राणा सांगा की वीरता और साहस की कहानी Naeem Ahmad, October 18, 2022February 22, 2023 “मैं राजा नहीं, अपितु अपनी मातृभूमि का सेवक हूं । प्रत्येक देशवासी का पुण्य कर्तव्य है कि वह मातृभूमि को मुक्त करवाने के लिए अपना सर्वेस्व बलिदान करवाने हेतु सर्वदा प्रस्तुत रहे।” इस प्रकार आसपास के सभी राजपूत राजाओं तथा प्रत्येक व्यक्ति को देश में व्याप्त मुसलमानों को बाहर निकालने व एकता के सूत्र में बंधने का राणा सांगा ने मौन संकेत किया।वीर राणा सांगाचित्तौड़ के राणा रायमल के वीर पुत्र थे। ये तीन भाई थे। राणा सांगा, पृथ्वीराज चौहान, जयमल राणा, रायमल की वृद्धावस्था में ही राज गद्दी प्राप्त करने के लिये तीनो में संघर्ष हुआ, क्योंकि तीनों ही राजगद्दी पर बैठना चाहते थें। इनमें से पृथ्वीराज बहुत क्रोधी तथा वीर था, उसने स्पष्ट रूप से कह दिया, “चाहे जो हो, गद्दी पर तो में ही बेठूंगा। इसके लिए चाहे कितना ही मूल्य क्यों नहीं देना पड़े, हर कीमत पर तैयार रहूंगा”। तीनों भाइयों के आपसी झगड़े को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए तथा राज्य में शांति, एकता व प्रेम का साम्राज्य स्थापित करने के लिए इनके चाचा सूरजमल ने एक यूक्ति सामने रखी। उन्होंने कहा कि” सामने पहाड़ियों पर देवी का मन्दिर है तथा उसमें एक तपस्विनी व नेक पुजारिन है। इस विषय में वह हमें उचित परामर्श दे सकेगी। अतः मेवाड़ की गद्दी का वास्तविक उत्तराधिकारी कौन है ? हमें चल कर पूछना चाहिए।”राणा सांगा की वीरता और साहसचाचा जी को इस युक्ति पर सभी तैयार हुए तथा निश्चित स्थान पर अपने लक्ष्य की पूर्ति हेतु पहुंचे। सभी ने मन्दिर में अपना- अपना आसन ग्रहण किया। चाचा सूरजमल ने पुजारिन से पूछा “देवी ! ये तीनों भाई चित्तौड़ की राजगद्दी पर बैठना चाहते हैं। आप बताइये कि इनमें से मेवाड़ की गद्दी का वास्तविक अधिकारी कौन है? ” पूजारिन ने पूर्ण चिन्तन के बाद कहा.” वत्स ! इनमें से वही राजा होगा जो यहां पर बिछे हुए आसनों में सिंह आसन पर बैठा हुआ है ”। तीनों ने एक दूसरे की ओर देखा- पृथ्वीराज और जयमल चटाइयों पर बैठे थे और राणा सांगा, सिंह चर्म के आसन पर। पृथ्वीराज स्वभाव से बहुत क्रोधी थे अतः वे तलवार लेकर राणा सांगा पर टूट पड़े। राणा सांगा भी वीरता में अपना सानी नहीं रखते थे। परन्तु वे दूरदर्शी थे तथा भाइयों को प्रेम से समझाना अधिक श्रेष्ठ समझते थे। अतः उन्होंने दूर हटकर अपनी रक्षा की और वहां से तेजी के साथ बाहर चले गये।जब यह समाचार इनके पिता रायमल को मिला तो वे बहुत नाराज व दुखी हुए और उन्होंने तत्काल पृथ्वीराज को मेवाड़ से बाहर चले जाने को आज्ञा दे दी। पृथ्वीराज क्रोधी के साथ-साथ बहादुर भी कम न था। मेवाड़ से बाहर निकल कर पृथ्थीराज ने भीलों को अपने साथ मिलाया तथा एक संगठित सेना तैयार की तथा गौंदावर पर अपना अधिकार किया और मालिक बन बैठा।उघर राणा जयमल,राव शिवरतन की लड़की ताराबाई के प्रेम पाश में फंस कर राव साहब द्वारा ही मारा गया। तारा बाई बहुत बहादुर सुन्दर लड़की थी। वह चाहती थी कि में उसके साथ शादी करूंगी जो मेरे बाप के गये हुए राज्य को वापस दिला देगा और मेरे जन्म स्थान से पठान शासकों को हटा देगा। जयमल ने ताराबाई को सन्तुष्ट करने के लिए पूर्ण शक्ति लगाई परंतु सफल न हो सका। अतः केम्प में धोखें से मारा गया।