महाराणा सज्जन सिंह जी के बाद महाराणा फतह सिंह जी सन
1885 मेंउदयपुर राज्य के राजसिहासन पर बिराजे। आपका जन्म 16 दिसंबर सन् 1849 को हुआ था। इस्वी सन् 1887 में जी० सी० एस० आई० की उपाधि से विभूषित किये गये। इसी साल आपने अफीम को छोड़ कर तमाम जावक माल का महसूल माफ कर दिया। आपके समय में चित्तौड़ से लगा कर उदयपुर तक रेलवे लाइन खोली गई। उदयपुर राज्य को जमीन का बन्दोबस्त हुआ। खास उदयपुर नगर और जिलों में कई अस्पताल खुले। और भी कई काम हुए। तत्कालीन भारतीय नरेशों में महाराणा फतह सिंह जी एक विशेष पुरुष थे।
महाराणा फतह सिंह जी का परिचय
संयम, तेजस्विता, आत्मसम्मान ओर प्रतिभा के आप मूर्तिमंत उदाहरण हैं। पुराने ढंग के होने पर भी भारतीय जनता आपको बड़े भादर का दृष्टि से देखती है। आपकी एक पत्नी व्रतधारी थी और यही कारण था कि की वृद्धावस्था में भी आप सूर्य की तरह चमकते थे। आपके मुख मण्डल पर संयम और शील का आलौकिक भाव दिखलाई पड़ता था। जो भारतीय नरेश राजधर्म के उच्च श्रेय को भूल कर प्रजा की कठिन कमाई के लाखों रुपयों को ऐय्याशी और विलास- प्रियता में खर्च कर जनता और इश्वर की दृष्टि में अक्षम्य अपराध कर अपने आपको कलकिंत कर रहे थे, इन्हें इस सम्बन्ध में
महाराणा फतह सिंह जी का आर्दश ग्रहण करना चाहिये था।
महाराणा फतह सिंह जीसंयम और शील ही का प्रताप है कि महाराणा साहब में आत्मबल
था। राजा के योग्य तेज और ओज थे तथा ऐसी शक्ति है कि 72 वर्ष की इस वृद्धावस्था में भी हाथ में बंदूक लिये हुए पहाडो पर बारह-बारह कोस तक वे घूमते थे। युवा पुरूष भी आपकी शक्ति को देख कर स्तम्भित हो जाते थे। परमपिता परमात्मा को छोड़ कर इस प्रकाड विश्व में कोई निर्दोष नहीं। महाराणा फतहसिंह जी में भी कुछ त्रुटियाँ होंगी, पर उनमें अनेक गुणों ओर विशेषताओं का अपूर्व सम्मेलन हुआ है।
तत्कालीन समय में वे कई दृष्टि से प्राचीनता के आदर्श थे। मानव-प्रकृति के सूक्ष्म ज्ञाताओं का कथन है कि अगर इस प्राचीनता में देश, काल ओर पात्र के अनुसार सामयिकता का सम्मेलन हो जाता तो सोने में सुहागा हो जाता।कुछ भी हो वर्तमान भारतीय नरेशों में महाराणा फतहसिंह जी अपने ढंग के एक ही नरेश थे और आप एक सच्चे राजपूत है। देश को आपके लिये अभिमान है। 24 मई 1930 को 80 वर्ष की आयु में आपका निधन हो गया। आपके एक राजकुमार थे, जिनका नास सर भूपालसिंह जी है। आप बड़े शान्त-स्वभाव और सह॒दय थे। उस समय जागिरी आदि के कुछ कामों को छोड कर शासन की व्यवस्था आप ही देखा करते थे।
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