महोबा का किलामहोबा जनपद में एक सुप्रसिद्ध दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल कालीन है इस दुर्ग में कई अभिलेख भी उपलब्ध होते है। इन अभिलेखो में चन्देलवशांवली नन्नुक देव से लेकर परमार्दिदेव तक की उपलब्धि होती है। अभी तक यह सुनिश्चित नहीं हो पाया कि इस दुर्ग का वास्तविक निर्माणकर्ता कौन था। यह दुर्ग मानिकपुर झाँसी मार्ग पर महोबा मुख्यालय से कुछ दूर विजय सागर से समीप एक पहाडी पर स्थित है।
महोबा का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – महोबा दुर्ग का इतिहास
महोबा के किले में प्रवेश करने के लिये अनेक द्वार है। महोबा प्रारम्भ से ही सुप्रसिद्ध धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि त्रेतायुग में इसका नाम “केपपुर”“ था और द्वापर युग में इसका नाम “’पाटनपुर” था। वर्तमान समय में इसका नाम महोबा है। कहा जाता है कि यहाँ पर चन्देलवंश के आदि परूष चन्द्रवर्मा के लिये एक महोत्सव का आयोजन किया गया था। इसलिए महोबा का प्राचीन नाम महोत्सव नगर था जो बाद में बिगड़कर महोबा बना चन्द्रवर्मा का असितित्व आठवी शताब्दी के प्रारम्भ में था और इन्ही को चन्देलवंश का संस्थापक माना जाता है चन्द्रवरदायी ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ पृथ्वीराज रासो के महोबाखंड में इसका नाम महोत्सव नगर ही माना है।
यह चन्देलों की प्रशासनिक राजधानी थी कुछ समय के लिये चन्देलों की राजधानी खजुराहों में रही इस वंश के वे नरेश राहिल ने राहिल सागर नाम का एक तालाब निर्मित कराया। यह महोबा से तीन किलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम में है कीर्तिवर्मन और मदन वर्मन इस वंश के सुप्रसिद्ध शासक थे। इन्होने महोबा में दो प्रसद्धि झीलों का निर्माण कराया था। ये झीले कीरत सागर और मदन सागर के नाम से विख्यात है।
इस वंश का अन्तिम नरेश परमार्दिदेव इनका शासन 1202 तक रहा लगभग 1182 ई0० में दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान ने महोबा पर आक्रमण किया था। इस युद्ध में आल्हा और ऊदल ने विशेष बहादुरी का परिचय दिया था। इस युद्ध में ऊदल पराजित हुआ और मार डाला गया और आल्हा घायल हो गया युद्ध में परमार्दिदेव पराजित हुआ और महोबा पर पृथ्वीराज का अधिकार हो गया।
महोबा दुर्ग के ऊपर और नीचे अनेक महत्वपूर्ण स्थल उपलब्ध होते है जिसने इस स्थल की प्रसिद्ध सर्वत्र है। मुगलशासन काल में भी महोबा दुर्ग का महत्व बना रहा यहाँ जो भी स्थल उपलब्ध होते है वे सभी पुरातत्विक ऐतिहासिक और थार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है इस शहर में अनेक सरोवर है जो यहाँ के निवासियों की जल आपूर्ति किया करते थें।
महोबा का किलादिसरापुर सागर
यह तालाब नगर के उत्तरपूर्व में है तथा एक पहाड़ी से लगा हुआ है कहते है कि सरोवर के नजदीक आल्हा-ऊदल के रहने के महल थे।
राहिल सागर
