मिस्र के दैत्याकार पिरामिड दुनियां के प्राचीनतम अजुबों मे से एक है। इनकी वास्तुकला आश्चर्यजनक और चौका देने वाली है। इससे भी कहीं आधिक चौंका देने वाला है यह प्रश्न कि क्या मिस्र के पिरामिड सिर्फ फराओ राजाओं की ममीयों को सुरक्षित रखने वाले मकबरे ही थे ? क्या उनका यही एकमात्र उद्देश्य था? आज इस वियय मे अलग-अलग सिद्धांत निकल कर सामने आ रहे हैं। कुछ का कहना है कि ये पिरामिड अकाल से बचने के लिए अन्न के भण्डार के रूप मे बनाए गए थे। कुछ अन्य लोगो का दावा है कि ये पिरामसिड खगोलीय वेधशालाएं हैं, जिनसे ग्रह-नक्षत्रों तथा पृथ्वी के बारे मे मिस्रवासी अध्ययन किया करते थे। क्या ये पिरामिड प्राचीन मिस्रियों के इन विश्वासों के ही प्रतीक हैं, जो मत्यु के पश्चात् भी जीवन की निरंतरता से संबंधित था या उन्हें बनवाने के पीछे कोई अन्य मकसद काम कर रहा था?
मिस्र के पिरामिड का निर्माण कब हुआ – मिस्र के पिरामिड कहा है
पिछली 40 शताब्दियों से मिस्र के भीमाकार पिरामिड सारे विश्व के कौतूहल तथा आश्चर्य क केन्द्र बने हुए है। ये पिरामिड इस तथ्य के जीवित प्रमाण है कि प्राचीन काल का मानव तकनीकी कुशलता मे कितनी दूर तक जा चुका था तथा उसकी आध्यात्मिक महत्वाकांक्षाएं कितनी महान थी। अभी तक यह पता नही चल पाया है कि मिस्र के पिरामिड का निर्माण कब हुआ कैसे और क्यों हुआ? अरब विद्वान दावा कर चुके है कि प्राचीन मिस्र का सारा ज्ञान इन पिरामिडों की दीवारो पर खुदा हुआ है। इस भाषा को हीअरोगाफी (Heirography) कहते है जिसे अभी पूरी तरह से नही पढ़ा जा सका है।गीजा (Giza) के तीन पिरामिड के बारे मे यह समझा जाता रहा है कि ये अन्न के विशालकाय भंडारों के रूप में बनवाए गए थे ताकि अकाल के समय खाद्य की आपूर्ति ठीक रह सके। ज्ञातव्य है कि पिरामिड शैली में बने किसी भी भवन में चीजें बहुत समय तक खराब नही हाती।
19वी शताब्दी में इन दैत्याकार शाही मकबरोे का विधिपूर्वक अध्ययन यूरोपीय विद्वानों ने प्रारम्भ किया। इससे पहले इतना तक पता लग चुका था कि मित्र के निवासी मृत्यु के बाद भी जीवन मे विश्वास करत थे, इसीलिए उनके लिए अपने राजा के शरीर को सुरक्षित रखना अनिवार्य था। मिस्र के निवासी अपने राजा को मानव और देवता का मिला-जुला रूप मानते थे। लेखकों ने इन मिस्र के पिरामिडों के निर्माण के पीछे काम करने वाली मानसिकता की व्याख्या करते हुए कहा है कि ये पिरामिड मिस्रवासियों ने जीवन की अमरता को सिद्ध करने के लिए बनवाए थे। पिरामिडों की आकृति बताती है कि उनके निर्माताओं पर निश्चित रूप से सूर्य-पूजा का का प्रभाव था। मिस्रवासी बाज के सिर की आकृति वाल रॉ (Ra) नामक सूर्य के प्रतीक एक देवता के पुजारी थे। पिरामिडों की आकृति बिलकुल ऐसी ही है कि जैसे सूर्य से पृथ्वी पर किरण गिर रही हो।
मिस्र के पिरामिडमृत्यु के पश्चात जीवन की धारणा ने ही मिस्रवासियों को ममी बनाने की कला से अवगत कराया। मृत शरीर के आंतरिक अंगों को निकाल कर उसको नमक के विलयन मे भिगो दिया जाता था। मस्तिष्क को नथुनों से निकाला जाता था। फिर शरीर पर सोडे का कार्बोनेट छिड़का जाता था। तेल से भीगी पट्टियो को लपेट कर शव को रंगे हुए कफन में रख दिया जाता था। अंतिम संस्कार के समय होने वाले धर्मगत कर्मकांड किए जाते थे। कफन को मृतक द्वारा इस्तमाल की जाने वाली तमाम वस्तुओ के साथ पिरामिडों में रखा जाता था ताकि मृत्यु के बाद जीवन मे आवश्यकता पड़ने पर मृतक उन वस्तुओं का प्रयाग कर सके। पिरामिडों का निर्माण 2686-2181 ईसा पूर्व मे प्रारम्भ होकर अपने स्वर्ण युग मे पहुंचा। मिस्र का पहला पिरामिड कब बनाया गया था? पहला पिरामिड तीसरे वंश के राजा (2606-2613) ईसा पूर्व जोसर (Zoser) के युग मे बनवाया गया, जिसे हम ‘स्टेप पिरामिड’ (Step Pyramid) के नाम से जानते हैं। इस पिरामिड की रचना का श्रेय राजा के मुख्यमंत्री तथा वास्तुकला तथा विभिन्न
अन्य कलाओं के आचार्य इम्होटेप (Imhotep) को जाता है। पिरामिड पर इम्होटेप का नाम खुदा हुआ है। इन पिरामिडो मे न केवल जोसर के अवशेष रखे गए वरन् उसके परिवार के सदस्यों के अवशेष भी रखे गए। इस पिरामिड के अंदर कमरे और गलियारे बने हुए है। सुरक्षा के तमाम प्रबंध करने के बाद भी पिछली कई शताब्दियों से हुई लूट-मार ने इस पिरामिड की बहुमूल्य वस्तुओं की सख्या नगण्य कर दी है।
कुछ जरूरी प्रश्न जिनके उत्तर आपको हमारे इस लेख में मिलेंगे:——–
- मिस्र में कितने पिरामिड है?
