में सनातन पुरुष हूं। मैं जब यह कहता हूं कि मैं भगवान हूं, तब इसका यह अर्थ नहीं है कि मैंने इस बारे में सोचकर तय किया है कि मैं भगवान हूं। मुझे ज्ञात ही है कि मैं भगवान हूं। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि किसी व्यक्ति के लिए यह कहना कि मैं ईश्वर हूं, ईश्वर का अपमान है, परंतु सत्य यह है कि यदि मैं यह न कहूं कि मैं भगवान हूं तो यह ईश्वर का अपमान होगा। ” “मैं मनुष्यों के बीच दिव्य पुरुष के रूप में उपस्थित हूं, मैं उन्हें ईश्वर के प्रति प्रेम प्रदान करने तथा ईश्वर के अस्तित्व के प्रति जागृत करने के लिए अवतरित हुआ हूं। एक ईश्वर ही सत्य है तथा अन्य सभी कछ भ्रांति है-स्वप्न है। ” ये वाणी थी संत व अध्यात्मिक गुरु श्री मेहेर बाबा की। बाबा अपने आपको दिव्य पुरुष और भगवान घोषित करने वाले मेहेर बाबा को उनके अनुयायी अवतार मेहेर बाबा कहते हैं। मेहेर बाबा अपने अनुयायियों को अपना शिष्य अथवा भक्त कहने की बजाय अपना प्रेमी मानते थे। मेहेर बाबा यह दावा करते थे कि जगत की परम-सत्ता ने उनके भीतर मूर्त रूप ले लिया है। उन्होंने घोषणा की कि वे किसी भी धर्म से जुड़े हुए नहीं हैं तथा प्रत्येक धर्म उन से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा, ”मेरा व्यक्तिगत धर्म यही है कि मैं सनातन अनंत सत्ता हूं और मैं सब लोगों को एक ही धर्म की शिक्षा देता हूं कि ईश्वर के प्रति प्रेम करो, क्योंकि यही सब धर्मो का सार है।
मेहेर बाबा का जन्म और माता पिता
मेहेर बाबा का जन्म 25 फरवरी, 1894 को हुआ था, वे पुणे के निवासी दंपत्ति श्री शेरयार मुन्देर ईरानी और श्रीमती शीरीन बानो शेरयार ईरानी के 8 बच्चों में दूसरे थे। बालक का नाम मेरवान शेरयार ईरानी रखा गया था। सेंट विन्सेंट हाई स्कूल, पुणे में प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्हें 17 वर्ष की अवस्था में उच्च शिक्षा के लिएपूणे के डेकेन कॉलेज में भर्ती कराया गया। उनके पिता सुफी संप्रदाय के थे।
मेरवान को क्रिकेट और हॉकी के खेलों का बहुत शौक था और वह अपनी पढ़ाई मनोयोग से करता था। देखने-भालने में सुंदर और बुद्धिमान मेरवान अपने सहपाठियों और शिक्षकों का स्नेह भाजन बन गया था। साहित्य में उसकी गहरी रुचि थी, विशेषतः काव्य में। कवियों में उसे महान फारसी रहस्यवादी कवि हफीज की रचनाएं बहुत प्रिय थीं। उन्होंने मेरवान को बहुत प्रेरणा दी और मेरवान स्वयं मराठी, फारसी और अंग्रेजी में काव्य रचना करने लगा। उसकी कविताएं समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में स्वीकृत और प्रकाशित होने लगीं।
मेरवान संगीत प्रेमी भी था और उसे मधुर कंठ प्राप्त हुआ था। दार्शनिक रहस्यवाद में उसकी रुचि तेजी से बढ़ती जा रही थी और उसने रहस्यवादी कहानियां लिखनी शुरू कर दी थीं। मेरवान बहुत मिलनसार था और उसकी दृष्टि सार्वभौमिक थी। डेकेन कॉलेज में उसने कॉस्मोपॉलिटन क्लब की स्थापना की जिसमें प्रवेश सब के लिए खुला था, भले ही वे किसी भी जाति अथवा धर्म के हों।
मेहेर बाबा का आत्म-साक्षात्कार
