दोस्तो सबसे पहला सवाल उठता है कि मीनाक्षी मंदिर कहाँ है? तो हम आपको बता दे यह भव्य व सुंदर मंदिर दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के मदुरै मे स्थित है। दक्षिण भारत तीर्थ स्थानों से भरा पडा है। इसी कारण कभी कभी साउथ इंडिया की रेलवे को तीर्थ यात्रियों की रेलवे कहा जाता है। परंतु दक्षिण भारत मे रामेश्वरम तथा मदुरै को तीर्थों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। यहां के मंदिर प्राचीन काल मे बने हुए है। तथा इनका इतिहास भी सदियों पुराना है। मीनाक्षी मंदिर का इतिहास भी इसी श्रेणी में आता है। यहां के मंदिर भव्य और कला की दृष्टि से उच्चकोटि के है। यात्री इन्हें देख कर सम्मोहित से हो जाते है। उत्तर भारत में ऐसा कोई मंदिर नही है, जिससे इन मंदिरों की तुलना की जा सके। इन्ही भव्य मंदिरों मे से एक मीनाक्षी मंदिर है। अपनी मदुरै की यात्रा के दौरान हम इसी पवित्र मीनाक्षी तीर्थ की यात्रा करेंगे और उसके बारे मे विस्तार से जानेगें।
मीनाक्षी मंदिर की धार्मिक पृष्ठभूमि
इस पवित्र तीर्थ के बारे मे कहा जाता है कि- पहले यहां कदंब वन था। कदंब के वृक्ष के नीचे भगवान सुंदरेश्वर का स्वयंभू लिंग था। देवता उसकी पूजा करते थे। पांडेय नरेश मलयध्वज को जब इस बात का पता चला तो उसने यहां पर मंदिर बनवाने तथा नगर बसाने का संकल्प लिया। कहते है कि मलयध्वज के स्वप्न मे आकर भगवान शंकर ने राजा के संकल्प की प्रशंसा की तथा दिन मे एक सर्प के रूप मे आकर नगर की सीमा का निर्देश कर भी कर गए।
पांडेय नरेश के कोई संतान नहीं थी। उन्होंने अपनी पत्नी के साथ लंबे समय तक भगवान शिव की तपस्या की। भगवान शिव ने उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिए तथा आश्वासन दिया कि उनके यहां एक कन्या का जन्म होगा।
साक्षात पार्वती ही अपने अंश से राजा मलयध्वज के यहां कन्या के रूप में अवतीर्ण हुई। उस कन्या के नेत्र बडे बडे तथा सुंदर थे। इसके कारण माता पिता ने उसका नाम मीनाक्षी रखा। मीनाक्षी के युवा होने पर साक्षात भगवान सुंदरेश्वर ने उनसे विवाह करने की इच्छा व्यक्त की। एक बडे समारोह मे मीनाक्षी का विवाह सुंदरेश्वर शिव से हुआ।
मीनाक्षी मंदिर के सुंदर दृश्यमीनाक्षी मंदिर के दर्शन
स्टेशन से पूर्व की दिशा में लगभग एक मील पर मदुरा नगर के मध्य भाग मे मीनाक्षी देवी का मंदिर है। यह मंदिर अपनी निर्माण कला की भव्यता के लिए सर्व प्रसिद्ध है। मंदिर लगभग 22 बीघे जमीन पर बना हुआ है। इसमे चारो ओर चार मुख्य द्वार है। वैसे सब छोटे बडे मिलाकर 27 द्वार मंदिर में है।
सबसे अधिक ऊंचा द्वार दक्षिण का है। सबसे सुंदर द्वार पश्चिम का है। बडे द्वार यही कोई ग्यारह मंजिल ऊंचे है।
अशुभ गोपुर
समान्यतः पूर्व पूर्व दिशा से लोग मंदिर मे आते है। परंतु इस दिशा का द्वार अशुभ माना जाता है। कहते है कि, इंद्र को वृत्रवध के कारण जब ब्रह्मा हत्या लगी, तब वे इसी मार्ग से भीतर गए और वहां के पवित्र सरोवर मे कमलनाथ मे स्थित रहे। उस समय यही द्वार पर ब्रह्म हत्या इंद्र के मंदिरों मे से निकलने की प्रतिक्षा करती खडी रही। इससी कारण मंदिर का यह द्वार अपवित्र माना गया। अब पास मे एक दूसरा द्वार बनाया गया है। जिससे लोग आते जाते है।
अष्ट शक्ति मंडप
