मुकाम मंदिर राजस्थान – मुक्ति धाम मुकाम का इतिहास Naeem Ahmad, October 7, 2019March 19, 2024 मुकाम मंदिर या मुक्ति धाम मुकाम विश्नोई सम्प्रदाय का एक प्रमुख और पवित्र तीर्थ स्थान माना जाता है। इसका कारण यह है कि इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक जाम्भोजी महाराज का समाधि मंदिर यहां स्थित है। जिसके कारण यहां साल में दो मेले भी लगते है। पहला फागुन वदि अमावस्या को और दूसरा आसोज वदि अमावस्या को। आसोज वाले मेले को इस सम्प्रदाय के महान कवि और साधु वील्होजी (संवत् 1598-1673) ने आरंभ किया था। इस संबंध में इनके प्रिय शिष्य और सुप्रसिद्ध कवि सुरजनदास जी पूनिया (संवत् 1640-1748) ने इन पर लिखे एक मरसिये में यह उल्लेख किया है:–तीरथ जांभोलाव चैत चोठिये मिलायौ !मेलों मंड्यो मुकाम लोक आसोजी आयो !! मुक्ति धाम मुकाम का इतिहासफाल्गुन के मेले पर देश के सभी भागों से बहुत बड़ी संख्या में विश्नोई सम्प्रदाय के लोग एकत्र होते है। संख्या की दृष्टि से देखा जाएं तो इतने अधिक विश्नोई यात्री राजस्थान में मान्य किसी भी प्राचीन मंदिर या साथरी पर एखत्र नहीं होते। इस विषय में दूसरा स्थान जाम्भोलाव (फलौदी) का है। जाम्भोजी के प्रति श्रृद्धा भाव निवेदन और उनके उपदेशों को पुनः स्मरण करने के अतिरिक्त अनेक सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा अन्य कई सामयिक बातों के विचार विमर्श और निर्णय निष्कर्ष हेतू विश्नोई समाज यहां एकत्र होता है। किन्तु मेले का प्रमुख कारण धार्मिक और सांस्कृतिक है। राजस्थान के अनेक धार्मिक स्थलों की भांति मुक्ति धाम मुकाम भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह राजस्थान राज्य के बीकानेर जिले के नोखा स्थान से लगभग 18 किलोमीटर तथा बीकानेर से 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।गोपीजन वल्लभ जी मंदिर जयपुर राजस्थानमुक्ति धाम मुकाम की यात्रा और मुकाम मंदिर के दर्शन करने से पहले यह विस्तार जान लेते है कि जाम्भोजी जी कौन थे और उनका विश्नोई समाज में इतना महत्व क्यों है। जाम्भोजी का जन्म सन् 1508 में पीपासर (नागौर) नामक गाँव में हुआ था। जाम्भोजी के पिता का नाम लोहट जी पंवार था जो अत्यंत सम्पन्न किसान थे। जाम्भोजी की माता का नाम दांसा था जिन्हें केसर के नाम से भी बुलाते थे। जो छापर के मोहकम सिंह भाटी की पुत्री थी। जाम्भोजी सदेव ब्रह्मचारी रहे। सन् 1542 में मध्यप्रदेश भयंकर अकाल पड़ा इसमें जाम्भोजी ने हर प्रकार से लोक सेवा की और इसी समय में पीपासर से कुछ दूर स्थित समराथल नामक रेत के बड़े और ऊंचे टीले पर उन्होंने विश्नोई सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया। सभी वर्णों, वर्गों और पेशों के लोग सम्प्रदाय में दीक्षित हुए। जाम्भोजी का भ्रमण अत्यंत व्यापक था। देश विदेश में उन्होंने ज्ञानोपदेश किया था किंतु उनका कार्य क्षेत्र विशेषरूप से राजस्थान रहा था।मुकाम मंदिर राजस्थान के सुंदर दृश्यउत्तर प्रदेश के दो प्राचीन स्थानों लोदीपुर और नगीना के अतिरिक्त शेष सभी प्राचीन साथरी राजस्थान में ही है। जाम्भोजी ने भ्रमण करते हुए अपने साथ के व्यक्तियों सहित जिन विशेष विशेष स्थानों पर कई दिन तक ठहरकर ज्ञानोपदेश किया था। वे सभी सारथी कहलाए।विश्नोई समाज के प्राचीन मान्य स्थानों में पीपासर, समराथल, लोहावट, जांगलू, रोठू, जाम्भोलाव, रिणासीषर, भुयासर, गुढा, रूडकली, रामड़ावाह, दरीबा, समला, लोदीपुर, नगीना, लालासर, और मुकाम की विशेष गणना है।