राणा सांगाइस खबर ने पृथ्वीराज के दिल में आग लगा दी तथा भाई का बदला लेने के लिए उसने टोंक पर चढ़ाई कर दी और वहां से पठान भगा दिये गये। ताराबाई ने प्रसन्न हो कर तथा पृथ्वीराज की वीरता पर रीझ कर उससे विवाह भी कर लिया। राजा रायमल को राणा सांगा का पता न होने से पुनः पृथ्वीराज को मेवाड़ बुला लिया और उसे मेवाड़ का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया, किन्तु पृथ्वीराज के भाग्य में चितौड़ की गद्दी न थी। उसको बहनोई द्वारा विष खिला कर मरवा दिया गया तथा पतिव्रता स्त्री ताराबाई सती हो गई।राणा सांगा को मेवाड़ छोड़ने पर बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। सत्य भी हैं, कांटो के मार्ग पर चलने से ही सफलता मिलती है। दुःखों की दोपहरी में तपने पर ही सुखपूर्ण रात्रि के दर्शन होते हैं। इन दिनों में उसे कई छोटे 2 कार्य कर अपना जीवन निर्वाह करना पड़ा। अन्त में पुरुषार्थ ने भाग्य को सबल बनाया। फल स्वरूप उसने एक अच्छी सेना का संगठन किया तथा किसी राज्य पर आक्रमण करने की प्रतीक्षा में था कि उसे समाचार मिला कि उसके दोनों भाई मारे गये और पिता रायमल भी चल बसे हैं तो वह सीधे चित्तौड़ आया और मेवाड़ का राजा बन गया।राजगद्दी पर बैठते ही राणा सांगा ने कुशल शासक का परिचय दिया। उसने सबसे पहले घर की आन्तरिक स्थिति को सुदृढ़ बनाया, जो गृह कलह के कारण अस्त-व्यस्त व छिन्न-भिन्न हो गई थी। प्रजा की स्थिति व स्तर में सुधार लाने के लिए उसने भरसक प्रयत्न किया। “परिश्रम सफलता की कुंजी है “_“जिन खोजा तिन पाइयां वाले आदर्शों के आधार पर राणा सांगा का राज्य पूर्णरूप से समृद्धिशाली व सुदृढ़ हो गया। तत्पश्चात राणा सांगा ने भारत से मुस्लिम शासन को समाप्त करने की तथा देश-सेवा में रत रहने की दृढ़ प्रतिज्ञा की। इस हेतु एक विशाल सेना का संगठन-किया सबसे पहले उसने मेवाड़ के पड़ोसी मालवा, गुजरात, अजमेर और बयाना के मुस्लिम शासकों को हमेशा के लिए समाप्त करने की कमर बांध ली तथा एक के बाद एक पर चढ़ाई करके उसने उन तमाम मस्लिम शासकों को समाप्त कर दिया। इस प्रकार राणा सांगा की वीरता व अदम्य साहस से उसके राज्य में बयाना से लेकर अजमेर और मालवा तक के कुल प्रांत सम्मिलित हो गये। यहां तक कि उसका राज्य दिल्ली और गुडगांव तक फैल गया।उन दिनों दिल्ली में लोदी खानदान के बादशाह इब्राहिम लोदी मुसलमान शासक था। वह राणा सांगा की इन विजयों व वीरता पूर्ण कार्यों से घबरा गया और वह स्वयं घटोल के नवाब की सहायता के लिये रणक्षेत्र में पहुंच गया। राणा सांगा जो भारत के हिन्दू राजाओं के मुकुट के समान था विशाल सेना लेकर रणभूमि में आ पहुंचा। घमासान युद्ध हुआ। इब्राहीम लोदी पराजित हुआ और वापस दिल्ली लौटकर चला गया।राणा सांगा की विजय से क्रीति रूपी सुगंध सर्वत्र व्याप्त हो गई। भारत में प्रसन्नता की लहर फैल गई। सभी राजाओं ने राणा सांगा के पास शुभ संदेश, बधाइयां व अपनी सेवायें अर्पित की। मातृ भूमि के महान पुजारी, देश के संरक्षक चाहते थे कि चित्तौड़ को भारत की राजधानी बनाई जाये। राणा सांगा इसी उद्देश्य से चित्तौड़ को दृढ़ करने में पूरी शक्ति से लगे हुए थे। उनके सामने एक महान गौरवपूर्ण लक्ष्य था, वह यह कि दिल्ली से मुस्लिम शासन को समाप्त कर मेवाड़ में मिलाया जाये। अतः उन्होंने सैनिक संगठन व तैयारियां जोरों से प्रारम्भ कर दी।उधर मुगलों को सरदार बाबर छिपे रूप से सैनिक संगठन में लगा हुआ था तथा पूरी शक्ति के साथ भारत में घुस आया और लाहौर पर अपना अधिकार भी कर लिया। लाहौर ले लेने के बाद बाबर विजय के अनेक स्वप्न देखने लगा। वह पानीपत की ओर आगे बढ़ा। इस युद्ध में बाबर व इब्राहीम लोदी के मध्य मुकाबला हुआ। इब्राहीम इस युद्ध में मारा गया। बाबर का दिल्ली पर कब्जा हुआ।