मई, 1913 में जब उसकी नियति उसके सामने आकर खड़ी हुई, तब मेरवान की आयु केवल 19 वर्ष थी। एक दिन मेरवान अपनी साईकिल पर डेकेन कॉलेज से लौट रहा था। जैसे ही वह रास्ते में पड़ने वाले एक विशाल छायादार नीम के पास पहुंचा कि उस वृक्ष के नीचे एकत्र महिलाओं के झुंड में से एक वृद्धा उठी और तेजी से मेरवान की ओर लपकी। मेरवान ने उस महिला को अपनी ओर आते देख लिया तथा उसके प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए वह साईकिल से उतर गया। अब दोनों एक दूसरे के सामने थे और एक-दूसरे की आंखों में झांक रहे थे। यह वृद्धा और कोई नहीं, महान रहस्यवादी और पूर्ण-गरु हजरत बाबाजान थी। बाबाजान ने मेरवान को अपनी भुजाओं में भर लिया और दोनों आंखों के बीच उसके मस्तक को चूमा। दोनों ने एक दूसरे से कहा कछ भी नहीं। इसके बाद बाबाजान अपने स्थान पर लौट आयी और मेरवान अपने घर चला गया।
मेहेर बाबासामान्य दृष्टि से यह एक साधारण-सी घटना थी, परंतु वास्तव में ऐसा नहीं था। बाबाजान के उस चुंबन ने मेरवान का चेतना के स्तर पर बुरी तरह रूपांतरण कर डाला और मेरवान का हृदय आनंद से भर उठा। यह कोई साधारण आनंद नहीं था, पराजागतिक और दिव्य आनंद था। जनवरी, 1914 की एक रात बाबाजान मेरवान से फिर मिलीं और उन्होंने उसे आत्म-साक्षात्कार करा दिया। बाबाजान की कृपा से मेरवान की चेतना परमेश्वर की शुद्ध और सर्वोच्च चेतना के साथ एकाकार हो गयी और वह तीन दिन तक जगत की ओर से अचेत बना रहा। चौथे दिन उसकी चेतना आंशिक रूप में लौटी। मेरवान के माता-पिता को कुछ नहीं सूझ रहा था कि वे अपने बच्चे को पूरी तरह होश में लाने के लिए क्या करें, किंतु हजरत बाबाजान प्रसन्न थीं और उन्होंने घोषणा कर दी कि “मेरा यह बच्चा संसार में महान हलचल पैदा करेगा और मानव जाति का इससे बहुत हित होगा। एक अन्य अवसर पर बाबाजान ने कहा कि मेरवान अपनी दिव्य शक्ति से समुचे विश्व को जगा देगा।
मेहेर बाबा के माता-पिता ने मेहेर का हर प्रकार से इलाज कराने की कोशिश की, लेकिन कोई भी इलाज उसकी चेतना पूरी तरह लौटाने में सफल नहीं हुआ। कुछ समय बाद ही मेरवान के मन में शिरडी के श्री साईं बाबा के दर्शनों की तीव्र लालसा उत्पन्न हो गयी। सन 1915 में वह शिरडी गया और उसने श्री साईं बाबा के दर्शन किये। साईं बाबा शौच आदि से निबटकर मस्जिद की ओर लौट रहे थे। साईं बाबा की दृष्टि जैसे ही मेरवान पर पड़ी, वे कह उठे, है परवरदिगार।
परवरदिगार का अर्थ है–ईश्वर-पालन और संरक्षण करने वाली सत्ता। मेरवान ने साईं बाबा के सामने साष्टांग प्रणाम किया। उन्होंने मेरवान को एक अन्य गुरु उपासनी महाराज के पास भेज दिया। मेरवान जब उपासनी महाराज के पास पहुंचे, उस समय उपासनी महाराज निपट नंगे बैठे थे। मेरवान को देखते ही उपासनी महाराज ने अपने हाथ में एक पत्थर उठाया और मेरवान की ओर फेंका। वह पत्थर उनके माथे पर ठीक उस जगह लगा, जहां हजरत बाबाजान ने उन्हें चूमा था। पत्थर लगते ही मेरवान की सामान्य चेतना लौटने लगी और धीरे-धीरे वह पूरी तरह लौट आयी। एक दिन उपासनी महाराज ने मेरवान से कहा कि ”त् अवतार है। उन्होंने अपने शिष्यों के सामने यह घोषणा भी की कि मेरे पास जो कुछ भी आध्यात्मिक संपदा थी, वह सब की सब मैंने मेरवान को दे डाली है और इसके बाद से तुम सब को मेरवान की आज्ञा का पालन करना चाहिए।
