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महाराजा डूंगर सिंह बीकानेर राज्य

महाराजा डूंगर सिंह का इतिहास और जीवन परिचय

महाराजा सरदार सिंह जी की पुत्रहीन अवस्था में मृत्यु होने से बीकानेर का राज्य-सिंहासन सूना हो गया। इसी कारण से ब्रिटिश
गवनमेंंट की आज्ञानुसार मंत्रि-मण्डल की सृष्टि करके उसके हाथों में शासन का भार सोंपा गया। प्रधान राजनैतिक कर्मचारी इस मंत्रि-मण्डल के सभापति होकर राज्य करने लगे। इस प्रकार कुछ काल तक राज्य-कार्य चलने के पश्चात्‌ राजरानी और सामन्तों ने नवीन महाराज नियुक्त करने का विचार किया। अतएव राज-घराने के लालसिंह नामक एक बुद्धिमान मनुष्य के पुत्र डूंगर सिंह को दत्तक ग्रहण करने का प्रस्ताव किया गया। ब्रिटिश गवर्मेंट ने स्वर्गीय महाराज सरदार सिंह जी को दत्तक लेने की सनद प्रदान कर दी थी, अतएवं उसने बिना कुछ आपत्ति किये महाराजा डूंगर सिंह जी के राज्याभिषेक के प्रस्ताव में शीघ्र ही अपनी अनुमति दे दी। अल्पावस्था ही में महाराजा डूंगर सिंह जी राजा की उपाधि धारण कर बड़ी धूमधाम के साथ बीकानेर के राज्य-सिहासन पर बिराजे।

महाराजा डूंगर सिंह का इतिहास और जीवन परिचय

महाराजा डूंगर सिंह अल्पवयस्क होने के कारण राजकार्य को कुछ नहीं जानते थे, इसी से आपके हाथ में सम्पूर्ण राज्य-शासन का भार देना असम्भव जानकर ब्रिटिश गवर्नमेन्ट की नीति के अनुसार एक मंत्रि-मण्डल नियुक्त हुआ। महाराजा डूंगर सिंह के पिता इस मण्डल के सभापति पद पर नियुक्त हुए तथा महाराव हरिसिंह, राव यशवन्त सिंह और मेहता मानमल आदि सदस्य पद पर नियुक्त हुए। महाराजा डूंगर सिंह जी बालिग होने पर भी मंत्रि मंडल की सहायता से राज्य-शासन करते थे। सन् 1876 में आप हरिद्वार और गया तीर्थ को गये। वहाँ से लौटते समय आपने तत्कालीन प्रिंस ऑफ वेल्स से आगरा में भेंट की।