- पिरामिड के अंदर क्या है?
- गीता के महान पिरामिड में किसे दफनाया गया था?
- मिस्र का सबसे बड़ा पिरामिड कौनसा है?
- गीजा का पिरामिड किसने बनवाया
इसके बाद चौथे वंश (2613-2494 ईसा पूर्व) के राजा सनेफेरू (Seneferu) ने तीन पिरामिड बनवाए, जिनके निर्माण मे युद्धबंदियों तथा कृषकों से काम कराया गया था। मेदुम (Maidum) में बनाया गया पहला पिरामिड फाल्स पिरामिड (False Pyramid) के नाम से जाना जाता है। अपनी संरचना मे कुछ गड़बड़ी हाने के कारण उसका बाहरी घेरा ढह गया है। आजकल यह पिरामिड अपने ही मलबे के ढेर पर गर्व से सीना ताने खडा हुआ है। दाहशर(Dahshur) मे सेनफेरू ने बेण्ट पिरामिड (Bent Pyramid) नामक दूसरा पिरामिड बनवाया। यह एक ऐसे आधार पर बना हुआ है, जहा से इसकी दीवारें 54° पर उठी हुई हैं और फिर एकदम 42° पर झुक जाती है। 320 फुट ऊंचे इस पिरामिड पर चूने के पत्थर की परत चढ़ाई गई है। बेण्ट पिरामिड से थोडी ही दूर पर सेनफेरू का तीसरा उत्तरी पिरामिड मौजूद है जो अन्य दो की अपेक्षा पूर्ण रूप से निर्मित पिरामिड लगता है। इसकी आकृति भी अन्य दो की अपेक्षा पिरामिड की आकृति के अधिक निकट है। सनेफेरू के उत्तराधिकारी चिओप्स (Cheops) (2545-2520 ईसा पूर्व) ने काहिरा से कुछ मील की दूरी पर 756 वर्ग फुट के आधार पर 13 एकड़ जमीन में इतना शानदार पिरामिड बनवाया कि उसकी दीवारों की लम्बाई में केवल 79 इंच का अंतर है ओर उसका अवनमन कोण 50°52 है। इसी भीमाकार इमारत को देखकर लगता है कि यह न केवल राजसी मकबरा है वरन सूर्य घडी (Sun dail), कलैण्डर तथा खगौलीय वैधशाला भी है।
इस पिरामिड व उसके निर्माता के बारे मे इतने तरह के विचार प्रस्तुत किए जा चुके है कि उनसे ग्रंथ के ग्रंथ लिख जा सकते है। स्कॉटलैंड के खगोलविद चार्ल्स पियाजी स्मिथ (Charles piazze smith) का कहना था कि यह पिरामिड देवताओं के मार्गदर्शन मे बनवाए गए है और यह कि इस पिरामिड से पाई का
सही मूल्य पृथ्वी का द्रव्यमान ओर परिधि तथा सूर्य से पृथ्वी की दूरी पता लगाई जा सकती है। कुछ अन्य लेखकों ने पिरामिड की नाप जाख मे साल के 365 दिनों का रहस्य खोजा, तो किसी न इतिहास की प्रमुख तारीखों की भविष्यवाणी का पिरामिड के स्थापत्य मे दखने की कोशिश की। सन् 1954 मे इस पिरामिड में एक ऐसा बंद गड्ढा खोज निकाला गया जिसमें 140 फुट लम्बी तथा 16 फुट चौडी नाव निकली। अंदाजा लगाया गया कि यह नाव एक ‘सौर नाव ‘ (Solor boat) थी जिसमें बैठ कर राजा ओर उसके अमले ने अमरता की ओर यात्रा की होगी।
गिजा (Giza) का दूसरा पिरामिड चिफ्रन (Chephren) के पिरामिड के नाम से जाना जाता है। यह चिंआप्स के पिरामिड से 10 फुट अर्थात 471 फुट ऊंचा है। इसी के पास चिफ्रन का अंतिम संस्कार का मंदिर तथा उसी रक्षक स्फिनस (Sphinx) की मूर्ति बनी हुई है। इन दोनों स्मारक के मुकाबले इस पिरामिड की
आंतरिक बनावट सादगीपूर्ण है। गिजा का तीसरा पिरामिड मायसीरिनस (Mycirinus) एक छोटा पिरामिड है। इसी के बाद गिजा में पिरामिडों का निर्माण बंद हो गया।
पिरामिड उस युग में बनाए गए जब फराओ (Pharaoh’s) की सत्ता को चुनौती देने के लिए कोई तैयार नही था। वह शांति व व्यवस्था का युग था। इसी कारण से अपनी देवी शक्तियों का हमेशा-हमेशा के लिए साधारण मानव के उपर थोप देने के लिए इन महाकाय मकबरों का निर्माण किया गया।
