रडार का आविष्कार किसने किया – रडार क्या है और कैसे कार्य करता है? Naeem Ahmad, July 6, 2022March 4, 2024 रडार का आविष्कार स्कॉटलैंड के एक प्रतिभाशाली युवक रॉबर्ट वाटसन वाट ने किया था। यह युवक मौसम विज्ञान विभाग का एक अधिकारी था। उस समय वायुयानों का तेजी से विकास हो रहा था, लेकिन विमान दुर्घटनाएं भी बहुत बढ गयी थी। अक्सर वायुयान तडित झंझाओं (आकाशीय तूफानों) की लपेट में आकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाते थे। वाटसन वाट किसी ऐसे यंत्र के विकास की बात सोच रहे थे, जिसके द्वारा इन दुर्घटनाओं को रोका जा सके। यह तो वह जानता ही था कि तडित झंझाए विद्युत गर्जन (आकाशीय बिजली) के साथ होती है। अतः गर्जन की आवाज को काफी दूर पहले बतौर रिसीवर द्वारा सुना जा सकता है ओर इस तरह दिशा बदलकर वायुयान का बचाया जा सकता है।रडार का आविष्कार किसने किया और कैसे हुआसन् 1934 मे जब वह टर्डिग्टन स्थित एक प्रयोगशाला में वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी थे, तो सरकारी विभाग ने उनसे जर्मनियों द्वारा प्रयुक्त मृत्यु-किरणों से संबंधित जानकारी प्राप्त करने का निर्देश दिया। उन दिनों मृत्यु किरणों की खबर समाचार पृष्ठों मे आए दिन छपती रहती थी। वाटसन ने इस खबर का खण्डन किया, लेकिन उनके खुद के दिमाग में विद्युत-विक्षोभ पर कार्य करन का एक विचार अवश्य कौंध गया, क्योकि मृत्यु किरणों के संबध में ऐसी खबर होती थी कि वे दूर से ही लोगों को मार सकती है। विस्फोटकों का नप्ट कर सकती हैं। टैंकों वायुयानों को रोक सकती है। बस इसी से उसके दिमाग में एक ऐसी प्रणाली का विचार आया जिससे विमानों और जहाज़ों को बादल, धुंध और अंधरे में से बिना किसी बाधा के उडाया जा सके।लखनऊ के क्रांतिकारी और 1857 की क्रांति में अवधउन्होंने अपनी योजना के लिए सरकार से धन की सहायता मांगी जो तुरंत प्राप्त हो गयी। उन्होने अपना रडार यंत्र बनाया और इसका परीक्षण डिवेन्टी नामक शक्तिशाली लघु-तरंग रेडियो ट्रांसमीटर केन्द्र से दस मील दूर एक मैदान में किया। परीक्षण में उनका रडार यंत्र खरा उतरा। उन्होने सिद्ध कर दिखाया कि उडते हुए वायुयान की एक वायरलेस प्रतिध्वनि (Echo) को जमीन पर से रेडियो-तरंगो के माध्यम से पुनः प्राप्त किया जा सकता है और इसकी दूरी रफ्तार और दिशा का पता लगाया जा सकता है।रडारवाटसन के अनुसार वायुयान के डेने वायुमंडल मे एक तरह से क्षैत्रज तार की तरह काम करत है। जब उन पर एक शक्तिशाली बेतार अशु् प्रेषित किया जाता है, ते डेने तरंग को परावर्तित कर देते हैं जैसे कोई दर्पण प्रकाश किरणों को परावर्तित कर देता है। वैसे इस सिद्धांत में कोई नयी बात नहीं थी। सन् 1887 मे हेनरिक हर्ट्ज नामक जर्मन वैज्ञानिक ने यह सिद्ध कर दिया था कि विद्युत चुम्बकीय तरंग प्रकाश किरणो की ही तरह परावर्तित हो जाती है। एक अन्य जर्मन वैज्ञानिक ने सन् 1904 में रेडियो प्रतिध्वनि यंत्र का पेटेंट प्राप्त किया था। इस वैज्ञानिक का नाम था- हुल्समयर।