पटियाला रियासत की स्थापना 18 शताब्दी हुई थी। पटियाला रियासत के संस्थापक राजा आला सिंह जी थे। इस राजवंश के मूल पुरुष की उत्पत्ति जैसलमेर राजवंश से हुई थी। उन्होंने दिल्ली के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के समय में जैसलमेर छोड़कर हिसार, सिरसा और भटनेर के आसपास के प्रदेश में पर्दापण किया। कुछ शताब्दियां बीत जाने पर उनके खेवा नामक एक वंशज ने नाईली के जाट जमींदार की पुत्री से विवाह कर लिया। इस जोड़े से सिंधू नामक पुत्र की उत्पत्ति हुई। सिंधु की संतान इतनी बढ़ी कि जिससे सिंधु जाट नाम की एक जाति खड़ी हो गई। धीरे धीरे यह जाति इतनी समृद्धिशाली हो गई कि सतलुज और जमुना के बीच के प्रदेश की जातियों में वह प्रमुख गिनी जाने लगी। इस जाति में फूल नामक एक व्यक्ति हुआ और फूल के वंश में राजा आलासिंह उत्पन्न हुए। राजा आलासिंह बड़े प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। अपनी प्रतिभा ही के बल पर आपने इतने बड़े पटियाला राज्य की स्थापना की थी। कोट और जगराँव के मुसलमान सरदारों, मालेर कोटला के अफगानों और जलंधर दुआब के शाही फौजदार की संयुक्त शक्ति पर उन्होंने एक समय बड़ी दी मार्के की विजय प्राप्त की थी। इस विजय के कारण राजा आला सिंह जी की कीर्ति दूर दूर तक फेल गई थी।
राजा आला सिंह का इतिहास और जीवन परिचय
सन् 1749 में राजा आला सिंह ने धोदन भवानीगढ़ का किला
बनवाया। इसके कुछ ही समय बाद इस राज्य की वर्तमान राजधानी पटियाला बसाई गई। राजा आला सिंह जी ने भटिंडा नरेश पर चढ़ाई करके उनके कई गाँव अधिकृत कर लिये। सन् 1757 में आपने भट्टी लोगों पर विजय प्राप्त की। इसी बीच अहमदशाह अब्दाली ने पंजाब के रास्ते से दिल्ली तक आकर सुप्रसिद्ध पानीपत के युद्ध में मराठों को पराजित किया।
राजा आला सिंह पटियाला रियासतइस समय राजा आलासिंह जी ने अब्दाली से मित्रता कर ली। अब्दाली ने खुश होकर आपको उस प्रान्त का एकछत्र राजा स्वीकार किया। इतना ही नहीं, उसने आपको सिरोपाव एवं राजा की पदवी भी प्रदान की। सिक्ख लोग शाह को अपना जानी दुश्मन मानते थे, अतएव उन्होंने शाह के साथ बारनाला स्थान पर युद्ध किया।इस युद्ध में 20000 सिक्ख वीरगति को प्राप्त हुए। पर राजा आलासिंह जी अब्दाली के हाथों अपने मनुष्यों का काटा जाना बुद्धिमानी नहीं समझते थे। वे उन्हें विदेशी आक्रमणों से बचाये रखना चाहते थे। इसका यह परिणाम हुआ कि सन् 1764 में अहमदशाह ने आपको सरहिंद प्रान्त दे दिया। इस घटना के कुछ ही समय बाद राजा आला सिंह जी का सन् 1765 में स्वर्गंवास हो गया। आपका अपनी प्रजा पर बड़ा प्रेम था। यही कारण है कि अभी भी प्रजा में आपका नाम गौरव के साथ स्मरण किया जाता है।
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