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मैरी क्यूरी

मैरी क्यूरी का जीवन परिचय – मैरी क्यूरी की मौत कैसे हुई?

मैंने निश्चय कर लिया है कि इस घृणित दुनिया से अब विदा ले लूं। मेरे यहां से उठ जाने से किसी को भी कुछ बड़ा नुकसान नहीं होगा। प्रेम में ताज़ा-ताज़ा धोखा खाई हुई एक सत्रह साल की लड़की ने अपनी चचेरी बहिन को पत्र में लिखा। किन्तु विज्ञान के सौभाग्य से नवयुवती अपनी उस प्रेम व्यथा को भूल गई और इतिहास के महान वैज्ञानिकों में अपना नाम अमर कर गई। उसका नाम था मैरी क्यूरी, मैरी क्यूरी का असली नाम है मानिया स्वालोडोव्स्का। लोग प्यार से उसे मैरी कहते थे, पियर क्यूरी से शादी के बाद उसका नाम मैरी क्यूरी पड़ गया। मैरी क्यूरी विश्व की प्रथम महिला वैज्ञानिक थी जिन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया।

मैरी क्यूरी का जीवन परिचय

मैरी क्यूरी का जन्मपौलेंड के वारसा शहर में 7 नवम्बर 1867 को हुआ था । माता-पिता पौलेंड के एक कृषक परिवार से थे किन्तु खेतीबारी छोड़ अब शिक्षा के क्षेत्र में आ गए थे। पिता वारसा के हाई स्कूल में भौतिकी तथा गणित का एक अध्यापक था, और मां एक पियानो की मानी हुई वादिका थी। छोटी उम्र में ही मैरी को दुर्भाग्य और दुःख ने आ घेरा था। दस साल की उम्र में मां का साया सर से उठ गया, उसे तपेदिक हो गया था।

पौलेंड उन दिनों रूस के जार के अधीन था। पेद्रोग्राड की सरकार ने पौलेंड के लोगों पर कुछ प्रतिबन्ध लगा रखे थे, क्योंकि उन्होंने क्रान्ति की कोशिशें की थीं। मैरी क्यूरी के पिता ने पौलेंड की स्वतन्त्रता का खुलकर समर्थन किया था। परिणाम यह हुआ कि स्कूल से उसकी नौकरी जाती रही। किन्तु अब भी चार बच्चे उसके जिन्दा थे, एक टाइफाइड का शिकार होकर मर चुका था। उनके पालन-पोषण के लिए उसने एक बोर्डिग स्कूल खोल लिया। इस प्रयास में उसे बहुत सफलता तो नहीं मिली, किन्तु परिवार का गुजर जैसे-तैसे अब चलने लग गया।

1883 में स्कूल की पढ़ाई खत्म करने पर मैरी को एक स्वर्ण पदक मिल। मैरी के परिवार में पारितोषिक-विजय की यह एक आदत सी ही पड़ चुकी थी। यह तीसरा मेडल घर में आया था। आर्थिक दृष्टि से तो प्रोफेसर स्वालोडोव्स्का एक असफल व्यक्ति था, किन्तु अपने पुत्रों-पुत्रियों की बौद्धिक सफलताओं पर उसे अभिमान था। हाईस्कूल से फारिग होने पर मैरी को कुछ वक्‍त के लिए गांव भेज दिया गया। बाप को डर था कहीं शहर में रहते रहते इसे भी दिक न लग जाए । संभवतः इन छुट्टियों ने मैरी के स्वास्थ्य को बेहतर क्रिया भी क्योंकि पौलेंड के गांवों में जो लोकनृत्य प्रचलित हैं उनके लिए कुछ दम जरूरी होता है–स्टैमिना जरूरी होता है। सूर्यास्त पर नाच शुरू होता है और सारी रात, सारा दिन, और अगली रात भी चलता रहता है, और मैरी क्यूरी को नाचना पसन्द था।

