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रामनवमी

रामनवमी का महत्व – श्रीराम का जन्मदिन चैत्र रामनवमी कैसे मनाते हैं

रामनवमी भगवानराम का जन्म दिन है। यह तिथि चैत्र मास की शुक्ला नवमी को पड़ती है। चैत्र पद से चांद्र चैत्र समझना चाहिए। इसी दिन राम चन्द्र जी का जन्म हुआ था। अतः यह तिथि रामनवमी कहलाती है। रामनवमी का व्रत सकल पाप-कलुष विनाशक है। इसे सबके सब नर-नारी, बाल-किशोर, युवक, प्रोढ वृद्ध, तथा राजा-रंक, फकीर बड़ी मर्यादा और श्रृद्धाभक्ति के साथ मनाते है।

रामनवमी का महत्व क्या है

भारत वर्ष ऋतुओं का देश है। इन ऋतुओं में सर्वोत्तम ऋतु है बसंत और वर्षा। इन वर्षा और बसंत ऋतुओं में हिन्दू धर्म के दो सर्वश्रेष्ठ और सर्वोत्तम अवतार भगवान राम और भगवान श्रीकृष्ण अवतरित हुए हैं। बसंत के चैत्र मास मे श्री राम और वर्षा के भादो मास मे श्रीकृष्ण की जन्म तिथियां आती है।

बसंत ऋतु में दो मास होते है चैत्र और बैसाख। बैसाख मास कुछ अधिक उष्ण होता है किन्तु चैत्र मास मे सौरभ और उल्लास भरे भरे रहते है। यही कारण है कि चैत्र मास को कुसुमाकर कहा गया है। चैत्र मास इसलिए मधुमास है। ऐसे मोहक मास में ऐसी मोहिनी तिथि को भगवान श्रीराम का जन्म होना स्वभाविक और समुचित है– यह हमे जान लेना चाहिए।

भारतीय जीवन में कृषि का अपूर्व महत्व है। भारत देश ही कृषि प्रधान है। कृषि की इसी आनंदमयी ऋतु में फसल फूटकर खेत-खलिहान में आ जाती है। लोग बड़े व्यस्त और अत्यंत प्रसन्न रहते है। इस समय बसंत अपनी सकल सुपभाओ के साथ विराजता है। भू के कण कण में तथा शरीर की नस नस में अभिनव जीवन जाग जाते हैं। ऐसी बेला में ऐसे समय मे भगवान राम का जो मर्यादा पुरुषोत्तम है का अवतरण कितना उत्तम, कितना पवित्र और कितना प्रेरक होता है, यह सोचने-विचारने को बात हैं।

रामनवमी
रामनवमी

रामनवमी के दिन नाचने, गाने, जागरण करने, भक्तिपुर्वक पुस्तक पाठ करने और रामभक्‍तों के पूजन करने से राम के लोक की प्राप्ति होती है। जैसे किसान लोग कृषि की वृद्धि के लिए वृष्टि चाहते है, वैसे पितर लोग भी रामनवमी का व्रत चाहते हैं। रामनवमी का उपवास करने से सैकड़ो, हजारो और करोड़ों पाप नष्ट हो जाते है। जो रामनवमी की कथा श्रवण, कथन और सस्मरण करता हैं वह ऋद्धिमान, बुद्धिमान, घर्मवान, कीर्तिमान और सुखी होता हैं। सभी को सारे कष्ट उठाकर इस व्रत का पालन करना चाहिये। कभी सागर भी सूख जाता है हिमालय भी क्षीण हो जाता है, परन्तु रामनवमी से प्राप्त पुष्यो का क्षय कदापि नही होता।

कहा जाता है कि राम से बढकर राम के नाम का महत्त्व है। राम नाम पाप धोने वाला तथा सीता नाम विपत्ति विनाश करने वाला हैं। सीताराम के उच्चारण से ही मानव समस्त लोक-परलोक सुखाधिकारी हो जाता है “रा” कहने से मुंह खुलता है। मुंह खुलने के साथ सकल पाप बहिर्गत हो जाते है। और “म”’ कहने से मुंह बन्द होता है और इस प्रकार सभी पुण्य राम कहने वाले का अपना हो जाता हैं। और सीताराम इसके उच्चारण मात्र से मानव जन्म-जन्मान्तर के लिए उन्हीं का (सीताराम का) हो जाता है।

