महाराजा कर्ण सिंह जी के तीन पुत्रों की मृत्यु तो उपरोक्त लेख में बतलाये मुताबिक हो ही चुकी थी। केवल चौथे पुत्र महाराजा अनूप सिंह जी बच गये थे। अतएव सन् 1764 में राजा की उपाधि धारण
कर आप राज सिंहासन पर बेठे। आप एक महावीर ओर असीम साहसी पुरुष थे। बादशाह ने आपको पाँच हज़ार अश्वारोही सेना की मनसब तथा बीजापुर और औरंगाबाद आदि प्रांतों के शासन का भार अर्पण किया। जिस समय काबुल के अफगान दिल्ली के बादशाह से विद्रोही हो गये थे, उस समय उस विद्रोह को दमन करने के लिये महाराजा अनूप सिंह बादशाह द्वारा काबुल भेजे गये थे। आपने वहाँ पहुँच कर इस विद्रोह को दमन करने में विशेष सहायता की थी। इसके बाद भी आपने कई युद्धों में अपना पराक्रम दिखाया था। आपके मृत्यु-स्थान के विषय में मतभेद है। फारसी इतिहासकार
फरिश्ता लिखता है कि- आपने दक्षिण में प्राण त्याग किये।” परन्तु राठौरों के इतिहास से यह मालूम होता है कि जिस समय आप दक्षिण में सेना सहित गये थे, उस समय मार्ग में अपने डेरा जमाने के स्थान पर बादशाह के सेनापति के साथ आपका कुछ झगड़ा हो गया। इससे आप अत्यंत्र विरक्त होकर अपने बीकानेर राज्य में विपस लौट आये। कुछ ही दिनों बाद आपने शरीर त्याग दिया। आपके स्वरूप सिंह और सुजान सिंह नामक दो पुत्र थे।
महाराजा अनूप सिंह जी के पश्चात्
महामति टॉड महोदय लिखते हैं कि—“स्वरूप सिंह जी सन् 1709 में अपने पिता के सिहासन पर बैठे, परन्तु आपने अधिक दिन तक राज्य शासन नहीं किया। आपने अपने जीवन की शेष दशा में बादशाह की सेना से अपना सम्बन्ध भी त्याग दिया था। इसी से आपको दिया हुआ ओड़नी देश भी बादशाह ने वापस ले लिया था। इस देश पर अपना अधिकार करने के लिये आपने उस पर आक्रमण किया और इसी आक्रमण में आप मारे गये।
महाराजा अनूप सिंहस्वरूप सिंह जी की मृत्यु के पश्चात् उनके छोटे भाई सुजान सिंह जी गद्दी पर बिराजे। आपके शासन-काल में कोई उल्लेखनीय घटना नहीं हुई। आपकी मृत्यु हो जाने पर सन् 1735 में राजा जोरावर सिंह जी बीकानेर के अधीश्वर के नाम से विख्यात हुए। आपका शासनकाल भी सुजान सिंह जी की तरह स्मरणीय नहीं था। दस वर्ष राज्य करने के पश्चात् आपका देहान्त दो गया।
जोरावर सिंह जी की मृत्यु के पश्चात् वीरश्रेष्ठ गजसिंह जी बीकानेर राज्य की गद्दी पर बैठे। आपका शासन कई उल्लेखनीय घटनाओं से परिपूर्ण था। आप वास्त्व में एक यथार्थ राठौड़ वीर थे। आपने इकतालीस वर्ष तक राज्य किया आपने अपने राज्यकाल में राज्य की सीमा बढ़ाई। बीकानेर राज्य की सीमा में स्थित भाटियों के साथ तथा भावलपुर के मुसलमान राजाओं के साथ आपने बराबर कई युद्ध करके अपने बाहुबल का परिचय दिया। राजासर, कालिया, गनियार, सत्यसर, मुतालाई आदि कितने ही छोटे छोटे प्रदेश जीत कर आपने अपने राज्य में मिला लिये। भावलपुर के अधिनायक दाऊ खाँ के साथ युद्ध करके आपने अपने राज्य की सीमा में स्थित अत्यन्त महत्वपूर्ण अनूपगढ़ नामक किले पर अधिकार कर लिया।
महाराजा गजसिंह जी के 61 पुत्र थे। परन्तु इनमें से क छः
पुत्र विवाहिता रानियों से उत्पन्न हुए थे। उनके नाम ये हैं:–
(१) छत्रसिंह, (२) राजसिंह, (३) सुरतानसिंह, (४) अजब सिंह,
(९) सूरतसिंह, (६) श्यामसिंह।
इन छः पुत्रों में से छत्रसिंह की मृत्यु के पश्चात् राजपूत रीति के अनुसार सन् 1787 में राजसिंह जी राज्य के अधीश्वर हुए, परन्तु आपकी सौतेली माता तथा सूरतसिंह की माता के हृदय में हिंसा और द्वेष की अग्नि प्रबल होने से आप पन्द्रह दिन तक भी राज्य सिंहासन को शोभायमान न कर सके। सूरत सिंह की माता ने स्वयं अपने हाथ से विष देकर आपके जीवन को समाप्त कर दिया। माता जैसी पिशाचिनी थी ठीक वैसे ही सूरत सिंह भी थे। अतएव भयभीत होकर सुरतान सिंह भौर अजब सिंह ने भी बीकानेर राज्य को छोड़ दिया और वे जयपुर मे निवास करने लगे। श्याम सिंह जी भीबीकानेर के अन्तर्गत एक छोटे से राज्य का अधिकार पाकर वहीं निवास करने लगे।
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