मैरी क्यूरी
मैरी क्यूरी

छुट्टियां खत्म होने पर मैरी वारसा लौट आई। उसके भविष्य के बारे में मंत्रणा हुई। किन्तु बगैर पैसों के पेरिस में सोर्वोन में पढ़ने कैसे जाया जाए ? दोनों बहनों में सलाह-मशवरा हुआ और आखिर बड़ी बहिन ने ही राह निकाली कि अभी मैरी कुछ नौकरी कर ले और विश्वविद्यालय की पढ़ाई में ब्रोनिया की सहायता करे, उसके बाद ब्रोनिया नौकरी करेगी और मानिया की मदद करेगी। और इस तरह गुज़ारा चल जाएगा। मैरी ने एक रूसी जागीरदार के घर में एक गवर्नेंस तथा अध्यापिका की नौकरी कर ली। लेकिन यह भी बहुत दिनों नहीं चल सका क्योंकि मैरी की मालकिन एक फूहड़ और असहनशील औरत थी। खेर, सौभाग्य से मैरी को एक और जगह काम मिल गया जहां कुछ सभ्यता और बुद्धिमत्ता थी। घर का बड़ा लड़का वारसा विश्वविद्यालय में पढ़ रहा था। छद्ठियों में जब वह घर पहुंचा, घर की इस नौजवान गवर्नेंस पर मुग्ध हो गया। परियों की तरह नाचने वाली और पढ़े-लिखों की तरह बातचीत करने वाली एक स्वप्न बाला मैरी की जिन्दगी में भी अकेलापन आ चुका था, वह भी उससे प्रेम करने लगी। लेकिन लड़के की मां ने शादी नहीं होने दी। मेरे लड़के और गवर्नेंसों के साथ शादी करने लगें। उन्हीं दिनों मैरी ने अपनी निराशा को अभिव्यक्त करते हुए वह खत लिखा था जिसके ज़िक्र के साथ हमने उसकी जीवनी की शुरुआत की थी।

अस्तु, मानिया पढ़ाने का काम भी करती रही और सोर्बोन में अपनी बहिन को बाकायदा पैसे भी भेजती रही अब मैरी क्यूरी की बारी थी। बड़ी बहिन अब एक डाक्टर बन चकी थी और पेरिस में ही एक सहपाठी डाक्टर के साथ शादी भी कर चुकी थी। 23 बरस की होते-होते अब उसके पुराने स्वप्न के साकार होने का समय आ गया था। मैरी अपने नाम का अक्षर विन्यास भी फ्रेंच के अनुसार करते हुए‌ सोर्बोन के विज्ञान-विभाग में प्रविष्ट हो गई। चार साल अविश्रान्त अध्ययन, अविश्रान्त अध्यवसाय। समझ नहीं आता यहां उसे कोई बीमारी लग कैसे नहीं गई? एक बरसाती में रहना जहां कमरे को गरम करने का कुछ प्रबन्ध नहीं, और खाने के लिए भी रकम इतनी कम कि उससे खरीदा भी क्या-क्या जाए, बस डबल रोटी मक्खन और चाय पर गुजारा करो। एक बार तो उसे सारा दिन कुछ एक चेरी और गाजरों पर ही गुजारा करना पड़ा। मांस और अण्डे तो शायद ही कभी उसके भोजन में शामिल हुए हो।

लेकिन वह बच ही निकली, और गणित और कविता, रसायन और संगीत, भौतिकी और गृह-विज्ञान सभी कुछ पढ़ गई। बीच बीच में उसे रसायन प्रयोगशाला में बोतले भी धोनी पडती। परीक्षा परिणाम में वह भौतिकी में एम० ए० में प्रथम रही और अगले साल गणित की एम० ए० में द्वितीय। अब मैरी 27 वर्ष की हो चुकी थी, और वह पहले घर की दुखद स्मृति अभी उसके दिल से गई नही थी, किन्तु सुन्दरता, शुभ्रवर्ण तथा शरीर के हलके फूलकेपन के बावजूद वह एकान्त प्रिय ही चली आई थी। 22 वर्ष के पियर क्यूरी ने कभी लिखा था। औरतों में प्रतिभा पहले तो होती नही, और खास तौर पर एक विज्ञान प्रेमी के लिए तो ये बस एक अडचन ही बन सकती हैं। और अब वही पियर 35 का हो चला था, और जीवन के अनुभव ने उसके इस विचार को समर्थित ही किया था, क्षीण नही। इन दिनों वह विद्युत तथा चुम्बक के क्षेत्र में कुछ परीक्षण कर रहा था। ये अनुसंधान उसके अपने भाई जेक्वीज़ के साथ, प्रोफेसर पाल शुत्सेनबेगेंर की परीक्षणशाला में चल रहे थे। 16 साल की उम्र में बी० एस सी० करके पियर ने 18 साल की उम्र मे फीजिक्स मे एम० एस-सी० भी कर ली थी। विज्ञान के अग्रणियों मे उसकी गिनती होने लगी थी। पीजो इलेक्ट्रिसिटी का आविष्कार भी वह कर चुका था। रिकार्ड बजाने में जो पिकअप इस्तेमाल होता है उसमे पीजो इलेक्टिसिटी का प्रसंग उठता है। यह पिक-अप एक स्फटिक का बना होता है और, जब स्फटिक का निपीडन होता है, उसमे से कुछ बिजली निकलने लगती है।

