महाराणा प्रताप की वीरता और साहस की कहानी Naeem Ahmad, October 24, 2022February 22, 2023 “जिस राज़पूत ने मुगल के हाथ में अपनी बहन को दिया है, उस मुगल के साथ उसने भोजन भी किया होगा, सूर्यवंशीय बप्पा रावल का वंशधर उसके साथ भोजन नहीं कर सकता।” ये शब्द थे राजा मान सिंह को महाराणा प्रताप के। राजा मान इस अपमान को सहन नहीं कर सके। वे तुरन्त दिल्ली की ओर चल पड़े और उन्होंने बादशाह अकबर से महाराणा प्रताप द्वारा किये गये दुर्व्यवहार का वर्णन प्रस्तुत किया। महाराणा प्रताप मेवाड़ के राजा उदयसिह के पुत्र थे। इस समय हिन्दुस्तान का मुगल बादशाह अकबर था। अकबर एक सफल कूटनीतिज्ञ शासक था, उसने अपनी कूटनीति से सभी राजाओं को अपने आधीन कर रखा था। कई कायर राजपूतों ने मुगल शासक को प्रसन्न करने के लिए तथा उसका कृपा-पात्र बनने के लिये अपनी लड़कियों, बहनों आदि का विवाह उसके साथ कर दिया। किन्तु मात्र-भूमि के सच्चे सपूत ने अंतिम समय तक कठिन यातनाओं को सहते हुए भी अकबर के समक्ष अपना सिर नहीं झुकाया। वह आजादी का दीवाना था। मरना जानता था, झुकना नहीं। इसी कारण महाराणा प्रताप का प्रताप हमेशा बादशाह अकबर की आंखों में खटकता रहता था। महाराणा प्रताप की वीरता और साहस की कहानी अपमान का बदला लेने के लिए राजा मानसिंह ने बादशाह अकबर अर्थात अपने बहनोई को महाराणा प्रताप के विरुद्ध काफी भड़काया। अकबर इसी प्रतीक्षा में बैठा था कि राणा से युद्ध कर उसे नीचा दिखाया जाये। अकबर की सेना का प्रतिनिधित्व उसका शाहजादा सलीम कर रहा था। एक विशाल सेना के साथ राजा मानसिंह और सलीम मेवाड़ भूमि की ओर आगे बढ़ते हुये आ रहे थे। इधर वीर केशरी महाराणा प्रताप के पास 22000 (बाईस हजार ) राजपूत और वीर भील भी उसके सहायक थे। परन्तु इन सबसे अधिक सहायक उनके हृदय का प्रचंड उत्साह था। इस सहायता के आधार पर ही महाराणा प्रताप ने मुगलों की महान सेना का मुकाबला पूर्ण दृढ़ता व वीरता के साथ किया। महाराणा प्रताप के 22000 वीर राजपूत सैनिक अकबर की 9 लाख मुगल सेना पर बाज की तरह टूट पड़े। यद्यपि राजपुत सेना कम थी परन्तु युद्ध कौशल और साहस में यवनों से काफी बढ़ी चढ़ी थी। राणाजी स्वयं एक वीर सैनिक के रूप में मुगल सेना पर भयंकर आक्रमण कर रहे थे, बेचारे यवन उनके आते ही भाग जाते थे, बहुत कम थे जो उनका मुकाबला करने का साहस करते । इधर पहाड़ी घाटियों में वीर भील वाणों से यवन-सेना को तितर- बितर कर रहे थे। महाराणा प्रताप महाराणा प्रताप अपने प्रचंड शत्रु मानसिंह की खोज कर रहे थे। इसी मध्य उन्होंने हिंदू बैरी बादशाह अकबर के बड़े पुत्र शहजादा सलीम को अपने सम्मुख देखा तो उनका उत्साह और साहस दूना हो गया। उन्होंने भयंकर भाला उठाया और अपने प्यारे घोड़े चेतक को सलीम की ओर चलाया। उनका प्यारा घोड़ा चेतक एक वीर योद्धा से कम न था, प्रताप का इशारा पाकर वह सलीम के हाथी पर भी चढ़ गया। महाराणा प्रताप के भीषण वार से महावत व शरीर रक्षक गण मारे गये तथा भाग्यवश सलीम हाथ से बच गया। महावत के गिरते हो निरंकुश होकर हाथी शहजादा सलीम को संग्राम से लेकर भागा। शहजादा सलीम भागा परन्तु प्रताप सिंह ने भी उसका