चुम्बक को विद्युत में परिणत करना है। यह संक्षिप्त सा सूत्र माइकल फैराडे ने अपनी नोटबुक में 1822 में दर्ज किया था। सूत्र क्या था तार की सी भाषा में खुद को एक आदेश-सा था, विज्ञान की एक असमहित समस्या की रूपरेखा। कुछ देर के लिए इसे बरतरफ ही कर देना उचित था, क्योंकि कितने ही और क्रियात्मक प्रश्न थे जिनसे वह उन दिनों निरन्तर जूझ रहा था। विश्व भर में कितने ही वैज्ञानिक और भी थे जो इस विशुद्ध समीक्षात्मक प्रश्न को सुलझाने में लगे हुए थे। परीक्षणशील वैज्ञानिकों में माइकल फैराडे का स्थान कई कारणों से मूर्धन्य है। किन्तु उसके जीवन की प्रमुख खोज शायद दुनिया के सामने यह दिखा देना ही था कि चुम्बक को विद्युत में परिणत किस प्रकार किया जा सकता है। 1831 में जब उसे कुछ फुरसत मिली, केवल दस ही दिन के अध्यवसाय द्वारा समस्या का ऐतिहासिक उत्तर उसने पा लिया। अपने इस लेख में हम इसी महान वैज्ञानिक का उल्लेख करेंगे और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से जानेंगे:—
माइकल फैराडे का जन्म कब हुआ था? माइकल फैराडे के नियम क्या है? माइकल फैराडे का आविष्कार क्या है? फैराडे का प्रथम और द्वितीय नियम क्या है? फैराडे के कितने नियम है? फैराडे के नियम किस राशि के संरक्षण पर आधारित है? फैराडे का विद्युत अपघटन का नियम क्या है?
माइकल फैराडे का जीवन परिचय
माइकल फैराडे का जन्मलंदन के एक कस्बे में 22 सितम्बर, 1791 को हुआ था। पिता एक लुहार था, और बड़ा ही गरीब। स्कूलों में जाकर पढ़ना उसके लिए मुश्किल था। अक्षर-ज्ञान, लेखन-ज्ञान, और गणित-ज्ञान मामूली-सा घर पर जो सीख लिया वही बहुत था। अभी वह तेरहवां साल भी मुश्किल से पार कर पाया था कि जो थोड़ा-बहुत वह स्कूल आता-जाता था वह भी बन्द हो गया। बेबसी में एक किताबें बेचने-वाले ने उसे घर-घर जाकर अखबार बांटने की नौकरी दे दी। एक पूरा साल यही कुछ चलता रहा और तब कहीं आखिर दुकानदार ने उसे अपने ही यहां जिल्दसाजी सिखानी शुरू कर दी।
यही उसकी दुनिया कुछ बदलनी शुरू हो गई। उन दिनो के दस्तूर के मुताबिक माइकल भी अपने मालिक के पास ही रहने लगा। फालतू वक्त मे उसने कुछ किताबे पढ डाली। मालिक भी फराखदिल था, और समभदार था। उसने माइकल के इस आत्म शिक्षण को प्रोत्साहित ही किया। पीछे चलकर फैराडे ने लिखा था कि “दो पुस्तकें थी जिन्होंने मेरी बहुत ही सहायता की, एक तो ‘एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका’ जिससे विद्युत के सम्बन्ध में मुझे