गोपुर मे प्रवेश करने पर पहले नगर मंडप आता है। इसमें फल फूल प्रसाद आदि की दुकानें रहती है। इसके आगे अष्ट शक्ति मंडप आता है। इस मंडप की विशेष बात यह है कि इसमें स्तंभों के स्थान पर आठ लक्ष्मियों की मूर्तियां छत के आधार का काम करती है।
स्वर्ण पुष्पकरिणी सरोवर
कहा जाता है कि ब्रह्म हत्या लगने पर इंद्र इसी सरोवर मे छिपे थे। तमिल मे इसे“पोत्तिमरै-कुलम”कहते है। इसमे चारो ओर मंडप है। इन मंडपो मे तीन ओर भित्तिचित्र पर भगवान शिव की 64 लीलाओं को उकेरा गया है। जोकि विशेष रूप से दर्शनीय है।
अद्भुत सिंह मूर्ति
सरोवर के पश्चिम भाग मे पिंजंरो मे कुछ पक्षी पाले गए है। यहा एक अद्भुत सिंह मूर्ति है। सिंह के मुंह मे एक गोला बनाया जाता है। सिंह के मुंह में उंगली डालकर घुमाने से वह गोला घूमता है। पत्थर मे ऐसा शिल्प नैपुण्य देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता है।
पुरूष मृग मंडप
पांडवों की मूर्ति वाले मंडप को ” पुरूष मृग मंडप” कहते है। क्योंकि उसमे एक मूर्ति ऐसी बनी है, जिसका आधा भाग पुरूष का और आधा भाग मृग का है। इस मंडप के सामने ही मीनाक्षी देवी मंदिर का मुख्य द्वार है।
मीनाक्षी मंदिर के सुंदर दृश्यमीनाक्षी देवी की भव्य मूर्ति
कई ड्योढियों के भीतर श्री मीनाक्षी देवी की भव्य मूर्ति है। बहुमूल्य वस्त्राभूषण से देवी का श्यामविग्रह सुशोभित रहता है। मंदिर के महामंडप के दाहिनी ओर देवी का शयन मंदिर है। मीनाक्षी मंदिर का शिखर स्वर्ण मंडित है। मंदिर के सम्मुख बाहर स्वर्ण मंडित स्तंभ है।
सुंदरेश्वर मंदिर
सुंदरेश्वर मंदिर के प्रवेश द्वार पर द्वारपालों की मूर्तियां है। इन प्रस्तर मूर्तियों से आगे द्वारपालों की दो धातु प्रतिमाएं है। सुंदरेश्वर मंदिर के सामने पहुचने पर सबसे पहले नटराज के दर्शन होते है। इन्हे “वेल्ली अंबलम् ” चांदी से मढा हुआ कहते है। यह तांडव नृत्य करती भगवान शिव की नटराज मूर्ति चिंदबरम की नटराज मूर्ति से बडी है। मूर्ति के मुख को छोडकर सारी मूर्ति पर चांदी का आवरण चढा है। और यहा दाहिना पद ऊपर ऊठा है।
सुंदरेश्वर मंदिर के सामने भी स्वर्ण मंडित स्तंभ है। और मंदिर का शिखर भी स्वर्ण मंडित है। कई ड्योढियों के भीतर अर्धे पर सुंदरेश्वर स्वंयभू शिवलिंग सुशोभित है। उस पर स्वर्ण का त्रिपुंड लगा है।
आठ स्तंभ
मंदिर के बाहर जगमोहन मे आठ स्तंभ है। जिन पर भगवान शिव की विविध लीलाओं की अत्यंत सजीव मूर्तियां उत्कीर्ण है। इनकी शिल्प कला अद्भुत है। यही पर द्वार के सामने चार स्तंभो का एक मंडप है। जिसमे पत्थरो मे ही श्रृंखला बनाई गई है। इस श्रृंखला की कडियां लोहे की श्रृंखला के समान घूम सकती है। इसी मंडप मे भगवान शिव के उध्र्वनृत्य की अद्भुत कलापूर्ण विशाल मूर्ति है।
तांडव नृत्य करते हुए शिवजी का एक चरण ऊपर कान के समीप तक पहुंच गया है। पास ही उतनी ही विशाल काली की मूर्ति है। इसी मंडप मे कारैकाल्अम्मा नामक शिव भक्ता की मूर्ति है।
कदंब वृक्ष
मुख्य मंदिर की परिक्रमा मे प्राचीन कदंब वृक्ष का अवशेष सुरक्षित है। उसके समीट ही दुर्गा जी का छोटा मंदिर है। यही कदंब वृक्ष के मूल मे भगवान सुंदरेश्वर शिव ने मीनाक्षी का पाणिग्रहण किया था।
नटराज का सभामंडप
