक मध्यकाल के प्रसिद्ध गुरु रामानन्द जी थे। प्रारम्भ में रामानन्द रामानुजाचार्य की शिष्य परम्परा में राघवानन्द जी के शिष्य थे तथा रामानुज अथवा श्री सम्प्रदाय के अनुयायी थे। तथा रामानुज की भक्ति को दक्षिण भारत से उत्तर में लाने का श्रेय रामानन्द जी को ही है, जो कि इस प्रसिद्ध दोहे से ज्ञात होता है: — भक्ति द्राविड़ ऊपजी लाये रामानन्द । प्रकट कियो कबीर ने सप्त द्वीप नव खंड ॥ रामानुज संप्रदाय में खान-पान सम्बन्धित नियम बड़े कठोर थे। जातिगत भेद भाव उसमें बहुत प्रचलित थे। रामानन्द अपने देशाटन के काल में इन कठोर नियमों का पालन करने में असमर्थ थे। इसके उपरांत एक भक्त के लिये इन नियमों की निरर्थकता का अनुभव भी उन्हें होने लगा था। उनका दृढ़ मत था कि ईश्वर की दृष्टि में सब मनुष्य बराबर हैं इसलिये भक्ति का सबको समान अधिकार है। छूत अछूत के भेद निरर्थक है। उनके इस व्यापक दृष्टिकोण तथा उदार धर्म-भाव के कारण उन्हें रामानुज सम्प्रदाय से अलग हो जाना पड़ा था। उनके साथ ही अन्य कई शिष्य सम्प्रदाय को छोड़ चुके थे। और तब रामानन्द ने अपना मत रामावत अथवा वैरागी सम्प्रदाय के नाम से प्रवर्तित किया। आगे चलकर यही रामानंदी संप्रदाय से प्रचलित हुआ। वास्तव में यह वैष्णव सम्प्रदाय ही की एक शाखा है। रामानंदी संप्रदाय के संस्थापक, पीठ, नियम व इतिहास रामानन्द अपने युग के गुरु थे उनका समय सन् 1400 से 1470 के लगभग माना गया है। रामानन्द ने रामानुज के उस आचार प्रधान पंथ को छोड़ कर प्रेम-भक्ति का एक सहज मार्ग अपनाया। धर्मगत एवं जातिगत बन्धनों को उन्होंने अस्वीकार किया। निम्न जाति के लोगों को भी अपना शिष्यत्व दिया तथा अपने मत के प्रचार कार्य के लिये संस्कृत के स्थान पर हिन्दी भाषा का का उपयोग किया। रामानन्द ने तत्कालीन प्रचलित वैष्णव उपासना पद्धति में थोड़ा परिवर्तन किया। उन्होंने कृष्ण के स्थान पर राम को अपना इष्ट मान कर राम नाम का आश्रय लिया। उन्होंने वैष्णवों के द्वादशाक्षर मन्त्र के स्थान पर रामपडाक्षर मन्त्र का प्रचार किया । रामानन्द ने अपने शिष्यों को लक्ष्मण एवं सीता सहित रामचन्द्र जी का ध्यान धरने का उपदेश दिया है। विद्वानो का कहना है कि त्रिमूर्ति की उपासना का यह सिद्धान्त विशिष्टद्वैत के तत्व त्रय सिद्धान्त के अनुरूप ही है। त्रिमूर्ति में सीता प्रकृति तत्व, लक्ष्मण जीव तत्व तथा राम ईश्वर तत्व के घोतक है। रामानंदी संप्रदाय रामानन्द जी ने भक्ति के क्षेत्र में धार्मिक कट्टरता का विरोध किया था, इस बात को श्री बलदेव उपाध्याय स्वीकार नही करते। उनके मतानुसार रामानन्द धर्म-बंधनों को मानने वाले थे। किन्तु दक्षिण भारत एवं उत्तर भारत की स्थिति में ही अन्तर था। उत्तर भारत में पहले से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैष्णवों को वेदाध्ययन का अधिकार प्राप्त था। चाहे कुछ भी हो इतना अवश्य हैं कि रामानंद के प्रमुख शिष्यों मे विभिन्न जाति के लोग थे और उनमे निम्न कही जाने वाली जाति के शिष्य भी थे। रविदास, कबीरदास, धन्ना, सेना, पीपा, प्रभृति प्रसिद्ध अनुयायी समाज की विभिन्न जातियों में से आये थे। रामानन्द जी अपने शिष्यों को राम की पूजा-अर्चना का उपदेश देते थे।