श्री मेहेर बाबा प्रेम का देवता
सन् 1951 के अंत में मेरवान को ऐसा अनुभव हुआ कि वह भगवान अथवा अवतार है। यह वही समय था, जब उपासनी महाराज ने मेरवान को कलियुग का संदगुरु घोषित किया था। अब वे मेरवान से मेहेर बावा अर्थात प्रेम और करुणा के पिता बन गये। सन 1922 में उन्होंने अपने आध्यात्मिक मिशन की नींव डाली जिसके बारे में कहते हैं, “मैं शिक्षा देने नहीं, जगाने आया हूं, ….मैं सब को एक ही दीक्षा देता हूं, वह धर्म है- ईंश्वर प्रेम। हम सब के भीतर एक ही परमात्मा का निवास है और हम सब प्रेम द्वारा उस तक पहुंच सकते हैं। ….मैं अवतार लेने के बाद बार-बार एक ही बात दोहराये जा रहा हूं कि “ईश्वर से प्रेम करो।
सन् 1924 में मेहेर बाबा ने अहमदनगर रेलवे स्टेशन से कोई छ: मील की दूरी पर अरण-गांव में अपना मुख्यालय स्थापित किया, जो मेहेराबाद के नाम से प्रसिद्ध हुआ। मेहेराबाद में उन्होंने कई संस्थाएं खड़ी कीं। 10 जून, 1925 को उन्होंने पूर्ण मौन धारण कर लिया, जिसे उन्होंने जीवन में कभी नहीं तोडा। 3 जनवरी, 1969 को शरीर छोड़ते समय भी नहीं। मौन धारण करने के एक वर्ष तक वे अपनी आध्यात्मिक अनुभूतियों को लिखते चले गये और जनवरी, 1927 तक अपने प्रेमियों के नाम अपने संदेश लिखकर देते रहे, परंतु उसके बाद से उन्होंने लिखना भी बंद कर दिया।
जनवरी, 1927 से 7 अक्तूबर, 1954 तक मेहेर बाबा अंग्रेजी वर्णमाला व एक तख्ती पर अपनी उंगली से संकेत करके वार्तालाप करते रहे। उसके बाद उन्होंने वह तख्ती भी फेंक दी। अब उनके पास संवाद का एक ही माध्यम बचा- मुख मुद्राएं और हाथों के संकेत, जिनका अर्थ उनके निकट अनुयायी उनके श्रोताओं को समझा देते थे। वे कहते थे कि मौन के द्वारा उन्होंने संचार के आंतरिक माध्यमों पर भी अधिकार प्राप्त कर लिया है। वे कहते हैं, ‘ईश्वर सनातन काल से मौन रहकर ही कार्य करता चला आ रहा है। न उसे कोई देख पाता है, न सुन पाता हैं, फिर भी जिन लोगों ने उसके अनंत मौन की अनुभूति ली है, उन्होंने उसको स्वीकार किया है।
मेहेर बाबा ने भारत और विदेशों में बहुत व्यापक यात्राएं की। वे पहली बार सन 1931 में इंग्लैंड गये और सन 1932 में दूसरी बार। उसके बाद तो सन् 1950 तक उन्होंने कई बार विदेश यात्राएं की- छ: बार यूरोप और अमेरीका की यात्रा तथा 10 बार अन्य देशों की यात्रा। इंग्लैंड, अमेरीका, आस्ट्रेलिया, जर्मनी स्विटजरलैंड, मैक्सिको, लेबनान, न्यजीलैंड, यूनान, मिस्र, जापान, मलाया, फ्रांस ईरान और भारत में ऐसे असंख्य लोग हैं, जो मेहेर बाबा को कलियुग का अवतार मानते रहे हैं।
मेहेर बावा आजीवन ब्रह्मचारी रहे। वे समय-समय पर एकांतवास और लंबे तथा कष्टदायी उपवास किया करते थे। उनकी वेश-भूषा साधारण मनुष्य जैसी थी और वे आम लोगों से खुलकर मिलते थे। उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया कि वे गुरु या शिक्षक हैं। वे अपने पास आने वाले लोगों के धार्मिक विश्वास में हस्तक्षेप नहीं करते थे, न ही किसी को दीक्षा देते थे। वे कहा करते थे, मैं तुम्हें यह सिखाऊंगा कि दुनिया में सामान्य ढंग से काम करते हुए भी मुझ अनंत भगवान के साथ तुम किस प्रकार संवाद बनाये रख सकते हो।
मैं कौन हूं?
