मेजर ध्यानचंद हॉकी के जादूगर – मेजर ध्यानचंद की जीवनी Naeem Ahmad, March 29, 2020March 17, 2024 हॉकी का जादूगर के नाम से प्रसिद्ध मेजर ध्यानचंद का जन्म इलाहाबाद में 29 अगस्त, 1905 में हुआ था। उनके पिता सेना में सुबेदार थे।वे कुशवाहा, मौर्य परिवार के थे, उनके पिता का नाम समेश्वर सिंह था, जो ब्रिटिश इंडियन आर्मी में एक सूबेदार के रूप कार्यरत थे, साथ ही होकी गेम खेला करते थे। ध्यानचंद के दो भाई थे, मूल सिंह एवं रूप सिंह। रूप सिंह भी ध्यानचंद की तरह हॉकी खेला करते थे, जो अच्छे खिलाड़ी थे। ध्यानचंद के पिता समेश्वर सिंह आर्मी में थे, जिस वजह से उनका तबादला आये दिन कही न कही होता रहता था। इस वजह से ध्यानचंद ने कक्षा छठवीं के बाद अपनी पढाई छोड़ दी, बाद में ध्यानचंद के पिता उत्तरप्रदेश के झाँसी में जा बसे थे। मेजर ध्यानचंद ने हॉकी को ख्याति के ऊचे शिखर तक पहुंचाया। उनकी अनछूई कला की बराबरी आज तक कोई नहीं कर सका। ध्यानचंद को केवल भारत ही नही विदेशों में भी हॉकी का जादूगर कहा जाता है। साधारण राजपूत परिवार से संबंध रखने वाले ध्यानचंद ने अभ्यास, लगन और संकल्प से सम्मान और प्रतिष्ठा अर्जित की और भारत के गौरव में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 3 दिसंबर 1979 को मेजर ध्यानचंद की मृत्यु हो गई। अपने इस अनमोल हिरे को खो देने के गम में पूरा भारत डूब गया, और नम आंखों से अपने इस जादूगर को भारत वासियों ने श्रृद्धांजलि अर्पित की। आज यह महान हॉकी का जादूगर हमारे बीच नहीं है लेकिन इनका योगदान भारत के इतिहास मे अमर रहेगा। अपने इस लेख में हम मेजर ध्यानचंद की आत्मकथा, और मेजर ध्यानचंद की जीवनी को जानेगें। मेजर ध्यानचंद की आत्मकथा से प्रेरित कुछ जीवनी के अंशध्यानचंद के बाल्य जीवन में खिलाडीपन के कोई विशेष लक्षण दिखाई नहीं देते थे। साधारण शिक्षा प्राप्त करके 16 वर्ष की अवस्था में वे सेना में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हो गए। रेजीमेंट के सूबेदार मेजर तिवारी की देखरेख में ध्यानचंद दुनिया के एक महान खिलाड़ी बन गए, और हॉकी के खेल में ध्यानचंद ने जो लोकप्रियता हासिल की दुनिया का कोई भी खिलाड़ी वहां तक नहीं पहुंच सका। हॉकी खेल में जितनी प्रतिष्ठा भारत को प्राप्त हुई है उतनी और किसी देश को प्राप्त नहीं हुई। इसलिए दुनिया के अधिकतर देश भारत के बारे में चर्चा करते हुए दो चीजों का उल्लेख अवश्य करते है एक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का और दूसरा हॉकी का।सैयद हसन इमाम का जीवन परिचय हिन्दी मेंआज जिस प्रकार भारत में क्रिकेट का बोलबाला है, दूसरे विश्वयुद्ध से पहले भारतीय खेल जगत में हॉकी और हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की धूम थी। सन् 1928 में एम्सटर्डम ओलंपिक खेलों में भारतीय टीम ने भाग लिया। इससे पहले भारतीय टीम ने इंग्लैंड में 11 मैच खेले और वहां ध्यानचंद ने सफलता प्राप्त की। 1928 से लेकर 1956 तक भारत को लगातार ओलंपिक चैंपियन होने का गौरव प्राप्त हुआ। उसके बाद 1964 के खेलो मे टोक्यो में भारत ने दोबारा सफलता प्राप्त की।