प्रारम्भिक शिक्षा मिली, और दूसरी मिसेज जेन मार्सेट की “रसायन के विषय में कुछ संवाद’ जिसने कैमिस्ट्री में मेरी नीव रखी।” सचमुच इन दोनो पुस्तकों से फैराडे की आधारशिला बहुत ही मजबूत बनी होगी, क्योंकि सारी आयु वह रसायन तथा विद्युत में ही अनुसन्धान रत रहा। 1810 में प्राकृतिक दर्शन के विषय में एक छोटी-सी व्याख्यान माला उसने सुनी। इन लेक्चरों के उसने पूरे-पूरे नोट उतारे और जिल्दसाजी के अपने हुनर को इस्तेमाल मे लाते हुए, उन्हे भिन्न-भिन्न खंडों में बांधकर रख लिया। जो कुछ सुना व देखा उसे शब्दों मे नोट भी कर लेने की योग्यता फैराडे मे कुछ असाधारण ही थी जिसके प्रमाण कुछ और भी है।
21 साल तक पहुंचते-पहुंचते जिल्दसाजी में उसकी यह शागिर्दी पूरी हो गई। मालिक के साथ से मुक्त होकर वह एक चलती फिरती नौकरी की तलाश में निकल पडा। फैराडे दुखी था, उसका नया मालिक एक सिरदर्द था। काम में भी कोई परिवर्तन नही हुआ था।दिन रात, महीने, साल वही कुछ करते रहो, और फिर विज्ञान की दुनिया भी तो उसे अपनी ओर आकृष्ट करने लग गई थी। फैराडे ने एक प्रार्थनापत्र रॉयल इन्स्टीट्यूट में युग के प्रतिभाशाली वैज्ञानिक सर हम्फ्री डेवी के नाम डाल दिया। पत्र में लिखा था कि जिल्दसाजी से छुटकारा पाकर प्रार्थी किसी वैज्ञानिक प्रयोगशाला में कुछ कार्य प्राप्त कर सके तो धन्य होगा। साथ ही एक नोटबुक सुन्दर स्पष्ट अक्षरों में बन्द थी जिसमे सर हम्फ्री डेवी के लेक्चरों के ही नोट दर्ज थे। प्रार्थना-पत्र मे यह भी स्पष्ट कर दिया गया था कि प्रार्थी खुद रसायन में तथा रासायनिक विद्युत में कुछ परीक्षण कर चुका है। अपने किए अनुसन्धान के नोट भी डाल दिए। फैराडे तब तक एक वोल्टाइक पाइल भी बना चुका था और विद्युत के द्वारा बहुत से योगिकों को विघटित भी कर चुका था। डेवी बहुत ही प्रभावित हुआ और उसने रॉयल इंस्टीट्यूट को सिफारिश की कि फैराडे को एक लैबॉरेटरी असिस्टेंट नियुक्त कर लिया जाए। पीछे चलकर डेवी अक्सर कहा भी करता था कि मेरे जीवन की सबसे बड़ी खोज है– माइकल फैराडे।
माइकल फैराडेफैराडे ने यही आकर 1813 से काम शुरू कर दिया। अक्तूबर मे 7 महीने बाद सर हम्फ्री और उसकी नव-विवाहिता पत्नी लेडी डेवी अढ़ाई साल के लिए मघुमास और यूरोप की यात्रा पर निकल पडे। फैराडे को भी उन्होने अपने सेक्रेटरी और वैज्ञानिक सहकारी के रूप से साथ ले लिया। साल के अन्दर ही अन्दर लुहार के बेटे की सारी जीवन-दृष्टि ही बदल चुकी थी। डेवी के लेक्चरों मे परीक्षणो की व्यवस्था करते हुए कल का जिल्दसाज युग के महान वैज्ञानिको के सम्पर्क में आया। 1815 के अप्रैल में यह यात्रा समाप्त हुई और फैराडे इंस्टीट्यूट में अपने काम पर लौट आया। अब बाकी जिन्दगी वह यहीं रहा, जरा फुरसत नहीं, और अन्त में डेवी का उत्तराधिकारी होकर इंस्टीट्यूट की प्रयोगशालाओं का डायरेक्टर भी नियुक्त हो गया।
माइकल फैराडे की खोज