किन्तु वे यह भी मानते थे कि ईश्वर हमारे हृदय-मन्दिर में विद्यमान है। वह सर्वोव्यापी है। केवल मन्दिरों में जाने से ही वह नही मिलता। रामानंद जी ने मुक्ति का साधन भक्ति को माना। भगवान राम की अनुराग पूर्ण अविरत भक्ति ही एक मात्र मोक्ष दिला सकती है। रामानंद जी के प्रमुख शिष्यों में कबीरदास, सेन, धन्ना, अन्नतआनंद, सुरसुरानंद, प्रभृति सात शिष्य थे। राजस्थान में रामानन्द जी की शिष्य परम्परा के भक्त अनंतानंद जी के शिष्य कृष्णदास हुए। उन्होंने रामानंद जी के इस वैरागी तथा रामानंदी संप्रदाय को बहुत आगे बढ़ाया। इनके शिष्यों में अग्रदास इत्यादि उच्च कोटि के भक्त एवं कवि हुए। रामानंद जी के प्रमुख शिष्यों में पीपा जी भी राजस्थान के थे। वे बहुत उच्च कोटि के भक्त थे। वह अपने जीवन की उत्तरावस्था में गुजरात में द्वारिका में आकर रहे थे। गुजरात में हमारे आलोच्य काल के भक्त कवियों में से प्रसिद्ध कवि भालण ने भी राम की उपासना की। यद्यपि वे रामानंदी संप्रदाय अथवा अन्य किसी सम्प्रदाय के शिष्य नहीं बने थे। तथापि वैष्णव भक्ति के उस युग में जब कि अधिकांश कवियों ने कृष्ण को इष्ट माना था, भालण ने राम को इष्ट मानकर उपासना एवं काव्य रचना की है। तात्पर्य यह कि राजस्थान एवं गुजरात पर वल्लभ सम्प्रदाय के पश्चात अधिक प्रभाव रामानंदी संप्रदाय का कहा जा सकता है। इसके अतिरिक्त अन्य वैष्णव सम्प्रदायों में से निम्बार्क संप्रदाय और रामानुज सम्प्रदाय का भी थोड़ा बहुत प्रभाव यहां के भक्तों पर पड़ा है। हमारे यह लेख भी जरुर पढ़े:— तानसेन का जीवन परिचय, गुरु, पिता, पुत्र, दूसरा नाम और शिक्षा संगीत सम्राट तानसेन का नाम सवत्र प्रसिद्ध है। आज से लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व भारतीय संगीत के क्षितिज पर यह Read more कवि भीम का जीवन परिचय और इतिहास आज के अपने इस लेख में हम उस प्रसिद्ध भक्त एंव कवि के जीवन चरित्र के बारे में जानेंगे जिसने गुजराती Read more कवि भालण का जन्म कब हुआ और समय काल मध्यकाल के प्रसिद्ध एवं समर्थ आख्यानकार गुजरात के कवि भालण के जन्म काल के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। Read more निम्बार्क सम्प्रदाय के संस्थापक, प्रधान पीठ, गुरु परंपरा व इतिहास रामानुज संप्रदाय के पश्चात् निम्बार्क सम्प्रदाय का प्रचार गुजरात एवं राजस्थान में मध्यकाल में हुआ है। गुजरात में प्राचीन ग्रन्थ भंडारों Read more रामानुज संप्रदाय की पीठ, परिचय, प्रवर्तक, नियम व इतिहास रामानुज संप्रदाय के प्रवर्तक श्री रामानुजाचार्य थे। इनका समय ईसवी सन् 1017 से 1137 माना गया है। इनका सिद्धांत विशिष्टद्वैत Read more वल्लभ 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