मिनिकॉय द्वीप भारत के लक्ष्यद्वीप समूह का सबसे बड़ा द्वीप है, यह एक ऐसा रमणीक प्रदेश है। जिसकी हर चीज़ में एक अनोखापन झलकता प्रतीत होता है। अनेक भारत वासी ऐसे भी हैं, जिन्होंने सम्भवत: इस द्वीप का नाम तक न सुना हो। अपने देश के इस आश्चर्यजनक भाग से अभी करोड़ों भारत वासी पूर्ण रूप से अपरिचित हैं। वास्तव में यह द्वीप विशाल-भारत के दक्षिणी तट माला-वार से लगभग पेतिस मील दूर पश्चिम की ओर अरब सागर की नील वर्ण तिरंगों में स्थित है। मूंगे तथा मरजान आदि जन्तुओं की कला का प्रतीक द्वीप-समूह लका-देव, इस अज्ञात द्वीप के ठीक उत्तर में स्थित है। वैसे तो यह द्वीप भी मूगों के बनाये द्वीपों का ही एक अंग है, परन्तु इसकी गणना लका-देव आदि द्वीपों से भिन्न होती है। और यह उसी अक्षांश पर स्थित है, जिस पर कि कुमारी अन्तरीप।
मिनिकॉय द्वीप का क्षेत्रफल भी लगभग तीन वर्ग मील से अधिक नहीं है। लम्बाई तो इसकी लगभग छः मील होगी, परन्तु चौड़ाई कहीं भी आध मील से अधिक नहीं जान पड़ती। मछली के आकार का मिनिकॉय द्वीप जितना छोटा है, उतना ही इसका दृश्य अत्यन्त मनोहर है। नारियल के वृक्षों के घने खेत चारों ओर फैले हुए हैं। यही यहां का धन हैं, जिन्हें यहां के बसने वाले अपनी ही पूंजी समझते हैं। यही यहां की एक मात्र खेती है, जिस पर मिनिकॉय द्वीप के लोग निर्वाह करते हैं। इसके अतिरिक्त यहां और कुछ भी पैदा नहीं होता।
मिनिकॉय द्वीप के निवासी और उनका जनजीवन
मिनिकॉय छोटे से द्वीप में कुल दस ग्यारह हजार लोगों का वास है। जिसमें से हजार से भी ऊपर लोग तो माला-वार के तट की बन्दरगाहों में जहाज़ों पर सामान लादने तथा उतारने के काम के लिए मिनिकॉय द्वीप से बाहर ही रहते हैं। सारे द्वीप में केवल एक ही बस्ती है, जो कि द्वीप के मध्य में स्थित है। नौ दस हजार की जनसंख्या का एक गांव सा ही समझीये। परन्तु हमारे ग्रामों की तरह वहां निर्धनता तथा अशिक्षा नहीं। वहां तो पशु पक्षी ही अशिक्षित कहे जा सकते हैं। गांव के सभी लोग पढ़े लिखें हैं, यहां तक कि स्त्रियां भी किसी से पीछे नहीं, इस क्षेत्र में तो उन्होंने पुरुषों को भी मात कर दिया है।
जितनी प्रतिष्ठा इस प्रदेश में नारियों को प्राप्त है, उतनी पुरुषों को नहीं। स्त्री ही कुटुम्ब की एक मात्र मुखिया होती है। इतना ही नहीं, अपितु पुरुषों पर तो वह राज्य करतीं हैं। आपको यह जान कर आश्चर्य होगा, परन्तु यह सत्य है, कि उत्तरी भारत में स्त्री के समक्ष जो स्थान पुरुष को प्राप्त है, वह स्थान इस द्वीप में पुरुषों के समक्ष नारियों को प्राप्त है। आज के विश्व में यदि पुरुष ने नारी को स्वतन्त्रता के सब से अधिक अधिकार कहीं दिये हैं, तो वह केवल इस मिनीकॉय द्वीप में। यहां सुख-शांति का साम्राज्य है। कोई भी दुखी नहीं दिखाई पड़ता। प्रत्येक व्यक्ति सदा प्रसन्न दिखाई देता है। रुपये के मूल्य से तो यहां के वासी प्राय: अनभिज्ञ ही हैं। रुपये से अधिक मूल्य तो ये लोग इस द्वीप की मिट्टी को देते हैं। जिसमें नारियल के अतिरिक्त और कुछ भी पैदा नहीं होता। यही कारण है, कि इन लोगों के जीवन में अशान्ति के दर्शन नहीं होते।
