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मांडू का इतिहास

मांडू का इतिहास इन हिन्दी – Mandu history in hindi

Naeem Ahmad, March 29, 2023

मांडू, माण्डू या माण्डवगढ़ भारत के मध्य प्रदेश राज्य के धार जिले में स्थित एक ऐतिहासिक शहर है। मांडू शहर मालवा क्षेत्र में विंध्याचल पर्वत के छोर पर है। इसकी स्थापना परमार राजा भोज (1018-60) ने की थी। मांडू का प्राचीन नाम शादियाबाद (आनंद का शहर) है।

 

Contents

  • 1 मांडू का इतिहास इन हिन्दी
    • 1.1 मांडू का पुरातात्विक महत्त्व
    • 1.2 मांडू में उपलब्ध सुविधाएं
  • 2 हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—

मांडू का इतिहास इन हिन्दी

राजा भोज ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। वह परमारों
में सबसे प्रसिद्ध शासक था। सबसे पहले उसने कलिंग के चालुक्य राजा को हराया। उसके बाद कलचूरी राजा गंगदेव को नीचा दिखाया। उसने कन्नौज पर प्रभुत्व स्थापित किया, तुर्कों से लोहा लिया और बिहार के कुछ भागों पर कब्जा किया। इससे उसकी शक्ति क्षीण हो गई और चंदेल राजा ने भोज को हरा दिया। वह 1060 में चालुक्य राजा भीम प्रथम और कलचूरी राजा कर्ण के साथ युद्ध करता हुआ मारा गया। भोज विद्वान और विद्या प्रेमी था। भोज के उत्तराधिकारी जयसिंह प्रथम के समय में कलचूरी और चालुक्य राजाओं ने मालवा के अधिकतर भाग पर अधिकार कर लिया। उसने इन्हें दक्षिण के चालुक्य युवराज विक्रमादित्य की सहायता से निकाल दिया। उसने विक्रमादित्य की पूर्वी चालुक्यों के विरुद्ध सहायता भी की। इससे चिढ़कर कल्याण के चालुक्य राजा सोमेश्वर द्वितीय ने चेदिराज कर्ण की सहायता से मालवा पर आक्रमण किया।

 

इसी युद्ध में जयसिंह की मृत्यु हो गई, परंतु भोज के भाई उदयादित्य (1080-86) ने सांभर के चौहानों की सहायता से सोमेश्वर को हराकर अपना राज्य वापस ले लिया। उदयादित्य के पुत्र लक्ष्मण देव ने कलचूरी राजा पशकर्ण को हराया और अंग, गौड़ तथा कलिंग पर आक्रमण किए। उसने पंजाब के सूबेदार महमूद से अपने राज्य की रक्षा की और उससे बदला लेने के लिए कांगड़ा पर आक्रमण किया। उसने विक्रमादित्य षष्ठ की सहायता से होयसल राज्य पर भी आक्रमण किया। उसके उत्तराधिकारी नरवर्मा (1094 ई०) ने नागपुर तक अधिकार कर लिया। उसने चंदेल राजा को परास्त किया और बाईस वर्ष तक चालुक्य राजा जयसिंह सिद्धराज से लड़ाई की।

 

मांडू का इतिहास
मांडू का इतिहास

उसके उत्तराधिकारी यशोवर्मा (1133 ई०) के समय में चंदेलों ने मिलसा छीन लिया, चौहानों ने उज्जैन पर आक्रमण कर दिया और अंत में जयसिंह सिद्धराज ने 1135 ई० के आस-पास नल के चौहानों की सहायता से यशोवर्मा को हराकर बंदी बना लिया और मालवा को अपने राज्य में मिला लिया। 20 वर्ष तक मालवा चालुक्यों के कब्जे में रहा। इसके बाद विंध्यवर्मा ने चालुक्य राजा मूलराज द्वितीय को हराकर अपना राज्य वापस ले लिया। उसके समय में मालवा पुनः एक समृद्ध राज्य बन गया। 1193 में उसके उत्तराधिकारी सुमठवर्मा ने चालुक्यों के विरुद्ध युद्ध किया, गुजरात की राजधानी अणहिल पाटण पर आंक्रमण किया और लाट पर अधिकार किया। उसे यादवों ने परास्त कर दिया। उसके उत्तराधिकारी अर्जुनवर्मा ने भी चालुक्यों को हराया। अर्जुनवर्मा को यादव राजा सिंघल ने हरा दिया। अर्जुनवर्मा के बाद देवपाल ने 1218 से 1232 तक शासन किया। सिंघल ने उसके काल में भी आक्रमण किया। इसी समय यादवों और परमारों ने मिलकर दक्षिणी गुजरात पर आक्रमण कर दिया और चालुक्यों ने दक्षिणी लाट पर कब्जा कर लिया। 1233 में अल्तमश ने भिलसा पर अधिकार कर लिया और उज्जैन को लूटा। इन शक्तियों से धीरें-धीरे मालवा का पतन हो गया।