राणा सांगा ने चिन्तन किया व सभी राजाओं से परामर्श किया तथा आगरा में बाबर की सेना को हराने के लिए विशाल सेना का संगठन किया। आगरे के पास कन्हवा नामक स्थान पर दोनों सेनाओं का भीषण मुकाबला हुआ। सभी राजाओं ने राणा का साथ दिया। प्रथम बाबर की सेना घबरा गई तथा सरदारों के हाथ पांव ढीले हो गए। बाबर ने अपनी सेना को विशेष प्रलोभन दिये तथा इस्लाम के नाम पर उत्साहित किया। बाबर के पास एक भीषण तोपखाना था और उस समय तक भारत में तोप न थी। इसके साथ ही साथ कुछ राजाओं ने बाबर को मोर्चे बन्दी सम्बन्धी भेद भी बता दिये। इससे बाबर को सफलता मिली और वह विजयी हुआ।राणा सांगा इस युद्ध में पराजित अवश्य हुआ परन्तु उसका साहस भंग नहीं हुआ और उसने समस्त राजाओं व नागरिकों को उत्साहित किया। उसे प्रेरणास्पद वाक्य में कहा “मैं मुगलों को भारत से बाहर निकालकर ही सुख की नींद सोऊंगा।” “मनुष्य क्या सोचता है और ईश्वर क्या करता है“ विधि के कार्यों की विडम्बना अदभुत है। राणा सांगा की उक्त प्रतिज्ञा पूर्ण होने के पूर्व ही अचानक रोगग्रस्त हो गया और इस मृत्युलोक से चल बसा।राणा सांगा का स्थान भारत समृद्ध राज्य राजस्थान के इतिहास में बहुत ऊंचा एवं गौरवमय है। उसने अपना सर्वस्व मातृभूमि की स्वतन्त्रता व सेवा में अर्पित कर दिया था। राणा सांगा एक बहादुर, साहसी व निर्भीक योद्धा था। उसकी भी एक टांग, एक हाथ व एक आंख युद्ध स्थल में ही काम आई थी। उसके शरीर पर तलवार और बर्छे के 80 घाव थे। इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि वह कितना बहादुर था और वह अपनी मातृभूमि से विदेशियों को निकालने के लिए अन्तिम श्वास तक लड़ता रहा।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— चौरासी गुंबद कालपी – चौरासी गुंबद का इतिहास चौरासी गुंबद यह नाम एक ऐतिहासिक इमारत का है। यह भव्य भवन उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना नदी श्री दरवाजा कालपी – श्री दरवाजे का इतिहास भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में कालपी एक ऐतिहासिक नगर है, कालपी स्थित बड़े बाजार की पूर्वी सीमा रंग महल कहा स्थित है – बीरबल का रंगमहल उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले के कालपी नगर के मिर्जामण्डी स्थित मुहल्ले में यह रंग महल बना हुआ है। जो गोपालपुरा का किला जालौन – गोपालपुरा का इतिहास गोपालपुरा जागीर की अतुलनीय पुरातात्विक धरोहर गोपालपुरा का किला अपने तमाम गौरवमयी अतीत को अपने आंचल में संजोये, वर्तमान जालौन जनपद रामपुरा का किला और रामपुरा का इतिहास जालौन जिला मुख्यालय से रामपुरा का किला 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 46 गांवों की जागीर का मुख्य जगम्मनपुर का किला – जगम्मनपुर का इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना के दक्षिणी किनारे से लगभग 4 किलोमीटर दूर बसे जगम्मनपुर ग्राम में यह तालबहेट का किला किसने बनवाया – तालबहेट फोर्ट हिस्ट्री इन हिन्दी तालबहेट का किला ललितपुर जनपद मे है। यह स्थान झाँसी - सागर मार्ग पर स्थित है तथा झांसी से 34 मील कुलपहाड़ का किला – कुलपहाड़ का इतिहास इन हिन्दी कुलपहाड़ सेनापति महल कुलपहाड़ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा ज़िले में स्थित एक शहर है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र का एक ऐतिहासिक पथरीगढ़ का किला किसने बनवाया – पाथर कछार का किला का इतिहास इन हिन्दी पथरीगढ़ का किला चन्देलकालीन दुर्ग है यह दुर्ग फतहगंज से कुछ दूरी पर सतना जनपद में स्थित है इस दुर्ग के धमौनी का किला किसने बनवाया – धमौनी का युद्ध कब हुआ और उसका इतिहास विशाल धमौनी का किला मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित है। यह 52 गढ़ों में से 29वां था। इस क्षेत्र बिजावर का किला किसने बनवाया – बिजावर का इतिहास इन हिन्दी बिजावर भारत के मध्यप्रदेश राज्य केछतरपुर जिले में स्थित एक गांव है। यह गांव एक ऐतिहासिक गांव है। बिजावर का बटियागढ़ का किला किसने बनवाया – बटियागढ़ का इतिहास इन हिन्दी बटियागढ़ का किला तुर्कों के युग में महत्वपूर्ण स्थान रखता था। यह किला छतरपुर से दमोह और जबलपुर जाने वाले मार्ग राजनगर का किला किसने बनवाया – राजनगर मध्यप्रदेश का इतिहास इन हिन्दी राजनगर मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में खुजराहों के विश्व धरोहर स्थल से केवल 3 किमी उत्तर में एक छोटा सा पन्ना का इतिहास – पन्ना का किला – पन्ना के दर्शनीय स्थलों की जानकारी हिन्दी में पन्ना का किला भी भारतीय मध्यकालीन किलों की श्रेणी में आता है। महाराजा छत्रसाल ने विक्रमी संवत् 1738 में पन्ना सिंगौरगढ़ का किला किसने बनवाया – सिंगौरगढ़ का इतिहास इन हिन्दी मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के दमोह जिले में सिंगौरगढ़ का किला स्थित हैं, यह किला गढ़ा साम्राज्य का छतरपुर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – छतरपुर का इतिहास की जानकारी हिन्दी में छतरपुर का किला मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में अठारहवीं शताब्दी का किला है। यह किला पहाड़ी की चोटी पर चंदेरी का किला किसने बनवाया – चंदेरी का इतिहास इन हिन्दी व दर्शनीय स्थल भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अशोकनगर जिले के चंदेरी में स्थित चंदेरी का किला शिवपुरी से 127 किमी और ललितपुर ग्वालियर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – ग्वालियर का इतिहास व दर्शनीय स्थल ग्वालियर का किला उत्तर प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है। इस किले का अस्तित्व गुप्त साम्राज्य में भी था। दुर्ग बड़ौनी का किला किसने बनवाया – बड़ौनी का इतिहास व दर्शनीय स्थल बड़ौनी का किला,यह स्थान छोटी बड़ौनी के नाम जाना जाता है जोदतिया से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। दतिया का इतिहास – दतिया महल या दतिया का किला किसने बनवाया था दतिया जनपद मध्य प्रदेश का एक सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक जिला है इसकी सीमाए उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद से मिलती है। यहां कालपी का इतिहास – कालपी का किला – चौरासी खंभा हिस्ट्री इन हिंदी कालपी का किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति प्राचीन स्थल है। यह झाँसी कानपुर मार्ग पर स्थित है उरई उरई का किला किसने बनवाया – माहिल तालाब का इतिहास इन हिन्दी उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद मे स्थित उरई नगर अति प्राचीन, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व का स्थल है। यह झाँसी कानपुर एरच का किला किसने बनवाया था – एरच के किले का इतिहास हिन्दी में उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद में एरच एक छोटा सा कस्बा है। जो बेतवा नदी के तट पर बसा है, या चिरगांव का किला किसने बनवाया – चिरगांव किले का इतिहास का इतिहास चिरगाँव झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह झाँसी से 48 मील दूर तथा मोड से 44 मील गढ़कुंडार का किला का इतिहास – गढ़कुंडार का किला किसने बनवाया गढ़कुण्डार