महाराणा अमरसिंह की वीरता और साहस की कहानी Naeem Ahmad, October 25, 2022February 22, 2023 जिस प्रकार मातृभूमि के सपूत स्वतन्त्रता के महान पुजारी आजादी के दीवाने महाराणा प्रताप ने जीवन पर्यन्त अकबर बादशाह से लोहा लिया और मेवाड़ को स्वतन्त्र कराने दृढ़ प्रतिज्ञा की उसी प्रकार अपने पिता की भांति दृढ़ प्रतिज्ञ महाराणा अमरसिंह ने जहांगीर से डटकर मुकाबला किया। ऐसी राजपूत वीरों की कहानियां जब पढ़ने या सुनने को मिलती है तो बलिदान, त्याग और वीरता से हम रोमांचित हो उठते हैं तथा स्वतः ही श्रृद्धावश उन वीरों के प्रति सिर झूक जाता है, उसी घड़ी हम धन्य हो उठते हैं। अकवर बादशाह ने अपनी कूटनीति व चातुर्य से बड़े बड़े राजाओं को अपने अधीन व निस्तेज कर दिया था और चारों ओर अपना प्रभुत्व जमा लिया था। यद्यपि अपनी स्वतन्त्रता को कायम रखने के लिए डटकर विपत्तियों का मुकाबला करने के लिये महाराणा प्रताप को कांटों पर चलना पड़ा, परन्तु यवन बादशाह के सामने कभी नतमस्तक नहीं हुये। पिता की भांति वीर पुत्र महाराणा अमरसिंह ने भी दिल्ली सम्राट जहांगीर से हमेशा टक्कर ली। वे अपने पिता की अन्तिम इच्छा पूरी करना चाहते थे। उधर जहांगीर भी अमरसिंह का गौरव नष्ट करने पर तुला था। महाराणा अमरसिंह की वीरता और साहस की कहानी महाराणा अमरसिंह बचपन से ही विपत्तियों में पले थे। आंधियों ने ही लोरियां सुनाई थीं। और जंगल के बीहड़ पथ ही उनके सोने के लिये सेज बनी थी। इन्हीं कठिनाइयों ने इनके जीवन को सशक्त और परम वीर बना दिया था। इनकी माता के त्यागपूर्ण संस्कार व पिताजी का पावन रक्त इनकी नस-नस में व्याप्त था। दिल्ली सम्राट जहांगीर ने कई बार महाराणा अमरसिंह को कुचलने के लिये, अपने अधीन करने के लिये विशाल सेनायें आक्रमण करने हेतु भेजी किन्तु स्वाधीनता के अनुयायी, वीर राजपूतों के सामने हर बार बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी। अन्त में एक बार जहांगीर ने भारी सेना के साथ महाराणा अमरसिंह पर हमला कर दिया। जब इस आक्रमण का पता मेवाड़ नरेश को चला तो उन्होंने पूरी तैयारी के साथ मुसलनानों से मोर्चा लेनें के लिये एक सशक्त सेना का संगठन किया। चारों ओर सीमान्त प्रान्तों पर सेना को व्यवस्थित रूप से जमा दिया। महाराणा अमरसिंह महाराणा अमरसिंह में बड़ा जोश था उनमें अपने पिता के कष्टों का बदला लेनें की बड़ी उमंग थी। वे युद्ध की तैयारी के सम्बन्ध में, यवनों के दांत खट्टे करने के लिये बडी बड़ी योजनायें बना रहे थे। उस समय इनकी सेना में दो सशक्त वीरों के दल थे। प्रथम चंद्रावत और द्वितीय शक्तावत। दोनों ही वीर दलों में बड़ा जोश और उमंग थी। दोनों दलों में हिरावल का पद प्राप्त करने के लिये विवाद पैदा हो गया। हिरावल” का अभिप्राय हैं कि युद्ध में सबसे आगे रहने वाली सेना तथा सबसे पहले शत्रु पर आक्रमण करने वाले वीर। दोनों दलों में से प्रत्येक यह चाहता था कि प्रथम आक्रमण करने का अवसर उसे मिले। दोनों ही दल के सरदार राणा के पास आये और घटना का वर्णन करने लगे। “मेवाड़ रक्षक ! आपसे छिपा हुआ नहीं कि हमारे पूर्वज कितने बलशाली थे और वीरवर चंड की देश सेवाओं से प्रत्येक राजस्थानी पूर्ण रूप से परिचित है। हम उन्हीं के वंशज (चन्द्रावत) अपनी