राजबाला की वीरता, साहस, और प्रेम की अदभुत कहानी Naeem Ahmad, November 30, 2018March 30, 2024 राजबाला वैशालपुर के ठाकुर प्रतापसिंह की पुत्री थी, वह केवल सुंदरता ही में अद्वितीय न थी, बल्कि धैर्य और चातुर्यादि गुणो में भी कोई उनके समान न था। अपने पति को वह प्राणों से अधिक प्यार करतीं थी, और जीवन भर कभी भी ऐसा अवसर न आया, जब उन्होंने अपने पति की इच्छा के प्रतिकूल कोई काम किया हो। राजबाला का विवाह ओमरकोटा रियासत की सोडा राजधानी के राजा अनारसिंह के पुत्र अजीतसिंह से हुआ था। अनारसिंह के पास एक बहुत बड़ी सेना थी, जिससे कभी कभी वह लूटमार भी किया करता था। एक बार ऐसा हुआ कि राव कोटा का राजकोष कही से आ रहा था। अनारसिंह अपनी सेना लेकर उसपर टूट पड़ा।राजबाला की रोमांचक कहानीराव के सिपाही बडे वीर थे। दोनो सेनाओं मे खूब संग्राम हुआ। अंत मे अनारसिंह की पराजय हुई, और उसकी सब सेना तितरबितर हो गई। इस पराजय के कारण अनारसिंह का सोडा में रहना असंभव हो गया। राजा राव ने सब जागीर छीन ली और उसे देश निकाले की आज्ञा दी गई। अब अनारसिंह अपने ही किए पर पछता रहा था। परंतु क्या करता, अब जो हो गया सो हो गया। अंत में वह सोडा को छोडकर वह दूसरे राज्य के एक छोटे से गांव मे जा बसा। उसका हाथ तो पहले से ही तंग था, अब हालत और भी खराब हो गई। यहां तक कि अंत में दु:ख और लाज के मारे उसने प्राण त्याग दिए।रानी सती मंदिर झुंझुनूं राजस्थान – रानी सती दादी मंदिर हिस्ट्री इन हिन्दीअनारसिंह की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी ठकुरानी अजितसिंह को बडे कष्ट उठाकर पालने लगी। बालक की आयु उस समय तेरह वर्ष रही होगी। किंतु बांकपन और वीरता में वह अपनी आयु के बालकों से कही बढ़कर था। इस कुल की धीरे धीरे यह दुर्दशा हो गई कि अजीतसिंह की माता दूसरों का काम काज करके निर्वाह करने लगी, इस प्रकार उस दुखिया ने भी कुछ समय बाद परलोक सिधार लिया।राजबाला के साथ अजीतसिंह के विवाह की बातचीत उसके पिता के जीते जी हो गई थी। हांलाकि अनारसिंह का यह कुल अति दरिद्र हो गया था। परंतु राजपूत लोग सदा से अपने वचन का सम्मान करते थे। राजपूतानियां भी प्रायः अति हठी होती थी। एक बार जब किसी के साथ उनका नाम निकल जाए, फिर वह कभी किसी दूसरे के साथ विवाह करना उचित नही समझती थी।अजीतसिंह अब बिलकुल अनाथ था। बेचारा किसी प्रकार अपना निर्वाह न कर सकता था। किंतु उसे आशा थी कि उसके युवा होने पर शायद कोटा का राजा मेरे पिता की जागीर मुझे दे देगा, जिसका मैं वारिस हूँ। बस वह इसी आशा से जीता था।एक बार उसने एक राजपूतानी को प्रतापसिंह के यहां इसलिए भेजा था कि वह अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ करने को राजी है या नहीं?। उस समय राजबाला भी युवती थी। वह विवाह का समाचार सुनकर अपनी सहेलियों से कहने लगी—- बहनों” मैने अपने पति को नही देखा, वे कैसे है?। सहेलियां बोली— तुम्हारे पति अति सुंदर, बुद्धिमान और वीर है।