रामदेवरा का इतिहास – रामदेवरा समाधि मंदिर दर्शन, व मेला Naeem Ahmad, October 27, 2019March 18, 2024 राजस्थान की पश्चिमी धरा का पावन धाम रूणिचा धाम अथवा रामदेवरा मंदिर राजस्थान का एक प्रसिद्ध लोक तीर्थ है। यह राजस्थान के जैसलमेर जिले के अंतर्गत पोखरण नामक गांव से लगभग 13 किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित है। यह स्थान जोधपुर पोखरण रेल मार्ग एवं जोधपुर, बिकानेर जैसलमेर से मोटर मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुडा हुआ है। रामदेवरा का नीवं बाबा रामदेवजी तंवर ने रखी थी। यह स्थान बाबा रामदेवजी का समाधि स्थल है। जिन्होंने जात-पात, ऊंच-नींच, कुलीन-अकुलीन इत्यादि कृत्रिम बंधनों से मुक्त होने का मार्ग दिखाया। यहां उनका भव्य मंदिर बना हुआ है। और वर्ष दो बार रामदेवरा में मेला भी लगता है। जिसमें बड़ी संख्या में बाबा रामदेवजी को मानने वाले लोग भाग लेते है। और रामदेवरा दर्शन के लिए आते है। रामदेवरा का इतिहास – हिस्ट्री ऑफ बाबा रामदेवजी धामरामदेवरा के निर्माता बाबा रामदेवजी का जन्म पंद्रहवीं शताब्दी के पूर्ववाद में हुआ था। उस काल में राजस्थान तो क्या पूरे भारतवर्ष की दशा दयनीय थी। समग्र भू भाग पर विदेशी द्वारा पदाक्रांत था। पराजय पर पराजय के थपेड़ों से यहां का जन मानस हीन भावना से ग्रसित हो चुका था। शान सत्ता छोटे छोटे टुकड़ों में विभाजित थी। सर्वोच्च सत्ता की ओर से साम्प्रदायिक विद्वेष इतना जोर पकड़ चुका था कि वर्गविशेष जनता को उनके नित्यकर्म करने तक का अधिकार न था। इतने पर भी उस वर्गविशेष में छोटे बडे, ऊंच-नीच, जात-पात, छुआछूत की भ्रांति अपनी चरम अवस्था पर थी। अनेक मत मतान्तरों का उदय हो चुका था। ऐसी ही विकट परिस्थिति में पश्चिमी राजस्थान के उण्डू काश्मीर नामक गांव के पास सन् 1462 मे दूज के दिन बाबा रामदेव जी का जन्म हुआ। रामदेवजी के पिता का नाम अजमल जी था, जो तंवर कुलश्रेष्ठ थे। रामदेव जी की माता का नाम मैणा देवी था। इस बालक ने आगे चलकर मानवमात्र को मानवीय अधिकार दिलवाने का बीडा उठाया और समग्र राजस्थान, गुजरात तथा सिंध क्षेत्र में शांति क्रांति का सूत्रपात किया।मुकाम मंदिर राजस्थान – मुक्ति धाम मुकाम का इतिहासजिन दिनों बाबा रामदेवजी का अवतरण हुआ उन दिनों राजस्थान के पश्चिमी भूभाग पर साथलमेर (वर्तमान पोखरण के समीप) के कुख्यात भैरव का राक्षस का प्रबल उत्पात था। जिसके कारण आसपास के सैकडों गांव उजड चुके थे। दुर्भाग्यवश यदि कोई जीवधारी उक्त भैरव के अधिकार क्षेत्र में चला जाता तो वह दुष्ट उस प्राणी को नहीं छोड़ता। मानव देहधारियों में केवल एक तपोनिष्ठ साधु थे। जो भैरव के दुष्प्रभाव से प्रभावित नहीं हुआ थे। उनका नाम था जोगी बालीनाथ। ये ही जोगी बालीनाथ जी महाराज आगे जाकर बाबा रामदेव जी के धर्म गुरू के रूप प्रतिष्ठित हुए। वर्तमान पोखरण में इनका साधना स्थल विद्यमान है। तथा इनकी समाधि जोधपुर के निकट मसूरिया नामक पहाडी पर बनी हुई है। बाबा रामदेव जी ने यद्यपि अनेक बाल लीलाएँ की थी, परंतु उन सब में रामदेव और राक्षस भैरव दमन लीला ने वहां के क्षेत्रिय जन मानस को अत्यंत प्रभावित किया।