महाराजा सुमेर सिंह जी के कोई पुत्र न था अतएवं आपके भाई महाराजा उम्मेद सिंह जीजोधपुर की गद्दी पर सिंहासनारूढ़ हुए। सिंहासन पर बैठते समय आपकी भी अवस्था केवल 16 वर्ष की थी। अतएवं फिर तीसरी वक्त कौन्सिल आफ़ रीजेन्सी की स्थापना हुई। फिर भी महाराजा प्रताप सिंह जी ही कौन्सिल के प्रेसिडेन्ट मुक़़र्र हुए।
महाराजा उम्मेद सिंह का इतिहास
महाराजा उम्मेद सिंह जी की पढ़ाई अजमेर के मेयो कालेज में हुई
थी। ई० स० 1921 में गवर्नमेंट ने महाराजा की सलामी 17 तोपों से बढ़ाकर 19 कर दी। आपका विवाह ढींकाई के ठाकुर साहब की कन्या के साथ हुआ है। सन् 1921 में ड्यूक आफ कनाट जोधपुर पधारे थे उन समय आपने उनका अच्छा सत्कार किया। सन् 1922 में महाराजा साहब ने कौन्सिल में बैठकर काम देखना शुरू किया और कुछ ही समय बाद कुछ महकमों का भी कार्य आप की देखरेख में होने लगा। इसी वर्ष गवर्नमेंट सरकार ने आपको K.C.V.O की उपाधि प्रदान की।
महाराजा उम्मेद सिंह जोधपुरसन् 1923 में महाराजा साहब ने सम्पूर्ण राज्य-भार अपने ऊपर ले लिया। आपने अपने राज्य को सुचारु रूप से चलाने के लिये रीजेंसी कौन्सिल को बदल कर उसके स्थान पर स्टेट कोंसिल की नियुक्ति की। उसके चार मेम्बर बनाये गये। वही पद्धति इस काफी समय चलती रही। महाराजा साहब को पोलो और शिकार खेलने का बड़ा शौक था। मारवाड़ की पोलो-टीम ने अनेक स्थानों से कप प्राप्त किये हैं। यहाँ तक कि इंग्लैंड में भी मारवाड़ की पोलो-टीम ने अच्छी ख्याति प्राप्त की है। मारवाड़ ही की टीम ने सन् 1924 में कलकत्ते के प्रसिद्ध वायसराय कप को जीता था।
आपके दो बहिनें एवम एक छोटे भाई थे। बहनों का विवाह क्रमशः
रींघा के महाराजा गुलाब सिंह जी ओर जयपुर के महाराजा मानसिंह जी के साथ हुआ है। आपके छोटे भाई अजीत सिंह जी भी बड़े होनहार व्यक्ति थे। आपका विवाह इसरदे के ठाकुर साहब की कन्या के साथ हुआ था। इनके सिवाय महाराजा साहब के दो राजकुमार भी हैं। मारवाड़ राज्य का विस्तार 35016 वर्ग मील थी। जोधपुर राज्य की मुनुष्य संख्या 1841642 थी। इस राज्य में कोई नदी ऐसी नहीं है जो बारहों मास बहती हो। इस राज्य की आमदनी विस्तार के हिसाब से बहुत कम थी। कारण इसका यह था कि इसका पश्चिमीय भाग बहुत बंजर और रेतीला था।
फिर भी इसकी आमदनी 12000000 रुपया थी। खर्च सालाना 1200000 के करीब होता था गवर्नमेंट 108000 रुपया सालाना लेती थी। इसके अलावा ऐरनपुरा रेजीमेंट, इम्पीरियल सर्विस रिसाले आदि के लिये क्रमशः 115000 और 2564728 के करीब खर्च होते थे। महाराजा साहब बड़े उदार थे। आपका प्रजा पर बड़ा प्रेम था। आप हमेशा उसके हित के कार्य करते रहते थे। सन् 1954 ई. में राजा उम्मेदसिंह का देहावसान हो गया।
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