इस पृथ्वी पर समय-समय पर अनेक स्मृति चिन्ह बने हैं। उनमें से
कितने ही तो काल के निष्ठर थपेडों को सहते-सहते अपना निशान तक मिटा गये है और उनमें से कितने ही आज भी मौजूद है। पर जो मिट गये उनका नाम नही मिटा है, उनकी स्मृतियां आज भी इतिहास के पृष्ठों में अमिट और सुरक्षित हैं। पिछले लेख में हमने संसार के एक अदभूत समाधि मंदिर (मकबरे) का उल्लेख किया है। जिस प्रकार शहंशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद मेंताजमहल जिसे अद्वितीय समाधि (मकबरा) का निर्माण कराया था, इस लेख में हम उसी प्रकार की एक अन्य विश्व प्रसिद्ध समाधि का उल्लेख करने जा रहे है। जिसे माउसोलस का मकबरा के नाम से जाना जाता है।
माउसोलस का मकबरा क्यों और किसने बनवाया था
बहुत ही प्राचीन काल की बात है, केरिया नामक प्रदेश का राजा
माउसोलस नाम का एक व्यक्ति था। इस प्रदेश की राजधानी हेलिकोर्नसस नगर में थी। बादशाह माउसोलस की पत्नी का नाम आर्टिमिसिया था। राजा और रानी में अदभुत प्रेम था और वे एक दूसरे को अपने प्राणों से भी अधिक चाहते थे। कहते हैं कि ईसा के जन्म से 363 वर्ष पूर्व बादशाह माउसोलस की मृत्यु हो गई। रानी आर्टिमिसिया ने अपने पति की याद में एक आश्चर्यजनक समाधि मन्दिर (मकबरा) बनवाया। यही मकबरा संसार के महान आश्चर्यो में से एक है। अपने दिवंगत पति के प्रति अपना अभूतपूर्व प्यार प्रदर्शित करने के लिये बेगम ने जो मकबरा बनवाया संसार में उसके टक्कर की आज कोई भी इमारत नहीं है और संभवत” आने वाले युगों में भी कोई इमारत बन पायेगी कि नहीं इस बारे मे भी नहीं कहा जा है।
शाहजहां ने अपनी बेगम की याद मे अपने अद्भुत प्यार के प्रतीक
स्वरूप ताजमहल जैसी विश्व प्रसिद्ध इमारत खड़ी करवाई और आर्टिमिसिया ने अपने प्यारे पति की याद मे अपना असाधारण प्यार प्रकट करते हुए एक समाधि मन्दिर का निर्माण करवाया जो संसार के आश्चर्यो मे से एक है। माउसोलस के सम्बन्ध में कहते है कि वह बड़ा ही वीर तथा पराक्रमी बादशाह था। वह भी इमारतों का बडा शौकीन था। जब वह जीवित था तभी उसने अपनी राजधानी हेलिकोर्नसस में एक बड़ा ही आलीशान महल बनवाया था। पुस्तकों मे उस महल के सम्बन्ध मे पढ़ने से पता चलता है कि वह कितना अद्भुत था। महल सुन्दर मजबूत ईंटों का बना हुआ था और उसका परकोटा सफेद संगमरमर पत्थर का बना हुआ था।
बादशाह माउसोलस की राजधानी हेलिकोर्नसस के तत्कालीन सौन्दर्य का वर्णन भी पठनीय है । पौराणिक काल की पुस्तकों में इस नगर के सौन्दर्य का बडा ही मोहक वर्णन पढ़ने को मिलता है। कहते है कि विश्व प्रसिद्ध माउसोलस। (माउसोलस का मकबरा) और बादशाह का बनवाया हुआ महल इस नगर की दो अद्भुत वस्तुएं थी। इसमे और भी अनेक मन्दिर और सुन्दर भवन थे। समुद्र के तट पर स्थित हेलिकोर्नसस नगर हर प्रकार से समृद्ध था। यहां की प्राकृतिक शोभा भी बड़ी ही मोहक थी। नगर मे मार्स (बुध), वेनस (बासन्ती देवी) और मरक्यूरी (वरूण) आदि देवताओं के कई सुन्दर मन्दिर बने हुए थे। इससे पता चलता है कि उस जमाने में केरिया प्रदेश के निवासियों में देवताओं की पूजा का प्रचलन काफी जोरों पर था। आज भी कई मन्दिरों के भग्नावशेष एवं नगर के विशाल महलों के खण्डहर वहां वर्तमान है। खण्डहरों को देखने से ही उस नगर में तत्कालीन समय में बने आलीशान महलों का अन्दाजा लग जाता है।