पति की प्रशंसा सुनकर राजबाला अति प्रसन्न हुई और कहने लगी— मेरे पति वुर है, चतुर है, और सुंदर है, ये ही सब बातें एक राजपूत में होनी चाहिए। सब कहते है उसके पास धन नहीं है, न सही, जहां बुद्धि और पराक्रम है, वहां धन अपने आप ही आ जाता है।राजबाला के प्रेम, साहस, त्याग की रोमांचक कहानीराजबाला ने किसी तरह उस राजपूतानी से मिलकर कहा— तुम जाकर मेरे पति से कहो— यहां लोग तुम्हारी दरिद्रता का समाचार कहते रहते है, परंतु मै आज से ही नही, कई वर्षों से आपकी हो चुकी हूँ। आप मेरे पति है, मै आपकी बुराई सुनना नहीं चाहती। इसलिए आप स्वयं आकर पिताजी से कहकर मुझे ले जाएं। मै गरीबी और अमीरी में सदा आपका साथ दूंगी। किसी का वश नही कि मेरी बात को लौटा सके। यदि विवाह होगा तो आपके साथ होगा, नही तो राजबाला प्रसन्नता पूर्वक प्राण त्याग करेगी।जिस समय राजपूतानी ने राजबाला का संदेश अजीतसिंह को सुनाया वह प्रसन्नन हुआ और कहने लगा— यह कैसे संभव है कि मेरे जीते जी कोई और राजबाला को ब्याह कर ले जाएं।हाड़ी रानी का जीवन परिचय – हाड़ी रानी हिस्ट्री इन हिन्दीराजबाला के कहे अनुसार अजीतसिंह ने उसके पिता प्रतापसिंह को विवाह के लिए कहलवा भेजा। जिसके जवाब मे प्रतापसिंह ने कहा— विवाह को तो हम तैयार है। क्योंकि हमने तुम्हारे पिता को वचन दिया था। परंतु इस समय तुम्हारी आर्थिक हालत सही नही है। तुम बीस हजार रूपये इकट्ठा करके लाओ, जिससे यह मालूम हो कि तुम मेरी पुत्री को सुखी रख सकोगे। जब तक तुम्हारे पास बीस हजार रूपये न हो, तो विवाह के बारें मे भी तुम्हारा सोचना व्यर्थ है।आखिर प्रतापसिंह की बात भी उचित थी, कोई भी पिता अपनी ऐशोआराम मे पली पुत्री का विवाह ऐसे किसी व्यक्ति के साथ कैसे कर सकता है। जिसका खुद निर्वाह करना मुश्किल होता हो।अजीतसिंह अति शोक में डूब गया, परंतु बेचारा क्या करता। अंत मे उसे जैसलमेर के एक सेठ का ध्यान आया, जिसके यहां से उसके पिता का लेन देन था। वह सेठ के पास गया और उससे कहा— तुम मेरे घराने के पुराने महाजन हो, बीस हजार रूपये के बिना मेरा विवाह नही हो रहा है। विवाह करना आवश्यक है, परंतु तुम जानते हो, मेरे पास इस समय न जागीर है, न ही और कुछ है। यदि पुराने संबंध का विचार करके और मुझ पर विश्वास करते हुए मुझे बीस हजार रूपए दे सको तो दे दो। मै सूद सहित वापस कर दूंगा।रानी कर्णावती की जीवनी – रानी कर्मवती की कहानीसेठ ने अजीतसिंह को बडे ध्यान से देखकर कहा — ये लो, ये बीस हजार रूपए रखे है। ईश्वर को साक्षी मानकर और यह शपथ करके कि जब तक तुम मेरे रूपए वापस न लौटा दोगे, तब तक अपनी स्त्री के पास जाने में अधर्म समझोगे, ये रूपये ले लो।