युवावस्था में इस किताब के हाथ लगते ही यदि किसी की दुनिया एकदम बदल नहीं जाती थी तो हम यही समभते थे कि वह अन्वेषण की सृक्ष्म बुद्धि से वंचित है।” यह उक्ति आइन्स्टाइन की है। आज इस किताब को लिखे दो हज़ार साल से अधिक हो गए हैं, फिर भी हाईस्कल के विद्यार्थी आज भी इसे पढ़ते हैं।आइन्स्टाइन का संकेत यूक्लिड की ‘एलीमेंट्स’ (ज्यामिति मूलतथ्य) नामक जानी-मानी पुस्तक की ओर है। दुनिया की हर भाषा में इसका अनुवाद हो चुका है। अंग्रेज़ी में इसका पहला संस्करण 1570 में निकला था। यह अंग्रेजी अनुवाद लैटिन अनुवाद पर और लैटिन अनुवाद मूल ग्रीक के अरबी रूपान्तर पर आवारित है। मूल ग्रीक पुस्तक की’ रचना ईसा से लगभग 800 साल पहले हो गई थी।
अलेक्जेंड्रियाका निवासी यूक्लिड एक ग्रीक गणितज्ञ और अध्यापक था। उसके व्यक्तिगत जीवन के बारे में कुछ भी मालूम नहीं। आज तक ऐसे कोई भी कागजात नहीं मिले, जिनसे यूक्लिड की जन्म-तिथि या उसके जन्म-स्थान के बारे में जानकारी मिलती। हम इतना ही जानते हैं कि वह अलेक्जेंड्रिया के राजकीय विद्यालय में गणित का अध्यापक था और उसकी लिखी पुस्तक की जितनी प्रतियां आज तक बिक चुकी हैं उतनी शायद बाइबल को छोड़कर किसी दूसरी पुस्तक की नहीं बिकी।
यूक्लिड का ज्यामिति सिद्धांत
यूक्लिड को ज्यामिति का जनक कहा जाता है, और यह सही है। उसने ज्यामिति के सभी ज्ञात तत्त्वों का संग्रह किया। व्यावहारिक आवश्यकताओं के कारण विकसित हुए इन सामान्यतया विसंगत तत्त्वों को उसने सुबोध, सुसंगत और सुन्दर पद्धति से सुव्यवस्थित
किया ताकि एक प्रमाण अगले प्रमाण की आधारभूमि बनता जाए। यह सब यूक्लिड ने इस खूबी के साथ किया कि एक प्रभेय दूसरे गणितीय प्रमाण का आधार बनता चला गया। और यह सिद्ध किया जा सका कि यदि मनुष्य अपनी विचार-शक्ति का उपयोग करे तो वह क्या नही कर सकता ?
यूक्लिडमिस्र को ‘नील नदी का उपहार’ कहा जाता है। पुराने मिस्र की बहुत कुछ ख्याति इसी नदी के कारण हुईं। नील नदी हर साल बाढ में अपने किनारों को तोडकर सुदूर पहाड़ियों से काली उपजाऊ मिट्टी बहा लाती है। यही मिस्र की खेती-बाडी का रहस्य है। बाढो से दौलत तो मिली, लेकिन बहुत-सी समस्याएं भी सामने आई। नील नदी हर साल अपना रुख बदलती है। इसलिए जमीन की सीमाएं बदल जाती है और अस्पष्ट हो जाती हैं। जमीन का कर वसूल करना कठिन होता है, क्योकि हर आदमी के हक मे आनेवाली जमीन की सीमा निश्चित नही होती। कर लगाने के लिए यह बात जरूरी होती है।
ज्यामिति शब्द का मूल अर्थ है–जमीन नापना। जमीन नापने के लिए ही ज्यामिति का विकास हुआ। जान पडता है कि मिस्र वासियों ने ज्यामिति के सैद्धांतिक पक्ष पर विशेष ध्यान नही दिया। हालांकि वर्षो से वे उन्ही सिद्धान्तों पर अमल कर रहे थे और अपना काम अच्छी तरह चला रहे थे। ज्यामिति-सम्बन्धी उनके ज्ञान में त्रुटियां भी थी। इसमें जमीन को छोटे-छोटे त्रिभुजाकार टुकड़ों में बांटा जाता था। उनके क्षेत्रफल को जोडकर पूरी ज़मीन के क्षेत्रफल का हिसाब कर लिया जाता था। फल यह होता था कि कितने ही छोटे-छोटे जमीदार हर साल सरकारी खजाने मे कुछ ज्यादा ही रकम देते थे। लाचारी यो थी कि भू-सर्वेक्षक ज़मीन का रकबा निकालने के लिए गलत तरीका अपनाते थे।
मिस्र वासी भू-सर्वेक्षण यंत्र के बिना ही समकोण बना लेते थे। हम खेल के मैदान बनाने या खेत पर मचान की नीव डालते समय आज भी बसा ही करते है। समकोण बनाने के लिए वे एक रस्से के बचे त्रिभुज को काम मे लाते थे। इसकी भुजाए क्रश 3 4 5 होती थी। जब इस रस्से को किनारों की गांठों के सहारे ताना जाता था तो 3, 4 की लम्बाई के बीच बना हुआ कोण समकोण बन जाता था। इसीलिए मिस्र के भू-सर्वेक्षकों को रस्सा तानने वाला कहा जाता था।