कितने ही साल तो फैराडे का भी अनुसन्धान-क्षेत्र प्रायः वही था जो कि सर हम्फ्री डवी का था। रसायन में, विद्युत-रसायन में, तथा धातु विज्ञान में परीक्षण ही परीक्षण। प्रसिद्ध डेवी सेफ्टी लेम्पों के आविष्कार में भी फैराडे का हाथ था। विद्युत रसायन में परीक्षण करते हुए ही वह विद्युत-विश्लेषण के आज फैराडे का विद्युत-विश्लेषण के नाम से ज्ञात, सिद्धान्तों पर पहुंचा था। इलेक्ट्रालिपिस अथवा विद्युत-विश्लेषण का अर्थ होता है–द्रव में से बिजली के गुजरने से जो विश्लेषण-क्रिया उत्पन्न होती है वह। वैज्ञानिक प्रत्यक्ष कर चुके थे कि विद्युत पानी को ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन में फाड़ सकती है। सर हम्फ़ी डेवी ने विद्युत को कॉस्टिक पोटाश के एक तोदे में से गुजारकर देखा कि पोटाशियम हाइडॉक्साइड विघटित हो गया और पोटशियम पृथक हो गया। फैराडे ने निहायत ही सावधानी के साथ कितने ही परीक्षण किए जिनसे उसने यह सिद्ध कर दिखाया कि विद्युत की एक नियत मात्रा किसी भी वस्तु में से गुजरने पर उसके अवयवों की एक निश्चित मात्रा को ही विघटित कर सकती है ।
इस नियम का एक परिणाम तो यह हुआ कि इलेक्ट्रिक मीटर बनने लगा और उनका घर-घर प्रयोग होने लगा। घरों में जो बिजली इस्तेमाल में आती है वह एक छोटे से बर्तन में से गुजरती है, और इस बर्तन में चांदी के इलेक्ट्रोड लगे होते हैं। महीने के आखिर में रीडर आकर पढ़ जाता है कितनी चांदी खप चुकी है–अर्थात कितनी बिजली गुजर चुकी है। प्रसंगात, विद्युत विश्लेषण में जितनी भी परिभाषाएं इंलेक्ट्रोड, एनोड, कथोड, इलेक्ट्रोलाइट और आयन प्रयुक्त होती हैं, सब फैराडे की ही गढ़ी हुई हैं। और इस सब में एक और महत्त्वपूर्ण प्रश्न था। विद्युत की इकाई एम्पियर का एक सही-सही लक्षण दे सकना। एम्पियर, सिल्वर नाइट्रेट को विघटित करके 0.001118 ग्राम चांदी प्राप्त करने के लिए आवश्यक विद्युत की मात्रा को कहते हैं। पाठक यह जान कर जायद चकित हों कि एम्पियर का यह लक्षण 1894 में अमेरीकी कांग्रेस के एक एक्ट द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
1821 की सर्दियों में एक दिन सुबह-सुबह फैराडे अपनी पत्नी को घर से बुलाकर अपनी परीक्षणशाला में ले आया। क्रिसमस का दिन था, और छोटी उम्र की बहू के मन में उत्सुकता भरी होगी कि क्या उपहार उसके लिए वहां छिपा पड़ा है। इसी उल्लास और जिज्ञासा से अभिप्रेरित वह यहां पहुंची । सिर्फ उसी के लिए नहीं, विश्व-भर के लिए एक अद्भुत उपहार, इतिहास में पहली बार विद्युत की धारा ने एक प्रकार की निरन्तरित गति साधित कर दी थी। हर बिजली की मीटर को, चाहे खिलौना हो, चाहे भारी इंजन, सभी को चालू करने के लिए वही नियम सक्रिय होते हैं जिनकी खोज उस ऐतिहासिक क्रिसमस के दिन फैराडे ने की थी। श्रीमती फैराडे ने प्रयोगशाला में पहुंचने पर वहां क्या देखा ? एक टेबल पर पारे से लगभग पूरा भरा हुआ एक पात्र रखा था। चुम्बक की एक छड़ का एक सिरा पात्र की पेंदी के साथ सावधानी पूर्वक बांधा गया था और उसका दूसरा सिरा पारे से कुछ ऊपर निकाला हुआ था। तांबे की एक छड़ को चुम्बक के ऊपर टिकाया गया था और उसके एक सिरे को काक के एक टुकड़े में धंसा दिया गया था, जो पारे पर तैर रहा था। तांबे की छड़ चुम्बक पर आसानी से जिधर चाहे घुम सकती थी। एक बैटरी का सम्बन्ध छड के ऊपरी सिरे के साथ और छड़ के निचले सिरे पर पारे के साथ स्थापित कर दिया गया था। जब सर्किट पूरा होता था तो तांबे की छड़ घूमने लगती थी।