पीछा नहीं छोड़ा। यवनों की अगिनत सेना शाहजादे को बेचाने के लिये अगिनत वार करने लगी। इधर निडर और कठोर राजपूत गण भी प्रताप के प्रताप की रक्षा करने के लिये तथा मुगल सेना का घमण्ड चूर करने के लिये भीषणं युद्ध करने लगे। सैकड़ों मुगल वीर महाराणा प्रताप जी के हाथ से मारे गये। परन्तु यवन सेना के सम्मुख बहुत कम संख्या में वीर राजपूत सेना कब तक लोहा लेती, फिर भी यवनों को राजपूतों के भीषण वारों से छठी कादूध याद आ गया था, वे महाराणा प्रताप के नाममात्र से घबरा रहे थे। धीरे धीरे महाराणा की सेना का पक्ष निर्बल होने लगा। राजपूत-कुल-कलंक राजा मानसिंह की खोज करते करते महाराणा प्रताप शत्रु सेना में विचरण करने लगे। परन्तु मस्तक पर मेवाड़ राजछत्र- लगा हुआ था, उसको देख कर मुगल सेना ने इनको घेर लिया। महाराणा प्रताप इस समय विशेष संकट में थे। आसपास में इनकी सहायता के लिये कोई सामन्त या सरदार न था। परन्तु थोड़े ही समय में “जय महाराणा प्रताप की जय” ! का घोष जोरों से सुनाई दिया। इस जयनाद के साथ ही वीरवर भालांपति मन्नाजी झपटते हुये सेना सहित प्रताप के निकट आ पहुंचे, मन्नाजी ने महाराजा से ऐसे संकट के समय राजचिन्ह देकर वहां से निकल जाने की प्रार्थना की। महाराणा ने कहा ” मन्नाजी ! रण में पीठ दिखाना राजपूत का काम नहीं। यह कायरता पूर्ण कार्य मैं नहीं कर सकता। मात्रभूमि की रक्षा के लिए में अन्तिम श्वास तक लड़ता रहूंगा। आप मुझे यह क्या सलाह दे रहे हैं। मन्नाजी ने कहा “महाराज यह समय विलम्ब करने का नहीं। हिन्दुओं की रक्षा के लिए, मेवाड भूमि को स्वतन्त्र कराने के लिए, मेवाड में घुसे हुए विदेशियों को निकालने के लिए यह आवश्यक है कि आप प्राणों की बलि न दें, हम आपको रण से नहीं हटा रहे वरन् निरन्तर मुगलों (विदेशियों ) से युद्ध करने के लिए यहां से इस समय अलग कर रहे हैं। मन्नाजी की बातों का महाराणा प्रताप जी पर असर हुआ, उन्होंने राजपूत सरदारों के परामर्श का पालन किया तथा वहां से अलग हो गये। राणा ने अपना छतर और झण्डा झालाजी को दे दिया। इधर वीरवर मन्नाजी को ही राणा समझ कर मुगल सैनिक उन पर टूट पड़े। मन्नाजी ने प्रचएंड युद्ध कौशल दिखाया परंतु, विशाल सेना का मुकाबला न कर सके ओर कई यवनों को मार कर स्वयं भी मातृभूमि की गोद में हमेशा के लिए सो गये। महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक विश्वासपात्र, मनुष्यों के सम्मान बुद्धि रखने वाला, इशारा पाते ही हवा से बातें करने लगा। हजारों लोगों ने महाराणा को रोकने के लिए,उन पर आक्रमण करने के लिए चेतक पर तीर, बरहछे, फेंके परन्तु वह जख्मी होकर भी अपने प्रिय राजा को लेकर मुगल सेना के बीचोंबीच होकर चला जा रहा था। दो पठान सरदारों ने महाराणा का पीछा किया और उन्होंने भी अपने घोड़े दौडा दिये। महाराणा प्रताप सिंह का छोटा भाई शक्ति सिंह जो इस समय अकबर की सेना में नायक का काम कर रहा था ? सबकुछ देख रहा था। राणा के प्राणों को संकट में देख कर ममत्व जाग पडा। अतः भाई को रक्षार्थ उसने पठान सैनिकों का पीछा किया और उन सैनिकों को अपनी गोली का शिकार बनाया। शक्तिसिंह ने अपने भैया प्रताप को रुकने