का किला मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में गढ़कुंडार नामक एक छोटे से गांव मे स्थित है। गढ़कुंडार का किला बीच बरूआ सागर का किला – बरूआसागर झील का निर्माण किसने और कब करवाया बरूआ सागर झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह मानिकपुरझांसी मार्ग पर है। तथा दक्षिण पूर्व दिशा पर मनियागढ़ का किला – मनियागढ़ का किला किसने बनवाया था तथा कहाँ है मनियागढ़ का किला मध्यप्रदेश के छतरपुर जनपद मे स्थित है। सामरिक दृष्टि से इस दुर्ग का विशेष महत्व है। सुप्रसिद्ध ग्रन्थ मंगलगढ़ का किला किसने बनवाया था – मंगलगढ़ का इतिहास हिन्दी में मंगलगढ़ का किला चरखारी के एक पहाड़ी पर बना हुआ है। तथा इसके के आसपास अनेक ऐतिहासिक इमारते है। यह हमीरपुर जैतपुर का किला या बेलाताल का किला या बेलासागर झील हिस्ट्री इन हिन्दी, जैतपुर का किला उत्तर प्रदेश के महोबा हरपालपुर मार्ग पर कुलपहाड से 11 किलोमीटर दूर तथा महोबा से 32 किलोमीटर दूर सिरसागढ़ का किला – बहादुर मलखान सिंह का किला व इतिहास हिन्दी में सिरसागढ़ का किला कहाँ है? सिरसागढ़ का किला महोबा राठ मार्ग पर उरई के पास स्थित है। तथा किसी युग में महोबा का किला – महोबा दुर्ग का इतिहास – आल्हा उदल का महल महोबा का किला महोबा जनपद में एक सुप्रसिद्ध दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल कालीन है इस दुर्ग में कई अभिलेख भी कल्याणगढ़ का किला मानिकपुर चित्रकूट उत्तर प्रदेश, कल्याणगढ़ दुर्ग का इतिहास कल्याणगढ़ का किला, बुंदेलखंड में अनगिनत ऐसे ऐतिहासिक स्थल है। जिन्हें सहेजकर उन्हें पर्यटन की मुख्य धारा से जोडा जा भूरागढ़ का किला – भूरागढ़ दुर्ग का इतिहास – भूरागढ़ जहां लगता है आशिकों का मेला भूरागढ़ का किला बांदा शहर के केन नदी के तट पर स्थित है। पहले यह किला महत्वपूर्ण प्रशासनिक स्थल था। वर्तमान रनगढ़ दुर्ग – रनगढ़ का किला या जल दुर्ग या जलीय दुर्ग के गुप्त मार्ग रनगढ़ दुर्ग ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। यद्यपि किसी भी ऐतिहासिक ग्रन्थ में इस दुर्ग खत्री पहाड़ विंध्यवासिनी देवी मंदिर तथा शेरपुर सेवड़ा दुर्ग व इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में शेरपुर सेवड़ा नामक एक गांव है। यह गांव खत्री पहाड़ के नाम से विख्यात मड़फा दुर्ग के रहस्य – जहां तानसेन और बीरबल ने निवास किया था मड़फा दुर्ग भी एक चन्देल कालीन किला है यह दुर्ग चित्रकूट के समीप चित्रकूट से 30 किलोमीटर की दूरी पर रसिन का किला प्राकृतिक सुंदरता के बीच बिखरे इतिहास के अनमोल मोती रसिन का किला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले मे अतर्रा तहसील के रसिन गांव में स्थित है। यह जिला मुख्यालय बांदा अजयगढ़ का किला किसने बनवाया था व उसका इतिहास अजयगढ़ की घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य अजयगढ़ का किला महोबा के दक्षिण पूर्व में कालिंजर के दक्षिण पश्चिम में और खुजराहों के उत्तर पूर्व में मध्यप्रदेश कालिंजर का किला – कालिंजर का युद्ध – कालिंजर का इतिहास इन हिन्दी कालिंजर का किला या कालिंजर दुर्ग कहा स्थित है?:--- यह दुर्ग बांदा जिला उत्तर प्रदेश मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर बांदा-सतना ओरछा का किला – ओरछा दर्शनीय स्थल – ओरछा के टॉप 10 पर्यटन स्थल शक्तिशाली बुंदेला राजपूत राजाओं की राजधानी ओरछा शहर के हर हिस्से में लगभग इतिहास का जादू फैला हुआ है। ओरछा भारत के महान पुरूष चित्तौड़ के शासकराजपूत शासकराजस्थान के शासक