इन लोगों की विवाह रीतियां भी बड़ी अनोखी हैं। यहां छोटी
आयु में ही विवाह करने का प्रचलन है, तो भी स्त्री को ही अपने लिये योग्य पति चुनने तथा उससे शादी करने का पूरा पूरा अधिकार होता है। हमारी तरह विवाह के पश्चात दुल्हा दुल्हन को अपने साथ अपने घर नहीं लाता, बल्कि वहां उल्टी ही रीति है, कि दुल्हन, दुल्हा को ब्याह कर अपने घर ले आती है, तथा इसके पश्चात अपने पति को अपने घर ही रखती है। लड़के को विवाह के पश्चात माँ बाप का संग छोड़ना पड़॒ता है। परन्तु कन्या माँ बाप का घर विवाह के पश्चात भी नहीं छोड़ती। शादी के पश्चात लड़्के को अपनी पत्नी सहित सुसराल में ही रहना पडता है। और यह घर उससे तभी छूटता है, जबकि उसकी जीवन-लीला ही समाप्त हो जाये।
लड़कियां ही पिता की सम्पत्ति की उत्तराधिकारिणी समझी जाती हैं। लडकों का इस में कोई अधिकार नहीं समझा जाता। उसे यदि अपना अधिकार कहीं जताना ही पड़े, तो वह अपनी पत्नी की सम्पत्ति पर ही अपना अस्थायी अधिकार जता सकता है। हमारी तरह, वहां वंश पुरुष के नाम पर नहीं चलता, बल्कि स्त्री के नाम पर चलता है। विवाह के पश्चात पुरुष को अपनी पत्नी का ही खानदानी नाम स्वीकार करना होता है। तथा उनसे उत्पन्न होने वाली संतान भी उसी नाम से सम्बन्धित समझी जाती है। कन्याओ का वंश तो पैदा होने के पश्चात से ही स्थायी समझा जाता हैं। परन्तु पुत्रों का वंश अस्थायी होता है, जो कि विवाह होने के पश्चात उसकी पत्नी के वंश में परिवर्तित कर दिया जाता है।
विवाह आदि मामलों में भी स्त्रियां ही आगे होती हैं। तथा इन्हीं की चलती है। पुरुष बेचारे की तो वहां कोई पूछ नहीं। यहां तक कि यदि देखा जाये, तो हमें मालूम होगा, कि सामाजिक क्षेत्र में यहां की नारी ने पुरुषों को सदा अपने से पीछे ही रखा है और उन्हें कभी आगे बढ़ने का अवसर ही नहीं दिया परन्तु उनका भी कोई दोष नहीं,क्योंकि पाप, पुण्य के प्रतिबन्धों से इनका भी जीवन रिक्त नहीं है, जिसने यहां के पुरुषों की आत्मा को दृढ़ता से जकड़ रखा है। वे हिल नहीं पाते और यदि इसकी उपेक्षा करने का विचार कभी इनके मानस को झंझोड़े भी, तो पाप पुण्य की मज़बूत कुल्हाड़ियां इनके विचारों को खण्ड खण्ड कर डालती हैं न जाने किस काल से यहां के पुरुष की यह दशा हो गई है और अब तो निरन्तर अभ्यास ने इनके विचारों को इतना दृढ़ बना डाला है, कि प्रचलित रीतियां इनके समक्ष विधि की देन मात्र बन कर रह गई हैं, जिससे इन्हें कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता और जो दिखाई देता है, उसी में ये रत रहते हैं, उसी में इनका विश्वास है।
मिनिकॉय द्वीप में प्रायः स्त्रियां पुरुषों की अपेक्षा कहीं अधिक सुशिक्षित हैं। पुरुषों को अघिक पढ़ने लिखने का चाव है ही नहीं। स्त्रियां पढ़ने लिखने के कार्यों में प्रवीण हैं। अब तो यहां की बस्ती में हमारी, भारतीय सरकार की ओर से एक पाठशाला भी खोल दी गई है, अन्यथा इस से पहले स्त्रियां घर पर ही अपने बच्चों को पढ़ा लिया करती थीं। वैसे यहां के सभी लोग इस्लाम धर्म को मानने वाले हैं, परन्तु फिर भी अन्य देशों की मुसलमान स्त्रियों की तरह यहां की स्त्रियां बिल्कुल भी परदा नहीं करतीं, और यही नहीं, बल्कि भारत की अन्य शिक्षित नारियों तथा पुरुषों से कहीं अधिक चतुर जान पड़ती हैं। प्रजातंत्र को समझ कर अपने वोट को एक अमूल्य वस्तु समझती हैं। इन बातों को जान कर तो यह अनुभव करना कोई बड़ी बात नहीं, कि नागरिकता के अर्थ को यहां की अनोखी नारियों ने भली प्रकार समझ लिया होगा। पिछले चुनावों की रिपोर्टों से यह पता चलता है, कि स्त्रियां पुरुषों की अपेक्षा कहीं अधिक वोट डालती है।
