माइक्रोस्कोप का आविष्कार करने का सबसे पहले प्रयास विश्वविख्यात वैज्ञानिकगैलीलियो ने किया था। लेकिन वे सफल न हो सके। सफल माइक्रोस्कोप सन् 1590 में जैचेरियस जेनसन (Zacharias Janssen) नामक व्यक्ति ने बनाया था।
बहुत से लोग डच वैज्ञानिकएंटोनी वॉन ल्यूवेनहॉक (Antonie van Leeuwenhoek) को माइक्रोस्कोप (Microscope)
(सूक्ष्मदर्शी) का आविष्कारक मानते हैं। परन्तु वास्तव में उन्होंने माइक्रोस्कोप का आविष्कार नहीं किया। बल्कि अनेक प्रकार के माइक्रोस्कोप बनाकर अन्य परिक्षणों में प्रयुक्त किए थे। हम यह अवश्य कह सकते हैं कि उनके विकास में उन्होने महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
माइक्रोस्कोप का आविष्कार किसने किया था
जिस समय महान साइंटिस्ट गैलिलियो ने टेलिस्कोप का आविष्कार किया उससे प्रभावित होकरइटली के एक भौतिकी शास्त्री मारसैलो मालपिग्ही (Marcello Malpighi) ने माइक्रोस्कोप की कल्पना की थी। उसने सोचा जब लैंसो के संयोजन से दूर की वस्तु को बड़ा करके देखा जा सकता है, तो क्यों न इनके ही संयोजन से सूक्ष्म वस्तुओं को भी बडा़ करके देखा जा सकता है। अतः उन्होंने लैंसो के संयोजन से एक माइक्रोस्कोप बनाया। इस माइक्रोस्कोप को उनके एक साथी कैप्लर ने विकसित रूप दिया।
माइक्रोस्कोप का आविष्कारल्यूवेनहॉक ने ही सबसे पहले माइक्रोस्कोप से सूक्ष्म जीवों और पौधों को देखने में सफलता प्राप्त की है। साधारण माइक्रोस्कोप में एक उत्तल लैंस होता हैं। मिश्रित या कम्पाउड माइक्रोस्कोप में कम से कम दो या चार लैंसो का समायोजन होता है। इन लैंसो की फोक्स लैंथ और बेधन-सामर्थ्य भी अलग-अलग होती है। इनमें से जिस बेधन-सामर्थ्य वाले लैंस की जरूरत हाती है, उसे आंखो के सामने कर लिया जाता है।
सामान्य माइक्रोस्कोप में दो लैंसो की व्यवस्था होती है जिसमें से एक को आब्जेक्टिव और दूसरे के आइपीस कहते है। आइपीस वाला भाग आंख के पास होता है। जिस वस्तु को देखना होता है, उसे कांच की दो पारदर्शक पट्टियों के मध्य रखकर आब्जेक्टिव
वाले सिरे की ओर रखा जाता है। कांच की पट्टियों को स्लाइड कहते है। बढिया किस्म के माइक्रोस्कोप में कंडेंसर की भी व्यवस्था होती है। यह कंडेंसर परीक्षण की जा रही वस्तु के ऊपर लाइट को कैद्रित (Focus) कर देता है।
आरम्भ के माइक्रोस्कोपों में एक समस्या थी। लैंसो में से जब वस्तु को देखा जाता था तो उसके किनारों पर रंग भी दिखायी पडते थे, अर्थात् इन सूक्ष्मदर्शियों में रंग दोष था। वस्तु के किनारे पर रंगो की आभा आ जान से वस्तु का परीक्षण ठीक से नही हो पाता था। सन 1930 में जोसेफ जेक्सन लिस्टर नामक एक अंग्रेंज ने जो आंखों का विशेषज्ञ था, एक ऐसे माइक्रोस्कोप का निर्माण किया, जिसमे वस्तु पर रंगो की आभा नहीं आती थी। इसे एक्रोमेटिक माइक्रोस्कोप कहते है।
भिन्न-भिन्न वस्तुओं अथवा जीवाणुओं को देखने या परीक्षण करने के लिए अलग-अलग किस्म के माइक्रोस्कोपो का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए रिसर्च माइक्रोस्कोप, रसायन माइक्रोस्कोप, प्रोजेक्टिंग माइक्रोस्कोप आदि। इनमे भी अलग अलग आवेधन क्षमता के माइक्रोस्कोप होते हैं।
दृश्य-प्रकाश (Visible light) माइक्रोस्कोप की अपेक्षा पैरा बैंगनी प्रकाश की व्यवस्था वाले माइक्रोस्कोप अधिक शक्तिशाली होते है। इनसे वस्तु को 5000 गूना बडा करके देखा जा सकता है।
सन् 1923 में वान वारिस और रस्को नाम के वैज्ञानिको ने इलेक्टॉन माइक्रोस्कोप का आविष्कार किया। इसमें प्रकाश-पुंज (Light Beam) की जगह इलेक्टॉन-पुंज का उपयोग किया जाता है। इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप में कांच के लैंसो की जरूरत नहीं होती, बल्कि इनमें विद्युत चुम्बकीय लैंस होते है, जो तार की कुंडलियों में विद्युत-धारा गुजारकर निर्मित किए जाते हैं। इलेक्टॉन माइक्रास्कोप की आवेधन क्षमता 100000 तक होती है अर्थात इनमें वस्तु एक लाख गुना बडी दिखाई देती है।
इस प्रकार माइक्रोस्कोप का आविष्कार हुआ, माइक्रोस्कोप का आविष्कार होने के बाद रसायन, चिकित्सा आदि कई क्षेत्रों में क्रांति आ गई। नई नई बिमारियों और जीवाणुओं को पहचानने में मदद मिलने लगी।
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