ऐसे वचन को निबाहना बडी कठीन बात थी। परंतु रूपए मिलने का और कोई उपाय न था। अतः वह राजी हो गया और रूपए लेकर अपनी ससुराल आया। अपने वचन के अनुसार प्रतापसिंह ने दोनों का विवाह कर दिया। यह किसी को जरा भी खबर न हुई की रूपए कहा से आये।विवाह के बाद रिति के अनुसार दूल्हा दुल्हन दोनों के लिए एक महल दे दिया गया। वे कई दिन तक उसमे रहे, परंतु सोने के समय अजीतसिंह अपनी नंगी तलवार बीच में रखकर सोता था। राजबाला को उनके इस प्रकार के बर्ताव से बडा आश्चर्य हुआ और मन ही मन सोचने लगी– सचमुच मेरे पति बडे सुंदर है, चतुर और वीर है, पर न मालूम बीच में नंगी तलवार रखकर सोने का क्या मतलब है?।रानी चेन्नमा की कहानी – कित्तूर की रानी चेन्नमाकई दिन इसी तरह बीत गए, परंतु राजबाला को इतना साहस न हुआ कि कुछ पुछती। अतं में एक दिन दोनों में बातचीत होने लगी। राजबाला ने साहस करके पूछा— प्राणनाथ! मै देखती हूँ कि आप प्रायः ठंडी और गहरी सांसें लेते रहते है। इससे ज्ञात होता है कि आपको कोई बड़ा कष्ट हो रहा है। मै तो आपकी दासी हूँ मुझसे छुपाना उचित नही है। मै विचार करूंगी कि किस प्रकार आपकी चिंता दूर हो सकती है।राजबाला की बात सुनकर उसका दिल भर आया और मुख नीचा करके उसने चुप्पी साध ली।राजबाला ने फिर कहा— स्वामी! घबराने की कोई बात नहीं है। इस संसार में सभी पर आपत्ति आती है। चिंता व्यर्थ है। संसार में हर रोग की औषधि उपस्थित है। आप चिंता न किजिए, मुझसे कहिए। यथासंभव मे आपकी सहायता करूगी। यदि मेरे मरने से भी आपका भला होता है तो मेरे प्राण आपकी सेवा को हर समय तैयार है। राजबाला का इतना कहना था कि अजीतसिंह ने राजबाला का हाथ पकड लिया और दुख भरे शब्दों मे अपनी सब कथा कह सुनाई।जब अजीतसिंह यह सब कह चुका तो राजबाला ने कहा— स्वामी! आपने बडा मोल देकर मुझे मोल लिया है। मै कभी आपकी इस कृपा को नही भूल सकती। यह ऐसी जगह नही है जहां बीस हजार रूपए मिल सके। इसलिए इसे छोडना उचित है। मै इसी समय मर्दाना वेश धारण करती हूं। मै ओर आप संग संग रहेंगे। जब कोई आपसे मेरे बारे में पूछे तो साले बहनोई बताएं। चलिए परदेश चलकर महाजन के बीस हजार रूपए चुकाने का उपाय करे।आधी रात का समय था, जब पति पत्नी मे इस प्रकार की बातचीत हुई। सब लोग बेसुध सो रहे थे। राजबाला ने मर्दाना वेश धारण किया। अजीतसिंह और राजबाला दोनों बाहर आएं और घोडो पर सवार होकर चल दिए। कई दिन बाद दो सुंदर बांके युवक घोडों पर सवार उदयपुर मे दिखाई दिए। उस समय मेवाड़ की राजगद्दी पर महाराज जगतसिंह राज करते थे। राणा महल की छत पर बैठे नगर को देख रहे थे। नए राजपूतों को देखकर उनका हाल जानने के लिए राणा ने दो दूतो को भेजा। थोडी देर में दोनों राजपूत राणा के सामने लाज गए। जब दोनो राजपूत प्रणाम कर चुके तो महाराज ने पूछा— तुम कौन हो? कहाँ से आए हो? और कहा जा रहे हो?।