के लिए कहा किन्तु उन्होंने एक नहीं सुनी और नदी पार करने तक घोड़े पर दौड़ते रहें। जब नदी पार करली तो घोड़ा थक चुका था वे घोड़े से उतर पड़े और पीछे घूम कर देखा तो भाई शक्तिसिंह खड़ा था। महाराणा प्रताप ने कहा “भाई शक्ति ! तुम अब भी मेरे प्राणों के पीछे पड़े हो ! लो आज अपने हाथों से ही इस प्रताप का अन्त कर दो, सारा मेवाड़ उजड़ चुका है और आँखें उजड हुए मेवाड़ को नहीं देखता चाहती” शक्तिसिंह घोड़े से उतर कर महाराणा के चरणों में गिरकर बच्चों की तरह बिलख बिलख कर रोने लगे और कहने लगे कि “भैया ! मेरा अपराध क्षमा कर दो, मुझ दोषी को माफ कर दो। महाराणा प्रताप के नेत्रों में भी आंसू थे। यह था अनूठा: मिलन। महाराणा प्रताप ने अपने घोड़े की ओर देखा, वह अपनी करुण आंखों से विदाई मांग रहा था। देखते देखते प्यारे चेतक के प्राण-पखेरू उड़ गये। महाराणा का एकमात्र सहारा, युद्ध-स्थल में विश्वास पात्र साथी अंगरक्षक, आज वह भी चल बसा-हमेशा के लिये। महाराणा प्रताप फूट- फूट कर रोने लगे। चेतक की विदाई उनके लिये हृदय विदारक थी। शक्तिसिंह ने उनेको सानतवना दिलाई और अपना घोड़ा राणा-को दे दिया। इस युद्ध के पश्चात महाराणा प्रताप को अपने देश के लिये, स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए, मेवाड़-भूमि की मुक्त करवाने के लिये अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। हिन्दुओं के तिलक, स्वतन्त्रता के महान पुजारी, प्रात: स्मरणीय महाराणा प्रताप को बारह वर्ष एक सैनिक की भांति भूखे प्यासे रहकर जंगलों और अरावलियों की पहाड़ियों में छिप छिप कर दिन व्यतीत करने पड़े। ऐसी विषम परिस्थिति में भी महाराणा को कभी-कभी अकबर की सेना का मुकाबला करना पड़ता था। उनके साथ छोटे छोटे बच्चे व महारानी भी थी। जीवन पूर्ण कष्टमय था । बादशाह अकबर राणा को पकड़ने की ताक में था। उसने कई प्रयत्न किये परन्तु असफल रहा। महाराणा प्रताप अपनी स्त्री और बच्चों के साथ बीहड़ जंगलों में घास की रोटी खाकर जीवन निर्वाह करते थे। उन रोटियों को भी कभी कभी वन के बिलांव बच्छों से छीनकर ले जाते, बच्चे रो पड़ते, कितना करुण दृश्य था। परन्तु राणा अपने प्रण से कभी विचलित नहीं हुये। उनको चिन्ता थी केवल मेवाड़ भूमि को बंधनों से मुक्त करने की। हर समय इसी विषय पर चिन्तन रहता था। अन्त में स्वाघीनता के पुजारी, मातृभूमि के सच्चे सपूत की प्रार्थना भगवान ने सुन ली और मेवाड़ भूमि के सच्चे सेवक “भामाशाह ने अपना असंख्य द्रव्य राजाजी के चरणों में अर्पित कर दिया। धन्य है मातृभूमि के लाड़ले भामाशाह को जिसने देशहितअपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। राणाजी के हृदय में पुन: साहस की लहर दौड़ पड़ी और सेना का संगठन कर अपने पौरुष से कई किलो पर अधिकार कर लिया। परन्तु वे अपने प्रिय चित्तौड़ के किले को मुक्त न करा सके। उससे पूर्व ही उनका स्वास्थ्य गिरता गया और उनको मृत्यु शैय्या पर सोना पड़ा। उन्होंने अपने पुत्र और वीर सामंतों को बुला कर कहा वीर सपूतों दृढ़ संकल्प करो कि मेरे मरने के बाद मेरी प्रतिज्ञा को पूर्ण करोगे। और सम्पूर्ण मेवाड़ की भूमि को स्वतन्त्र कराओगे। सभी उपस्थित वीर सामंतों ने और महाराणा प्रताप के वीर पुत्र अमरसिंह ने मरते दम तक यवनों से स्वतंत्रता संग्राम जारी रखने की दृढ़ प्रतिज्ञा की। इन शब्दों से वीर महाराणा प्रताप की आत्मा को शांति मिली और सदा के लिए मातृभूमि की गोद में सो गए। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- चौरासी गुंबद कालपी – चौरासी गुंबद का इतिहास चौरासी गुंबद यह नाम एक ऐतिहासिक इमारत का है। यह भव्य भवन उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना नदी श्री दरवाजा कालपी – श्री दरवाजे का इतिहास भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में कालपी एक ऐतिहासिक नगर है, कालपी स्थित बड़े बाजार की पूर्वी सीमा रंग महल कहा स्थित है – बीरबल का रंगमहल उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले के कालपी नगर के मिर्जामण्डी स्थित मुहल्ले में यह रंग महल बना हुआ है। जो गोपालपुरा का किला जालौन – गोपालपुरा का इतिहास गोपालपुरा जागीर की अतुलनीय पुरातात्विक धरोहर गोपालपुरा का किला अपने तमाम गौरवमयी अतीत को अपने आंचल में संजोये, वर्तमान जालौन जनपद रामपुरा का किला और रामपुरा का इतिहास जालौन जिला मुख्यालय से रामपुरा का किला 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 46 गांवों की जागीर का मुख्य जगम्मनपुर का किला – जगम्मनपुर का इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना के दक्षिणी किनारे से लगभग 4 किलोमीटर दूर बसे जगम्मनपुर ग्राम में यह तालबहेट का किला किसने बनवाया – तालबहेट फोर्ट हिस्ट्री इन हिन्दी तालबहेट का किला ललितपुर जनपद मे है। यह स्थान झाँसी - सागर मार्ग पर स्थित है तथा झांसी से 34 मील कुलपहाड़ का किला – कुलपहाड़ का इतिहास इन हिन्दी कुलपहाड़ सेनापति महल कुलपहाड़ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा ज़िले में स्थित एक शहर है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र का एक ऐतिहासिक पथरीगढ़ का किला किसने बनवाया – पाथर कछार का किला का इतिहास इन हिन्दी पथरीगढ़ का किला चन्देलकालीन दुर्ग है यह दुर्ग फतहगंज से कुछ दूरी पर सतना जनपद में स्थित है इस दुर्ग के धमौनी का किला किसने बनवाया – धमौनी का युद्ध कब हुआ और उसका इतिहास विशाल धमौनी का किला मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित है। यह 52 गढ़ों में से 29वां था। इस क्षेत्र बिजावर का किला किसने बनवाया – बिजावर का इतिहास इन हिन्दी बिजावर भारत के मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर जिले में स्थित एक गांव है। यह गांव एक ऐतिहासिक गांव है। बिजावर का बटियागढ़ का किला किसने बनवाया – बटियागढ़ का इतिहास इन हिन्दी बटियागढ़ का किला तुर्कों के युग में महत्वपूर्ण स्थान रखता था। यह किला छतरपुर से दमोह और जबलपुर जाने वाले मार्ग राजनगर का किला किसने बनवाया – राजनगर मध्यप्रदेश का इतिहास इन हिन्दी राजनगर मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में खुजराहों के विश्व धरोहर स्थल से केवल 3 किमी उत्तर में एक छोटा सा पन्ना का इतिहास – पन्ना