माउसोलस का मकबरासंसार के जिन प्रसिद्ध प्राचीन काल के अन्वेषकों ने इस नगर को
और इसकी इमारतों को अपनी आंखों देखा था, उनका कहना है कि भवन कला में हेलिकोर्नसस के मुकाबले में शायद ही अन्य कोर्ड नगर हो। यहां एक से एक सुन्दर निवास के लिये महल, देवताओं के लिए मन्दिर आदि भरे पड़े है। उन सभी सबों में माउसोलस का मकबरा तो विश्व में अद्वितीय ही है। कहते है कि रानी आर्टिमिसिया ने अपने प्यारे पति की याद में इस समाधि मंदिर को बनाने में इतना धन खर्च किया था कि, जिसकी कोई सीमा निर्धारित नही की जा सकती। एक बार एक विद्धान दार्शनिक ने इस समाधि मन्दिर को देखा था और आश्चर्य में आकर कहा था, “ओह ‘ केवल पत्थरों को मोल लेने में इतना धन उडा दिया गया।
माउसोलस का मकबरा और उसकी विशेषताएं
यह समाधि मन्दिर समतल भूमि पर बनवाया गया था। हर तरफ
से मन्दिर की लम्बाई 75 हाथ और चारों तरफ की गई चारदीवारी की ऊँचाई 62 हाथ की थी। इतिहासकारो का कहना है कि उस जमाने के दो प्रसिद्ध कारीगर माटिरम और पाइथियस नामक व्यक्तियो को इस मकबरे के बनाने का कार्य सौंपा गया था। इन कारीगरों ने इस मकबरे को बनाने में जिस कारीगरी का नमूना संसार के सामने प्रस्तुत किया वह वास्तव मे अद्वितीय है। आज भी संसार के बड़े से बड़े कला मर्मज्ञ उन दो महान कारीगरों की कारीगरी का नमूना देखते ही घंटो आश्चर्य के सागर में गोते लगाते रहते हैं। अच्छे से अच्छे कारीगर और विद्वान इंजीनियर तो यह सोच भी नहीं पाते कि उस जमाने में जब आदमी को अनेक कार्यों के लिये अपनी शक्ति पर निर्भर रहना पड़ता था, जब न तो विद्या का ही कोई सहारा था और न आज जैसी बडी-बडी मशीनें आदि ही थी, ऐसी अवस्था मे भी ऐसी विशाल इमारतों का निर्माण किस प्रकार हुआ यह मामूली कल्पना का विषय नहीं।
माउसोलस के उस समाधि मन्दिर में 36 ऊचे-ऊंचे स्तम्भ थे। प्रत्येक स्तम्भ की ऊँचाई लगभग चालीस हाथ की थी। पिरामिडों की तरह ही ये स्तम्भ नीचे की तरफ चौडे़ थे और ऊपर की तरफ पतले होते गये थे। इन स्तम्भों के बीच में जो खाली जगह थी उनमें तरह-तरह की मूर्तियों बनाई गई थीं। उन मूर्तियों की बनावट संगमरमर पत्थर की थी और वे एक से एक सुन्दर थीं। उनमें कई मूर्तियों तो काफी ऊंची थीं। उस जमाने के चार प्रसिद्ध कारीगरों ने कई वर्षों तक लगातार परिश्रम करके इन मूर्तियों को तैयार किया था। इन्हीं मूर्तियों मे वीनस देवी की भी एक मूर्ति थी जो अत्यन्त ही सुन्दर तथा भव्य थी। विद्वानों का कहना है कि इफीसासनगर के प्रसिद्ध शिल्पी स्कोप्स ने वीनस की कथित मूर्ति को बनाया था। जब सर्वप्रथम रोम के निवासियों ने वीनस की मूर्ति को देखा तो वे दंग रह गये। उन्होंने इस मूर्ति की बडी ही प्रशंसा की। आज भी स्कोप्स को बनाई हुई वीनस की मूर्ति ब्रिटिश म्यूजियम की शोभा बढ़ा रही है। शिल्प कला के मर्मज्ञ एवं बड़े-बड़े शिल्पी जब कभी यूरोपीय देशो मे जाते हैं तो वीनस की उस मूर्ति को जरूर देखते हैं और हृदय खोलकर उसकी प्रशंसा करते हैं।