अजीतसिंह ने उत्तर दिया— महाराज हम दोनो राजपूत है। मेरा नाम अजीतसिंह है और ये मेरे साले है। इनका नाम गुलाबसिंह है। वृत्ति की खोज में आपके यहां आएं है। सौभाग्य से आपके दर्शन भी हो गए। अब आगे क्या होगा नही मालूम।राजा राजपूतों के ढंग को देखकर अति प्रसन्न हुए और राजपतो के नाम पर मोहित होकर महाराज ने हंसकर उत्तर दिया— तुम लोग मेरे यहाँ रहो। एक हवेली तुम्हारे रहने के लिए दी जाती है। खानपान के लिए अतिरिक्त पांच रूपये और दिए जाएंगे।रानी भवानी की जीवनी – रानी भवानी का जीवन परिचयराजबाला और अजीतसिंह दोनों अब उदयपुर में रहने लगे, परंतु बीस हजार रूपए की चिंता सदा लगी रहती थी। रूपए जुटाने का कोई उपाय नही सूझ रहा था। वे वर्षा ऋतु के आरंभ मे यहां आए थे, और वर्षा ऋतु बीत गई। फिर दशहरे का शुभ त्यौहार आया। इस पर राजस्थान में बडा उत्सव मनाया जाता है। उदयपुर मे पाडे का वध किया जाता है। महाराज के साथ सब सरदार घोडो पर सवार हुए। उनके साथ गुलाब सिंह और अजीतसिंह भी चल दिए। इतने में ही एक गुप्तचर ने आकर खबर दी— महाराज की जय हो! पाडे के स्थान पर एक सिंह की खबर है।राणा ने राजपतो से कहा– वीरों आज का दिन धन्य है, जो सिंह आया है। ऐसा अवसर बडी कठनाई से मिलता है। अब पाडे का ध्यान छोडकर सिंह का शिकार करो। बस फिर क्या था हांके वालों ने सिंह को जाकर घेर लिया और उसके निकलने के लिए केवल एक ही राह रखी– जिधर राजा और सरदार उस सिंह का इंतजार कर रहे थे। महाराज हाथी पर थे। वह चाहते थे कि स्वयं सिंह का शिकार करे। इसलिए उन्होंने और सरदारों को उचित उचित स्थान पर खडा कर दिया। जब सिंह ने देखा कि मुझे लोग घेर रहे है। तो वह राणा की ओर बढ़ा। उसे देखकर राणा डर गए, क्योंकि उन्होंने पहले कभी इतना बडा सिंह नहीं देखा था। इसको मारना आसान काम नहीं था। सब सरदार लोग भी डर गए। सिंह झपटकर राणा के हाथी पर आया और उसके मस्तक से मांस का लोथड़ा नोचकर पीछे हट गया। राणा के हाथ से भय के मारे तीर कमान भी छूट गए। सिंह फिर छलांग लगाने को ही था कि गुलाबसिंह ने दूर से देखा और अजीतसिंह से कहा– ठाकुर साहब, महाराज की जान खतरे मे है। उन्हें ऐसे कठिन समय में छोडना अति कृतध्नता की बात है। मुझसे अब देखा नही जाता। प्रणाम! मै जाता हूँ।अजीतसिंह को अपनी बात कहने तक का अवसर भी न मिला कि गुलाब सिंह का घोडा तीर की तरह सनसनाता हुआ आगे बढ़ा, हाथी अपना धैर्य छोड चुका था। सिंह फिर छलांग लगाने को ही था कि वक्रगति से आकर गुलाबसिंह ने उसे अपने भाले के निशाने पर ले लिया।भाले सहित सिंह पृथ्वी पर गिरा। बस फिर क्या था, सवार ने एक ऐसा हाथ तलवार का मारा कि सिंह का सिर अलग जा पडा और उसी समय उसके कान और पूंछ काटकर वैसे ही फुर्ती से अपने स्थान पर आ गया। कान और पूंछ को घोडे की जीन के नीचे रखकर लोगों से धीरेधीरे बातचीत करने लगा। परंतु उसने इस काम को ऐसी फुर्ती से किया कि किसी को ज्ञात भी न हुआ कि वह घुडसवार कौन था जिसने सिंह को मारा।