 

मांडू कभी रानी रूपमती का गढ़ हुआ करता था। अलाउद्दीन खिलजी ने इसे 1305 ई० में राय महलक देव से छीन लिया था। 1398 में तैमूरलंग के आक्रमण के बाद उपजी अराजकता के फलस्वरूप फिरोजशाह तुगलक के धार के जागीरदार दिलावर खाँ ने 1401 में अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर लिया था। उसके पुत्र अल्प खाँ उर्फ होशंग शाह (1405-34) ने 1406 में अपनी राजधानी उज्जैन से मांडू बदल ली थी। 1429 में बहमनी राज्य के शिहाबुद्दीन अहमद ने मांडू पर आक्रमण किया। होशंग शाह के बाद उसके पुत्र गजनी खाँ उर्फ मुहम्मद शाह के काल में उसके मंत्री महमूद खिलजी ने इस पर 1435 ई० में कब्जा कर लिया। उसके शासन काल के दौरान महमूद गावाँ ने 1466 और 1467 में दो बार आक्रमण किए। दूसरे युद्ध में मालवा की सेना बुरी तरह पराजित हुई और उसे बरार से हाथ धोना पड़ा।

 

महमूद खिलजी एक बहादुर योद्धा था। उसने गुजरात के अहमद शाह प्रथम, दिल्ली के मुहम्मद शाह, बहमनी राजा मुहम्मद शाह तृतीय और मेवाड़ के महाराणा कुम्भा से युद्ध किया। मेवाड़ के साथ युद्ध में संभवतः किसी की भी विजय न हुई हो, क्योंकि एक तरफ राणा कुम्भा ने इस युद्ध में विजय के उपलक्ष्य में चित्तौड़ में विजय स्तंभ बनवाया, तो दूसरी तरफ महमूद खिलजी ने मांडू में एक सात मंजिला इमारत बनवाई। मिश्र के खलीफा ने उसे मान्यता दी और सुल्तान अबु सईद के यहां से उसके दरबार में राजदूत आया।

 

उसके बाद ग्यासुद्दीन (1469-1500), उसका एक पुत्र अब्युल कादिर नाशिरुद्दीन (1500-10) और महमूद द्वितीय के नाम से सुजात खाँ अलाउद्दीन (1510-31) शासक हुए। महमूद द्वितीय ने मुस्लिम मंत्रियों के प्रभाव से मुक्ति पाने के लिए चंदेरी के
शक्तिशाली राजपूत जागीरदार मेदिनी राव को अपना मंत्री नियुक्त किया। इससे चिढ़कर मुस्लिम मंत्रियों ने उसे गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह द्वितीय की सहायता से हरा दिया। परंतु मेदिनी राव ने मेवाड़ के राणा सांगा की सहायता से महमूद द्वितीय को ही हराकर उसे बंदी बना लिया, परंतु कुछ समय बाद उसे छोड़ दिया।

 