पियर और मैरी क्यूरी का प्रथम मिलन प्रोफेसर कोवाल्स्की के घर में हुआ था। कोवाल्स्की एक पोलिश वैज्ञानिक था और उन दिनों पेरिस आया हुआ था। बातचीत चली भी विज्ञान पर, और पियर ने मैरी से फिर मिलने को कहा। क्या फिर वही विज्ञान पर ही बाते होगी ? मेरी ने शुत्सेनबेगेंर के यहां काम करने की इजाज़त ले ली और पियर के साथ की ही टेबल पर। एक साल बाद मैरी स्क्‍लोडोव्स्का– मैरी क्यूरी थी। पियर क्यूरी ने लिखा था, औरतों में प्रतिभा नहीं होती। किन्तु अब उसे वह असाधारण औरत मिल गईं थी, उसकी पत्नी एक जीनियस थी। और मैरी अपने पति के साथ ही अगली मेज पर बिजली और चुम्बक-शक्ति के सम्बन्ध में उठी समस्याओं पर अनुसन्धान करती रही।

जर्मनी मे विलहम कॉनरैड रॉटजन ने एक अद्भुत किरण का आविष्कार कर लिया जिसमे अन्त प्रवेश की अद्भुत क्षमता थी। 1896 में रॉटजन ने यह खोज अपनी विज्ञान जगत के सम्मुख रख दी। वह इन्हे एक्स-रे कहा करता था, और उसने प्रत्यक्ष कर दिखाया कि स्थूल वस्तुओ में वे कितनी अन्दर तक जा सकती है। फ्रांस में हेनरी बैकेरेल उन्ही दिनो फॉस्फोरेस्सेन्स के प्रश्न पर खोज कर रहा था कि किस प्रकार कुछ वस्तुएं सूर्य के प्रकाश में पडी रहने के बाद अधेरें में रखी जाने पर खुद-ब-खुद चमकने लगती हैं। कुछ परीक्षण करके वह इस परिणाम पर पहुचा कि यूरेनियम की कच्ची वात पिचब्लैड में यूरेनियम के अतिरिक्त कुछ और तत्व भी होना चाहिए। प्रोफेसर बैकेरेल पर पहले ही मैरी क्यूरी के प्रयोग-विज्ञान का बहुत प्रभाव था। अब वह अपनी समस्या को सर्वप्रथम लाया भी मैरी के सामने ही। मैरी और पियर ने प्रश्न पर मिलकर विचार किया। यह तत्त्व रसायन के ज्ञात तत्त्वो में तो नही है, कुछ ओर ही होना चाहिए। क्यूरी-दम्पती ने अपना सारा और काम ठप कर दिया आखिर यह हो क्या चीज सकती है ?

