महाराजा डूंगर सिंह की मृत्यु के बाद महाराजा गंगा सिंह जीबीकानेर राज्य के सिंहासन पर विराजे। महाराजा गंगा सिंह का जन्म सन् 1880 की 3 अक्टूबर को हुआ था। आप राठौड़ राजपूत थे तथा स्वर्गीय महाराजा डूंगरसिंह जी के ग्रहीत पुत्र थे। महाराजा गंगा सिंह तथा स्वर्गीय महाराजा भाई भाई थे। आप महाराज लाल सिंह के पुत्र थे। सन् 1887 की 31 वीं अगस्त को महाराजा गंगा सिंह जी बीकानेर राज्य की गद्दी पर बैठे। उस समय आप नाबालिग थे, अतएवं आपको शासनाधिकार प्राप्त न हुए।
महाराजा गंगा सिंह का इतिहास और जीवन परिचय
बाद में बालिग हो जाने पर सन् 1898 की 16 दिसम्बर को आप सम्पूर्ण अधिकारों से सम्पन्न हुए। आपके शासन-भार गृह करने के कुछ ही दिनों पश्चात् राज्य भर में भयंकर अकाल पड़ा। इस समय आपने अपनी प्रजा को अकाल से बचाने के लिये बहुत कोशिश की, जिसके पुरस्कार में आपको ब्रिटिश सरकार की ओर से प्रथम श्रेणी के केसर ए-हिन्द का सम्मान मिला। सन् 1902 की 14 जून को आप इन्डियन आर्मी के ऑनरेरी मेजर के पद पर नियुक्त हुए। महाराजा गंगा सिंह का विवाह प्रतापगढ़ के महाराजा साहिब की कन्या के साथ हुआ था। सन् 1900 के अगस्त मास में आप अपने गंगा रिसाला सहित चीन के समर में उपस्थित हुए और युद्ध खतम होने पर दिसम्बर मास में वापस लौट आये। इस सहायता के पुरस्कार-स्वरूप आपको के० सी० आई० की उपाधि प्राप्त हुई। इसके दो वर्ष पश्चात आपको एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिनका नाम महाराज कुमार श्री शार्दूलसिंह जी रखा गया। ये ही आगे चलकर बीकानेर राज्य के भावी महाराजा बने। इसके पश्चात् सन् 1906 में आपकी उपरोक्त महारानी साहिबा परलोक सिधारी। सन् 1904 में आपको भारत सम्राट के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में के० सी०आई० ई० की उपाधि मिली थी। इसके तीन वर्ष पश्चात् आपको जी० सी० आई ० ई० की उपाधि भी मिल गई। सन् 1908 की 3 मई को आपका विक्रमपुर के ताजिमी पट्टेदार साहब की कन्या के साथ द्वितीय विवाह सम्पन्न हुआ। इसके दूसरे वर्ष की 29 मार्च को इन महारानी से आपके विजय सिंह जी नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ। कुमार विजय सिंह जी को आपने अपने पिता लालसिंह जी की जागीर पर दत्तक रख दिया था।
महाराजा गंगा सिंहसन 1910 की 3 जून को अर्थात् सम्राट पंचम जॉर्ज के राज्य अभिषेक उत्सव के दिन आपको कर्नल की उपाधि मिली तथा आप सम्राट के ए० डी० सी० के पद पर नियुक्त हुए। इसके एक वर्ष पश्चात् सम्राट के राज्यारोहण उत्सव में सम्मिलित होने के लिये निमन्त्रित किये जाने पर आप इंग्लेंड पधारे। इस समय आपको केंम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की ओर से एल० एल० डी० की उपाधि मिली । इसी वर्ष के दिसम्बर मास में आप देहली दरबार में जी० सी ० एस० आई० की उपाधि से विभूषित किये गये।
जिस समय यूरोप में भयंकर युद्ध की ज्वाला प्रज्वलित हुई, उस
समय आपने अपने राज्य की समस्त सेना एवं अन्य सामान भारत सरकार को अर्पण कर दिये। इतना ही नहीं, आपने युद्ध में सम्मिलित होने की अनुमती माँगी। अनुमति मिलने पर आप अपनी सेना सहित भारत सरकार की ओर से फ्रांस और इजिप्त के युद्ध-क्षेत्रों में सम्मिलित हुए। आप अधिक दिनों तक रणक्षेत्र में न ठहर सके, क्योंकि आपकी पत्नी श्री महाराज कुमारी बड़ी अस्वस्थ थीं। अतएव आप सन् 1915 के फरवरी मास में वापस लौट आये। सन् 1917 में युद्ध कांफ्रेंस में सम्मिलित होने के लिये आप भारतीय नरेशों के प्रतिनिधि मनोनीत किये जाने पर फिर इंग्लेंड पधारे।
इस समय आपको मेजर-जनरल की उपाधि प्राप्त हुई। एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी ने भी इस समय आपको एल० एल० डी की ऑनररी उपाधि प्रदान की। सन् 1918 में आप फिर इग्लेंड पधारे तथा व्हारसेलीज के सुलह कांफ्रेंस में सम्मिलित हुए। इसके दूसरे वर्ष की पहली जनवरी को आपको जी० सी० बी० की उपाधि मिली। इसके दो वर्ष पश्चात् अर्थात् सन् 1921 की 1 जनवरी को आप जी सी० बी० ई० की फौजी उपाधि से विभूषित किये गये। इसी वर्ष आप नरेन्द्र-मण्डल के प्रथम चॉन्सलर के पद पर चुने गये। आपका सम्पूर्ण नाम निम्न प्रकार हैः– “मेजर जनरल हिज हायनेस महाराजा राजराजेश्वर शिरोमणि श्री सर गंगा सिंह बहादुर, जी० सी० एस० आई०, जी० सी० आई ० ई०,जी० सी० बी० ओ०, जी० बी० ई०, के० सी० बी०, ए० डी० सी०, एल० एल० डी० । महाराजा गंगा सिंह को 19 तोपों की सलामी का सम्मान प्राप्त था। आपके आप्र-गणों के नाम महाराज श्री सर भैरोसिंह जी बहादुर के० सी० एच० आइ० तथा महाराज श्री जगमंगलसिंह जी आदि थे।
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