इसका कारण जो कि अब हमें ज्ञात है, यह था कि तार में गुजरने वाली बिजली एक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न कर देती थी। यह क्षेत्र चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र पर प्रतिक्रिया करता था और इससे इनके बीच उत्पन्न होने वाली शक्ति तांबे की छड़ को तेज़ी से चुंबक के चारो ओर घुमाने लगती थी। इससे सम्बन्धित सिद्धांत के सभी प्रकारों की जांच की गई और उनका प्रदर्शन किया गया। इस पूरे प्रयोग को उलटे रूप में व्यवस्थित किया गया या तो बैटरी के सम्पर्क को उलटकर या चुम्बक के ध्रुवों को बदलकर। फैराडे ने इस पूरी व्यवस्था को बदलकर इस प्रकार कर दिया कि छड़ स्थिर रहे और चुम्बक घूमने लगे। उसने सोचा कि हो सकता है कि चुम्बक की आवश्यकता ही न पड़े। पृथ्वी स्वयं ही एक चुम्बक है। उसने अपनी मोटर के एक भाग के रूप में पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का उपयोग करने के लिए एक युक्ति तैयार थी। इसमें उसने ऊपरी सिरे में लगे हुए कंडक्टर को पारे में लगभग 40 अंश के कोण पर तैराया। उस समय पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का लन्दन में लगभग 74 अंश पर चुम्बकीय नमन (डिप) था। जब करेंट जारी की जाती थी तो कंडक्टर पृथ्वी की शक्ति की रेखाओं पर घूमने लगता था।
इस प्रकार विद्युत मोटर का जन्म हुआ। लेकिन यह एक आश्चर्य की बात है कि आविष्कार कर्ताओं ने इसके व्यावहारिक उपयोग के लिए कोई उत्सुकता प्रदर्शित नहीं की। यद्यपि कुछ आविष्कर्ताओं ने इस सिद्धांत पर कार्य किया, लेकिन उनकी रुचि के अभाव का कारण शायद यह था कि विद्युत उस समय बड़ी महंगी थी और विद्युत बैटरियों का जिन्हें उस समय ‘वोल्टा पाइल’ कहा जाता था, रख-रखाव बड़ा झंझटी माना जाता था। और अब साइमन फैराडे का मूल्य विज्ञान-जगत भी कुछ-कुछ समझने लगा। आज तक समझा यही जाता था कि वह, बस सर हम्फ्री डेवी का एक सहायक मात्र है। किन्तु इलेक्ट्रिक मोटर के सिद्धान्त में उसकी गवेषणाओं एवं सफलताओं ने उसे स्वतंत्र रूप में वैज्ञानिक उद्घोषित कर दिया। किसी ने रॉयल सोसाइटी के लिए उसका नाम पेश किया, और उसे विधिवत उसका सदस्य चुन भी लिया गया। लेकिन हैरानी इस बात पर होती है कि सर हम्फ्री डेवी ने उसका यहां विरोध किया। आज तक नहीं मालूम हो सका कि बात क्या थी, अपने ही सहायक की आशातीत उन्नति देखकर ईर्ष्या, या डेवी का विचार था कि अभी यह जिल्दसाज छोकरा जो दार्शनिक बनता जा रहा था” इस आदर के योग्य नहीं था।क्रिसमस के दिन के अपने उस सार्वजनिक परीक्षण के बाद दस साल तक फैराडे रसायन के कुछ परीक्षणों में उलझा रहा, किन्तु उसे अपना वह ‘स्मृतिपत्र’ भूला न था। जिसपर लिखा था कि
