राणा हम्मीर सिंह की उदारता और वीरता की कहानी Naeem Ahmad, October 18, 2022February 18, 2024 रणथम्भौर किले का सफल संरक्षक, राजपुत जाति का रत्नजडित मुकुट तथा दृढ़ प्रतिज्ञ राणा हम्मीर सिंह को राजस्थान में कौन नहीं जानता ? आपके प्रति सभी के हृदय में अगाध श्रद्धा व प्रेम है। आपके लिये आज भी प्रसिद्ध है:– “त्रिया, तेल, हम्मीर हठ चढ़े न दूजी बार”।राणा हम्मीर सिंह ने भारतीय परम्पराओं को अपूर्व बलिदान के साथ जीवित रखा। शरण में आये हुए दुश्मन को अपना अंग समझकर उसकी रक्षा में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। इस समय दिल्ली पर अलाउद्दीन खिलजी बादशाह शासन कर रहा था । उसके महलों में रंगरलियों की बहारें थी, पायल की झंकारों से वातावरण रंगीन था, ऐसी स्थिति में सुन्दरता को महत्व दिया जा रहा था, वीरता का अपमान हो रहा था, बादशाह अपनी शक्ति के मद में चूर था, होश में होकर भी बेहोश था। उन्मत्त बादशाह ने अपना स्वार्थ सिद्ध न होने पर क्रोध में बुद्धि को जलाकर अपने एक वीर सरदार महिमाशाह को देश से निकाल दिया, हमेशा के लिये। इसके साथ ही साथ घोषणा कर दी गई कि जो भी राजा इस व्यक्ति को शरण देगा दिल्ली के शासन का घोर दुश्मन समझा जावेगा।राणा हम्मीर सिंह की उदारता और वीरता की कहानीवीर महिमा बादशाह का नौकर अवश्य था परन्तु अपनी प्रतिष्ठा व स्वाभिमान बेचकर नहीं। उसने भी मन में दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह वापस बादशाह के पास जाकर क्षमा याचना नहीं करेंगा, करता भी क्यों ? वह न्याय के पथ पर था, अन्याय से उसे घृणा थी। परन्तु यह भी निश्चय था कि बादशाह से दुश्मनी रखना सिर पर कांटों के ताज से कम न था। सच है पृरुषार्थी व्यक्ति ऐसी आपदाओं से घबराते नहीं वरन् डटकर लोहा लेते हैं।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं वह निराश्रित सरदार घूमता जंगलों में भटकता, भूख प्यास का मुकाबला करता, ऐसे स्थान पर पहुचा जहां उसने एक घायल शेर को देखा। उसके हृदय में प्रसन्नता की लहर दौड़ी। उसने सोचा आज तो पेट भर खाने को मिलेंगा क्योंकि वह करीब चार रोज से भूखा था। बहादुर सरदार ने शिकार को उठाया और आगे बढ़ा, दो कदम बढ़ा भी न था कि आवाज आई ‘शिकार को रख दो तथा दो-दो हाथ के लिये तैयार हो जाओ।” सामने ही दो राजपूत युवक सरदार म्यान से तलवार निकाले हुये खड़े थें। वीर महिमा ने उत्तर दिया “बहादुरों, में चार रोज से भूखा हूं, पहले मुझे पेट भर खाने दो, उसके बाद मुकाबला किया जावेगा। राजपूत सरदारों ने आपस में काना-फूसी की और एक युवक सरदार जों राणा हम्मीर सिंह था ने आगे आकर पूछा “तुम चार रोज से भूखे क्यों हो?” वीर महिमा ने सारी घटना व स्थिति का परिचय दिया। राणा हम्मीर सिंह का हृदय द्रवित हो उठा। उसने वीर पठान को विश्वास दिलाया तथा आपत्ति में सहायता करने के लिए तैय्यार हुआ।महाराजा भूपेन्द्र सिंह का जीवन परिचय और इतिहासवीर पठान नहीं चाहता था, के राणा उसके लिए, एक मुसलमान के लिए, अनावश्यक दिल्ली पति को अपना दुश्मन बनाये। पंरन्तु राणा दृढ़ प्रतिज्ञ व आश्रयदाता था। उसने इन शब्दों से पठान की राजपूत जाति के गौरव से अवगत कराया तथा इंसानियत का पाठ भी सिखाया “मेरे लिए इतना ही पर्याप्त है कि तुम वीर पुरुष हो, आपत्ति में हो और तुम्हें शरण देना विपत्ति भी है। तुम्हें हृदय से लगाना फूलों के हार पहनाना नहीं, कांटों पर चलना हैं। हम लोग तो विपत्तियों के साथी हैं, उन्हें खोजते फिरते हैं। कई दिनों से तलवारें रक्त की प्यासी भी है। देखता हूं कि कौन रणथम्भौर की चट्टानों से अपना सिर टकराने आता है।राणा हम्मीर सिंहराजा वीर पठान को अपने साथ ले महलों की ओर रवाना हुआ। वातावरण “धन्य-धन्य” के शब्दों से गूंज उठा, पुष्प भी मुस्कराकर धरती के आंचल में सो गये, शीतल मलय चलने लगा। दीवारों के कान होते हैं, हवा के पर होते हैं। धीरे धीरे यह संदेश अलाउद्दीन खिलजी के कानों तक पहुंच गया। वह आग बबूला हो उठा। उसने भी गरजकर कहा, “मैं ईंट से ईंट बजा दूंगा।” अपने अपमान का बदला लेने के लिये, राजपूती घमंड को चूर करने के लिये एक विशाल सेना तैयार करने का हुक्म दिया।