गौरवमय परम्परा के आधार पर “हिरावल” का पद प्राप्त करना चाहते हैं। मेवाड़ भूमि की तन, मन, धन से रक्षा करना भी हमारा कर्तव्य है। किन्तु शक्तावत सरदार श्रीमान के सेवा में बहुत थोड़े समय से है किस प्रकार उक्त पद प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं ? चन्द्रावत सरदार ने महाराणा से कहा। राजपुतों में कितना जोश उमंग व देशभक्ति कूट कूट कर भरी थी ! उनमें मातृभूमि के लिए बलिदान होने की कितनी मधुर स्पर्धा थी। प्रत्यत्तर में शक्तावत सरदार कहने लगे, “मेवाड़. नरेश ! चंद्रावत सरदार ने जो कुछ कहा है प्राचीन परम्परा की बात है। प्राचीन समय में चन्द्रावत सरदार अधिक शक्तिशाली थे अत: इस पद के अधिकारी भी थे। किन्तु अब आप भी जानते हैं कि इस युद्ध में शक्ति किसकी प्रबल है ? अत: “हिरावल” के सच्चे अधिकारी शक्तिशाली हैं न कि परम्परा के पुजारी। महाराणा दोनों की वीरता व स्पर्धा ने हृदय में बहुत प्रसन्न थे परन्तु अनावश्यक विवाद होने की स्थिति में वो धर्म संकट में भी थे। इस गृह कलह से बचने के लिए तथा यवनों पर भीषण आक्रमण करने के लिए आदेश दिया– “आप लोग मुगलों के अंतला दुर्ग पर आक्रमण कर दीजिए ओर दोनों सरदारों में जो पहिले दुर्ग पर अपना विंजय का झंडा फहरा देगा वही इस “हिरावल’ का रक्षक समझा जायेगा। इस बात पर दोनों ने अपनी अपनी स्वीकृति दे दी। अंतला दुर्ग मगल सेना की सीमा का एक बड़ा प्रभावशाली व पूर्ण सुरक्षित सैन्य दुर्ग था। दोनों सरदारों की सेंनाओं ने एक साथ अन्तला दुर्ग पर भीषण आक्रमण किया। शक्तावत सरदार व चन्द्रवत सरदार ने अपने अपने यद्ध कौशल के तरीके अपनाये तथा यवन सेना पर भीषण प्रहार करना शुरू किया। महाराणा अमरसिंह स्वयं घूम घूम कर युद्ध व्यवस्था का निरीक्षण कर रहे थे तथा राजपूत वीरों को प्रोत्साहित भी कर रहे थे। शक्तावत सरदार ने सकड़ों यवन सैनिकों को, जो दुर्ग की रक्षा पर तेनात थे, यमलोकपुरी पहुंचा दिया। इसके साथ ही साथ किले के अन्दर प्रवेश पाने के लिए अपने भीमकाय हाथी को विशाल फाटक पर ठेल दिया किन्तु किवाड़ पर लगे हुए शूलों से चोट खाकर वापिस लौट आया। इधर चन्दावत सरदार सीढ़ी द्वारा दुर्ग पर चढ़ने लगा ताकि विजय प्राप्त कर किले पर विजय पताका फहरा सके। परन्तु इसी क्षण दुश्मन की तोप के गोले ने सरदार को नीचे गिरा दिया और आशाओं पर पानी फेर दिया। दूसरे क्षण वे ही उत्साही वीर फिर सीढ़ी की ओर अग्रसर हुये और शीघ्रता से किले पर चढ़ने लगे। चन्दावत सरदार की मृत्यु से शक्तावत सरदारों का साहस अधिक बढ़ गया और उन्होंने किले के फाटक को तोड़ने का प्रयास जारी रखा। हाथी के बार बार फाटक से व्यथित होकर लौटने से शक्तावत सरदार चिन्तित थे। अन्त में शक्तावत सरदार को एक उपाय सूुझा, वह स्वयं किले की फाटक पर चढ़ गया और महावत को हाथी अपने ऊपर ठेलने की आज्ञा दी। हाथी की जोरदार टक्कर से शक्तावत सरदार के टुकड़े टुकड़े हो गये और साथ ही फाटक भी टूट कर गिर पड़ा। शक्तावत सरदार मारे खुशी के किले पर चढ़कर विजय पताका फहराने हेतु शीघ्रता से बढ़ने लगे,परन्तु आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब कि उन्होंने इसके पूर्व ही चन्द्रावत सरदार की पताका फहरती हुई देखी। बादशाह जहांगीर राजपूतों के