पिचब्लैड— एक तो महगा और फिर ऑस्ट्रिया के सिवाय कही और मिले भी नहीं। कैसे हथियाया जाए और बगैर पैसो के ?उनकी दलील थी कि अगर पिचब्लैड में यह नया अज्ञात तत्त्व है तो यूरेनियम उसमे से छन चुकने के बाद भी तो वह उसमे बचा रहना चाहिए। और ऑस्ट्रिया की सरकार इस वैज्ञानिक दम्पती को पिचब्लैड की यह बची खुची गन्द देने को तैयार हो गई अगर वे उसे उठाने का खर्च खुद बरदाश्त कर सके। पिचब्लैड की टनो गन्द जहाजो में भर-भरकर एक लकडी के शौड में पहुंचने लगी। शैड क्या था, टपकती छते, लेकिन यही अब उनकी प्रयोगशाला होगी। और यहां अब विज्ञान के इतिहास मे वह परीक्षण शुरू हुआ जिसका वर्णन सुनकर ही कितने वैज्ञानिकों का हौसला टूट जाए। कमर तोड मेहनत के साथ, पियर और क्यूरी ने पिचब्लैड का संशोधन शुरू कर दिया, लोहे की एक बडी भट्टी पर बडे-बडे कडाहों मे उबाल-उबालकर। धुंए को बरदाश्त करना जब मुश्किल हो जाता परीक्षण शेड के पिछवाड़े में परीक्षण जारी रहते। 1896 की सर्दियों मे यही कुछ दोनों नव विवाहितों की गृहस्थी थी। मैरी को निमोनिया हो गया। पियर अब अकेला ही गन्द को दिन-रात उबालता रहा। मैरी तीन महीने बाद ही इन केतलियों और पतीलों की ओर फिर आ सकी। 1897 के सितम्बर में मैरी को बिस्तर ने फिर धर दबाया। वह आइरीन की मां होने चली थी। एक सप्ताह बाद वह लौट आई, बिस्तर में लेटे-लेटे उसे कुछ सूझा था, उसी की परीक्षा करने वह इतनी जल्दी प्रयोगशाला वापस आ गईं थी। अब लगता बच्ची की परवरिश के लिए शायद कुछ वक्‍त के लिए मैरी को अपना यह काम ठप कर देना पड़ेगा। किन्तु पियर का पिता अभी-अभी विधुर हुआ था। वह भी मैरी और पियर के साथ रहने आ गया उनकी बच्ची में अपना मन बहलाने।

मैरी फिर पिचब्लैड को शुद्ध करने चल दी। दो साल की सख्त मेहनत और नतीजा जरा-सा बिस्मथ कम्पाउण्ड। किन्तु इस यौगिक में यूरेनियम से 300 गुना अधिक सक्रियता थी। फोटो तैयार करने की फिल्म पर इसका प्रभाव अद्भूत था। अर्थातु–इस यौगिक में भी ज्ञात तत्त्वो के अतिरिक्त वह नया तत्त्व होना चाहिए। मैरी फिर प्रयोगशाला में आ डटी कि वह अज्ञात तत्त्व कही उड न जाए। 1898 की जुलाई में उसने एक नये तत्त्व की खोज दुनिया के सामने उद्घोषित कर दी पोलोनियम (नामकरण अपनी मातृ भूमि की स्मृति मे)। किन्तु स्वयं क्यूरी दम्पती सन्तुष्ट नही थे। अवशेष पोलोनियम निकल जाने के बाद और भी ‘सशक्त’ हो गया था।

