महाराजा रत्नसिंह जी के स्वर्गवासी हो जाने पर सन् 1852 में
उनके पुत्र महाराजा सरदार सिंह जीबीकानेर राज्य के सिंहासन पर विराजमान हुए। महाराजा सरदारसिंह ने सन् 1852 से सन् 1872 तक बीकानेर राज्य पर शासन किया। आपके राज्याभिषेक के समय से बीकानेर की राज्य-शक्ति मानो क्रमश: हीन होने लगी थी। जो बल, विक्रम, शूरता, साहस आदि गुण राठौर राजाओं के भूषण थे, वे सब अग्रेज सरकार के साथ सन्धि करने से एक बार ही निर्जीव से हो गये थे। युद्धों से शान्ति मिलने से राजपूत जाति की वीरता का मानों एक बार ही लोप हो गया था। आपको राज्य करते हुए केवल पाँच ही वर्ष हुए थे कि भारत में सिपाही विद्रोह का कांड उपस्थित हो गया। इस समय आप बड़े आग्रह के साथ अपनी सेना सहित ब्रिटिश गवर्नमेंट की सहायता के लिये तैयार हुए। आपने इस समय हजारों अंग्रेजों के प्राणों की रक्षा करके उन्हें अपनी राजधानी में आश्रय दिया।
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महाराजा सरदार सिंह का इतिहास और जीवन परिचय

विद्रोह शान्त हो जाने पर आपकी इन बहुमूल्य सहायताओं के उपलक्ष्य मे हिसार देश के चौद॒ह हज़ार दो सौ बानवे रुपये की आमदनी वाले 41 गाँव ब्रिटिश सरकार ने आपको प्रदान किये। इसी समय महारानी विक्टोरिया की ओर से आपको सम्मान- सूचक खिलअत तथा दत्तक रखने की सनद भी प्राप्त हुई। इसवी सन् 1861 में मारवाड़ ओर बीकानेर राज्य में सीमा सम्बन्धी झगड़े फिर उपस्थित हो गये। अन्त में ब्रिटिश गवर्नमेंट ने मध्यस्थ होकर सब उपद्रव शांत कर दिये। महाराजा सरदार सिंह ने अपने शासन-काल मे सामन्तों से लिय जाने वाले कर में बहुत वृद्धि कर दी। ब्रिटिश सरकार ने प्रदान किये हुए 41 ग्रामों में भी आप कर बढ़ाने की चेष्टा करने लगे। इस पर वहाँ की प्रजा बिगड़ खड़ी हुई। अन्त में ब्रिटिश सरकार के अनुरोध से आपने इन भागों के कर में किसी प्रकार की बढ़ोतरी नहीं की। सन् 1872 के जनवरी मास में महाराजा सरदार सिंह का देहान्त हो गया।