ब्रजराज बिहारी जी मन्दिर जयपुर राजस्थानजाम्भोजी की मृत्यु सन् 1593 के मार्गशीर्ष वदि नवमी को हुई थी। और इसके तीसरे दिन एकादशी को तालवा गांव के निकट उनको समाधि दी गई थी। जाम्भोजी का अंतिम मुकाम होने से उनका समाधि स्थान मुकाम नाम से प्रसिद्ध हो गया। सम्प्रदाय के कवियों ने तालवा और मुकाम में कोई भेद न कर दोनों को एक ही समझा है। तथा अनेक प्रसंगों में इसका विविध रूप से उल्लेख भी किया है। मुकाम मंदिर का मेलामुकाम के दोनों मेलों में एक दो दिन पहले ही यात्री यहां आने शुरू हो जाते है। और फागुन चौदस को मुकाम मंदिर पर रात्रि जागरण किया जाता है। जागरण में जाम्भाणी साखियां तथा हरजस गाए जाते है। साखियों मे भी जम्भे की साखियाँ सबसे पहले गाने का प्रचलन रहा है। वर्तमान में इसके अतिरिक्त अन्य साखियाँ भी गाई जाती है। विश्नोई कवियों का साखी साहित्य विशेष महत्व का है। इसी प्रकार हरजसो में पुराने प्रतिष्ठित कवियों के हरजस गाए जाते है। गाने वालो में विश्नोई साधु तथा गायक होते है।क्रिप्टो करंसी में इंवेस्ट करें और अधिक लाभ पाएं मुकाम मेले के दूसरे दिन अर्थात अमावस्या को सूर्योदय से पूर्व ही नहा धोकर मुकाम पर सामुहिक रूप से हवन किया जाता है। प्रत्येक यात्री इसमें सुविधा अनुसार भाग लेता है। इसी दिन सुबह ही कुछ यात्री यहां से दो कोस दूर स्थित समराथल पर अवश्य जाते है। वहां नीचे से मिट्टी लाकर घोरे के ऊपर डालते है। तथा साधुओं द्वारा किए जा रहे हवन में भी भाग लेते है। हवन करते समय जम्भवाणी (शब्दवाणी) का एक विशेष लय और उच्च स्वर से पाठ किया जाता है। स्मरणीय है कि इस अवसर जाम्भवाणी को गाया न जाकर पाठ ही किया जाता है। स्त्री पुरूष और बच्चे सभी इसमें भाग लेते है।बूंदी राजपूताना की वीर गाथा – बूंदी राजस्थान राजपूतानामुक्ति धाम मुकाम मंदिर में यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालाएं बनी हुई है। तथा हवन सामग्री आदि खरीदने के लिए दुकाने भी लगती है। मुकाम मंदिर का दृश्य अत्यंत मोहक और आकर्षक है। सभी यात्री निज मंदिर में समाधि के दर्शन करते और चढावा चढाते है। पश्चात वे मंदिर की परिक्रमा भी अनिवार्य रूप से करते है। परिक्रमा के समय स्त्रियां सामूहिक रूप से अनेक श्रृदाभाव भरे गीत गाती है। प्रिय पाठकों आपको हमारा यह लेख कैसा लगा हमे कमेंट करके जरूर बताएं। यह जानकारी आप अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर भी शेयर कर सकते है।प्रिय पाठकों यदि आपके आसपास कोई ऐसा धार्मिक, ऐतिहासिक या पर्यटन महत्व का स्थल है जिसके बारे में आप पर्यटकों को बताना चाहते है। तो आप उस स्थल के बारे में अपना लेख हमारे submit a post संस्करण में जाकर लिख सकते है। हम आपके द्वारा लिखे गए लेख को आपकी पहचान के साथ अपने इस प्लेटफार्म पर शामिल करेगें। राजस्थान पर्यटन पर आधारित हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—[post_grid id=”6053″]Share this:ShareClick to share on Facebook (Opens in new window)Click to share on X (Opens in new window)Click to print (Opens in new window)Click to email a link to a friend (Opens in new window)Click to share on LinkedIn (Opens in new window)Click to share on Reddit (Opens in new window)Click to share on Tumblr (Opens in new window)Click to share on Pinterest (Opens in new window)Click to share on Pocket (Opens in new window)Click to share on Telegram (Opens in new window)Like this:Like Loading... भारत के प्रमुख धार्मिक स्थल राजस्थान के प्रसिद्ध मेलेंराजस्थान के लोक तीर्थराजस्थान धार्मिक स्थलराजस्थान पर्यटन