प्रश्न यह है कि पहिए का आविष्कार भी उस युग में नही हुआ था फिर इतने बडे-बडे पिरामिड उस युग में कैसे बन पाए होंगे? उदाहरणार्थ – चिआप के पिरामिड मे 2300 000 पत्थर के बड़े बड़े टुकड़े लगे हैं, जिनका वजन 6500 000 टन है। नपोलियन वानापाट ने जब मिस्र पर हमला क्या था तो इन पिरामिडों को देखकर उसने अनुमान लगाया था कि इन पिरामिडों में लगे सामान से पूरे फ़्रांस के चारों ओर 10 फुट ऊचीं व 1 फुट चौड़ी दीवार बनाई जा सकती है।
समझा जाता है कि मिस्र वासियों ने पहले एक आदिकालीन स्पिरिट लेवल (Spirit level) बनाया होगा। एक समतल चट्टान में गड़ढे को इधर-उधर इस तरह गहरा किया गया होगा कि पानी की गहराई हर जगह एक सी हो गई होगी। पिरामिड करीब-करीब वर्गाकार बने हैं। जाहिर है कि उस समय के वास्तुकारों को कुछ ज्यामितीय (Geometric) ज्ञान अवश्य होगा लेकिन अभी तक यह पता नही चल पाया है कि पिरामिडों को इतने सही समकोण पर खडा करने मे वे कैसे सफल रहे? 2.5 टन से 5 टन तक वजन के पत्थरों को खानो से निकाल पर बाढ के मौसम में बेडों पर रख कर नील नदी मे तैरा दिया जाता था। 30 वर्ष तक लगातार हजारों श्रमिक व कारीगर गिजा में पिरामिडों के निर्माण मे लगे रहे ओर उन्होंने इतनी कुशलता से काम किया कि उनकी दीवारों के जोड मे एक बाल तक के घुसने की जगह नही है। इसी को लेकर कुछ विद्वानों का संदेह होता है कि वे संभवतः किसी अन्य ग्रह से आई विकसित सभ्यता द्वारा लेसर किरणों से काटे गए हैं।
पुरातत्व शास्त्रियों में आज भी इस विषय पर जोरों से बहस चल रही है कि बिना किसी यांत्रिक मदद (पहिया या लीवर) इन भारी-भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर कैसे चढ़ाया गया होगा इस विषय में दिए गए सिद्धांतों के अनुसार इन पत्थरो को ढालों (Ramps) के निर्माण द्वारा ऊपर चढ़ाया गया होगा जो सर्पिलाकार सीढ़ियों की तरह बनाए गए होंगे। इसी को लेकर कुछ लोग यह अटकल भी भिड़ाते हैं कि वे लोग किसी प्रकार गुरुत्वाकर्षण (Gravity) का निषेध करके पत्थरों को भारहीन कर लते थे। लेकिन यह मसला उस समय और भी रहस्यमय हो जाता है जब ईसा से 500 वर्ष पूर्व का यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस (Herodotus) अपनी रचनाओ मे ऐसी मशीनों का जिक्र करते हैं जिनके सहारे मिस्री लोग भारी चीजों को ऊपर चढ़ाते थे। लेकिन मिस्र की कला, स्थापत्य तथा साहित्य मे इन मशीनों का कोई जिक्र नही मिलता।
जूलियस सीजर के युग के यूनानी इतिहासकार सिकुलस (Siculus) ने मिस्र के पिरामिड के निर्माण के लिए उन श्रमिको की प्रशंसा की है, जिन्होने इतने भव्य ओर महान स्मारकों को बनवाया। रोमन लेखक प्लिनी (Pliny) (23-79 ईस्वी) ने इन पिरामिडों को राजाओं द्वारा की जाने वाली बरबादी ओर मूर्खता का प्रमाण बताया है परंतु ऐसे लोग ही अधिक है जो इन पिरामिडों को मानवीय प्रयास का सर्वोच्च शिखर मानते हैं। जब तक पिरामिडों की वास्तुकला से संबंधित ओर उनके उद्देश्य से सबंधित सारे रहस्य खुल नही जाते तब तक इस तरह के परस्पर भिन्न-भिन्न विचार सामने आना स्वाभाविक ही है।
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