राम के नाम के साथ सहस्त्रों कथाएँ लगी है। यह भारत का प्रसाद है। इन कथाओं में दो अत्यन्त प्रसिद्ध है। पहली कथा प्रह्लाद की है। प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप ने उसे रामनाम लेने के कारण मौत के घाट उतारना चाहा उसे पहाड़ से गिराया, आग में जलाया और वध कर देना चाहा। प्रह्लाद फिर भी रामनाम लेता रहा। अन्त में भगवान का अवतार हुआ। राक्षस मारा गया और प्रल्हाद की रक्षा हुई।

दूसरी कथा हनुमान की हैं। हनुमान सुग्रीव का सेनानायक था और भगवान राम का परम भक्त। उसे रामनाम विहीन कोई वस्तु प्यारी नही थी। जब रामेश्वर सेतु बाँधा जा रहा था वह प्रत्येक पत्थर पर रामनाम लिखकर डालता था। लंका विजय के बाद जब सीता जी ने उसे बहुमूल्य मोतियों की माला प्रदान की तो उसने प्रत्येक मोती को तोड़-तोडकर देखा कि उसमें राम नाम लिखा हैं कि नही। और सीता के यह पूछने पर कि उनके हृदय में रामनाम लिखा है कि नही उसने छाती फाडकर दिखलाया कि हृदय पर रामनाम अंकित हैं। रामनाम हमारी जिव्हा पर गूंजता है हम रामनाम रूपी नौंका से भवसागर पारकर स्वर्गलोक के अधिकारी बनतें हैं। रामनाम के इस महत्व के कारण ही रामकथा-रामायण-रामचरित का यह महत्व हैं कि वह हमारे जीवन के अग-अंग में समा गया है।

राम दशरथ के पुत्र थे। दशरथ सूर्यवंशी थे, रघुवंशी थे। उन्होंने अयोध्या पर राज्य किया था। दशरथी राम के सिवा दो राम ओर हुए — परशुराम और बलराम। राम विष्णु के अवतार हुए। वे श्रेता के अन्त में हुए थे। महाभारत के वनपर्व में रामकथा संक्षेप में कही गयी हैं। यही कथा रामायण में महाकाव्य बने गयी है। राम जन्म कथा बड़ी रहस्यात्मक, प्रेरणात्मक और भक्ति-उत्पादक है । कहा जाता है कि परम प्रतापी चक्रवर्ती राजा दशरथ ने पुत्रेच्छा से अश्वमेध यज्ञ किया। भगवान को यह यज्ञ स्वीकार हुआ, और दशरथ को चार पुत्रों की प्राप्ति का वरदान मिला। उस समय देवता बड़े कष्ट में थे। राक्षस रावण के अत्याचार से ऊबकर भगवान के यहाँ पहुंचे। उनकी स्तुति की। वे प्रसन्‍न हुए और दुष्ट-दलन के लिए भगवान के सातवें अवतार-राम अवतार के लिए तैयार हुए। दशरथ ने पुत्रेप्टि यज्ञ किया। यज्ञान्त में भगवान स्वयं पुत्रामृत लेकर वरदान देने के लिए पधारे। फलस्वरूप दशरथ के चार पुत्र रत्न उनकी तीन रानियों से हुए। ये चारों भाई जिनमें राम सबसे बड़े, सबसे योग्य थे। राम रघुकुल के मानव कुल के रत्न बने।

रामायण या रामावतार की कथा वाल्मीकि के अमर ग्रंथ रामायण में वर्णित हैं। यह ग्रंथ ईसवी सदी के हजारों वर्ष पूर्व वाल्मीकि द्वारा कही गयी है। रामायण की हस्तलिखित पोथियों में उत्तर दक्षिण-देश-शिदेश भाषा-भाषा का बडा भेद हो गया है। रामायण दुनिया की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवादित है।

सम्प्रति रामायण के प्रमाणान्तर अध्यात्म रामायण की चर्चा होती है। इसके लेखक व्यामदेव माने जाते हैं। किन्तु कुछ लोग इसे ब्रह्मा पुराण का एक अंश समझते है। अध्यात्म रामायण, रामायण की तरह सात कांडों में विभाजित है। इनमें राम का अध्यात्म रूप वर्णित है।