चुम्बक को विद्युत में परिणत करना है।
1820 के अक्तूबर महीने में डेनमार्क के भौतिकीविद हन्स क्रिब्चन एस्ट्रेड ने देखा कि एक कण्डक्टर में संचरण कर रही विद्युत में चुम्बक की सुई को उत्तर-दक्षिण से विचलित करने की शक्ति आ जाती है। एस्ट्रेड ने अनुभव किया कि विद्युत के प्रवाह ने संवाहक के गिर्द एक प्रकार का चुम्बकीय क्षेत्र बना छोड़ा है। विज्ञान-जगत को जब इस परीक्षण का महत्त्व प्रतीत होने लगा, हर कोई इस कोशिश में लग गया कि अब चुम्बक को विद्युत में परिवर्तित करने की संभावना भी है। विद्युत से चुम्बक-शक्ति पैदा हो सकती है, तो क्या चुम्बक से विद्युत-शक्ति उत्पन्न नहीं की जा सकती ? किन्तु, कैसे ?
और जब फेराडे ने सवाल का जवाब निकाल लिया, वह जवाब उसका इतना आसान था कि आज हमारे लिए यह यकीन कर सकना भी असम्भव लगता है कि वैज्ञानिकों को इसका तरीका पता करने में इतने साल क्यों लग गए। कितने ही असफल परीक्षणों के पश्चात आखिर 17 अक्तूबर, 1831 को समाधान मिल ही गया। विद्युत के अभ्युत्पादन (इण्डक्शन) का सिद्धान्त माइकल फैराडे के हाथ इस प्रकार लगा। 220 फुट लम्बा तांबे का एक तार गत्ते के एक सिलिंडर के गिर्द लपेट दिया गया। तारों के बीच उसने टवाइन लपेटी थी और लपेटों को तहों के बीच कैलिकों का कपड़ा बिछा दिया था।तार के सिरों को गल्वेनोमीटर से जोड़ दिया गया कि विद्युत की सत्ता की खबर मिलती रहे। सिलिंडर में फैराडे ने एक बार मेग्नेट घुसेड़ दिया। गैल्वेनोमीटर पर स्पष्ट था कि विद्युत का संचरण हो रहा है। चुम्बक को बाहर खींच लिया गया। गैल्वेनोमीटर की सुई अब भी हिली किन्तु विपरीत दिशा में। किन्तु विश्राम की दशा में वही मैग्नेट कुछ भी विद्युत पैदा न कर सकता। फैराडे ने परीक्षण को उल्टा दिया, मैग्नेट को स्थिर रखकर कॉयल को घुमाना-फिराना शुरू किया। फिर वही सफलता। अर्थात समाधान यह था कि चुम्बक तथा विद्युत में परस्पर आपेक्षिक गति चुम्बक-शक्ति को विद्युत शक्ति में बदल सकती है।
और जल्द ही फैराडे इस आपेक्षिक गति को निरंतरित कर सकने में सफल हो गया, जिसके द्वारा यह उद्भावित वोल्टेज भी, किसी प्रकार क्षणिक न होकर, निरंतरित ही रह सके। इसके लिए उसने यह किया कि पीतल की एक धुरी पर एक-चौथाई इंच मोटी और एक इंच व्यास की तांबे की थाली सी चढ़ा दी। इस थाली को रॉयल सोसाइटी के पास मौजूद सबसे ताकतवर चुम्बक पर अवस्थित किया गया था। तांबे का एक टुकड़ा भी साथ लगा दिया गया था कि जब तांबे की यह थाली चक्कर काटने लगे इसके साथ उसका सम्बन्ध बना रहे। तांबे के एक ब्रह्म का सम्पर्क धुरी के साथ कर दिया गया। और तब के दोनों ही ब्रशों को अब एक विद्यन्मापक के साथ संपृक्त कर दिया गया। थाली के घुमाने पर देखा गया कि मीटर की सुइयां विचलित होती हैं, अर्थात बिजली पैदा हो रही है। इस प्रकार उस पहले इलेक्ट्रिक जेनरेटर, आजकल के दैत्य डाइनेमो के पितामह का आविष्कार हुआ है।
