राज्य संग्रहालय लखनऊ का इतिहास हिन्दी में Naeem Ahmad, July 4, 2022March 3, 2024 लखनऊ के राज्य संग्रहालय का इतिहास लगभग सवा सौ साल पुराना है। कर्नल एबट जो कि सन् 1862 में लखनऊ के मंडलायुक्त थे, उनके दिमाग में यह ख्याल आया कि क्यों न प्रदेश की प्राचीन परम्पराओं व जन जीवन से ताल्लुक रखने वाली वस्तुओं को इकट्ठा किया जाए।लखनऊ के क्रांतिकारी और 1857 की क्रांति में अवधआखिरकार सन् 1863 ई० को छोटी छतर मंजिल में राज्य संग्रहालय लखनऊ की स्थापना हुई। सन् 1873 ई० में आगरे के रिडिल संग्रहालय को इससे संलग्न कर दिया गया। सन् 1880 ई० में इलाहाबाद से कुछ पुरातात्विक महत्व की वस्तुएँ लाकर संग्रहालय में रखी गयीं।राज्य संग्रहालय लखनऊ का इतिहासआगरा के रिडिल संग्रहालय से संलग्न होने और इलाहाबाद से कुछ महत्वपूर्ण वस्तुओं के आ जाने के कारण लखनऊ का खाली लग रहा संग्रहालय अब काफी भरा पूरा नजर आने लगा था। राज्य संग्रहालय लखनऊ की ‘सीकचे वाली कोठी” में काफी समय तक मौजूद रहा। सन् 1883 ई० में यह तय किया गया कि इसे प्रान्तीय संग्रहालय बनाया जाए। अब समस्या आयी जगह की सीकचे वाली कोठी में ज्यादा जगह तो थी नहीं कि तमाम प्राचीन वस्तुओं को अधिक संख्या में लाकर यहाँ रखा जा सके। अतः इसे छतर मंजिल के सामने ही ‘लाल बारादरी’ में स्थानान्तरित कर दिया गया।राज्य संग्रहालय लखनऊसन् 1907 ई० में भारत वर्ष के तमाम संग्रहालयों के अध्यक्षों की एक सभा कलकत्ते में बुलायी गई। जिसमें यह तय हुआ कि लखनऊ के राज्य संग्रहालय में कई अनुभाग बढ़ाये जायें। जब सन् 1811 ई० में कैसरबाग स्थित कैनिंग कालेज वहाँ से हट गया तो उस भवन के लगभग दो तिहाई हिस्से में संग्रहालय का पुरातत्व अनुभाग स्थापित कर दिया गया। सन् 1885 ई० में लखनऊ के प्रथम राज्य संग्रहालय अध्यक्ष के रूप में डा० ए० ए० फ्यूरर’ ने कार्यभार सम्भाला।शम्सुन्निसा बेगम लखनऊ के नवाब आसफुद्दौला की बेगमआजादी के बाद सन् 1948 में प्रदेश सरकार ने संग्रहालय पुनर्गठन समिति का गठन किया। समिति ने एक सुझाव दिया कि यदि संग्रहालय को अधिक विस्तृत रूप देना है तो एक नई इमारत और बनवानी होगी। 15 अगस्त सन् 1956 को संग्रहालय के नवीन भवन का शिलान्यास उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री सम्पूर्णानन्द द्वारा किया गया।शम्सुन्निसा बेगम लखनऊ के नवाब आसफुद्दौला की बेगमबनारसी बाग में यह विशाल इमारत सन् 1960-62 में बनकर तैयार हो गयी। 12 मई 1963 ई० को प्रधानमन्त्री स्वर्गीय पं जवाहरलाल नेहरू ने इसका उद्घाटन किया। यह संग्रहालय सांस्कृतिक कार्य विभाग उ० प्र० द्वारा नियन्त्रित राजकीय संस्था है।गोमती नदी का उद्गम स्थल और गोमती नदी लखनऊ के बारे मेंआज इस संग्रहालय में विश्व की तमाम प्राचीन सभ्यताओं से जुड़ी वस्तुएं रखी हैं। जिनमें मिश्र देश की 3000 वर्ष पुरानी ‘ममी’ भी है। इसके अतिरिक्त आठवीं शताब्दी के सिक्के, मध्यकालीन मूर्तियाँ, अस्त्र-शस्त्र, पुराने तन्त्र, वाद्य-यन्त्र वस्त्र, सिक्के आदि मुख्य हैं।लखनऊ की चाट कचौरी ऐसा स्वाद रहें हमेशा यादसंग्रहालय में 56 से भी अधिक अनेक तरह के अभिलेख हैं कुछ अभिलेख पत्थरों ताम्रपत्रों व सीलों पर खुदे हैं। एक ताम्रपत्र पर महाराज हर्षवर्धन के हस्ताक्षर हैं। बासखेड़ा व गहड़वाल शासकों के ताम्रपत्र एवं कुमार गुप्त द्वितीय के वक्त की भित्तरी की सील देखने योग्य है। श्रावस्ती, भीतरगाँव, पूसानगर, हड़प्पा व मोहन जोदड़ो, काली बगान नेदासा, बहल, चन्दौसी आदि जगहों से जो मृर्तियाँ मिली हैं वह भी यहाँ देखी जा सकती हैं।लखनऊ के प्रसिद्ध मंदिर यहां जाना ना भूलेंडा० फ्यूरर के बाद डा० वासुदेव शरण अग्रवाल, प्रो० के० डी० बाजपेयी, डा० भगवत शरण उपाध्याय, पं० हीरानन्द शास्त्री, के० एन० दीक्षित, आर० डी० बनर्जी आदि अनेक महान विभूतियों ने संग्रहालयाध्यक्षों के रूप में कार्य किया।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—-[post_grid id=’9530′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल उत्तर प्रदेश पर्यटनलखनऊ पर्यटन