स्पर्धायुक्त युद्ध कौशल को देखकर दंग रह गया। उसके सारे स्वप्नों पर पानी फिरने-सा लगा। राजपूतों की वीरता ने सम्राट के हृदय पर एक अमिट छाप छोड़ दी। इस वीरता पूर्ण कार्य से प्रसन्न होकर महाराणा अमरसिंह ने दोनों सरदारों की सेनाओं को बधाई दी तथा चन्द्रावत सरदार को सेना में “हिरावल” का स्थान देकर सम्मानित किया। महाराणा अमरसिंह ने अपने वीरतापूर्ण कार्यो से अपने पूज्य पिता का सफलता के साथ प्रतिनिधित्व किया। उदारता, वीरता, दया तथा न्यायपरायणता आदि महान गुण महाराणा अमरसिंह में विद्यमान थे। इन समस्त गुणों के होने से ही सेना, सामंत, ईष्ट मित्र और प्रजाजन देखभाल से अमरसिंह की पूजा करती थी। धन्य है उन वीर वीर पुरुष को जिन्होंने अपने आत्म गौरव व मातृभूमि की रक्षा हेतु प्राणों की बली हंसते हंसते थे दी। हमारे यह लेख भी जरूर पढ़े:—- चौरासी गुंबद कालपी – चौरासी गुंबद का इतिहास चौरासी गुंबद यह नाम एक ऐतिहासिक इमारत का है। यह भव्य भवन उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना नदी श्री दरवाजा कालपी – श्री दरवाजे का इतिहास भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में कालपी एक ऐतिहासिक नगर है, कालपी स्थित बड़े बाजार की पूर्वी सीमा रंग महल कहा स्थित है – बीरबल का रंगमहल उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले के कालपी नगर के मिर्जामण्डी स्थित मुहल्ले में यह रंग महल बना हुआ है। जो गोपालपुरा का किला जालौन – गोपालपुरा का इतिहास गोपालपुरा जागीर की अतुलनीय पुरातात्विक धरोहर गोपालपुरा का किला अपने तमाम गौरवमयी अतीत को अपने आंचल में संजोये, वर्तमान जालौन जनपद रामपुरा का किला और रामपुरा का इतिहास जालौन जिला मुख्यालय से रामपुरा का किला 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 46 गांवों की जागीर का मुख्य जगम्मनपुर का किला – जगम्मनपुर का इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन जिले में यमुना के दक्षिणी किनारे से लगभग 4 किलोमीटर दूर बसे जगम्मनपुर ग्राम में यह तालबहेट का किला किसने बनवाया – तालबहेट फोर्ट हिस्ट्री इन हिन्दी तालबहेट का किला ललितपुर जनपद मे है। यह स्थान झाँसी - सागर मार्ग पर स्थित है तथा झांसी से 34 मील कुलपहाड़ का किला – कुलपहाड़ का इतिहास इन हिन्दी कुलपहाड़ सेनापति महल कुलपहाड़ भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के महोबा ज़िले में स्थित एक शहर है। यह बुंदेलखंड क्षेत्र का एक ऐतिहासिक पथरीगढ़ का किला किसने बनवाया – पाथर कछार का किला का इतिहास इन हिन्दी पथरीगढ़ का किला चन्देलकालीन दुर्ग है यह दुर्ग फतहगंज से कुछ दूरी पर सतना जनपद में स्थित है इस दुर्ग के धमौनी का किला किसने बनवाया – धमौनी का युद्ध कब हुआ और उसका इतिहास विशाल धमौनी का किला मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित है। यह 52 गढ़ों में से 29वां था। इस क्षेत्र बिजावर का किला किसने बनवाया – बिजावर का इतिहास इन हिन्दी बिजावर भारत के मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर जिले में स्थित एक गांव है। यह गांव एक ऐतिहासिक गांव है। बिजावर का बटियागढ़ का किला किसने बनवाया – बटियागढ़ का इतिहास इन हिन्दी बटियागढ़ का किला तुर्कों के युग में महत्वपूर्ण स्थान रखता था। यह किला छतरपुर से दमोह और जबलपुर जाने वाले मार्ग राजनगर का किला किसने बनवाया – राजनगर मध्यप्रदेश का इतिहास इन हिन्दी राजनगर मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में खुजराहों के विश्व धरोहर स्थल से केवल 3 किमी उत्तर में एक छोटा सा पन्ना का इतिहास – पन्ना का किला – पन्ना के दर्शनीय स्थलों की जानकारी हिन्दी में पन्ना का किला भी भारतीय मध्यकालीन किलों की श्रेणी में आता है। महाराजा छत्रसाल ने विक्रमी संवत् 1738 में पन्ना सिंगौरगढ़ का किला किसने बनवाया – सिंगौरगढ़ का इतिहास इन हिन्दी मध्य भारत में मध्य प्रदेश राज्य के दमोह जिले में सिंगौरगढ़ का किला स्थित हैं, यह किला गढ़ा साम्राज्य का छतरपुर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – छतरपुर का इतिहास की जानकारी हिन्दी में छतरपुर का किला मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में अठारहवीं शताब्दी का किला है। यह किला पहाड़ी की चोटी पर चंदेरी का किला किसने बनवाया – चंदेरी का इतिहास इन हिन्दी व दर्शनीय स्थल भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अशोकनगर जिले के चंदेरी में स्थित चंदेरी का किला शिवपुरी से 127 किमी और ललितपुर ग्वालियर का किला हिस्ट्री इन हिन्दी – ग्वालियर का इतिहास व दर्शनीय स्थल ग्वालियर का किला उत्तर प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है। इस किले का अस्तित्व गुप्त साम्राज्य में भी था। दुर्ग बड़ौनी का किला किसने बनवाया – बड़ौनी का इतिहास व दर्शनीय स्थल बड़ौनी का किला,यह स्थान छोटी बड़ौनी के नाम जाना जाता है जो दतिया से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। दतिया का इतिहास – दतिया महल या दतिया का किला किसने बनवाया था दतिया जनपद मध्य प्रदेश का एक सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक जिला है इसकी सीमाए उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद से मिलती है। यहां कालपी का इतिहास – कालपी का किला – चौरासी खंभा हिस्ट्री इन हिंदी कालपी का किला ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अति प्राचीन स्थल है। यह झाँसी कानपुर मार्ग पर स्थित है उरई उरई का किला किसने बनवाया – माहिल तालाब का इतिहास इन हिन्दी उत्तर प्रदेश के जालौन जनपद मे स्थित उरई नगर अति प्राचीन, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व का स्थल है। यह झाँसी कानपुर एरच का किला किसने बनवाया था – एरच के किले का इतिहास हिन्दी में उत्तर प्रदेश के झांसी जनपद में एरच एक छोटा सा कस्बा है। जो बेतवा नदी के तट पर बसा है, या चिरगांव का किला किसने बनवाया – चिरगांव किले का इतिहास का इतिहास चिरगाँव झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह झाँसी से 48 मील दूर तथा मोड से 44 मील गढ़कुंडार का किला का इतिहास – गढ़कुंडार का किला किसने बनवाया गढ़कुण्डार का किला मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले में गढ़कुंडार नामक एक छोटे से गांव मे स्थित है। गढ़कुंडार का किला बीच बरूआ सागर का किला – बरूआसागर झील का निर्माण किसने और कब करवाया बरूआ सागर