1861 के नवम्बर महीने मे माइकल फैराडे ने अपने अन्वेषण को रॉयल सोसायटी के सामने प्रस्तुत किया। विद्युत अभ्युत्पादन का वर्णन करते हुए उसने चुम्बकीय शक्ति की रेखाओं तथा ‘ट्यूब्स ऑफ फोर्स’ की परिभाषाओं का प्रयोग किया। उसका यह नियम
कि यह अभ्युत्पादित विद्युत शक्ति तार द्वारा प्रति सेकण्ड कटती चुम्बकीय शक्ति रेखाओं की संख्या पर निर्भर करती है, विद्युत विषयक हमारी धारणाओ के इतिहास में एक युगान्तर है। फैराडे ने कोई कोशिश नही की कि उसकी इस कल्पना का कुछ आर्थिक उपयोग भी हो सके। उसकी रुचि सदा ही विशुद्ध अनुसन्धान में थी। समस्या के मूल तक एक बार पहुंचा नही कि फिर उसकी कोई भी दिलचस्पी उसमें न रह जाती और वह अन्य अनुसन्धानों में प्रवत्त हो जाता ।
1831 से माइकल फैराडे अपने मृत्यु दिवस 26 अगस्त, 1867 तक वह 1841–1845 के एक क्षणिक अवान्तर के अतिरिक्त, जब अपनी ही प्रयोगशाला मे परीक्षा करते हुए शायद पारद के
जरिये कुछ विष चढ जाने की वजह से वह कुछ बिमारी रहने लगा था। फिर भी निरंतर वैज्ञानिक अन्वेषणों में लगा रहा। इन व्यतिरिक्त अध्ययनों एक भी उसकी वैज्ञानिकी प्रतिभा को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है। एक ही उदाहरण पर्याप्त होगा। उसने ध्रुवित प्रकाश को एक चुंबक द्वारा पर विचलित करके दिखा दिया कि प्रकाश प्रकृत्या विद्युत चुम्बकीय ही होता है।
माइकल फैराडे इलेक्ट्रिक मोटर तथा इलेक्ट्रिक जेनरेटर का जनक था। वह विज्ञान का एक स्वार्थहीन पुजारी था। विद्युत संबंधित विश्व की सम्पूर्ण उद्योग श्रृंखला इस एक दिग्गज के कंधों पर टिकी हुई है। विद्युत विज्ञान की परिगणनाओ में एक महत्त्वपूर्ण इकाई का नाम उसके अपने नाम के अनुकरण पर फैरड रखते हुए विज्ञान ने उसके प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित कर दी है।
हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े—-

एनरिको फर्मी--- इटली का समुंद्र यात्री नई दुनिया के किनारे आ लगा। और ज़मीन पर पैर रखते ही उसने देखा कि
Read more दरबारी अन्दाज़ का बूढ़ा अपनी सीट से उठा और निहायत चुस्ती और अदब के साथ सिर से हैट उतारते हुए
Read more साधारण-सी प्रतीत होने वाली घटनाओं में भी कुछ न कुछ अद्भुत तत्त्व प्रच्छन्न होता है, किन्तु उसका प्रत्यक्ष कर सकने
Read more “डिअर मिस्टर प्रेसीडेंट” पत्र का आरम्भ करते हुए विश्वविख्यात वैज्ञानिक
अल्बर्ट आइंस्टीन ने लिखा, ई० फेर्मि तथा एल० जीलार्ड के