का किला – पन्ना के दर्शनीय स्थलों की जानकारी हिन्दी में पन्ना का किला भी भारतीय मध्यकालीन किलों की श्रेणी में आता है। महाराजा छत्रसाल ने विक्रमी संवत् 1738 में पन्ना सिंगौरगढ़ का किला किसने बनवाया – सिंगौरगढ़ का इतिहास इन हिन्दी मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के दमोह जिले में सिंगौरगढ़ का किला स्थित हैं, यह किला गढ़ा साम्राज्य का छतरपुर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – छतरपुर का इतिहास की जानकारी हिन्दी में छतरपुर का किला मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में अठारहवीं शताब्दी का किला है। यह किला पहाड़ी की चोटी पर चंदेरी का किला किसने बनवाया – चंदेरी का इतिहास इन हिन्दी व दर्शनीय स्थल भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अशोकनगर जिले के चंदेरी में स्थित चंदेरी का किला शिवपुरी से 127 किमी और ललितपुर ग्वालियर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – ग्वालियर का इतिहास व दर्शनीय स्थल ग्वालियर का किला उत्तर प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है। इस किले का अस्तित्व गुप्त साम्राज्य में भी था। दुर्ग बड़ौनी का किला किसने बनवाया – बड़ौनी का इतिहास व दर्शनीय स्थल बड़ौनी का किला,यह स्थान छोटी बड़ौनी के नाम जाना जाता है जो दतिया से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। दतिया का इतिहास – दतिया महल या दतिया का किला किसने बनवाया था दतिया जनपद मध्य प्रदेश का एक सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक जिला है इसकी सीमाए उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद से मिलती है। यहां कालपी का इतिहास – कालपी का किला – चौरासी खंभा हिस्ट्री इन हिंदी कालपी का किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति प्राचीन स्थल है। यह झाँसी कानपुर मार्ग पर स्थित है उरई उरई का किला किसने बनवाया – माहिल तालाब का इतिहास इन हिन्दी उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद मे स्थित उरई नगर अति प्राचीन, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व का स्थल है। यह झाँसी कानपुर एरच का किला किसने बनवाया था – एरच के किले का इतिहास हिन्दी में उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद में एरच एक छोटा सा कस्बा है। जो बेतवा नदी के तट पर बसा है, या चिरगांव का किला किसने बनवाया – चिरगांव किले का इतिहास का इतिहास चिरगाँव झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह झाँसी से 48 मील दूर तथा मोड से 44 मील गढ़कुंडार का किला का इतिहास – गढ़कुंडार का किला किसने बनवाया गढ़कुण्डार का किला मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में गढ़कुंडार नामक एक छोटे से गांव मे स्थित है। गढ़कुंडार का किला बीच बरूआ सागर का किला – बरूआसागर झील का निर्माण किसने और कब करवाया बरूआ सागर झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह मानिकपुर झांसी मार्ग पर है। तथा दक्षिण पूर्व दिशा पर मनियागढ़ का किला – मनियागढ़ का किला