रामायण सात कांडों में है। इसमें पचास हजार पंक्तियाँ है। बालकाण्ड में राम का बाल चरित्र हैं। अधोष्याकाण्ड में राम वनगमन है। अरण्यकाण्ड में राम का वन निवास और सीता हरण है। कषिंधाकाण्ड में सुग्रीव मिलन है। सुन्दरकाण्ड में राम की लंका यात्रा है। युद्ध काण्ड मे राम रावण युद्ध और सीता की प्राप्ति है। राम का अयोध्या आगमन और राम राज्याभिषेंक है। और उत्तरकाण्ड में राम का अयोध्या जीवन, सीता-परित्याग, लवकुश का जन्म राम-सीता पुनः मिलन सीता की मृत्यु और राम का स्वर्गमन है।

रामायण की रचना बड़ी उदात है। उसकी बड़ी प्रतिष्ठा है। रामायण के प्रारंभ में ही बतलाया गया है कि रामायण पाठक या श्रोता मुक्ति पाकर उच्चस्थ स्वर्ग को प्राप्त करता है। बाद में ब्रह्मा ने कहा है कि जब तक पृथ्वी पर पर्वत और सरिताएं है तब तक रामायण रहेगी।

रामनवी कैसे मनाते है

दुनिया में करोड़ों लोग आते हैं, चले जाते हैं। उन में अधिकतर को कोई नहीं जान पाता। कुछ ही ऐसे होते हैं जिनको दुनिया जानती है। इनसे भी कम वो होते हैं जिन्हें दुनिया याद करती है और ऐसे तो बहुत ही कम होते हैं, जिनको दुनिया न केवल सप्रेम और सम्मान के साथ याद करती है बल्कि उनकी पूजा भी करती है। भगवान रामचंद्र जी का ऐसा ही ऐतिहासिक व्यक्तित्व है।

भगवान रामचंद्र, जिन्हें इल्लामा इकबाल ने “इमाम-ए-हिन्द”” यानी भारत को राह दिखाने वाला, की उपाधि दी थी, सारे भारत में श्रद्धा की नजर से देखे जाते हैं। महर्षि वाल्मीकि और तुलसीदास ने इनके जीवन के बारे में रामायण लिखा, जिनको रामलीला में हर साल मंच पर दिखाया जाता है। राम की नगरी अयोध्या में रामनवमी के अवसर पर मेला लगता है, जिसमें लाखों रामभक्त भाग लेते हैं। श्रद्धालु इस दिन व्रत रखकर पवित्र सरयू नदी में स्नान करके, भजन गाकर और रामकथा सुनकर दिन बिताते हैं। रामायण का पाठ घरों में भी किया जाता है।

रामनवमी के दिन जो भक्त अयोध्या नहीं जा पाते वह अपने गांव और शहरों में रामकथा सुनते हैं और मंदिरों में रामचंद्र जी की झांकियां देखते हैं, जहां बड़ी भीड़ होती है। कुछ जगहों पर इस दिन राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान की मूर्तियों की रथयात्रा निकाली जाती है। अयोध्या में “कनक भवन” में रामजी के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। पांडिचेरी के श्री वरदा राजा पीरीमल मंदिर में बीस दिन तक रामनवमी मनाई जाती है। रामचंद्र ने हिमालय से श्रीलंका तक लोकप्रिय शासन स्थापित किया था, जिस में कोई ऊंच-नीच नहीं थी, जहां कोई भूखा नहीं रहता था, हर किसी को न्याय मिलता और अत्याचारियों को पनपने नहीं दिया जाता था। इसी महान व्यक्ति को याद करते हुए गांधी जी ने अंतिम समय “हे राम” कहा था। वह एक मिसाली पुत्र, वफादार भाई, कर्तव्यपालक पति और कोमल हृदय वाले राजा थे। इसलिए लोग मिलने पर एक-दूसरे को राम-राम कहते हैं। उन्होंने जालिम राजा रावण से युद्ध किया था और हनुमान की सहायता से रावण को खत्म कर के सीता की रक्षा की थी। रामचद्र को पूजा करने का असल में लाभ तभी है, जब हम उनके बताए हुए आदर्शों पर चल कर दुनिया में दुबारा रामराज लाने का प्रयास करें।

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Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

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