अर्थात्‌- कुछ चीज है जो अब भी हाथ नही आ सकी। संशोधन, स्फटिकीकरण जारी रहा, और तब कही वह ‘अनज्ञात’ तत्त्व भी निकल ही आया सारे यौगिक में बहुत ही थोड़े स्फटिक थे उसके। और नये-तत्त्व का नाम रखा गया, रेडियम। रेडियम एक अद्भुत तत्त्व था। यूरेनियम से कोई दस-लाख गुणा बढ़कर रेडियो सक्रिय (और यह सारी खोज चलाई भी तो यूरेनियम ने ही थी) लाइट-प्रुफ कागज़ में सुरक्षित फोटोग्राफिक फिल्म की भी रेडियम के आगे खेर नहीं, वह एक्सपोज़ हो जाएगी। हवा में गैसों के कणों को तोड़ देना इसके बायें हाथ का काम है- गैसें इसके सम्पर्क में आते ही विद्युत-वाहिनी बन जाती हैं। रेडियम के यौगिकों को अन्य समासों में मिला दें तो फ्लोरेस्सेन्स संभव हो आए। घरों में घड़ी की अंधेरे में चमकती सूइयों में कुछ मात्रा इसकी प्राय: हुआ करती है। रेडियम के विकिरणों में बीज बढ़ना बन्द कर दे, बेक्टीरिया नष्ट हो जाएं, और छोटे-मोटे जानवर भी शायद मरने लग जाएं। विकिरण स्नायू को नष्ट कर देता है और, इसीलिए, कैंसर के ओर कुछ अन्य चर्म रोगों के उपचारों में प्रयुक्‍त भी हो चुका है। प्रतिक्षण यह कुछ न कुछ ताप छोड़ रहा होता है, एक घण्टे में विकीर्ण इसका ताप अपने ही दुगुने भार की बर्फ को पिघला दे। यह गरमी इधर से निकलती है और उधर रेडियम का इस प्रकार आत्म-ताश होता चलता है–छोटे और अधिक छोटे तत्त्वों में निरन्तर विघटन। रेडियम वस्तुत: एक अद्भुत द्रव्य है।

विश्वभर से तरह-तरह के प्रलोभन उन्हें दिए गए, किन्तु क्यूरी-दम्पती ने रेडियम को कमाई का जरिया बनाने से इन्कार कर दिया। अस्तु; इसी सफलता के लिए बैकेरेल के साथ उन्हें नोबल पुरस्कार मिला। इतना अरसा पिचब्लैड की सफाई करते हुए जो उधार सिर चढ़ गया था उतर गया। पियर क्यूरी को सोर्बोन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नियुक्त कर दिया गया। एक अच्छी प्रयोगशाला भी संलग्न थी। 1904 में एक और पुत्री ईव ने उनके यहां जन्म लिया। अब उनके घर में सुख था, सुविधाएं थीं, जितनी कभी भी नहीं रही थी–किंतु एक आकस्मिक घटना ने यह सब स्वप्न नष्ट कर दिया। 19 अप्रैल, 1906 को एक मीटिंग से घर लौटते हुए घोड़ा-बग्गी ने पियर क्यूरी को गिरा दिया और उसी वक्‍त दूसरी ओर से आ रहा एक ट्रक उस पर से गुज़र गया। और उसी समय पियर क्यूरी की मृत्यु हो गई।

विधवा मैरी क्यूरी की तो जबान ही बन्द हो गई। वह अब प्रयोगशाला में ही दिन-रात रहकर कुछ शान्ति प्राप्त करने लगी। रात, लौटने पर वह अपने मृत पति को पत्र लिखती कि दिन-भर मैंने क्या कुछ किया है। फ्रांसवादियों ने सब परम्पराएं ताक में रख दीं और पति के रिक्त स्थान में पत्नी को ही ला बिठाया। कुछ वैज्ञानिक इस बात को बरदाश्त नहीं कर सके कि एक औरत और प्रोफेसर? उनका कहना था, सारा काम पियर का था, मैरी ने तो बस असिस्टेंट की तरह कुछ मदद ही की थी।

किन्तु अब परित्यक्ता मैरी क्यूरी ने सिद्ध कर दिखाया कि अकेली भी वह, और नहीं तो कम से कम अपने पति के बराबर वैज्ञानिक तो है ही। 1910 में रेडियम को वह शुद्ध तत्त्वावस्था में निकालने में सफल हो गई। पिघले हुए रेडियम क्लोराइड (रेडियम के एक लवण ) में से विद्युत संचरित करते हुए उसने नेगेटिव इलेक्ट्रोड पर एक परत-सी देखी। पारे को उबाला और शुद्ध रेडियम बाकी छूट आया जिस पर मेरी को एक नोबल पुरस्कार और मिला। 4 जुलाई, 1934 को इस अद्भुत नारी मैरी क्यूरी की मृत्यु हो गई। विकिरण के वातावरण मे सालो काम करते रहने की वजह से उसका प्राण तन्त्र शीर्ण हो चुका था। जिस रेडियम की उसने खोज की थी वही आखिर उसकी मौत का कारण वही बन बैठा।

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