झाँसी जनपद का एक छोटा से कस्बा है। यह मानिकपुर झांसी मार्ग पर है। तथा दक्षिण पूर्व दिशा पर मनियागढ़ का किला – मनियागढ़ का किला किसने बनवाया था तथा कहाँ है मनियागढ़ का किला मध्यप्रदेश के छतरपुर जनपद मे स्थित है। सामरिक दृष्टि से इस दुर्ग का विशेष महत्व है। सुप्रसिद्ध ग्रन्थ मंगलगढ़ का किला किसने बनवाया था – मंगलगढ़ का इतिहास हिन्दी में मंगलगढ़ का किला चरखारी के एक पहाड़ी पर बना हुआ है। तथा इसके के आसपास अनेक ऐतिहासिक इमारते है। यह हमीरपुर जैतपुर का किला या बेलाताल का किला या बेलासागर झील हिस्ट्री इन हिन्दी, जैतपुर का किला उत्तर प्रदेश के महोबा हरपालपुर मार्ग पर कुलपहाड से 11 किलोमीटर दूर तथा महोबा से 32 किलोमीटर दूर सिरसागढ़ का किला – बहादुर मलखान सिंह का किला व इतिहास हिन्दी में सिरसागढ़ का किला कहाँ है? सिरसागढ़ का किला महोबा राठ मार्ग पर उरई के पास स्थित है। तथा किसी युग में महोबा का किला – महोबा दुर्ग का इतिहास – आल्हा उदल का महल महोबा का किला महोबा जनपद में एक सुप्रसिद्ध दुर्ग है। यह दुर्ग चन्देल कालीन है इस दुर्ग में कई अभिलेख भी कल्याणगढ़ का किला मानिकपुर चित्रकूट उत्तर प्रदेश, कल्याणगढ़ दुर्ग का इतिहास कल्याणगढ़ का किला, बुंदेलखंड में अनगिनत ऐसे ऐतिहासिक स्थल है। जिन्हें सहेजकर उन्हें पर्यटन की मुख्य धारा से जोडा जा भूरागढ़ का किला – भूरागढ़ दुर्ग का इतिहास – भूरागढ़ जहां लगता है आशिकों का मेला भूरागढ़ का किला बांदा शहर के केन नदी के तट पर स्थित है। पहले यह किला महत्वपूर्ण प्रशासनिक स्थल था। वर्तमान रनगढ़ दुर्ग – रनगढ़ का किला या जल दुर्ग या जलीय दुर्ग के गुप्त मार्ग रनगढ़ दुर्ग ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। यद्यपि किसी भी ऐतिहासिक ग्रन्थ में इस दुर्ग खत्री पहाड़ विंध्यवासिनी देवी मंदिर तथा शेरपुर सेवड़ा दुर्ग व इतिहास उत्तर प्रदेश राज्य के बांदा जिले में शेरपुर सेवड़ा नामक एक गांव है। यह गांव खत्री पहाड़ के नाम से विख्यात मड़फा दुर्ग के रहस्य – जहां तानसेन और बीरबल ने निवास किया था मड़फा दुर्ग भी एक चन्देल कालीन किला है यह दुर्ग चित्रकूट के समीप चित्रकूट से 30 किलोमीटर की दूरी पर रसिन का किला प्राकृतिक सुंदरता के बीच बिखरे इतिहास के अनमोल मोती रसिन का किला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले मे अतर्रा तहसील के रसिन गांव में स्थित है। यह जिला मुख्यालय बांदा अजयगढ़ का किला किसने बनवाया था व उसका इतिहास अजयगढ़ की घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य अजयगढ़ का किला महोबा के दक्षिण पूर्व में कालिंजर के दक्षिण पश्चिम में और खुजराहों के उत्तर पूर्व में मध्यप्रदेश कालिंजर का किला – कालिंजर का युद्ध – कालिंजर का इतिहास इन हिन्दी कालिंजर का किला या कालिंजर दुर्ग कहा स्थित है?:--- यह दुर्ग बांदा जिला उत्तर प्रदेश मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर बांदा-सतना ओरछा का किला – ओरछा दर्शनीय स्थल – ओरछा के टॉप 10 पर्यटन स्थल शक्तिशाली बुंदेला राजपूत राजाओं की राजधानी ओरछा शहर के हर हिस्से में लगभग इतिहास का जादू फैला हुआ है। ओरछा भारत के महान पुरूष राजस्थान के वीर सपूतराजस्थान के शासक