रामेश्वर मन्दिर माधौगढ़ कस्बे के रामस्वरूप लाला के बाग में स्थित है। माधौगढ़ उत्तर प्रदेश केजालौन जिले का एक प्रसिद्ध नगर है। पहले यह स्थान नजर बाग के नाम से जाना जाता था जो कि माधौगढ़ के राजा माधौसिंह की सम्पत्ति था। रामेश्वर मंदिर माधौगढ़ में बहुत प्राचीन काल से है। लोगों में मंदिर के प्रति गहरी श्रृद्धा है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते है।
माधौगढ़ के रामेश्वर मंदिर का निर्माण राजा माधौसिंह द्वारा लगभग 700-800 वर्ष पूर्व अर्थात् 12वीं 13वीं शताब्दी में कराया गया था। इसी मन्दिर के उत्तर पश्चिम में एक तालाब भी बनवाया गया था जो कि 80×80 फुट की वर्गाकार आकृति में बना हुआ था। माधौगढ़ के इस मन्दिर के साथ लगभग एक एकड़ भूमि संलग्न है जिसके द्वारा इस मन्दिर का रखरखाव व पूजन वंदन नियमित रूप से सम्पन्न होता है। यह मन्दिर जनमानस की आस्थाओं का प्रतीक है एवं इसी कारण जन मानस को समर्पित भी है।
इस मन्दिर के पास खुदाई में ईसा से 1800 वर्ष पूर्व की तमाम मूर्तियाँ जिनमें बुद्ध एवं देवी देवताओं की विशिष्ट जैली में अप्राप्त मूर्तियाँ निकली बताई जाती हैं। औरंगजेब के शासन काल में उसके आदेश अनुसार इन मूर्तियों को तुड़वा दिया गया।
रामेश्वर मंदिर माधौगढ़
इस स्थान की खुदाई के दौरान तालाब के चारों ओर पक्की दीवार मिली है जो आज भी दृष्टव्य है। इसी तालाब के चारों ओर काफी गहराई की पक्की सुरंगें मिली हैं जो कि कहाँ को जाती हैं यह ज्ञात नहीं हो सका है। इसकी पूर्ण खुदाई कराये जाने से प्राचीन सभ्यता के अवशेष एवं नगर स्थापत्य के चिन्ह प्राप्त हो सकते हैं। माधौगढ़ के रामेश्वर मन्दिर में स्थापित शिवलिंग प्रसिद्ध तीर्थ रामेश्वरम् (तमिलनाडु) से मित्रता जुलता है जो कि भारत में अन्यत्र कही नहीं मिलता। इस स्थल पर 1970 तक रामेश्वरम धाम के नाम से एक बड़ा भारी मेला लगता रहा है।
रामेश्वर मंदिर माधौगढ़ का स्थापत्य
माधौगढ़ रामेश्वर मन्दिर का स्थापत्य वेसर शैली का रहा होगा। आज जिस स्थान पर यह शिवलिंग प्रतिष्ठित है वह पृथ्वी से लगभग 10 फुट ऊँचा स्थान है तथा उस पर कोई छाया इत्यादि नहीं है। यहां स्थापित रामेश्वर शिवलिंग लाल पत्थर द्वारा निर्मित है जो कि आधार से 17इंच ऊँचा एवं 15 इंच चौड़ा है। यह शिवलिंग एक मुखी है जिसमें लिंग 8 इंच चौड़ा है तथा उसके बाद मुखाकृति बनी हुई है। शिव मुख के ऊपर शेषनाग की आकृति अंकित है। मुख के कर्ण लंबे लटकनदार कुंडलो से युक्त है तथा मुख के ऊपरजटा मुकुट सुशोभित है। शिवलिंग पर ऊर्ध्वकार धारियाँ दिखलायीं पड़ती है।
ऐतिहासिक तथ्य
यह बात असत्य कि इस प्रकार का शिवलिंग केवल माधौगढ़ तीर्थ धाम रामेश्वर में है इसी प्रकार का एक मुखी शिवलिंग कन्नौज उत्तर प्रदेश के राम लक्ष्मण मंदिर में भी स्थापित है जिसका काल 9वीं शताब्दी है। इस स्थान से प्राचीन टैराकोटा की एक ईट प्राप्त हुई है जिस पर मौर्य ब्राह्मी लिपि का “प” अक्षर बना हुआ है परन्तु इससे यह बात प्रमाणित नहीं होती है कि यह ईट मौर्यकाल का प्रतिनिधित्व करती है। इस ईंट का आकार 9×9 इंच है तथा मोटाई 3 इंच है। इस आकार की ईंटों का प्रचलन नवीं शताब्दी में हुआ करता था। मौर्य कालीन ईंटों का आकार एवं मोटाई इससे बिल्कुल भिन्न था।
माधौगढ़ रामेश्वर मन्दिर के शिवलिंग एवं वहाँ से प्राप्त उपर्युक्त ईट इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि इनका काल नवीं शताब्दी है। अस्तु यह कहना उचित ही होगा कि इस मंदिर का निर्माण नवीं शताब्दी में हुआ होगा। इस मन्दिर के आस पास की खुदाई से जो अन्य मूर्तियाँ निकली हैं उनका अवलोकन करने से भी यह स्पष्ट होता है कि इनका कार्यकाल नवीं शताब्दी के लगभग होगा। यहाँ से प्राप्त द्विभुजी गणेश की प्रतिमा जो कि इस समय बुन्देलखण्ड संग्रहालय उरई में है, नवीं दसवीं शताब्दी का संकेत देती है।