राजा अमरसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र महाराजा साहिब सिंह जीपटियाला रियासत की गद्दी पर बैठे। इस समय उनकी उम्र 6 वर्ष की थी। महाराजा साहिब सिंह जी के गददीनशीन होने पर सम्राट शाहआलम ने आपको “महाराजा” का खिताब बख्शा। दीवान नन्नूमल ने साहिब सिंह जी की नाबालिगी में कुछ दिनों तक बढ़ी चतुराई से राज्य कार्य किया। इनका जनता पर बड़ा प्रभाव था। किन्तु जब इन्होंने राज्य के कुछ अन्दरूनी झगड़ों को दबाने के लिये मराठों की मदद माँगी, तब ये अपने पद से हटा दिये गये और बाल महाराजा की बहिन बीबी साहिब कौर दीवान का काम करने लगी। आप में राजपूती जोश और धैर्य दोनों विद्यमान थे। जिस समय सन् 1794 में मराठों ने पटियाला राज्य पर फिर चढ़ाई की थी, तो आप स्वतः सेना सहित युद्ध क्षेत्र में पहुँची थीं और अपनी वीरता का परिचय दिया था।
महाराजा साहिब सिंह का इतिहास और जीवन परिचय
सन् 1804 में लॉर्ड लेक महाराजा जसवन्तराव का पीछा करते हुए पटियाला राज्य से गुजरे, उस समय महाराजा साहिब सिंह जी ने उन्हें अच्छी सहायता पहुँचाई। इस सहायता के प्रतिफल में लॉर्ड लेक ने आपसे इकरार नामा किया जिसमें उन्होंने आपको विश्वास दिलाया कि जब तक आप साम्राज्य सरकार से मित्र भाव रखेंगे तब तक वह आप से किसी भी तरह का कर नहीं लेगी। सन् 1805 में दुलही गाँव के स्वामित्व-संबंधी में झगड़ा पड़ा। यह झगड़ा इतना बढ़ा कि इसके कारण बहुत सा रक्तपात हुआ। नाभा और जिंद के नरेशों ने इस झगड़े में दखल देने के लिये महाराजा रणजीत सिंह का आहान किया। महाराजा रणजीत सिंह के सतलुज नदी पार करने पर उनका सामना पटियाला की फौजों से हुआ। पटियाला रियासत की फौज ने उन्हें इतना भीषण युद्ध किया कि विवश होकर पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह को उनसे सुलह करनी पड़ी। वे पटियाला रियासत छोड़कर मार्ग में दूसरे राजाओं को पराजित करते हुए लाहौर वापिस लौट गए। प्रबल महाराजा रणजीत सिंह के आक्रमण के भय से महाराजा साहिब सिंह जी तथा सतलुज नदी के निकटस्थ दूसरे सिक्ख सरदारों ने मिलकर अंग्रेजों से सहायता चाही। अंग्रेजों ने उन्हें न केवल सहायता देने का अभिवचन ही दिया परंतु महाराजा रणजीत सिंह जी को सतलुज नदी के दक्षिण तट पर बसे हुए सारे मुल्क से अपना कब्जा हटाने के लिए भी बाध्य किया।
महाराजा साहिब सिंह पटियालापटियाला रियासत में आपसी कलह का अभी तक पूरी तौर से दमन नहीं हुआ था। इस समय वहां एक शक्तिशाली शासक की बड़ी आवश्यकता थी। अतएव लुधियाना के ब्रिटिश एजेंट के अनुरोध से रानी कौर रिजेंट नियुक्त की गई। रानी साहिबा बड़ी सुयोग्य महिला थी। उन्होंने राज्य कार्य बड़ी योग्यता से संभाला। राजा साहिब सिंह चिरकाल तक राज्योपभोग न लें सके, सन् 1813 में महाराजा साहिब सिंह की मृत्यु हो गई।
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