मेहेर बाबा के मन में पक्का विश्वास था कि वे भगवान हैं। उन्होंने घोषण की, ”मैं साकार भगवान हैं, तुम में से जिन लोगों को मेरी प्रेममय उपस्थिति में रहने का अवसर मिला है, वे भाग्यवान हैं। मैं राम था, मैं ही कृष्ण था, में यह था, मै वह था। अब मैं मेहेर बाबा हूं। मैं वहीं सनातन सत्य हूं, जिसकी सदा से पूजा होती रही है और उपेक्षा भी। जिसे सदा याद किया जाता है और भुला भी दिया जाता है। मुझ पर विश्वास करो मैं ही एकमात्र सनातन सत्य हूं। वे अपने प्रेमियों से कहा करते थे कि भौतिक शरीर देखकर भ्रम में मत पड़ो। उन्होंने अपने परिपूर्ण परमात्मा स्वरूप को पहचान लिया था। इसी कारण वे घोषणा कर सके “मैं इस शरीर में सीमित नहीं हूं, इस शरीर को तो मैं तुम्हारे सामने प्रकट होने तथा तुम्हारे साथ संवाद करने के लिए वस्त्र की तरह धारण करता हूं, जिस शरीर को तुम देख रहे हो, मैं वह नहीं हूं, यह तो एक आवरण है, जिसे मैं तुमसे मिलने के लिए आते समय पहन लेता हूं।
एक नवंबर 1953 उन्होंने देहरादून में एक दिव्य संदेश दिया, जिसमें उन्होंने कहा– मानव जाति को आज आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता है, और इसके लिए उसे अनिवार्यतः पूर्ण गुरूओं तथा अवतारों की ओर मुड़ना होगा। कष्टों का कारण अज्ञान तथा मिथ्या के प्रति आसक्ति है। अधिकांश लोग मिथ्या जगत के साथ इस प्रकार खेलते है, जिस प्रकार बच्चे खिलौने से खेलते हैं। यदि तुम इस जगत से क्षणभंगुर पदार्थों में उलझ जाओ और मिथ्या मूल्यों से चिपके रहो, तब दुख अनिवार्य है। युग युग से आत्मा अपनी परछाइयों को देखती आई रही है, और रूप इस मिथ्या जगत में उलझती जा रही है। जब यह आत्मा अपने भीतर की ओर मुड़ जाये, और उसमें आत्म ज्ञान प्राप्त करने की अभीप्सा उत्पन्न हो जाये तो यह मानना होगा कि उसे आध्यात्मिक दृष्टि प्राप्त हो गई है।
मेहेर बाबा को चमत्कारों में तनिक विश्वास न था। वे कहते हैं “तुम्हें सच्चे मोक्ष की प्राप्ति चमत्कारों के द्वारा नही, सही समझ के द्वारा होगी। मेहेर बाबा अपने पास आने वाले लोगों से दो टूक बात करते थे। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा “न तो मैं महात्मा हूं, न महापुरुष हूं, न साधु, न संत, न योगी, न बली। जो लोग मेरे पास यह इच्छा लेकर आते है कि उन्हें मेरे आशिर्वाद से धन प्राप्त हो जायेगा अथवा उनकी विभिन्न इच्छाएं पूर्ण और संतुष्ट हो जायेगी, मैं उनसे एक बार फिर कहना चाहता हूं, कि मेरे द्वारा इन इच्छाओं की पूर्ति के मामले में आपको घोर निराशा ही मिलेगी।
मेहेर बाबा इस बात पर बल देते थे कि उनके प्रेमी अपना सर्वस्व, तन मन और धन चुपचाप और बिना प्रदर्शन किए ही उन्हें समर्पित कर दें। वे सम्पूर्ण समर्पण की मांग करते थे, और कहा करते थे कि कोरे बुद्धिवादी उन्हें कभी नहीं समझ सकते। वे कहते है “जो लोग सिद्ध गुरु की संगति खोजते है और पूर्ण समर्पण और आस्थापूर्वक उसके आदेशों का पालन करते है, वे उन लोगों की तरह है, जो किसी ऐसी विशेष गाड़ी में बैठे हो जो उन्हें कम से कम समय में उनके गंतव्य तक पहुंचा सके और बीच में कहीं भी न रूके।