महाराजा महेन्द्र सिंह और महाराजा राजेन्द्र सिंह पटियाला रियासतरणथम्भौर के राजा राणा हम्मीर सिंह ने भी अपने वीरो को अपने कर्तव्य पथ पर डटे रहने का पावन संदेश दिया। उसने कहा- “वीरों ! शत्रुओं ने आज हमें अकारण चुनौती दी है। वे पहाड़ी चट्टानों से सिर टकराना चाहते हैं। हम मिट्टी के पुतले नहीं, देश के लिये पूर्जे पूर्जे कट जायेंगे । मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिये बलिदान हो जायेंगे। मुझे विश्वास है कि राजपूती परम्पराओं को निभाने में आपका हार्दिक सहयोग मिलेगा !” प्रत्यत्तर में एक स्वर से आवाज आई-“हम’ मुगलों को एक सबक सिखा देंगे। हम सब स्वदेश ओर स्वधर्म की रक्षा के लिये अपना सर्वस्व बलिदान कर देंगे। सभी ने एक साथ “जय एकलिंग-जय एकलिंग” से सम्पूर्ण वातावरण व गगन मण्डल की गुंजित कर दिया।महाराजा नरेंद्र सिंह पटियाला परिचय और इतिहासअलाउद्दीन खिलजी की विशाल सेना की सूचना आकाश में उठती हुई धूल दे रही थी। यवनों की सेना में कई तोप गाड़ियां, हाथी, घोड़े व सुसज्जित पैदल सेना थी। घाटियों को पार करती हुई सेना मैदान में जमा होने लगी। राजपूती रणबांकुरे भी युद्ध स्थल पर यवनों की सेना से भीषण मुकाबला करने के लिए सोत्साह तेयार थे। महाराणा ने रण भेरी बजाई और अपने सैनिकों के साथ शत्रु पर टूट पड़े राजपूत वीरों ने “जय एकलिंगजी” का पावन उच्च घोष किया और भूखे सिंह की भांति यवन सेना पर टूट पड़े। मुसलमानों ने भी “अल्लाहु अकबर” का नारा लगाया और युद्ध में कूद पड़े। अब क्या था ? भीषण युद्ध प्रारम्भ हो गया। चारों ओर से मारो, काटो की आवाज आने लगी और लाशों पर लाशों के ढेर होने लगे। राजपूतों ने पहाड़ों से भीषण पत्थरों की वर्षा कर यवनों को निराश कर दिया। ऐसी स्थिति में खिलजी को विजय की आशा धूमिल-सी दिखाई देने लगी।राजा आला सिंह का जीवन परिचय और इतिहासराजपूतों में पराक्रम और युद्ध कौशल अवश्य था परंन्तु एकता व पारस्परिक प्रेम का अभाव था। कई दिनों तक युद्ध चलता रहा यवनों की हार प्राय: निश्चित थी। परन्तु एक राजपूत सरदार ने यवनों के प्रलोभन में फंसकर सम्पूर्ण रहस्य को खोल दिया। वह राणा हम्मीर सिंह की सेना में रसद पहुंचाने वाले कार्य का मुखिया था। उसने राणा को अंसत्य रूप में रसद समाप्त होने के समाचारों से अवगत कराया फलत: राणा हम्मीर सिंह का जोश कम हो गया । भूखी सेना कब तक मुकाबला करती। राजपूत सेना यवन सेना की तुलना में भी बहुत कम थी। अब बहुत कम सरदार थे। पठान सरदार ने भी राणा का अदभुत साथ दिया, वह भी एक अनूठा वीर व वफादार साथी था।महाराजा अजीत सिंह का इतिहास और जीवन परिचयअन्त में यवनों का पलड़ा भारी होने लगा, विजय के चिन्ह नजर आने लगे। किले में राजपूत स्त्रियों ने जौहर का आयोजन किया तथा सभी वीर पुरुष केसरिया बाना पहन कर युद्ध में बहादुरी के साथ भीषण मारकाट मचाने लगे। युद्ध का दृश्य बहुत भी भीषण था। बहादुर राजपूत यवनों को गाजर मुली की तरह काटने लगे। पठान सरदार ने कई यवनों को यमपुरी पहुंचा दिया। इधर यवनों की सेना भी बाढ़ की तरह आगे बढ़ रही थी, पीछे हटने का नाम न था। राणा हम्मीर सिंह कुछ सैनिकों के साथ युद्ध कर रहे थे। युद्ध भूमि में नीरवता बढ़ने लगी।राजा सूरजमल का इतिहास और जीवन परिचयशाम का समय था। गिद्ध और गीदड़ चारों ओर चक्कर लगा रहे थे। मैदान में असंख्य लाशें बिछी हुई थीं। राणा की पराजय अवश्य हुई पर इसके लिए अलाउद्दीन को बहुत कीमत चुकानी पड़ी उसके चने हुये वीर सरदार मारे गये। राणा हम्मीर सिंह का नाम आज भी इतिहास में स्वर्णा अक्षरों में लिखा हुआ है। उसने अपनी उदारता का परिचय एक मुसलमान सरदार, जो उसकी शरण में था, रक्षा का भार उठाकर दिया। राणा ने अपने अभूतपूर्व त्याग, बलिदान व उदारता से राजस्थान के इतिहास को ऊंचा उठाया है तथा भारतीय गौरवमयी परम्परा की प्रतिष्ठा की है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— [post_grid id=”8179″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के महान पुरूष