श्री महावीरजी टेम्पल राजस्थान – महावीरजी का इतिहासकहते है कि एक बार बाबा रामदेवजी अपने साथियों के साथ गेंद खेल रहे थे, तो उनकी गेंद भैरव की सीमा में जा गिरीं। सायंकाल का समय हो चुका था। तथा भैरव का भय भी भयभीत कर रहा था। अतः कोई भी साथी गेंद लाने का साहस न कर सका। ऐसी परिस्थिति मे बाबा रामदेवजी स्वंय गेंद लाने के लिए तैयार हुए। हांलाकि उनके साथियों ने रात्रि तथा भैरव का भय बताकर लाख लाख मना किया, परंतु रामदेव के चरण तो जिधर गेंद गई थी उधर बढ़ चुके थे। संध्याकालीन छुटपुटे पक्षी अपने अपने घोंसलों की ओर चहचहाते बढ़ रहे थे। अंधेरे का सम्राज्य धीरे धीरे बढ़ रहा था। ऐसे समय में बालक रामदेवजी गेंद तलाशते तलाशते जोगी बालीनाथ जी की धूनी पर पहुंच गए। उन्होंने जाते ही सर्वप्रथम योगी के चरण स्पर्श करते हुए साष्टांग दण्डवत किया। योगीराज ने बालक की पीठ थप थपाकर आशीर्वाद देते हुए (साश्चर्य) इस प्रकार के कुसमय आने का कारण पूछा। बालक रामदेव जी ने निश्छल भाव से गेंद वाली घटना वर्णन किया। योगी बालीनाथ निःश्वास छोड़ते हुए बोले- बेटा गेंद तो अवश्य मिल जायेगी परंतु दुष्ट भैरव से पिंड कैसे छूटेगा। बालक रामदेव ने सविनय निवेदन किया– गुरु महाराज का हाथ जिस शिष्य के सिर पर है। उसका कोई क्या बिगाड़ सकता है।रामदेवरा धाम के सुंदर दृश्य गुरू शिष्य दोनों धूनी के आसपास सो गए अर्द्ध रात्रि के समय दुष्ट भैरव खांऊ खांऊ करता हुआ वहां आया और योगी बालीनाथ को सम्बोधित करके बोला– नाथजी महाराज ! आज तो बहुत दिनों के बाद किसी मनुष्य की गंध आ रही है। उसे आपने कहाँ छुपा रखा है?। योगी बालीनाथ जी ने उसे बहुत समझाया बुझाया और टालने का प्रयत्न किया। परंतु वह दुष्ट राक्षस कब मानने वाला था। वह सीधा जहाँ बालक रामदेव जी गुदड़ी ओढ़े सो रहे थे, वहां पहुंच गया तथा गुदड़ी का एक छोर पकड़कर खिचने लगा। उसने बहुत जोर लगाएं परंतु गुदड़ी टस से मस नहीं हुई। यह घटना देखकर योगी बालीनाथ जी बालक रामदेव जी के पराक्रम को समय गए। गुदड़ी न उतरने पर भैरव थक हारकर अपनी गुफा की ओर चला गया।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं भैरव के वापस चले जाने के बाद बालक रामदेव जी गुरू योगी बालीनाथ को सम्बोधित करते हुए बोले– हे गुरू महाराज! यदि आपकी आज्ञा हो तो उस दुष्ट भैरव का काम तमाम कर जाऊं?।योगी बालीनाथ जी ने सम्पूर्ण घटना अपनी आंखों से देखी थी तथा शिष्य रामदेव के पराक्रम के प्रति सिर हिलाकर मूक स्वीकृति दे दी। बाबा रामदेव तत्काल जिधर भैरव गया था उधर चल पड़े। भैरव यद्यपि अपनी तेज गति से गुफा की ओर बढ़ रहा था, परंतु बाबा रामदेवजी ने उसे आंगरो (नमक की खानों) के पास पहुंचते पहुंचते धर दबोचा। कुछ देर तक रामदेव और राक्षस दोनों में भयंकर युद्ध चलता रहा। परंतु अंत मे दुष्ट भैरव परास्त होकर गिर पड़ा। बाबा रामदेवजी उसकी छाती पर चढ़ बैठे और मुष्टिका प्रहार करने लगे। यह देखकर भैरव रोने लगा तथा अपने प्राणों की भीख मांगने लगा। दयालु बाबा रामदेव जी ने भविष्य में अपकर्म न करने का वचन लेकर उसे आंगरो के आसपास की भूमि उसके विचरण हेतू निश्चित कर दी। भैरव के उत्पीड़न का भय मिट जाने के फलस्वरूप वर्षों से वीरान पड़ी भूमि कृषि से लहलहाने लगी। सैकडों उजडे हुए गांव फिर से आबाद हो गए। बाबा रामदेव जी भी अपने पूरे परिवार को पोखरण ले आए। बाबा रामदेव जी की पारिवारिक प्रतिष्ठा एवं स्वयं की ख्याति देखकर अमरकोट (वर्तमान में पाकिस्तान में) के सोढ़ा दलैसिंह जी ने अपनी सुपुत्री नेतलदे का विवाह बाबा रामदेवजी के साथ कर दिया।