जगत में रहते रहो
मेहेर बाबा कहते हैं कि ईश्वर को प्रेम करने के दो मार्ग हैं। त्याग और पूर्ण त्याग का मार्ग और दूसरा इस जगत में रहते हुए ईश्वर को प्यार करने का मार्ग। उनकी दृष्टि में दूसरा मार्ग वास्तव में महान है। इस मार्ग पर चलते हुए आपको कुछ भी नहीं छोड़ना पड़ेगा। आप गृहस्थ में रहे, जगत में रहे, अपना कामकाज व्यापार धंधा करें, नौकरी, सिनेमा घरों और पार्टियों में जाये, सब कुछ करते रहे परंतु एक काम हमेशा करें, दूसरों को सुख पहुंचाने के बारे में हमेशा चिंतन करे, हमेशा कोशिश करें, अपने सुख का बलिदान करके भी, तब मैं तुम्हारे ह्रदय में जीवन का बीज बो दूगां। वे कहां करते थे कि “जीवन एक बहुत बड़ा मजाक है, आमतौर लोग जीवन को गंभीरता से लेते है, और ईश्वर को सरसरी तौर पर। होना यह चाहिए कि हम ईश्वर को गंभीरता से ले और जीवन को हल्केपन से। शाश्वत सत्य के प्रति आस्था के द्वारा जीवन सार्थक हो जाता है और समूचा कार्यकलाप प्रयोजन शीलता ग्रहण कर लेता है। परिवर्तन के बीच शाश्वत सत्य की खोज जीवन का सबसे महान रोमांच है।
ईश्वर को प्राप्त करने का मार्ग
परंतु यह प्रश्न तो बना ही रहता है कि ईश्वर को कैसे जाने और उसका साक्षात्कार किस प्रकार करें। इस प्रश्न का उत्तर मेहेर बाबा इस प्रकार देते है, यदि तुम ईश्वर के बारे में जानना चाहते हो और उसके पास तक पहुंचना चाहते हो तो उसके लिए बाबा का दामन (आंचल) पकड़ लो। कम से कम 14 बार बाबा के नाम का जप करो और हो सके तो इससे भी अधिक- बाबा, बाबा बाबा!!!। एक दिन ऐसा आएगा कि अज्ञान का आवरण पर भर में छिन्न भिन्न हो जाएगा। बाबा नाम का जप प्रेम पूर्वक करो। यह बात मैं तुम्हें अधिकार पूर्वक कहता हूं।
मेहेर बाबा का शरीर त्याग
मेहेर बाबा कहा करते थे “मैं कभी नहीं मरूंगा” यह बात इस अर्थ में सही थी कि मरता केवल शरीर है, आत्मा अमर औश्र शाश्वत है। जहां तक भौतिक शरीर का संबंध है, जन्म लेने वाले हर प्राणी को एक न एक दिन शरीर छोड़ना ही पड़ता है। मेहेर बाबा ने भौतिक कलेवर को समेटने के लिए शुक्रवार 31 जनवरी 1969 का दिन चुना। दोपहर का समय था, और बाबा अपने प्रेमियों और भक्तों के बीच बैठे थे, कि अचानक उन्होंने शरीर छोड़ दिया। समुचे विश्व में मेहेर बाबा के असंख्य भक्त हैं। संसार भर में उनकी स्मृति में अनेक केंद्रों की स्थापना हुई है। जो उनका यह संदेश फैलाते हैं। जीवन का लक्ष्य ईश्वर के प्रति प्रेम है, जीवन का सर्वोच्च ध्येय ईश्वर के साथ एकाकार हो जाना है।
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