सिंह के मरने पर चारों ओर राजा की जय जयकार होने लगी। सब लोगों ने अपनी अपनी जगह से आकर राजा को घेर लिया। सरदारों ने कहा— ईश्वर ने आज बडी दया कि। हम सबकी जान में जान आई।रानी दुर्गावती का जीवन परिचयजब सब बधाई दे चुके तो राजा ने कहा— वह कौन आदमी था, जिसने आज मेरी प्राण रक्षा की, उसको मेरे सम्मुख लाओ। मै उसे इनाम दूंगा। परंतु मारने वाला बहुत दूर था। वह अपने को उजागर करना भी नही चाहता था। राणा ने थोडी देर तक बांट देखी। परंतु जब कोई नही आया तो खुशामदी दरबारी लोग अपने अपने मित्रो का नाम बताने लगे। राणा ने कहा—- नहीं” मैने उसे जाते हुए देखा है। हालांकि ठीक ठीक नहीं कह सकता, परंतु पहचान तो अवश्य लूंगा। उसके मुख की सुंदरता मेरी आंखों मे खपी जाती है।राजा की बात सुनकर सब चुप हो गए, और सवारी महल की ओर चली। जब राणा फाटक पर पहुंचे तो हाथी से उतरकर आज्ञा दी— एक एक आदमी मेरे सामने से होकर निकल जाएं। आज्ञानुसार बारी बारी से सभी लोग राणा के सामने से निकलकर महल में चले गए। जब गुलाबसिंह जाने लगा तो राणा ने उसे देखकर पूछा–क्या सिंह को मारने वाले तुम हो?।गुलाबसिंह ने सर झुकाकर कहा— जिसको श्रीमान कहें , वही सिंह का वध कर सकता है। सिंह की मृत्यु तो आपकी आज्ञा के अधीन है।राणा बोला— मै समझता हूँ, सिंह तुमने ही मारा है, परंतु मै यह यकीन से नही कह सकता, क्योंकि तीव्रगति से दौडते घोडे ने मुझे इतना अवसर न दिया कि मै मारने वाले को ठीक से पहचान सकता।अजीतसिंह भी निकट था, वह बोला — अनाथों के नाथ! सिंह के कान और पूंछ नही है, इससे ज्ञात होता है कि उसके मारने वाले ने प्रमाण के लिए उसके कान और पूंछ काट लिए है।राणा ने गुलाब सिंह से कहा — कान ओर पूंछ हाजिर करो। गुलाबसिंह ने तुरंत घोडे की जीन के नीचे से निकालकर उन्हें राणा के सामने पेश किया। राणा बोला— राजपतो! तुम बडे वीर हो। आज से तुम मेरे संग रहा करो। मै तुमको अपना अंगरक्षक नियुक्त करता हूँ।रानी भवानी की जीवनी – रानी भवानी का जीवन परिचययद्यपि दोनों राजपूत संग रहते थे। परंतु रात के समय दोनों को अलग अलग हो जाना पडता था। अजीतसिंह तो रात को दरबार मे रहता था और राजबाला (गुलाबसिंह) राजा के सुख भवन में नियुक्त था। एक दिन राजबाला अपनी बेबसी पर नीचे स्वर मे मल्हार के राग गाने लगी।अजीतसिंह ने राजबाला के राग को सुना उसके ह्रदय मे भी वही भाव उददीप्त हो गया। उसने भी राजबाला के राग मे स्वर मिला दिया।राणा की रानी बहुत चतुर थी। दोनो गाने वालों के राग की आवाज रात के समय उसके कानों मे पड़ी। उसने राणा से कहा– मुझे ज्ञात होता है कि ये दोनों राजपूत जो तुम्हारी सेवा मे है। स्त्री और पुरूष है। यह जो पुरूष रानी निवास पर पहरे पर है, अवश्य यह स्त्री है। कोई कारण है जिससे ये एक दूसरे से नही मिलते और मन ही मन कुढते है।