महसूद द्वितीय ने राणा सांगा के उत्तराधिकारी राणा रत्नसेन के क्षेत्र पर हमला करके उससे युद्ध मोल ले लिया । महमूद द्वितीय ने गुजरात के शासक बहादुर शाह से भी शत्रुता मोल ले ली। क्योंकि उसने बहादुरशाह के छोटे भाई और गद्दी के दूसरे विद्रोही दावेदार चांद खां को अपने यहां शरण दे दी थी। इससे क्रोधित होकर बहादुर शाह ने 17 मार्च 1531 को मांडू पर अधिकार करके उसे गुजरात राज्य में मिला लिया। सन् 1535 में हुमायूं ने गुजरात पर आक्रमण करके बहादुर शाह को हरा दिया। बहादुर शाह को मांडू में शरण लेनी पड़ी। 1535 में ही मल्लु खां ने कादिर शाह के नाम से मालवा में स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया। 1542 में उसे दिल्ली के अफगान शासक शेरशाह सूरी ने हरा दिया। 1561-62 में अकबर ने इसे बाज बहादुर से छिनने के लिए आदम खां को भेजा। आदम खां ने मालवा छिन लिया था, परंतु इस पर कब्जा पुरा होने से पहले उसे वापस बुला लिया गया और उसकी जगह पीर मोहम्मद को भेज दिया गया, जो एक कमजोर सेनापति था। इसका फायदा उठाकर बाज बहादुर, जो खानदेश की तरफ भाग गया था, ने मालवा पर आक्रमण करके इसे फिर जीत लिया। अब अकबर ने अब्दुल्ला खाँ को मालवा भेजा, जिसने मालवा जीत लिया।

 

मांडू का पुरातात्विक महत्त्व

यह शहर प्राकृतिक सौंदर्य के मामले में बेजोड़ था। यहां हिंदू और मुस्लिम मिश्रित शैली की बड़ी-बड़ी इमारतें बनाई गई थीं। इन इमारतों का कुरसी क्षेत्र विशाल था और इनमें चमकीली टाइलें भी लगी होती थीं। होशंग शाह ने यहाँ दिल्‍ली गेट, जामा मस्जिद और अपना मक़बरा बनवाया। जामा मस्जिद मांडू की सबसे बढ़िया इमारतों में से एक है। इसे महमूद शाह प्रथम ने 1454 ई० में पूरा कराया था। उसने यहां एक अशरफी महल भी बनवाया था, जो पहले तो एक मदरसा था, परंतु 1469 में उसे मकबरा बना दिया गया। इसमें 5000 व्यक्ति एक साथ नमाज पढ़ सकते हैं। मांडू के किले में महमूदशाह की मस्जिद, हिंडोला महल, नसीरूद्दीन द्वारा बनवाया गया बाज बहादुर महल, रूपमती के पति बाज बहादुर द्वारा बनवाया गया रानी रूपमती महल और जहाज महल भी अच्छी इमारतों में से हैं।

 

इनके अतिरिक्त चंपा बावली, 1405 में बनी दिलावर खाँ की मस्जिद, नहर झरोखा, तवेली महल, सागर तालाब, हाथी महल, दरिया खां का मकबरा, चिस्ती खां महल, नीलकंठ महल और रेवा कुंड भी उल्लेखनीय हैं। मांडू का किला विंध्या पर्वत की श्रेणियों में बनवाया गया था। किले की सब इमारतें पत्थर की थीं तथा इनमें कहीं-कहीं संगमरमर का प्रयोग भी किया गया था। ग्यासुद्दीन द्वारा अपनी रानियों के लिए बनवाए गए जहाज महल को तो मांडू की शान कहा जाता है। इसका आकार 360×48×31 फुट है। इसके चारों ओर पानी भरा रहता था और यह एक जहाज की तरह दिखाई देता था। मांडू में अट्ठारहवीं शताब्दी का श्रीराम मंदिर तथा शांतिनाथ मंदिर, सुपार्श्व नाथ मंदिर, दिगंबर जैन मंदिर, शिव मंदिर और एक धर्मशाला भी है। ऐसा अनुमान है कि धर्मशाला के निर्माण में उस समय एक करोड़ रुपये का व्यय हुआ था।

 

 

मांडू में उपलब्ध सुविधाएं

यहां ठहरने के लिए आईटीडीसी का ट्रैवलर्ज लॉज, ऐमपीटीडीसी काटूरिस्ट बंगला और एऐसआई का रेस्ट हाउस है। यहां से निकटतम हवाई इंदौर 99 किमी दूर है। मुंबई-दिल्ली रेलमार्ग पर सुविधाजनक रेलवे स्टेशन रतलाम (124 किमी) और इंदौर है। यहां घूमने का सबसे उपयुक्त समय जुलाई से मार्च तक का होता है।

 

 

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