मिनिकॉय द्वीप
मिनिकॉय द्वीप के नागरिक-कार्यो में भी स्त्रियों को ही अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त है। नगर का सारा का सारा प्रबन्ध एक मुख्य-स्त्री के आधीन होता है। अन्य सदस्य स्त्रियां उसकी सहायक होती हैं, जिन्हें चुनाव द्वारा जिता कर उनके पद पर नियत किया जाता है। प्रत्येक सदस्य स्त्री वार्ड की मुखिया होती है। इसका यह अर्थ नहीं, कि वह इतनी अधिक घमण्डी है, कि केवल राजनैतिक मामलों के और किसी कार्य को करना अपना अपमान समझती हों, पर सभी कार्य बेचारे पुरुषों को ही करना पड़ता हो, बल्कि वह कुशल ग्रहणियों के रूप में अपने हर कर्तव्य को सुन्दरता से निभाती हैं। संसार में सब से अधिक बलवान नारी स्वतन्त्रता को प्राप्त करके भी इन्होंने अपने कर्तव्य तथा नारित्व-भावों का त्याग नहीं किया, बल्कि सब अधिकार पाकर भी इन्होंने अपने कर्तव्य से कभी मुख नहीं मोड़ा।
बच्चों का पालन पोषण, पति-सेवा, घर के सभी काम, और नारी लज्जा का इन्होने सदा ही अपने तन मन धन से अनुकरण किया है, तथा आज भी उसमें किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आने दी। बल्कि उसे सच्चे हृदय से निभाती चली आ रही हैं। अवकाश के समय ‘ग्रहस्थी में काम आने वाली वस्तुयें बनाया करती हैं। बहुत सी स्त्रियां अवकाश के समय “बराँगी’ में चली जाती हैं। यह स्त्रियों की एक संस्था है, जहां वे अवकाश का समय बाता सकती हैं। स्त्रियों के अतिरिक्त किसी भी पुरुष को उसमें जाने की मनाही होती है। केवल स्त्रियां ही इसमें आ जा सकती हैं। यहां बैठ कर वह अपनी सभायें जोड़ती है। तथा अपने परिवारिक, सामाजिक, तथा उन्नति के विषयों पर विचार-विमर्श करती हैं। यहां आकर वे केवल बातों में ही लगी नहीं रहती, बल्कि साथ ही साथ काम भी करती रहती हैं, जैसे नारियल के रेशे से रस्सियां बटना आदि। स्त्रियों की देखा देखी पुरुषों ने भी अपनी चौपालें बना रखी है, जहां बैठकर वे भी अनेक विषयों पर विचार करते हैं, तथा साथ साथ कुछ काम भी करते रहते हैं। पुरुषों की इन चौपालों’ को ‘उतरी” कहा जाता है।
जहां तक आपसी झगड़ों का सवाल है, उन्हें दूर करने के लिये
इन्हें सरकारी सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ती, अपितु यहां के लोग उनका निर्णय अपनी चौपालों में होने वाली सभाओ के बीच ही कर लेते है। यही कारण है, कि यहां किसी पुलिस-स्टेशन तथा न्यायालय के दर्शन नहीं होते। सारे द्वीप में घुम जाइये, परन्तु आपको कोई पुलिस-मेंन देखने को न मिलेगा। गाँव के बीच में एक पंचायत-घर अवश्य है, जिस पर सदा तिरंगा-ध्वज लहराया करता हैं। इसके अतिरिक्त अब तो सरकार की ओर से एक हस्पताल, एक स्कूल, तथा एक वायरलेस-स्टेशन भी