Read more 15 लाख रुपया खर्च करके यदि कोई राष्ट्र एक ऐसे विद्यार्थी की शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध कर सकता है जो कल
Read more मैंने निश्चय कर लिया है कि इस घृणित दुनिया से अब विदा ले लूं। मेरे यहां से उठ जाने से
Read more दोस्तो आप ने सचमुच जादू से खुलने वाले दरवाज़े कहीं न कहीं देखे होंगे। जरा सोचिए दरवाज़े की सिल पर
Read more रेडार और सर्चलाइट लगभग एक ही ढंग से काम करते हैं। दोनों में फर्क केवल इतना ही होता है कि
Read more योग्यता की एक कसौटी नोबल प्राइज भी है।
जे जे थॉमसन को यह पुरस्कार 1906 में मिला था। किन्तु अपने-आप
Read more सन् 1869 में एक जन प्रवासी का लड़का एक लम्बी यात्रा पर अमेरीका के निवादा राज्य से निकला। यात्रा का
Read more भड़ाम! कुछ नहीं, बस कोई ट्रक था जो बैक-फायर कर रहा था। आप कूद क्यों पड़े ? यह तो आपने
Read more विज्ञान में और चिकित्साशास्त्र तथा तंत्रविज्ञान में विशेषतः एक दूरव्यापी क्रान्ति का प्रवर्तन 1895 के दिसम्बर की एक शरद शाम
Read more आपने कभी जोड़-तोड़ (जिग-सॉ) का खेल देखा है, और उसके टुकड़ों को जोड़कर कुछ सही बनाने की कोशिश की है
Read more दो पिन लीजिए और उन्हें एक कागज़ पर दो इंच की दूरी पर गाड़ दीजिए। अब एक धागा लेकर दोनों
Read more “सचाई तुम्हें बड़ी मामूली चीज़ों से ही मिल जाएगी।” सालों-साल ग्रेगर जॉन मेंडल अपनी नन्हीं-सी बगीची में बड़े ही धैर्य
Read more कुत्ता काट ले तो गांवों में लुहार ही तब डाक्टर का काम कर देता। और अगर यह कुत्ता पागल हो
Read more न्यूयार्क में राष्ट्रसंघ के भवन में एक छोटा-सा गोला, एक लम्बी लोहे की छड़ से लटकता हुआ, पेंडुलम की तरह
Read more “कुत्ते, शिकार, और चूहे पकड़ना इन तीन चीज़ों के अलावा किसी चीज़ से कोई वास्ता नहीं, बड़ा होकर अपने लिए,
Read more “यूरिया का निर्माण मैं प्रयोगशाला में ही, और बगेर किसी इन्सान व कुत्ते की मदद के, बगैर गुर्दे के, कर
Read more परीक्षण करते हुए जोसेफ हेनरी ने साथ-साथ उनके प्रकाशन की उपेक्षा कर दी, जिसका परिणाम यह हुआ कि विद्युत विज्ञान
Read more जॉर्ज साइमन ओम ने कोलोन के जेसुइट कालिज में गणित की प्रोफेसरी से त्यागपत्र दे दिया। यह 1827 की बात
Read more वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी समस्याओं में एक यह भी हमेशा से रही है कि उन्हें यह कैसे ज्ञात रहे कि
Read more इतिहास में कभी-कभी ऐसे वक्त आते हैं जब सहसा यह विश्वास कर सकता असंभव हो जाता है कि मनुष्य की
Read more विश्व की वैज्ञानिक विभूतियों में गिना जाने से पूर्वी, जॉन डाल्टन एक स्कूल में हेडमास्टर था। एक वैज्ञानिक के स्कूल-टीचर
Read more कुछ लोगों के दिल से शायद नहीं जबान से अक्सर यही निकलता सुना जाता है कि जिन्दगी की सबसे बड़ी
Read more छः करोड़ आदमी अर्थात लन्दन, न्यूयार्क, टोकियो, शंघाई और मास्कों की कुल आबादी का दुगुना, अनुमान किया जाता है कि