महाराजा डूंगर सिंह बीकानेर राज्य
महाराजा डूंगर सिंह बीकानेर राज्य

महाराजा डूंगर सिंह ने अपने शासन-काल में सामन्तों से लिये जाने वाले कर में बहुत वृद्धि कर दी। प्रायः सभी सामन्तों पर दूना कर लाद दिया। सामन्तों ने मिलकर आप से प्रतिवाद किया। किन्तु आपने किसी की न सुनी। आपके कर-वृद्धि के प्रस्ताव से बीकानेर राज्य के तत्कालीन पोलिटिकल एजेट ने भी आपका पक्ष ग्रहण किया। इससे बहुत से बड़ें बड़े सामन्त डर गये थे। वे वृद्धि कर देने में सहमत भी हो गये। यद्यपि बड़े बड़े सामन्तों ने भयभीत होकर वृद्धि कर देना स्वीकार कर लिया था, तथापि बहुतेरे सामन्तों ने असन्तोष प्रकट किया। इसी समय महाराजा डूंगर सिंह जी ने बीदावाटी के सामन्तों से जो 50000 रुपया ‘कर’ लिया जाता था उसे भी बढ़ाकर 86000 रुपया कर दिया। इससे राज्य में धीरे धीरे उपद्रव होने लगा। इसके कुछ दिनो बाद कप्तान टालवट बीकानेर के पोलिटकल एजेट के पद पर नियुक्त हुए। आपने असन्तुष्ट सामंतों को बुलाकर बहुत कुछ समझाया और धमकाया किन्तु सामन्तों पर उनके कहने का कुछ भी असर न हुआ। वे राजधानी छोड़कर अपने अपने निवास स्थान को चले गये। जब सब सामन्त असन्तुष्ट होकर अपने अपने निवास स्थानों को चले गये तब महाराजा डूंगर सिंह जी ने अत्यन्त क्रोधित हो उनका दमन करने के लिए अपने प्रधान सेनापति हुकम सिंह के संचालन मे एक सेना भेज कर उन पर आक्रमण करने का विचार किया। ब्रिटिश एजेट ने भी आपके इस प्रस्ताव का समर्थन किया। अतएव हुकम सिंह अपनी सारी सेना साथ ले विद्रोही सामंतों पर आक्रमण करने के लिये रवाना हुए। यह सुन कर सभी सामन्त अपने अपने स्वार्थ की रक्षा के लिये अपनी अपनी सेना तथा कुटम्बियों को साथ ले महाजन नामक स्थान में एकत्रित हुए। जब सामन्तों ने देखा कि महाराज की सेना के साथ मुकाबला करने में वे असमर्थ हैं तो उन्होंने बीदावाटी देश के बीदासर नामक किले में आश्रय लेकर हुकुम सिंह से सामना करने का विचार किया।
बीदावाटी के सामन्तों ने भी वृद्धित ‘कर’ देना स्वीकार नहीं किया था, अतएव उन्होंने विद्रोही सामन्तों का नेतृत्व स्वीकार किया।

सामन्तों की इस प्रकार से युद्ध की तैयारी देख कर महाराजा डूंगर
सिंह जी ने पूर्ण रूप से उनका दमन करने के लिये कप्तान टालवट साहब से अंग्रेजी सेना भेजने का प्रस्ताव किया। ब्रिटिश गवर्नमेंट की अज्ञानुसार जनरल जिलेसपि के संचालन में 1800 अंग्रेजी सेना बीकानेर में आ पहुंची राज्य की सेना और अंग्रेजी सेना ने मिलकर बीदासर के किले को घेर लिया। कप्तान टालबट भी अंग्रेजी सेना के साथ ही युद्ध-स्थल पर पहुँचे थे। उन्होंने विद्रोही सामन्तों से कहला भेजा कि वे शीघ्र ही बीदासर के किले को छोड़ दे। इस पर सामन्तों ने कहला भेजा कि जब तक उनसे लिये जाने वाले कर का विचार भली भाँति न किया जायगा तब तक वे निविध्नता-पूर्वक किले में ही रहेंगें।

सामन्तों से यह धुष्टतापूर्णं उत्तर पाकर कप्तान टालवट साहब भी
भलीभाँति जान गये कि राठौर सामस्त अंग्रेजी सेना को आया हुआ देख कर कुछ भी भयभीत नहीं हुए हैं। अतएव उन्होंने उक्त किले के मुँह पर गोलों की वर्षा करने का हुक्म दिया। बहुत समय के पश्चात्‌ फिर एक वक्त समरानल ने प्रव्जलित होकर विचित्र दृश्य दिखाया। निरन्तर गोलों की वर्षा करके अंग्रेजी सेना ने बीदासर के प्राचीन किले को विध्वंस कर दिया। अंत में सामन्तों ने सन् 1883 की 23 वीं दिसंबर को अँग्रेजी सेना को आत्मसमपर्ण कर दिया। अंग्रेज़ी सेना ने बीदासर के किले के अतिरिक्त और भी कई एक किले तोड़-फोड़ डाले। बीदासर के सामन्तों के आत्म समर्पण करते ही वे राजनेतिक कैदी के रूप में देहली के किले में भेज दिये गये। अन्य विद्रोही सामन्त भी बन्दी भाव से कारागार में रखे गये। इस प्रकार राज्य में शान्ति स्थापन कर अंग्रेजी सेना वापिस चली गई। सन् 1887 में महाराजा डूंगर सिंह की मृत्यु हो गई।

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Naeem Ahmad

CEO & founder alvi travels agency tour organiser planners and consultant and Indian Hindi blogger

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