यहां खोल दिय गये हैं, जो यहां के लोगों के लिये नवयुग की सजगता का सन्देश ले कर आये हैं। इसके अतिरिक्त एक पुलिस चौकी भी भारत की सुरक्षा के उदेश्य से यहां नियत कर दी गई है, जिसमें सीमान्ती पुलिस का एक दस्ता हर समय नियत रहता है। इस पुलिस को यहां की जनता के किसी भी मामले में हाथ डालने का अधिकार नहीं है, और न ही उसकी नियुक्ति इस उदेश्य से ही की गई है, कि वह यहां के लोगों की सामाजिक जिन्दगी में किसी प्रकार की अशान्ति न फैलने दे, अपितु उसका कार्य तो भारत की सुरक्षा तक ही सीमित है। और यह दस्ता भी निश्चित काल के पश्चात सुरक्षा-विभाग की ओर से बदल दिया जाता है।
यही कारण हैं, कि यहां रुपयों के दर्शन बहुत कम होते हैं। सभी आवश्यकता की वस्तुएं, अन्य अवश्यकता की वस्तुओं को देकर बदल ली जाती हैं, यही यहां के व्यापार का पुरातन ढंग आज भी यहां प्रचलित है। और यहां ही नहीं, वल्कि यहां के लोग अन्य बाह्म-प्रदेशों से अपनी वस्तुओं का व्यापार केवल माल के बदले में ही करते हैं। पैसों के बदले व्यापार करने की प्रथा इन लोगों में नहीं है। द्वीप के अन्तिम दक्षिणी-भाग से लगभग आधी मील की दूरी पर एक अस्सी साल पुराना प्रकाश-स्तम्भ है। इस स्तम्भ की ऊँचाई लगभग डेढ़ सौ फुट होगी। अस्सी वर्ष पहले भारत की अंग्रेज़ी सरकार ने ही समुद्री जलयानों के मार्ग स्पष्ट करने के उद्देश्य से इसका निर्माण किया था। अभी तक यह उन्हीं के हाथों में था। भारतीय स्वतन्त्रता के पश्चात इग्लिस्तान की सरकार ने इस पर अपना अधिकार जितलाया, परन्तु अप्रेल सन् 1956 में उसे इस पर से अपना अधिकार उठाना पड़ा। और अब यह हमारे स्वतन्त्र भारत की सम्पत्ति है।
इस द्वीप के लोगों की सब से अच्छी आदत यह है, कि यह सफ़ाई से बड़ा स्नेह रखते हैं, खाते-पीते, उठते-बैठते, चलते-फिरते, यहां तक की चाहे कोई भी स्थान क्यों न हो, ये लोग वहां की सफ़ाई पर विशेष ध्यान देते हैं। तनिक भी गन्दा स्थान यदि इन्हें कहीं दिखाई पड़े, तो ये लोग वहां खड़ा होना भी पसन्द नहीं करते। घर के सभी लोगों का यह कर्तव्य होता है, कि वह अपने साथ साथ अपने बच्चों को भी ऐसी ही शिक्षा दें, जिससे उनके हृदय में गन्दगी के प्रति सदा घृणा बनी रहे, और स्वच्छता के प्रति सदा प्यार बना रहे। यहां के सभी लोग अपने बच्चों को सफाई की यह शिक्षा देना आवश्यक समझते हैं। और उन्हें बार बार इस चीज से सचेत करते रहते हैं, कि किसी पवित्र स्थान को ही नहीं, अपितु खुली नालियों, तथा साधारण मार्गों को भी कभी गन्दा न करो। यदि यह कभी इस बात की उपेक्षा करते उन्हें देखते है, तो वह उन्हें उचित दण्ड भी देते हैं। इस प्रकार बाल्यकाल से ही मिनिकॉय के लोग अपने बच्चों के चरित्र में स्वच्छता के प्रति स्नेह तथा गन्दगी के प्रति घृणा करते रहने के बीज बो देते हैं। जिस से सदा साफ़ रहने का उनका दृढ स्वभाव हो जाता हैं। और यह बात भी यहां प्राय: देखने को मिलती है, कि ये लोग जिस सरोवर से पीने का जल प्राप्त करेंगे, उसे सदा साफ़ रखने की चेष्टा करेंगे। पीने के लिये जल प्राप्त करने के अतिरिक्त किसी भी अन्य आवश्यकता के लिये उसका उपयोग नहीं किया जायगा। वस्त्रादि साफ़ करने, तथा स्नानादि के लिये अलग अलग स्थानों पर तालाब होते हैं, जिन्हें केवल इन्हीं कार्यों के लिये प्रयोग किया जाता हैं।