लखनऊ में 1857 की क्रांति का इतिहासलेकिन मकसद वायुयान की सुरक्षा से संबंधित एक प्रणाली का विकास करना था, यह काम वॉटसन ने ही किया ओर रडार यंत्र बनाया। रडार यंत्र को शक्तिशाली बनाने के लिए शक्तिशाली प्रतिध्वनि प्राप्त करना बहुत आवश्यक था ओर इसके लिए अति लघु-स्पदों (pulses) (एक सेकण्ड का 10 लाखवा भाग) को उत्पन्न करने के लिए एक उच्च शक्ति के समर्थ प्रेषी (Transmitter) ओर ऐसे ही रिसीवर की आवश्यकता थी।धीरे-धीरे रडार यंत्र के लिए ऐसे ट्रांसमीटर और रिसीवर का विकास कर लिया गया।शम्सुन्निसा बेगम लखनऊ के नवाब आसफुद्दौला की बेगमद्वितीय विश्वयुद्ध में रडार यंत्र की प्रमुख भूमिका रही। वाटसन को रडार यंत्र जैसे बहु-उपयोगी यंत्र के आविष्कार के लिए 1942 में ‘नाइट’ बी उपाधि से विभूषित किया गया। इससे पहले इस बात की जानकारी जनता को नही थी। निःसंदेह बमवर्षक जहाज़ों से लंदन को बचाने में रडार यंत्र का प्रमुख योगदान था।रडार कैसे कार्य करता हैरडार शब्द ‘रेडियो डिटेक्शन एड रजिंग का संक्षिप्त रूप है। रडार सेट रेडियो तरंग प्रेषित करता है और तरंगो के वापस लौटने में लगा समय माप लेता है। रडार सेट में लगा ट्रांसमीटर लगभग रेडियो स्टेशन की तरह कार्य करता है। इसका रिसीवर टेलीविजन सेट की तरह कार्य करता है और दूरी से आती वस्तु से टकराकर लौटी हुई रेडियो-तरंगों को एक चित्र के रूप में परिवर्तित कर देता है। ट्रांसमीटर निश्चित समय के अंतराल से हाई फिक्वेंसी रेडियो तरंगो वे छोटे-छोटे स्पंद आकाश में छोडता रहता है। ट्रांसमीटर एक सेकंड के दस लाखवें हिस्से के समय तक तरंग प्रेषित करके थोडा रुकता है और फिर भेजना शुरू करता करता है। सेट चालू रहने के दौरान यही क्रम चलता रहता है।लखनऊ की बोली अदब और तहजीब की मिसालविभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग प्रकार और शक्ति के रडार यंत्रों का उपयोग किया जाता है परंतु लगभग सभी सेटो में निम्नलिखित भाग अवश्य होते है- प्रेषी (Transmitter) जो छोटे-छोटे स्पंदों (Pulses) को उत्पन करता है। एरियल- यह इकट्ठे हुए स्पंदों को तरंग के रूप मे आगे प्रेषित करता है तथा परावर्तित स्पंदों को ग्रहण करने का कार्य करता है। संवेदनशील ग्राही (Receiver) यह कमजोर स्पंदो की प्रतिध्वनि को ग्रहण कर उन्हें प्रवर्धित (Amplified) करता है। सूचक- यह प्रतिध्वनि को स्क्रीन पर निर्देशित कर उसकी दूरी दिशा आदि की सूचना देता है। काल निर्धारक– यह अन्य भागों की गतिविधियों का नियोजन करता है। रडार का उपयोगरडार का उपयोग की कार्यों के लिए होता है जैसें:- शत्रु के विमान का पता करने के लिए, आकाश का निरीक्षण करने के लिए, जहाज़ों का पता लगाने के लिए, भू सर्वेक्षण के लिए, शत्रु के ठिकानों पर अचूक निशाना लगाने के लिए, संदेश प्रसारण आदि अनेक कार्य रडार द्वारा किए जाते हैं।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़ें:—-[post_grid id=”8586″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share 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