ग्रीक गणितज्ञ थेलीज ने जब मिस्र वासियों के इन ज्यामितीय नियमो के बारे मे सुना तो उसे आश्चर्य हुआ कि उनका प्रयोग इतना सही कैसे उतरता है। ज्यामिति को विज्ञान के रूप मे विकसित करने के लिए यही जिज्ञासा पहला कदम सिद्ध हुईं। अपनी जिज्ञासा के समाधान के लिए थेलीज ने यह नियम बनाया कि किसी भी सिद्धान्त के निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए ज्ञात तथ्यो को ही आधार मनाना चाहिए और जहा तक हो सके इन्ही के सहारे अपनी चिन्तन-प्रक्रिया मे आगे बढना चाहिए। थेलीज जानता था कि ज्यामिति एक व्यावहारिक विज्ञान है, जिसका उपयोग नौचालन और ज्योति विज्ञान मे उसी तरह किया जा सकता है, जिस तरह जमीन नापने या पिरामिड बनाने में। ज्यामिति के विकास मे अगला कदम पाइथागोरस और उसके शिष्यों ने उठाया। उन्होने ज्यामिति को उसके व्यावहारिक पक्ष से अलग कर लिया। वे ज्यामितीय तथ्यों के तर्क पूर्ण प्रमाण खोजने में ही लगे रहे। इस प्रणाली को उन्होंने इस प्रकार विकसित किया कि वह इतना समय बीत जाने के बाद आज भी स्थिर है और उसका क्षेत्र ज्यामिति तक सीमित नही है बल्कि उसकी उपयोगिता मानवीय बुद्धि के हर क्षेत्र मे सिद्ध हो चुकी है।
तर्क की इस प्रणाली को निष्कर्ष प्रणाली (डिडक्टिव रीजनिग ) कहते है। पहले से स्वीकृत तथ्यो का उपयोग करके किसी समस्या का हल निकालना, यही इस प्रणाली का उपयोग है। सामान्यतः प्रत्येक जासूसी कहानी किसी निष्कर्ष विधि का उदाहरण हुआ करती है। इस तरह विज्ञान एक सबसे बडी जासूसी कहानी है। कॉनन डायल ने अपनी कलपना के प्रसिद्ध जासूस शरलॉक होग्स के मुंह से एक स्थान पर कहलवाया है कि “पानी की एक बूंद से कोई तार्किक अतलातक महासागर अथवा नियागरा प्रपात की कल्पना कर सकता है, यद्यपि न तो उसने महासागर को देखा है और न प्रपात की गर्जना ही सुनी है। इसी प्रकार जीवन मूलतः एक बडी श्रृंखला है, जिसकी एक कडी से ही उसकी सम्पूर्ण प्रकृति का भाव हो जाता है। अन्य कलाओं के समान निष्कर्ष और विश्लेषण के विज्ञान को भी दीर्घकालीन अध्ययन और धैर्य के फल-स्वरूप ही जाना जा सकता है।
यूक्लिड ने थेलीज, पाइथागो रस, प्लेटो तथा अन्य यूनानी और मिस्री वैज्ञानिकों द्वारा रचित सारी सामग्री को संकलित किया। ज्यामिति की विविध समस्याओं का समाधान यूक्लिड की देन नही है। जाने-माने तथ्यों को इस प्रकार व्यवस्थित करना ताकि विद्यमान तथ्यों को जोडकर नये विचारो की जानकारी और उनके प्रमाण भी मिलते जाए, यही यूक्लिड की देन है। सामान्य परिभाषाओं (एक्जियम्स ) को यूक्लिड ने ऐसी स्थापनाओ (थ्योरम्स) के साथ जोडा, ताकि वे तर्क से प्रमाणित की जा सके।
प्लेटो ज्यामिति का महत्त्व जानता था। उसकी अकादमी मे प्रवेश के लिए ज्यामिति का ज्ञान आवश्यक था। उसका कहना था कि ज्यामिति न जानने वालो को उसकी संस्था के प्रवेश न दिया जाए।
ज्यामिति की महत्ता अब्राहम लिंकन ने भी स्वीकार की। 40 वर्ष की आयु में उन्होने यूक्लिड के ग्रन्थों का अध्ययन किया। यह अध्ययन गणित की जानकारी के लिए नहीं बल्कि तर्क में दक्षता प्राप्त करने के लिए होता था। यांत्रिकी, ध्वनिविज्ञान, प्रकाश- विज्ञान, नौचालन, परमाणु विज्ञान, जीव विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान आदि विज्ञान और उद्योग की समस्त शाखाओं का अध्ययन यूक्लिड के निष्कर्ष पर आधारित है। और विज्ञान के नये अन्वेषण भी इसी तर्क-प्रणाली पर आश्रित रहेगें।
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