तैरना, नावों की दौड़ें करना, तथा अपनी प्रकार के अनोखे नृत्यों में भाग लेना, यही मिनिकॉय द्वीप के लोगों के विशेष मनोरंजन हैं, जिनका प्रदर्शन समय समय पर ये लोग किया करते हैं। तथा इस सुन्दरता से इनमें बाज़ियां मारने की चेष्टायें करते हैं, कि बस देखते ही बन पड़ता है। इन तीनों प्रकार की कलाओं में यहां का प्रत्येक आदमी पूर्ण रूप से निपुण होता है। नारियल ही एक प्रकार से यहां की सब से बड़ी फ़सल है, परन्तु उसी के सहारे इन का जीवन-यापन नहीं हो पाता, इसलिए लगभग सभी आदमी मछली पकड़ने का काम भी करते हैं। इसके साथ साथ अपने नारियल के खेतों का मोह भी बनाये रखते हैं। इस द्वीप में चूहे इतने अधिक हैं, जो इनकी फसलों को पनपने नहीं देते। पौधों की जड़ें काट काट कर उन्हें नष्ठ कर देते हैं जिससे बड़ी हानि होती है।परन्तु अब भारतीय सरकार ने चूहों को पूर्ण रूप से मिनिकॉय द्वीप से मिटा डालने के जाल रच दिये हैं। जिससे अब शीघ्र ही यह व्याधि यहां से दूर हो जायेगी।
आज कल मछली उद्योग भी यहाँ बड़े जोर-शोर से चालू है। एक नाव के मछेरे लगभग 500 रुपये की मछलियां एक दिन में पकड़ लेते हैं, आर यदि कभी दाव लग जाये, तो इनकी आमदनी तीन तीन हज़ार रुपये रोज़ भी पड़ जाती है। मछलियों को ख़राब होने से बचाने के लिये, यहां के लोग उन्हें खारे पानी में उबाल कर तथा धूनी देकर धूप में सुखा लेते हैं। और इस प्रकार उन्हें भारत, लंका, मलाया तथा ब्रह्मा आदि देशों को भेजते हैं। मछली उद्योग को इन लोगों के जीवन का मुख्य सहारा कह देना अनुचित नहीं, क्योंकि यही ऐसी वस्तु है, जिसे पाकर इन्हें अपनी आवश्कता की सभी वस्तुओं का प्राप्त करना सुगम हो जाता है।
सर्पाकार नौकायें बनाने में भी यहाँ लोग पूर्ण-रूप से सिद्ध-हस्त है। यहां की हल्की फुल्की नौकायें बडी प्रसिद्ध हैं। जिन पर यहां के लोगों की उच्च कला की छाप, बनावट तथा डिज़ाइन रूप में दिखाई देती है। वैसे तो कार्य चलाने योग्य नावें सभी बना लेते हैं, तथा सभी के पास वह होती भी है, परन्तु कई नाव तो इतनी कला-पूर्ण होती हैं, कि भारत, तथा सीलोन की नौकाओं से किसी भी प्रकार कम नहीं होती। इन्हें बनाने में जितना परिश्रम होता है वह प्रशंसनीय है। वास्तव में इस अज्ञात तथा छोटे से द्वीप की कहानी जितनी अनोखी है, वैसे ही यहां के प्राकृतिक दृश्य भी हैं, जिन्हें नेत्रों से दूर करने को जी नहीं चाहता। मन यही चाहता है, कि यहां पर ही आकर बस जाया जाय।
आज हमारे लिये यह छोटा सा द्वीप कितना अज्ञात है, इस लिये हम उससे अनभिज्ञ हैं। परन्तु आज भारत उन्नति के पथ की ओर बड़ी शीघ्रता से बढ़ता जा रहा है और वह दिन दूर नहीं, जब हम से भूले हुए ये मिनिकॉय द्वीप वासी हमारे अत्यन्त निकट होंगे। हमारी कामना है कि वह इन तक शीघ्र आ पहुंचे ओर यह अज्ञात द्वीप, जिसे आज से पूर्व न कभी सुना, न पढ़ा था, हमारा एक अभंग भाग सिद्ध हो, जिस सेभारत को इस पर गर्व करने का अनुपम अवसर प्राप्त हो सके।
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