राणा खूब ठहठहाका मारकर हंसा— खूब! तुमको खूब सूझी! ये दोनों साले बहनोई है। सदा से संग रहते है। आज यह यहां डयोढी पर है, इन दोनों में ऐसी गाढ़ी प्रिति है कि कभी अलग नहीं रहना चाहते।रानी बोली— महाराज ! आप जो कहते है सत्य होगा, परंतु मेरी भी बात मान लिजिए, इनकी परीक्षा किजिए। अपने आप ही झूठ सच ज्ञात हो जाएगा।राजा को बडा आश्चर्य हुआ र तुरन्त ही अजीतसिंह और गुलाबसिंह दोनो को अपने महल में बुला भेजा। दोनों बडे डरे कि क्या बात है। कोई नई आपत्ति तो नही आयी। उनहोने राणा के सामने जाकर प्रणाम किया। तब राणा ने पूछा— गुलाब सिंह और अजीतसिंह यह बताओ कि तुम दोनों मर्द हो या तुम में से कोई स्त्री है। दोनों चुप थे। क्या उत्तर देते? राणा ने फिर वही प्रशन किया। तुम दोनों बोलते क्यो नहीं? तुम्हें जो दुख हो कहो। मेरे अधिकार मे होगा तो अभी इसी समय दूर कर दूंगा। लाज भय की कोई बात नही।अजीतसिंह ने सर झुकाकर राणा को अपनी सारी कहानी कह सुनाई।राणा ने उसी समय दासी को बुलाकर कहा— देखो यह जो बाई मर्दाना वेश मे खडी है, मेरी पुत्री है। इसको अभी महल मै लेजाकर स्त्रियों के कपडे पहना दो, और महल मे रहने के लिए अलग स्थान दो, हर प्रकार से इनको आराम दो।राजबाला राणा की आज्ञा सुनकर उसी समय सर झुकाकर महल में चली गई। इसके बाद राणा ने अजीतसिंह से कहा— राजपूत मै तेरे बाप दादा के नाम को जानता हूँ। तेरा प्रणबद्ध होना धन्य है। मैने आज तक अपनी आयु मे ऐसा योगी नहीं देखा था। तू मनुष्य नही देवता है। जा अब महल में अपनी स्त्री से बातचीत कर।झांसी की रानी का जीवन परिचय – रानी लक्ष्मीबाई की गाथारात को किसी को नींद नही आयी। प्रातः काल होते ही राणा ने बीस हजार रूपए सूद सहित अजीतसिंह को दिए। वह उसी समय ऊंटनी पर चढ़कर जैसलमेर की ओर चल दिया और बनिए के पास पहुंचकर रूपए सौप दिए। एक साल से अजीतसिंह का कोई अता पता नही था। बनिया अपने रूपयो से निराश हो गया था। परंतु उसे कोई रंज न था। क्योंकि वह अजीत के पिता से बहुत कुछ ले चुका था। रूपए वापस पाकर बनिया बहुत खुश हुआ और बोला— तुम वास्तव में क्षत्रिय हो, तुम जानते हो कि वचन क्या होता है तुम महान हो।अजीतसिंह बनिया के रूपए देकर उदयपुर आया और राणा के पांवो पर गिर पड़ा— आपने मेरी लाज रख ली। राणा ने राजबाला को प्राणरक्षक देवी का खिताब दिया। वह उदयपुर मे इसी नाम से विख्यात थी। वह जब कभी राणा के महल में उनके होते हुए जाती, राणा उनको पुत्री कहकर पुकारता था। स्त्री और पुरूष दोनो ही राणा के कृपा पात्र बन गए। रराणा भी उनको ऐसा ही प्यार करता था मानो वे उसके ही पुत्र-पुत्री हो। राजबाला और उसके पति के लिए एक अलग महल बनवा दिया गया और उन्हें एक जागीर भी अलग प्रदान की गई।भारत के इतिहास की वीर नारियों पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—[post_grid id=”6215″] Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत की महान नारियां सहासी नारी