किसने बनवाया था तथा कहाँ है मनियागढ़ का किला मध्यप्रदेश के छतरपुर जनपद मे स्थित है। सामरिक दृष्टि से इस दुर्ग का विशेष महत्व है। सुप्रसिद्ध ग्रन्थ मंगलगढ़ का किला किसने बनवाया था – मंगलगढ़ का इतिहास हिन्दी में मंगलगढ़ का किला चरखारी के एक पहाड़ी पर बना हुआ है। तथा इसके के आसपास अनेक ऐतिहासिक इमारते है। यह हमीरपुर जैतपुर का किला या बेलाताल का किला या बेलासागर झील हिस्ट्री इन हिन्दी, जैतपुर का किला उत्तर प्रदेश के महोबा हरपालपुर मार्ग पर कुलपहाड से 11 किलोमीटर दूर तथा महोबा से 32 किलोमीटर दूर सिरसागढ़ का किला – बहादुर मलखान सिंह का किला व इतिहास हिन्दी में सिरसागढ़ का किला कहाँ है? सिरसागढ़ का किला महोबा राठ मार्ग पर उरई के पास स्थित है। तथा किसी युग में महोबा का किला – महोबा दुर्ग का इतिहास – आल्हा उदल का महल महोबा का किला महोबा जनपद में एक सुप्रसिद्ध दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल कालीन है इस दुर्ग में कई अभिलेख भी कल्याणगढ़ का किला मानिकपुर चित्रकूट उत्तर प्रदेश, कल्याणगढ़ दुर्ग का इतिहास कल्याणगढ़ का किला, बुंदेलखंड में अनगिनत ऐसे ऐतिहासिक स्थल है। जिन्हें सहेजकर उन्हें पर्यटन की मुख्य धारा से जोडा जा भूरागढ़ का किला – भूरागढ़ दुर्ग का इतिहास – भूरागढ़ जहां लगता है आशिकों का मेला भूरागढ़ का किला बांदा शहर के केन नदी के तट पर स्थित है। पहले यह किला महत्वपूर्ण प्रशासनिक स्थल था। वर्तमान रनगढ़ दुर्ग – रनगढ़ का किला या जल दुर्ग या जलीय दुर्ग के गुप्त मार्ग रनगढ़ दुर्ग ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। यद्यपि किसी भी ऐतिहासिक ग्रन्थ में इस दुर्ग खत्री पहाड़ विंध्यवासिनी देवी मंदिर तथा शेरपुर सेवड़ा दुर्ग व इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में शेरपुर सेवड़ा नामक एक गांव है। यह गांव खत्री पहाड़ के नाम से विख्यात मड़फा दुर्ग के रहस्य – जहां तानसेन और बीरबल ने निवास किया था मड़फा दुर्ग भी एक चन्देल कालीन किला है यह दुर्ग चित्रकूट के समीप चित्रकूट से 30 किलोमीटर की दूरी पर रसिन का किला प्राकृतिक सुंदरता के बीच बिखरे इतिहास के अनमोल मोती रसिन का किला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले मे अतर्रा तहसील के रसिन गांव में स्थित है। यह जिला मुख्यालय बांदा अजयगढ़ का किला किसने बनवाया था व उसका इतिहास अजयगढ़ की घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य अजयगढ़ का किला महोबा के दक्षिण पूर्व में कालिंजर के दक्षिण पश्चिम में और खुजराहों के उत्तर पूर्व में मध्यप्रदेश कालिंजर का किला – कालिंजर का युद्ध – कालिंजर का इतिहास इन हिन्दी कालिंजर का किला या कालिंजर दुर्ग कहा स्थित है?:--- यह दुर्ग बांदा जिला उत्तर प्रदेश मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर बांदा-सतना ओरछा का किला – ओरछा दर्शनीय स्थल – ओरछा के टॉप 10 पर्यटन स्थल शक्तिशाली बुंदेला राजपूत राजाओं की राजधानी ओरछा शहर के हर हिस्से में लगभग इतिहास का जादू फैला हुआ है। ओरछा भारत के महान पुरूष राजस्थान के वीर सपूतराजस्थान के शासक