सैयद हसन इमाम का जीवन परिचय हिन्दी मेंमई 1927 में एम्सटर्डम में भारतीय टीम सभी मुकाबले जीत गई। आस्ट्रेलिया को 6-0 से, डेनमार्क को 6-0 से, स्विट्जरलैंड को 6-0 से और बेल्जियम को 9-0 से हराकर भारतीय टीम फाइनल में पहुंच गई। कठिन परिस्थितियों में भी एक सिपाही की तरह ध्यानचंद धैर्य नहीं छोड़ते थे। यह उस समय की बात है। जब 26 मई 1928 को भारतीय टीम का मुकाबला हॉलैंड से था। ध्यानचंद और टीम के अन्य साथी अचानक बीमार पड़ गए। उस समय भी वे साहसपूर्वक अपनी सारी शक्ति बटोरकर देश की प्रतिष्ठा के लिए मैदान में उतरे। इस प्रकार फाइन मैच में भारत ने हॉलैंड को 3-0 से हरा दिया। इसमें दो गोल ध्यानचंद ने किए। 1932 के लॉसएंजिल्स और 1936 के बर्लिन ओलंपिक खेलों में ध्यानचंद ने भारतीय टीम का नेतृत्व किया। 1936 में भारतीय हॉकी टीम की कप्तानी की। उन्हें सेंटर फारवर्ड के रूप में काफी सफलता मिली। ध्यानचंद धुम्रपान और मद्यपान से काफी दूर रहते थे। इन खेलों के दौरान भारत ने काफी मैच जीते और अमेरिका को 24-1 से हराया। उस समय एक अमरीकी समाचार पत्र ने लिखा था कि भारतीय हॉकी टीम तो पूर्व से आया तूफान था जिसने अपने वेग से अमरीकी टीम के ग्यारह खिलाड़िको कुचल दिया।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं ध्यानचंद एक अत्यंत स्वार्थहीन व्यक्ति थे, क्योंकि जितनी संख्या में उन्होंने गोल किए वे चाहते तो इससे दुगने कर सकते थे। लेकिन वे खिलाडियों को गोल करने में सहयोग देते थे। ध्यानचंद और उनके भाई रूप सिंह हॉकी टिव्ंस के नाम से प्रसिद्ध थे। 1932 में उन दोनों ने भारतीय टीम के चयन से पहले संयुक्त प्रांत की टीम की ओर से खेला और तभी से ध्यानचंद व रूपसिंह की जोड़ी हॉकी जगत में विख्यात हुई।दादाभाई नौरोजी का जीवन परिचय हिन्दी मेंध्यानचंद को हॉकी में ही नहीं पूरे भारतीय खेल जगत में हमेशा याद किया जाएगा। लोगों का ऐसा मानना था कि मैच के दौरान गेंद मेजर ध्यानचंद की स्टिक से चिपकी रहती थी। 1936 में एक ऐसी घटना घटी कि यह बात पूरे विश्व को पता चल गई कि वे एक बेहतरीन खिलाडी है। 1936 का समर ओलंपिक बर्लिन में हुआ था। पहले तो ध्यानचंद के रेजिमेंट ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया परंतु पुनः प्रार्थना करने पर उन्हें जाने की अनुमति मिल गई। ध्यानचंद के नेतृत्व में समर ओलंपिक में भाग लेने भारतीय टीम बर्लिन पहुंची। वहां फाइनल मैच से पहले जर्मनी के साथ एक दोस्ताना मैच हुआ। देशभक्ति की भावना से भरी भारतीय टीम ने ड्रेसिंग रूम में भारतीय तिरंगा फहराया और भारतीय राष्ट्रीय गीत वंदेमातरम गाया। जबकि उस समय भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था और वहां ब्रिटिश राष्ट्रीय गीत गाना उनके लिए अनिवार्य था। इस खेल को देखने जर्मनी का नाजी तानाशाह हिटलर भी आया था। भारतीय टीम ने मध्य खेल तक एक गोल कर दिया था। पुनः द्वितीय आधे समय में दो गोल हो गए। कवि भालण का जन्म कब हुआ और समय कालहिटलर अपनी सुपिरियर टीम की उस शर्मनाक पराजय को स्वीकार न कर सका और उठकर वहां से चला गया। ध्यानचंद के अद्भुत गेंद नियंत्रण को देखकर दर्शक आश्चर्यचकित रह गए। वही कुछ अधिकारियों को संदेह होने लगा कि कही ध्यानचंद की स्टिक में कोई ऐसी चीज तो नहीं लगी जो गेंद को अपनी ओर खींचती है। तब ध्यानचंद ने दूसरी स्टिक से खेलकर लोगों का यह संदेह भी दूर कर दिया। और जर्मन अधिकारियों को यह विश्वास दिला दिया कि वे वास्तव में हॉकी के जादूगर है। टेसू और झेंझी की कहानी – टेसू और झेंझी का इतिहासद्वितीय विश्व युद्ध के बाद मेजर ध्यानचंद ने हॉकी से संन्यास ले लिया। संन्यास के बाद ध्यानचंद ने प्रशिक्षण का कार्य भी किया। और 1961 से 1969 तक राष्ट्रीय खेल संस्थान पटियाला में भारतीय हॉकी टीम को प्रशिक्षित करते रहे। हॉकी के खिलाडियों में ध्यानचंद को राजकुमार भी कहा जाता है। भारत के स्वतंत्र होने पर 42 वर्ष की आयु में उन्होंने पूर्वी अफ्रीका के विरुद्ध 22 मैचों में 61 गोल किए। केवल हॉकी के खेल के कारण ही सेना में उनकी पदोन्नति होती गई। 