Read more आपने कभी बिजली 'चखी' है ? “अपनी ज़बान के सिरे को मेनेटिन की एक पतली-सी पतरी से ढक लिया और
Read more 1798 में फ्रांस की सरकार ने एंटोनी लॉरेंस द लेवोज़ियर (Antoine-Laurent de Lavoisier) के सम्मान में एक विशाल अन्त्येष्टि का
Read more क्या आपको याद है कि हाल ही में सोडा वाटर की बोतल आपने कब पी थी ? क्या आप जानते
Read more हेनरी कैवेंडिश अपने ज़माने में इंग्लैंड का सबसे अमीर आदमी था। मरने पर उसकी सम्पत्ति का अन्दाजा लगाया गया तो
Read more “डैब्बी", पत्नी को सम्बोधित करते हुए बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कहा, “कभी-कभी सोचता हूं परमात्मा ने ये दिन हमारे लिए यदि
Read more आइज़क न्यूटन का जन्म इंग्लैंड के एक छोटे से गांव में खेतों के साथ लगे एक घरौंदे में सन् 1642 में
Read more क्या आप ने वर्ण विपर्यास की पहेली कभी बूझी है ? उलटा-सीधा करके देखें तो ज़रा इन अक्षरों का कुछ
Read more सन् 1673 में लन्दन की रॉयल सोसाइटी के नाम एक खासा लम्बा और अजीब किस्म का पत्र पहुंचा जिसे पढ़कर
Read more रॉबर्ट बॉयल का जन्म 26 जनवरी 1627 के दिन आयरलैंड के मुन्स्टर शहर में हुआ था। वह कॉर्क के अति
Read more अब जरा यह परीक्षण खुद कर देखिए तो लेकिन किसी चिरमिच्ची' या हौदी पर। एक गिलास में तीन-चौथाई पानी भर
Read more “आज की सबसे बड़ी खबर चुड़ैलों के एक बड़े भारी गिरोह के बारे में है, और शक किया जा रहा
Read more “और सम्भव है यह सत्य ही स्वयं अब किसी अध्येता की प्रतीक्षा में एक पूरी सदी आकुल पड़ा रहे, वैसे
Read more “मै
गैलीलियो गैलिलाई, स्वर्गीय विसेजिओ गैलिलाई का पुत्र, फ्लॉरेन्स का निवासी, उम्र सत्तर साल, कचहरी में हाजिर होकर अपने असत्य
Read more “मैं जानता हूं कि मेरी जवानी ही, मेरी उम्र ही, मेरे रास्ते में आ खड़ी होगी और मेरी कोई सुनेगा
Read more निकोलस कोपरनिकस के अध्ययनसे पहले-- “क्यों, भेया, सूरज कुछ आगे बढ़ा ?” “सूरज निकलता किस वक्त है ?” “देखा है
Read more फ्लॉरेंस ()(इटली) में एक पहाड़ी है। एक दिन यहां सुनहरे बालों वाला एक नौजवान आया जिसके हाथ में एक पिंजरा
Read more इन स्थापनाओं में से किसी पर भी एकाएक विश्वास कर लेना मेरे लिए असंभव है जब तक कि मैं, जहां
Read more जो कुछ सामने हो रहा है उसे देखने की अक्ल हो, जो कुछ देखा उसे समझ सकने की अक्ल हो,
Read more रोजर बेकन ने एक स्थान पर कहा है, “मेरा बस चले तो मैं एरिस्टोटल की सब किताबें जलवा दू। इनसे
Read more मैं इस व्रत को निभाने का शपथ लेता हूं। अपनी बुद्धि और विवेक के अनुसार मैं बीमारों की सेवा के
Read more युवावस्था में इस किताब के हाथ लगते ही यदि किसी की दुनिया एकदम बदल नहीं जाती थी तो हम यही
Read more