याओसांग फेस्टिवल मणिपुरयाओसांग त्योहार क्यों और किस राज्य मनाया जाता हैPost author:Naeem AhmadPost published:June 20, 2023Post category:भारत के प्रमुख त्यौहारPost comments:0 Comments उत्तर पूर्वांचल में स्थितमणिपुर राज्य की होली सम्पूर्ण भारत मे अपनी परम्पराओ के कारण महत्वपूर्ण है। फाल्गुन पूर्णिमा से चैत्र कृष्ण पंचमी तक मणिपुर में होली का त्यौहार बहुत धूमघाम से मनाया जाता है। जिसे मणिपुरी भाषा में याओसांग कहते हैं, मणिपुर की घाटी में रहने वाले मैतेई या मणिपुरी वैष्णवो का यह सबसे बडा त्यौहार है।फाल्गुन महीने के प्रारभ से ही इम्फाल, काकचि, मोयरा आदि स्थानों के बाजारों में जन समूह उमड़ पडता है। इसे ‘फ्गुआ’ की खरीदारी कहा जाता है। नए बर्तन, वस्त्र, जूते, आभूषण आदि विविध वस्तुएं खरीदने के लिए बाजारों में भी भीड के साथ कोलाहल छा जाता है । वर्ष भर में सबसे अधिक बिक्री तथा भीड का समय फाल्गुन मास होता है। होली के इस रगीन त्योहार पर मणिपुर में निम्नलिखित विशिष्ट परम्पराएँ प्रचलित हैं।Contents1 याओसांग जलाना2 हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—3 याओसांग जलाना फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मणिपुर वैष्णव गौंडीय वैष्णव सम्प्रदाय में विश्वास रखने ने कारण उपवाश रखते हैं। कृष्णावतार चैतन्य महाप्रभु ने 1479 ई० में बंगाल के नादिया नामक स्थान पर फाल्गुन पूर्णिमा को अवतार लिया था। कहते हैं उनका जन्म एक नीम के वृक्ष के नीचे याओ (पेड) सांग (झोपडी) में हुआ था। उस झोपडी को पवित्रता की दृष्टि से जला दिया गया था। अतः उसी परम्परा का पालन करते हुए मणिपुर वैष्णव प्रतिवर्ष फाल्गुन पूर्णिमा को एवं बांस व घास फूस की बनी झोपडी में नाचते गाते और कीर्तन करते हुए संध्या समय, चैतन्य महाप्रभु की मूर्ति को ले जाकररखते हैं। कीर्तन व पूजा अर्चना के बाद मूर्ति को झोपड़ी से निकाल लिया जाता है और तब झोपडी में आग लगाई जाती है। उस समय मुख्य पुजारी “होरि बोला” कहता है और उसके बाद उपस्थित जनसमूह “हे होरि’ बोलता है। जब तक याओसांग जलकर भस्मीभूत नहीं हो जाता है ये नारे आकाश मे गूँजते रहते हैं। जब झौपड़ी जल जाती है तो उसकी राख को लोग अपने घरो मे ले जाकर रखते हैं जिससे घर पर दुरात्माओ का प्रभाव न पड़े।Trendingसंत तुकाराम का जीवन परिचय और जन्मयाओसांग फेस्टिवल मणिपुरयाओसांग जलाने के साथ भगवान कृष्ण के जीवन की निम्न लिखित घटना का भी उल्लेख विया जाता है। जिसमें जटिला ओर कुटिला के द्वारा बाधा उपस्थित करने पर जब भगवान् कृष्ण-राधा से मिल नही पाए तो उन्होंने राधा के घर के मेंढ रखने के स्थान मे आग लगा दी ओर जब ये दोनो अपनी मेडो की रक्षा करने गईं तो कृष्ण और राधा का मिलन सभव हुआ था। याओसांग जलाने के पीछे लोग भक्त प्रहलाद तथा होलिका के जल मरने की पौराणिक कथा को भी स्वीकार करते हैं। इस अवसर पर गाए जाने वाले गीतों में चैतन्य महाप्रभु की जीवन लीलाओ का वर्णन रहता है तथा राधा कृष्ण वियोग और मिलने की उक्त घटनाओ का भी उल्लेख होता है। ये पद्य मणिपुरी भाषा मे न होकर केवल बंगला, संस्कृत तथा मैथिली भाषा के धार्मिक पद्य होते हैं।हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:— कुकी जनजाति कहां पाई जाती है और जनजीवन मणिपुर के नृत्य - 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