मुबारिक मंजिल और शाह मंजिल के नाम से मशहूर इमारतों
के बीच ‘मोती महल’ का निर्माण नवाब सआदत अली खां ने करवाया था। इस निहायत ही खूबसूरत आलीशान महल का नाम मोती महल कैसे पड़ा इस सम्बन्ध में दो तथ्य उभर कर सामने आते हैं। पहला नवाब साहब की एक बीबी मोती बेगम (टाट-महल ) थीं। नवाब साहब को अपनी इस बेगम से बेहद लगाव था। उनके इसी महल में रहने के कारण इसका नाम पड़ा ‘मोती-महल’। दूसरा कारण यह है कि महल के गुम्बद को दूर से देखने पर ऐसा मालूम होता है, मानों गोमती की कल-कल करती लहरों के किनारे कोई विशाल सफेद मोती रख दिया गया हो। इसकी इसी खूबी के कारण इसे ‘मोती महल’ कहा जाने लगा।
मोती महल का इतिहास
‘गुजिश्ता लखनऊ’ के अनुसार शाह मंजिल के सामने वाले मैदान में विभिन्न जानवरों का युद्ध कराया जाता था। यह मैदान हजारीबाग के नाम से मशहूर था। शाह मंजिल के परकोटे से नवाब साहब स्पैनिश साँड, शेर, गैंड़े व हाथी की लड़ाई का लुफ्त उठाते थे। यह शौक नवाब में उनकी यूरोपियन बेगम के कारण पैदा हुआ। वह उन्हें एम्फीथिएटर की मनोरंजक दास्तानें सुनाती थी।
नवाब साहब किसी से कुछ कम हैसियत वाले तो थे नहीं। इस खतरनाक एवं मंहगे मनोरंजन की शुरूआत हो गयी। हजारीबाग एक छोठा-मोटा चिड़ियाघर बना दिया। तमाम जानवरों के लिए कटघरे बनवाये गये। जब विपरीत जाति के जानवरों की लड़ाई होती तो लोगों के दिल-दहल जाते। शेर और गेंडे की लड़ाई तो बड़ी ही भयावह होती थी । बेचारा शेर बे-मौत मारा जाता। वह पूरी शक्ति से आक्रमण जरूर करता पर गैंडे की कठोर खाल पर असर न होता। गुस्से से पागल गैंडा जब जोरदार टक्कर शेर को मारता तो वह दर्दे से बिलबिला जाता। शेर और तेंदुवे की लड़ाई के दौरान तेंदुएं की ही अधिकांशत: जीत होती थी।
मोती महल लखनऊ
खेर जिक्र चल रहा था मोती महल का तो अन्य इमारतों की तरह यह भी गदर के पूर्व चहारदीवारी से घिरी थी। गदर के दौरान यह घेराव हट गया। भयानक जंग हुई। एक-एक इंच की जगह के लिए अंग्रेजों को जूझना पड़ा। 27 सितम्बर, 1857 को डा० बाट्ररम, ब्रिगेडियर कूपर मोती महल में जारी लड़ाई के दौरान खुदा को प्यारे हो गये। मद्रास तोपखाने का लेफ्टीनेन्ट क्रम्प भी मारा गया । कैम्पबे जख्मी हुआ।
जनरल हैवलॉक 25 सितम्बर, 1857 को भारी सैन्यबल के साथ आ धमका घमासान लड़ाई हुई। क्रान्तिकारियों ने देखा कि अब दाल नहीं गलने वाली तो धीरे-धीरे वह मोती महल के पीछे बने नावों के पुल से खिसक गये।
अधिकार तो हो गया मगर विद्रोही हाथ न लगे। आज यहां कई आफिस विद्यमान हैं जिनमें यू ०पी ० एक्सपोर्ट कारपोरेशन, निदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, उत्तर प्रदेश बाल कल्याण समिति, भारत सेवा संस्थान, मोती लाल मेमोरियल, पिकअप आदि मुख्य हैं।
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