महोबा नगर के दक्षिणी पश्चिमी किनारे पर राहिल सागर नामक तालाब है इस तालाब का निर्माण चन्देल नरेश राहिल ने 890 से लेकर 940 ई० के मध्य कराया महोबा का यह प्राचीनतम सरोवर है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ एक मेला लगता है तथा इसी के पास पवित्र सूरज कण्ड भी है तथा इसी के समीप राहिल सागर से लगा हुआ एक मन्दिर भी है। जहाँ भगवान शिव की प्रतिमा है। तथा इसी के सन्निकट एक सूर्य प्रतिमा है यह प्रतिमा लगशग 4 फूट की है और अराधना मुद्रा में हैं।
विजय सागर झील
विजय सागर झील का निर्माण विजय वर्मन ने सन् 1035 से लेकर सन् 1060 के लगभग कराया था। यह सरोवर कानपुर सागर मार्ग पर स्थित है। यहाँ पर विभिन्न प्रकार के वृक्ष देखने के मिलते है तथा इसी के पास पुरानी गढ़ी की दीवाले भी उपलब्ध होती है इस गढ़ी का निर्माण मोहन सिंह बुन्देला ने 18वीं शताब्दी में कराया था।
कीरत सागर
यह एक मध्यम श्रेणी का सरोवर है। तथा महोबा के पश्चिमी किनारे पर स्थित है। इस सरोवर के तट पर सुप्रसिद्ध कजली मेला लगता है। कहते है कि इसी सरोवर के तट पर पृथ्वीराज और पमार्दिदेव का युद्ध हुआ था यही पर थोडी दूर पर एक पहाडी पर दो मजारे बनी हुई है ये मजारे ताला सदयद और जलान खान की है। तथा इसी के सन्निकट आल्हा-ऊदल के नाम से स्तम्भ है। और बारादरी नामक स्थल है। इस स्थल को आल्हा-ऊदल की बैठक के नाम से पुकारा जाता है। यही से दुर्ग और मदन सागर जाने का मार्ग भी है।
मदन सागर
इस सरोवर का निर्माण मदन वर्मा ने सन् 1429 से लेकर सन् 1462 के मध्य में कराया था यह सरोवर नगर के दक्षिणी किनारे पर है। इस सरोवर के नजदीक प्राचीन अवशेष उपलब्ध होते है। इसके उत्तर पश्चिम में भगवान शिव का एक विशाल मन्दिर है। जिसे ककरा मठ के नाम से जाना जाता है। दूसरी ओर तालाब के मध्य में सन् 1890 में सेठ मिठ्ठू पुरवार ने एक विश्राम स्थल का निर्माण कराया था इसी स्थान पर पत्थर से बनी पाँच हाथियों की प्रतिमायें है।
किले के दर्शनीय स्थल
इसी के उत्तर दिशा में चन्देल दुर्ग के अवशेष मिलते है। इसे दुर्ग का किला निष्मार्गी कहते है किले के ऊपर राजा परमाल के महलो के अवशेष मिलते है। तथा यही पर मनिया देवी का मन्दिर भी है। तथा इसी के समीप एक पत्थर का स्तम्भ है। जिसे दीवर के नाम से जाना जाता है। तथा इसी के समीप आल्हा की गिल्ली नामक पत्थर की शिला रखी है। तथा यहीं पर पीर मुबारक शाह की मजार भी है। पीर मुबारकशाह का आगमन सन् 1252 में अरब से हुआ था और वे महोबा मे आकर रहने लगे थे। आल्हा के गिल्ली के समीप ही एक चट्टान पर एक घुडसवार की मूर्ति है। इस घुडसवार की मूर्ति को हिन्दू और मुस्लिम औरते श्रद्धा के साथ पूजती है। और विवाह के अवसर पर इस मूर्ति पर सुगंधित तेल लगाती है।
महोबा किले के प्रवेशद्वार
किले मे प्रवेश करने के लिए दो द्वार मिलते है। ये द्वार किले के पश्चिमी और पूर्वी दिशा में है। इन्हे भैनसा द्वार और दरीवा दरवाज़ा के नाम से प्रसिद्ध है। इस दुर्ग में राजा परमाल के महल को कुछ समय बाद मकबरे में बदल दिया गया है। भेनसा दरवाजा के समीप यहाँ पर एक मकबरा है। जो हिन्दू वास्तुशिल्प का परिचायक है। इसके द्वार पर मलिक तातुद्धीन अहमद का नाम अंकित हैं। इसमें सन् 1322 में गयासुद्धीन तुगलक के शासन में इस मकबरे का निर्माण कराया था। तथा इसी के