मंदिर के सामने एक मंडप मे नंदी की मूर्ति है। वहा से सहस्त्र स्तंभ मंडप मे जाते है। यह नटराज का सभा मंडप है। इस सहस्त्र स्तंभ मंडप मे मनुष्य के आकार से भी ऊंची शिव भक्तों और देव देवियों की मूर्तिया है। इनमे से वीणा धारिणी सरस्वती की मूर्ति बहुत कलापूर्ण और आकर्षक है। इस मंडप मे श्री नटराज का श्याम विग्रह प्रतिष्ठित है। इसी मंडप मे शिव भक्त कृष्णप्पा की भी खडी मूर्ति है।
सतस्तंम्भ
बडे मंदिर के पूर्व में एक सत स्तंभ मंडप है। इसमें 120 स्तंभ है। प्रत्येक स्तंभ मे नायक वंश के राजाओं तथा रानियों की मूर्तियां बनी है। द्वार के पास शिकारियों तथा पशुओं की मूर्तियां है।
मीनाक्षी कल्याण मंडप
चैत्र महिने मे इस मंडप मे मीनाक्षी सुंदरेश्वर का विवाह महोत्सव होता है। इस उत्सव के समय मीनाक्षी-सुंदरेश्वर विवाह हो जाने पर यही अनेक वर वधुएं बहुत अल्प समय मे अपना विवाह संपन्न कराते है।
पुदुमंडप
मंदिर के पूर्व के द्वार के सामने पुंदुमंडप है। जिसे बसंत मंडप भी कहते है। इसमें प्रवेश द्वार पर घुडसवारों और सेवकों की मूर्तियां है। भीतर शिव पार्वती के पाणिग्रहण की पूरे आकार की मूर्ति है। पास मे भगवान विष्णु कि मूर्ति है। यहां नटराज की भी सुंदर मूर्ति है।
सप्त समुद्र
पूर्व द्वार के पूर्वोत्तर मे सप्त समुद्र नामक सरोवर है। कहा जाता है कि मीनाक्षी देवी की माता कांचनमाला की समुद्र में स्नान की इच्छा होने पर भगवान शिव ने इस सरोवर मे सातों समुंदरों का जल प्रकट कर दिया था।
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विवाहोत्सव
मदुरै को उत्सव नगरी भी कहा जाता है। यहा बराबर उत्सव चलते रहते है। चैत्र मास मे मीनाक्षी-सुंदरेश्वर विवाहोत्सव होता है। जो दस दिनो तक चलता है। इसमें रथ यात्रा भी होती है।
बसंतोत्सव
वैशाख मे शुक्ल पक्ष की पंचमी मे आठ दिन तक बसंतोत्सव होता है।
स्मरणोत्सव
श्रावण मे भगवान शंकर की 64 लीलाओं के स्मरणोत्सव होते है। ये लीलाएँ भगवान शंकर ने मीनाक्षी देवी के साथ मदुरै मे प्रत्यक्ष की थी। ऐसा माना जाता है। इसी कारण यह उत्सव मनाया जाता हैं।
नवरात्रि महोत्सव
भाद्रपद तथा आश्विन मे नवरात्रि महोत्सव एवं अमावस्या पूर्णिमा के विशेष उत्सव भी यहा होते है।
नटराज का अभिषेक
मार्गशीर्ष मे आर्दा नक्षत्र मे नटराज का अभिषेक होता है। और अष्टमी को वे कालभैरव ग्राम की यात्रा करते है।
रथ यात्रा
पौष पूर्णिमा को मीनाक्षी देवी की रथ यात्रा होती है।
मदन दहनोत्सव
फाल्गुन मे मदन दहनोत्हव होता है। फाल्गुन मे ही सुब्रह्मण्यम की विवाह यात्रा मनाई जाती है।
मदुरै और उसके आसपास के दर्शनीय स्थल
सुंदरबाहु मंदिर
मीनाक्षी मंदिर से लगभग एक किलोमीटर पर यह मंदिर है। यहां रामायण के कथा प्रसंगों के सुंदर रंगीन चित्र दीवारों पर बने है। यहां भगवान का नाम सुंदरबाहु होने से इस मंदिर को सुंदरबाहु मंदिर भी कहा जाता है। भगवान विष्णु मीनाक्षी का सुंदरेश्वर के साथ विवाह कराने यहां पधारे थे। और तभी से विग्रह रूप में यहां विराजमान है।
इस मंदिर के घेरे मे एक अलग लक्ष्मी मंदिर है। श्री लक्ष्मी जी का पूरा मंदिर कसौटी के चमकीले काले पत्थर का बना हुआ है। इसमें लक्ष्मी जी की बडी भव्य मूर्ति स्थापित है। श्री लक्ष्मी जी को यहां मधुवल्वी कहते है।
श्रीकृष्ण मंदिर
मीनाक्षी मंदिर से सुंदरराज पेरूमल मंदिर जाते हुए थोडे ही पहले श्री कृष्णा मंदिर है। इसमे भगवान श्रीकृष्ण की बडी सुंदर मूर्ति है।
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