माउसोलस के जिस मकबरे का हम उल्लेख कर रहे हैं,उसके चारो तरफ लम्बा चौड़ा बरामदा बना हुआ था और बरामदे के ऊपर मुंडैर पर एक घुड़सवार की मूर्ति बनी हुई थी जो दखने में भव्य मालूम पड़ती थी उस मकबरे को कारीगरों ने तरह-तरह की सुन्दर मूर्तियों से खूब सजाया था। मकबरे मे प्रवेश करने के लिये कई द्वार बने हुए थे। सभी द्वार काफी मजबूत और कारीगरी के अद्वितीय नमूने थे। द्वारों के बुर्जो की बनावट भी पिरामिडों की तरह ही थी। इन पर भी कई सुन्दर भव्य मूर्तियां सजाई गई थी। इस बरामदे के सामने कई बडे-बडे सुहावने वृक्ष लगे हुए थे। अलग से देखने पर वह समाधि मन्दिर ऐसा लगता था मानो जंगलो के बीच में बना हुआ हो। समाधि मन्दिर के तीसरे हिस्से की बनावट एक गोल ऊंचे गुंबद की तरह थी। ऊपरी हिस्से मे संगमरमर पत्थर की बनी चार घोडों वाली एक गाडी बनाई गई थी। समाधि मन्दिर का यह हिस्सा एक ऊंचे चबूतरे पर बनाया
गया था। उस चबूतरे पर चढ़ने के लिये पत्थर की सुन्दर सीढ़ियां बनाई गई थीं। मन्दिर का यह भाग सारा का सारा संगमरमर पत्थर का ही बनाया गया था। उसकी ऊंचाई लगभग 95 हाथ की थी।
इतिहास में इस बात का उल्लेख नहीं मिलता है कि की माउसोलस बादशाह की रानीआर्टिमिसिया ने इस समाधि मन्दिर को अपने जीवन काल में ही बनवा दिया था। माउसोलस की मृत्यु होने के शीघ्र पश्चात् ही बेगम ने प्रसिद्ध कारीगरों को बुलाकर मकबरा तैयार करने के लिये कहा। काम शुरू हो गया। पर दुर्भग्यवश आर्टिमिसिया अपने पति के समाधि मन्दिर को पूर्ण होते न देख सकी। माउसोलस की मृत्यु के दो वर्षो बाद ही उसकी भी मृत्यु हो गई। इस सम्बन्ध में भिक्यनाम के एक प्रसिद्ध विद्वान ने लिखा है कि “रानी की मृत्यु होने के बाद कारीगरो ने स्वयं ही अधूरे काम को पूरा किया। अपनी अद्भुत कारीगरी का नमूना स्थायी रखने के लिये उन्होंने समाधि मंदिर को पूर्ण किया था। सचमुच ही कारीगरों की अद्भुत कारीगरी का वह नमूना सैकड़ों वर्षो बाद तक वैसे ही खड़ा रहा और देखने वालों के लिये आश्चर्य और विस्मय का विषय बना रहा।
पर संभवतः प्रकृति देवी को यह स्वीकार नहीं था कि उसकी कृतियों को चुनौती देती हुई धरती की गोद में मानव की अद्भुत कृतियां भी विद्यमान रहे। इसीलिए प्रकृति समय-समय पर उन पर अपने वज्र प्रहार करती रहती है। आज हेलिकार्नेसस के वे अद्भुत महल, विश्व प्रसिद्ध समाधि मंदिर माउसोलस का मकबरा और प्रसिद्ध कारीगरों की अद्भुत कारीगरी के नमूने, सब मिट गये हैं। केवल उनकी स्मृतियां ही शेष है। बेगम ने जो समाधि मन्दिर अपने प्यारे पति की याद में बनवाया था वह आज नहीं हैं पर उसका आंखों देखा वर्णन हमें आज भी पढ़ने को मिलता है और हम उसको पढ़ आश्चर्य में चकित रह जाते हैं। जब वह समाधि मन्दिर खडा था, तब भी उसे देखकर देखने वाले दातों तले अंगुली दबाते थे, और आज भी उसकी महानता का रोचक तथा सजीव वर्णन पढ़कर लोग आश्चर्य मे पड़े बिना नहीं रहते। जिस प्रकार समय के चक्रकाल में अनेकों स्मृति चिन्ह मिट गये उसी प्रकार माउसोलस का मकबरा भी मिट गया।
आर्टिमिसिया के बनवाये इस मकबरे को सर्वप्रथम रोम के