दक्षिणी किनारे पर एक तालाब के किनारे बडी चन्द्रिका का मन्दिर भगवान शिव का गुफा मन्दिर यह मन्दिर काठेश्वर नाम से प्रसिद्ध है। यही पर थोडी दूरी पर एक चट्टान पर जैनियों के 24 तीर्थकर अंकित है। ये मूर्तियाँ सन् 1449 की है तथा इस क्षेत्र का उल्लेख अतिशय क्षेत्र के रूप में किया गया है। दुर्ग के दक्षिणी पश्चिमी किनारे पर छोटी चन्द्रिका देवी का मन्दिर है। तथा यही पर दसवीं शताब्दी की शिव प्रतिमा उपलब्ध होती है। जिसे चटटान काट कर बनाया गया है। इसका निर्माण पुराण के कथानक के अनुसार किया गया है। इसके पश्चिम में गजासुर शंकर की प्रतिमा है। तथा मदनसागर के नीचे एक ओर गोरखपुर पहाडी है इसी के समीप पठवा के बाल महाबीर का मन्दिर है। इस मन्दिर की हनुमान प्रतिमा अद्वितीय है। तथा इसी के समीप एकान्त स्थल पर काल भैरव की प्रतिमा है।
गोरख पहाड़ी
यह भी महोबा का किला का सुप्रसिद्ध स्थल है। इसका नामकरण सुप्रसिद्ध तान्त्रिक गोरकनाथ के नाम पर पडा। इस स्थल पर अनेक पानी के झरने और प्राकृतिक गुफाये है। यही की पहाडी पर उजाली और अंधेरी नाम की दो गुफाये हैं। तथा पहाडी की चोटी मर्दन तुंग के नाम से प्रसिद्ध है। इस पहाडी पर मुश्किल से चढ़ा जा सकता है। इसकी एक गुफा में गोरखनाथ के शिष्य सिद्ध दीपक नाथ रहा करते थे। यह स्थल तपोभूमि के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पर प्रतिवर्ष पर्वत की चोटी पर सिद्ध मेंला भी लगता है।
कल्याण सागर
इस कल्याण सरोवर का निर्माण वीर वर्मन ने सन् 1242 से लेकर 1286 के मध्य कभी कराया था। वीर वर्मन देव की पत्नी का नाम कल्याण देवी था। उसी के नाम पर यह सरोवर बना। यह सरोवर विजय सागर के पूर्व में है। तथा इसी के बगल में अनेक सती स्मारक बने हुये है। तथा एक और काजी कतुबशाह की मजार बनी है। तथा यही पर बलखण्डेश्वर का एक मन्दिर भी है। तथा इसी के समीप चौमुण्डा देवी की एक प्रतिमा है। जिसका निर्माण चटटान काटकर किया गया है तथा इसी के समीप रामकुण्ड नाम का प्राकृतिक जलाशय है महोबा दुर्ग प्राचीन भारतीय संस्कृतिक और इतिहास का महत्वपूर्ण कन्द्र रहा है।
फोर्ट्स ऑफ इण्डिया की लेखिका ने भी महोबा दुर्ग का सविस्तार वर्णन किया है। उसके मतानुसार महोबा का किला के सभी धार्मिक स्थल और महल खण्डहरों में पर्णित हो गये है। मुख्य रूप से मुस्लिम आक्रमणकारियों ने यहाँ के हिन्दू धार्मिक स्थलों को नष्ट किया और यहाँ के लोगों को गुलाम बनाया। महोबा में जो धार्मिक स्थल और मन्दिर उपलब्ध होते है उन्हे यहाँ के स्थानीय लोगो ने धान के प्रलोभन से नष्ट कर दिया है। इस दुर्ग के द्वार अत्यन्त सुन्दर हैं। अतः जो मकबरे यहाँ बने हुए है उनमें जाली का काम अति सुन्दर है। कुल मिलाकर कहा जाये महोबा का किला पर्यटन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश पर्यटन का का एक महत्वपूर्ण अंग है। जो बड़ी संख्या में पर्यटकों, भक्तों और इतिहास में रूचि रखने वाले लोगों को खूब आकर्षित करता है। तथा बुंदेलखंड पर्यटन में महोबा का किला मील का पत्थर साबित होता है।
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