हर्षनाथ मंदिर सीकर राजस्थान – जीणमाता मंदिर सीकर राजस्थानबाबा रामदेवजी ने अगला कार्यक्रम अछूतों के उद्धार का हाथ में लिया। मानव मानव के बीच खड़ी इस भ्रांति की दीवार को ढहाने के लिए उन्होंने एक संत पंथ की स्थापना की। जो आगे चलकर कामड़िया पंथ कहलाया। इस पंथ में दीक्षित व्यक्ति जात-पात, ऊंच-नींच, कुलीन-अकुलीन इत्यादि के कृत्रिम बंधनों से मुक्त होकर संत हो जाता था। रावल मल्लीनाथजी, जाड़ेचा जैसल, भाटी उगणसी, सांखला हड़बूजी, मांगलिया मेहझी इत्यादि प्रतिष्ठित राजघराने के लोगों से लेकर मेघवंशी घारू, रेवारी रतना, डालीबाई इत्यादि अस्पृश्य लोग तक इस संत पंथ मे दीक्षित थे। तथा जिस दिन रात्रि जागरण होता था उस दिन सब लोग सम्मिलित होकर समान भाव से अपने इष्टदेव की आराधना करते थे। इस मानवोचित व्यवहार के परिणाम स्वरूप बाबा रामदेव जी अपने जीवन काल मे ही अवतारी पुरूष तथा पीर रामदेव की पदवी से अलंकृत हो गए थे।धनोप माता मंदिर भीलवाड़ा राजस्थान – धनोप का इतिहासबाबा रामदेव जी ने अपने निवास स्थान पोखरण को अपनी भतीजी तथा वीरमदेव जी की पुत्री को दहेज में दे देने के उपरांत पोखरण से बारह किलोमीटर उत्तर की ओर अपना नया निवास स्थान रामदेवरा की स्थापना की तथा अपने ही नाम पर उसका नाम रामदेवरा रखा। अनेक लौकिक अलौकिक लीलाओं का परिचय देते हुए बाबा रामदेवजी ने सन 1515 में अपने द्वारा निर्मित रामसरोवर की पाली पर जीवित समाधि ले ली। वर्तमान में इस पवित्र स्थान पर विशाल मंदिर बना हुआ है। तथा उनकी पावन स्मृति में प्रति वर्ष दो बार भाद्रपद शुक्ला 10 तथा माघ शुक्ल 10 को रामदेवरा मे मेला लगता है। इस मेले में राजस्थान, गुजरात, पंजाब, मध्यप्रदेश इत्यादि प्रांतों के श्रृद्धालु बडी संख्या में भाग लेते है। तथा बाबा रामदेवजी की समाधि के दर्शन, रामसरोवर स्नान, बावडी के जल का आमचन एवं नगर प्रदक्षिणा करके अपने आपको कृत्य कृत्य समझते है।सकराय माता मंदिर या शाकंभरी माता मंदिर सीकर राजस्थान हिस्ट्री इन हिंदीरामदेवरा मेले मे तेरहताली नृत्य मेले का प्रमुख आकर्षण होता है। इसे कामडिया लोग प्रस्तुत करते है। इसमें एक कामडिया स्त्री अपने शरीर के विभिन्न भागों पर मजीरे बांध लेती है। तथा हाथ के मजीरे द्वारा विभिन्न मुद्राओं के साथ उन्हें बजाती है। अन्य पुरूष तम्बूरा, हारमोनियम, खडताल, चिमटा व मजीरा के साथ ताल देते है। ये लोग बाबा रामदेव जी की जीवनी से संबंधित परिचयों का गायन प्रस्तुत करते है। तथा संबंधित रामदेवरा भजन गाते है। तथा स्थान स्थान पर बाबा रामदेवजी की जय जयकार से वातावरण गुंजयमान रहता है। प्रिय पाठकों आपको हमारा यह लेख कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताएं। यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते है राजस्थान पर्यटन पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—[post_grid id=”6053″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल राजस्थान के प्रसिद्ध मेलेंराजस्थान के लोक तीर्थराजस्थान धार्मिक स्थलराजस्थान पर्यटन