निवासियों ने देखा था। उन दिनों रोम और ग्रीक आदि देशों में अनेक भव्यइमारतें खडी थी। पर उस माउसोलस के मुकाबले में तो दूर रहा, कोई भी इमारत सौन्दर्य और विशालता में उसके पास में नही आ सकती थी। उसे देखकर बडे-बडे रोम के कारीगर आश्चर्य से देखते ही रह जाते थे।
अब उस स्थान पर माउसोलस के मकबरे उस समाधि मन्दिर का कोई चिन्ह भी वर्तमान में नहीं है। परन्तु उस मंदिर के कुछ भग्नावशेष आज भी ब्रिटेन के म्यूजियम में विद्यमान हैं। दूर-दूर के इंजीनियर और बड़े-बड़े कारीगर उन्हें देखते हैं और उनकी बनावट को देखकर आश्चर्य प्रकट करते है। बेगम आर्टिमिसिया ने अपने पति की यादगार में माउसोलस मकबरे जैसे महान आश्चर्यजनक समाधि मंदिर का निर्माण तो कराया ही, अपने पति की यादगार में वह एक और भी महान कार्य कर गई, कहते हैं कि उसने अपने तत्कालीन कवियों को बुलाया और अपने पति के सद्गुणों की प्रशंसा में कविता रचने की उनसे प्रार्थना की। उसने यह घोषणा की थी कि जिसकी रचना सर्वोत्तम होगी उसे वह बहुत ही मूल्यवान पुरस्कार देगी। इस पर अनेक कवियों ने माउसोलस की प्रशंसा में कई पुस्तकों की रचना की, उसमें प्रसिद्ध अलंकारिक कवि मफ्रेटियस की रचना आर्टिमिसिया को बहुत पसन्द आई और उसने मफ्रेटियस को बहुत से बहुमूल्य पुरस्कार दिये।
प्राचीनकाल में विश्व के आश्चर्यों में और भी कई समाधि मन्दिरों
का जिक्र पढ़ने को मिलता है। उनमे कई तो आज इतिहास की बातें बनकर ही रह गये हैं, और कई अभी भी विद्यमान हैं। कहते हैं कि रोम में काम्पस मासियस नामक ऑगस्टस मेजर का बनवाया हुआ एक समाधि मन्दिर था। इसकी बनावट का हाल पढ़कर हम सहज ही इसकी महानता की कल्पना कर सकते हैं। वास्तव में यह समाधि मन्दिर भी एक आश्चर्यजनक वस्तु थी।
कहते हैं कि इसकी बनावट एक दम गोल थी और जैसे-जैसे वह ऊंचा होता गया था उसकी गोलाई कम होती गई थी इसमें तीन बरामदे थे उन पर एक पर एक इस प्रकार से चार मकान बने हुए ये सबसे ऊपर वाले मकान में सम्राट की एक मूर्ति थी जो कांसे नामक धातु की बनी हुई थी। इस समाधि मन्दिर की ऊँचाई चार सौ फुट की थी। आज भी इस मन्दिर के अवशेष देखने को मिलते हैं। इन अवशेषों को देखकर ही उसकी विचित्र बनावट का पता चल जाता है।
इसी प्रकार कहते हैं कि सिकन्दर महान ने अपने मित्र हेफिसन का समाधि मंदिर बेबीलोन नगर में बनवाया था। वह मंदिर भी अद्भुत तथा बड़ा विशाल था। आज भी हेफिसन का समाधि मंदिर
अपने भग्नावशेषों में खड़ा है। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि विश्व प्रसिद्ध माउसोलस का मकबरे की कुछ सीमा तक बराबरी यही मंदिर कर सकता है। इस मंदिर का प्रथम खंड दूसरे खंड से बड़ा है। कितने ही खंड इस मंदिर में बने हुए हैं। सबसे नीचे वाला खंड स्वर्ण अंचित 240 जहाज़ों के अग्रभाग से सुशोभित है। दूसरे खण्ड में ग्रीस के अनेक प्रकार के पशु-पक्षियों की मूर्तियां बनी हुई हैं। यह मन्दिर बडा ही भव्य है और इसकी सजावट बड़ी सुन्दर है। कहते है कि जब कोई सबसे ऊपर वाले खण्ड में गाता है तो ऐसा लगता है कि वहां की सभी मूर्तिया गा रही हैं। इसका कारण यह है कि जो राक्षसों की मूर्तियों बनी हुई हैं, वे खोखली हैं और गाने वाले की आवाज उन मूर्तियों से टकराकर प्रतिध्वनित होती रहती है।
