रसिन का किला प्राकृतिक सुंदरता के बीच बिखरे इतिहास के अनमोल मोती Naeem Ahmad, July 2, 2021March 11, 2023 रसिन का किला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले मे अतर्रा तहसील के रसिन गांव में स्थित है। यह जिला मुख्यालय बांदा से 48 किलोमीटर की दूरी पर है। तथा बांदा कर्बी मार्ग पर यह रसिन फोर्ट बदौसा के निकट कल्याणपुर मार्ग पर स्थित है। चंदेलों के युग में यहां एक बड़ा नगर था क्योंकि यहां पर अनेक भवनों के भग्नावशेष मिलते तथा अनेक तालाब भी यहां थे। ऐसा कहा जाता है कि रसिन कभी राजवंशियों की आवास भूमि थी। जो मौलिक रूप से चंदेल थे। रसिन का पुराना नाम राजवंशीय था। यहां के मूल निवासियों का कहना है कि रघुवंशी राजपूत, बुंदेलों के शासनकाल में यहां के जागीरदार थे। जो प्रशासनिक दृष्टि से पूर्ण रूप से स्वतंत्र थे। रसिन किले के दर्शन रसिन गांव में एक प्राचीन किले के खंड़हर मिलते है। इसे ही रसिन का किला कहा जाता है। इस किले का निर्माण ईंट और पत्थरों से हुआ था। प्राचीनकाल में प्रशासनिक दृष्टि से यह महत्वपूर्ण स्थल था। इसके पश्चिमोत्तर किनारे पर चंदेलकालीन मंदिर के अवशेष मिलते है। तथा उसी के समीप चंदेलकालीन कूप भी है। पूरब की तरफ एक पहाड़ी है। जिस पर चढ़ने का रास्ता गांव के उत्तर पूर्व से है। यहाँ पर चौकोर पत्थर में एक स्मारक बना हुआ है। जिसे बालन बाबा का स्मारक कहते है। इनका अस्तित्व 1889 के लगभग था। रसिन का किला इसी पहाड़ी के ऊपर एक छोटा सा सरोवर मिलता है। तथा इसी के समीप एक छोटा सा गांव था। तथा इसी पश्चिमी सिरे में चंदेल कालीन रसिन का किला था। तथा पहाडी पर चढने के बाद किले में प्रवेश करने के लिए दूसरा द्वार मिलता है। यही से 200 मीटर की दूरी पर एक तालाब मिलता है। यह तालाब चट्टान काटकर बनाया गया है। तथा इसी तालाब के समीप चन्दा महेश्वरी का एक मंदिर मिलता है। जिसमें विक्रमी संवत् 1466 का एक अभिलेख भी है। इसके चारों ओर उबड खाबड मैदान है। और पूर्व की ओर ढालान है। यही पर एक सूखा कुआँ भी है। तथा दुर्ग द्वार के अवशेष भी है। रसिन गांव मे ही थोड़ी दूर एक पहाड़ी पर रतन अहील का एक स्मारक है। रतन अहील इस पहाड़ी पर चढकर प्रतिदिन यमुना नदी के दर्शन किया करता था। यहा के रघुवंशी राजा को रतन अहील पर यह संदेह हुआ कि वह पहाड़ी पर चढकर उसके महल की औरतों को देखता है। इससे क्रोधित राजा ने उस रतन अहील को उसी पहाड़ी से नीचे फेकवा दिया। रतन अहील निर्दोष था अतः उसके निधन का दुख गांव वालों को हुआ, और गांव वालो ने उसकी याद में उसी पहाड़ी पर उसका स्मारक बना दिया। मुगल शासन काल में प्रशासनिक दृष्टि से रसिन के किले का महत्वपूर्ण स्थान था। और इसे परगना का दर्जा मिला हुआ था। इसी क्षेत्र पर बुंदेल सैनिकों का युद्ध मुगलों से हुआ था। सन् 1781 में रघुवंशी राजपूत, राजा घुमान सिंह के नियंत्रण में और उनके शासन में यहां के जागीरदार थे। बाद में यह गांव और रसिन का किला उजाड़ हो गया। रसिन के दुर्ग के नीचे ताल नाम का एक सरोवर है। इसी से लगा हुआ चंदेलकालीन देवी मंदिर है। हालांकि इस किले के वर्तमान में भग्नावशेष व खंड़हर ही शेष है किंतु आज भी यह अपने गौरवमय इतिहास के साथ तथा बुंदेलखंड के किलो महत्वपूर्ण स्थान रखता है। हालांकि यहां देखने को कुछ खास नहीं मिलता लेकिन यहां बिखरे पड़े भग्नावशेष व चारों फैली प्राकृतिक छटा इतिहास में रूची रखने वाले पर्यटकों को खूब आकर्षित करती है। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- [post_grid id=”8089″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के पर्यटन स्थल उत्तर प्रदेश पर्यटनऐतिहासिक धरोहरेंबुंदेलखंड के किले