महाराजा सरदार सिंह जी के स्वर्गवासी होने के पश्चात् महाराजा सुमेर सिंह जीजोधपुर के राज्यासन पर बिराजे। जिस समय आप गद्दीनशीन हुए उस समय आपकी अवस्था केवल 14 वर्ष की थी, अतएव मारवाड़ राज्य में फिर दुबारा रिजेंसी बैठने का अवसर आया। इस रिजेंसी के प्रेसिडेन्ड महाराजा प्रताप सिंह जी नियुक्त हुए।
महाराजा सुमेर सिंह जी विद्याभ्यास के लिये इंग्लैंड पधारे थे। आप जिस समय विलायत में थे उस समय जोधपुर में राज्य-प्रबंध का नया ढंग किया गया। शहर में बिजली का कारखाना खोला गया। वकीलों की परीक्षाएँ नियत की गई। चीफ़ कोर्ट खोले गये। संसार-प्रसिद्ध युरोपीय महाभारत में श्रीमान महाराजा साहब ने अच्छी सहायता प्रदान की थी। आप स्वयं भी फ्रांस के रण-क्षेत्र में पधारे थे। वहाँ 9 माह युद्ध में रहकर आप वापस जोधपुर लौट आये थे।
महाराजा सुमेर सिंह जोधपुर
ई० स० 1914 में आप गवर्मेंट सेना के आनरेरी लेफिटनेंट बनाये गये थे। ई० स० 1915 में तीसरी स्किर्नस होर्स सेना के अफिसर भी नियुक्त हुए थे। आपने बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी को दो लाख रुपया प्रदान किया। साथ ही 24 हजार रुपया सालाना प्रोफेसर के वेतन के लिये निश्चित किया, जिससे इंजिनियरिंग प्रोफ़ेसर का वेतन दिया जाता था। 19 वर्ष की अवस्था हो जाने पर आपको राज्य का सारा कारोबार सौंप दिया गया। आपने अपने राज्यकाल में जोधपुर में एक सरदार म्युजियम नामक अजायब घर खोला था। जोधपुर की प्रजा के लिये ‘घुमेर-पबलिक-लायब्रेरी’ नामक एक विशाल वाचनालय भी खोला था।
ई० स० 1918 में युद्ध की सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराजा साहब को K.B.F की उपाधि प्रधान की गई। आपके राज्य-काल में जोधपुर में प्लेग की भयंकर बीमारी फैली थी। उस समय आपने लोगों के लिये नगर के बाहर सरकारी मकान खाली करवा दिये थे। अनाज मँहगी होने के कारण सैकड़ों प्रजाजनों को तकलीफ होती थी अतएव सस्ता अनाज बिकवाने के लिये आपने सरकार की ओर से दूकानें खुलवाई थीं। ई० स० 1918 में इन्फ्लएंजा की बीमारी के कारण आपका केवल 21 वर्ष की अवस्था में देहान्त हो गया। छोटी अवस्था में भी आप बड़े साहसी, निर्भीक, वीर एवं चतुर थे। प्रजा पर आपका बड़ा प्रेम था ।