एक और भी प्रसिद्ध समाधि मन्दिर का उल्लेख यहां कर देना उचित रहेगा। कहते हैं कि फारस के प्रसिद्ध बादशाह डोरायस ने अपने लिए एक समाधि मन्दिर बनवाया था। यह मन्दिर एक पहाड को काट कर बनाया गया था। आज भी डोरायस का यह समाधि मन्दिर मौजूद है और दूर-दूर के लोग उसे देखने के लिए जाते हैं। यह मन्दिर विश्व की आश्चर्यजनक इमारतों में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है। विद्वानों का कहना है कि आज से लगभग 2350 वर्ष पूर्व इस समाधि मन्दिर का निर्माण हुआ था। बादशाह डोरायस ने अपने जीवन काल में ही इस मकबरे को बनवाया था। 2350 वर्षो में अब तक इस इमारत को न जाने कितनी ही विध्न बाधाओं के बीच से गुजरना पड़ा होगा पर आज भी वह समाधि मंदिर ज्यों की त्यो खड़ा है। इस समाधि मन्दिर के सामने एक लम्बा चौडा बरामदा भी है। इसमें चार स्तम्भ हैं और प्रत्येक स्तम्भ की ऊचाई लगभग बीस फुट की है। मध्य में भीतर प्रवेश करने के लिये एक द्वार है। कहते हैं कि यह द्वार बाद में बनवाया गया था। पहले सामने से कोई द्वार नही था। बरामदे के ऊपर नाव की शक्ल की एक मूर्ति बनी हुई है, अगल मनुष्यो की कई मूर्तियां बनी हुई है बरामदे केदोनो कोने पर ग्रिफिन (पखदार सिह) की दो मूर्तियां बनी हुई है। बरामदे के मध्य भाग में नींव के नीचे बादशाह डोरायस की आकर्षक मूर्ति लगी हुई है।पहले समाधि मन्दिर में प्रवेश करने के लिये गुप्त मार्ग बने हुए थे। आज भी बहुत थोड़े लोगों को उन मार्गों का पता है। लोगों का कहना है कि किसी सुरग के बीच होकर वह मार्ग समाधि मन्दिर तक गया हुआ है।
ऊपर हमने जितने समाधि मंदिरों का उल्लेख किया है, उनें सब
में हेलिकार्नेसिस का माउसोलस का मकबरा ही विश्व के ‘सात आश्चर्यो में गिना जाता है। वास्तव में अन्य कोई भी इमारत न तो उस समय उसके टक्कर की थी और संभवतः आने वाले समय में भी न बन पाये। जिन्होंने भी उसे देखा, सिर्फ यही कहा है कि संसार में इसकी तुलना में कोई इमारत नहीं है।
माउसोलस के समाधि मन्दिर पर आश्चर्य प्रकट करते हुए एक रोमन पुरातत्ववेत्ता ने टिप्पणी की थी कि, “इस समाधि मन्दिर को बनाने में जितना धन खर्च किया गया, उससे एक नया हेलिकारनेसिस नगर बसाया जा सकता था। केवल पत्थरो को एकत्र करने में जितना धन लगाया गया होगा, उससे तो किसी धातु का महल तैयार हो सकता था।
आज वह माउसोलस का मकबरा या समाधि मन्दिर नहीं है। उसके अवशेष ब्रिटिश म्यूजियम में आज भी सुरक्षित हैं। काल के करारे थपेडे किसी को नहीं छोडते। जैसे बड़े-बड़े पराक्रमी काल के आगमन पर संसार से अपना नाता तोड़ लेते हैं, वैसे ही उनकी महान कृतियां भी मिट जाती हैं। प्रकृति का यह शाश्वत नियम है कि संसार नश्वर है। यहां पर किसी भी पदार्थ का जैसा का जैसा बना रहना असंभव है। जिसका निर्माण होगा, उसका विनाश भी अवश्यभावी है। संभव है एक दिन यह संसार ही न रहे, जब सृष्टि का विधान ही निर्माण और विनाश के सृजनो पर आधारित है, तो फिर किसका क्या ठिकाना।
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