1938 में उन्हें वायसराय का कमीशन मिला उसके बाद सूबेदार, लेफ्टिनेंट कैप्टन और बाद में उन्हें मेजर बना दिया गया। ध्यानचंद ने 1947-48 में भारतीय हॉकी संघ आई.एच.एफ का प्रतिनिधित्व किया। 1956 में उन्हें पद्मभूषण से विभूषित किया गया। उनके लिए हॉकी धर्म की तरह था। ध्यानचंद हॉकी के उन खिलाडिय़ों में है। जिनकी यादों को गुमनामियों के अंधेरे में गर्क नहीं किया जा सकता। हॉकी के जादूगर ध्यानचंद को मरणोपरांत भी यह गौरव प्राप्त है कि उनकी यादें लोगों के दिलों में ताजा है।मेजर ध्यानचंद हॉकी के जादूगरध्यानचंद वास्तव में सादा जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्ति थे। अपने छोटे कद के बावजूद वे अपने खेल कौशल से विरोधियों को प्रभावित करते थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा दी गोल.में लिखा है कि मै बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति नहीं हूं आत्मकथा लिखने के लिए बहुत सक्षम भी नहीं हूं। किंतु अपने जीवन के विषय में थोड़ा अपने मित्रों को बताने के लिए प्रेरित महसूस करता हूँ। ये शब्द ध्यानचंद ने अपनी बहुमूल्य पुस्तक की भूमिका में लिखे है। आज महान खिलाडी ध्यानचंद हमारे बीच नहीं है। लेकिन उनका खेल उनका चरित्र, उनकी महानता हमारे दिलों में हमेशा उनकी यादों को बनाएं रखेगा। 1943 में किंग कमीशन प्राप्त कर वे मेजर बने और मेजर के पद से ही रिटायर हुए। ध्यानचंद के खेल जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां• 1956 मे भारत सरकार ने मेजर ध्यानचंद को पद्मभूषण से सम्मानित किया।• वियेना आस्ट्रेलिया के निवासियों ने ध्यानचंद को सम्मानित करने के उद्देश्य से उनकी एक मूर्ति लगाई है। इसमें ध्यानचंद के चार हाथ है और चारों हाथों में हॉकी दिखाई गई है। कलाकार ने इस मूर्ति द्वारा यह बताने का प्रयास किया है कि उनका हॉकी पर कितना नियंत्रण था।• मेजर ध्यानचंद एकमात्र ऐसे खिलाड़ी है, जिनकी कई मूर्तियां उनके सम्मान के लिए लगाई गई है। उनकी एक मूर्ति इंडिया गेट के पास मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में भी लगाई गई है। इसके अतिरिक्त ध्यानचंद की एक मूर्ति 2005 में आंध्रप्रदेश के मेडक जिले में भी लगाई गई।• ध्यानचंद के जन्मदिन यानी 29 अगस्त को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन ध्यानचंद पुरस्कार, अर्जुन पुरस्कार, जैसे बडे खेल सम्मान राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रपति भवन में खिलाडिय़ों को दिए जाते है।• उनके नाम पर ध्यानचंद पुरस्कार खिलाडियों को दिया जाता है।• ध्यानचंद के नाम पर दिल्ली में इंडिया गेट के पास बने नेशनल स्टेडियम का ना ध्यानचंद स्टेडियम कर दिया गया है।• ध्यानचंद को सम्मान देते हुए भारतीय डाक विभाग ने भी एक टिकट उनकी याद में जारी किया है।• बर्लिन में हुए समर ओलंपिक में उनके खेल को देखने हिटलर भी आया था। यहां भारतीय टीम ने आश्चर्यजनक रूप से 175 गोल लगाए थे। जिसमें 59 गोल अकेले ध्यानचंद ने लगाए थे। हमारे यह लेख भी जरुर पढ़े:–[post_grid id=’21134′]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के महान खिलाड़ी भारत के महान पुरूष खेल जगतभारतीय हॉकी खिलाड़ी