महाबोधि मंदिर का इतिहास और परिचय

महाबोधि मंदिर

भारत केबिहार राज्य में बोध गया एक बौद्ध तीर्थ नगरी है। वैसे तो यहां अनेक बौद्ध मंदिर और तीर्थ है परंतु यहां का मुख्य मंदिर महाबोधि मंदिर है। जिसके बारे में हम अपने इस लेख में विस्तार से जानेंगे।बौद्ध गया जहां महाबोधि मंदिर है पहले इस जगह का नाम उरुविल्व था और यहाँ बहुत बड़ा जंगल था और एक निरंजना नाम की नदी थी। उसी नदी का नाम अब फलगु नदी है। जब महात्मा बुद्ध को कठोर तपस्या से शान्ति नहीं मिली तब उन्होंने निरंजना नदी में स्नान किया और सुजाता नाम की स्त्री के दिये हुए भोजन (खीर) से तृप्त होकर बोधि वृक्ष (पीपल का वृक्ष) के नीचे ध्यान मग्न होकर बैठ गये और यहीं पर उनको दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ और इस स्थान का नाम उरुविल्व से बोध गया पड़ गया। यहाँ पर सम्राट अशोक ने एक विशाल मंदिर बनवाया। इसी मंदिर का नाम महाबोधि मंदिर हुआ।

महाबोधि मंदिर का इतिहास

यह 2300 वर्ष पुराना मंदिर है और बोध गया का मुख्य मंदिर है। पश्चिम की ओर बोधि वृक्ष है जिसे लोग सतयुग के वृक्ष की शाखा कहते हैं। इसी वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध ने 39 दिन निराहार पूर्व मुख बैठकर तपस्या की थी और सर्वोच्च दिव्य ज्ञान प्राप्त किया था। आज भी उस वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध की मूर्ति स्थापित है और बोधि वृक्ष के दक्षिण में हिन्दू अपने पितरों का उद्धार करने के लिए पिंडदान करते हैं। सम्राट अशोक ने इस बोधि वृक्ष की एक डाली बड़े उत्सव के साथ लंका में भेजी थी।

महाबोधि मंदिर
महाबोधि मंदिर

सन् 1205 ई० में मुहम्मद बखत्यार खिलजी यहाँ आया था और उसने मंदिर को 30 फुट ऊपर से तुड़वा कर सड़क के लेवल में मिलवा दिया था। महाबोधि मंदिर की एक मंजिल भूगर्भ में थी ऊपर केवल कलश दिखाई देता था। सन् 1889 में सरकार की सहायता से इसका जीर्णोद्वार किया गया, अब महाबोधि मंदिर की ऊँचाई 170 फीट है। इस मंदिर के कम्पाउड मे 480 मानसिक स्तूपा है जिसकी मनोकामना पूरी हो जाती थी वह यहाँ एक स्तूप बना देता था। लेकिन अब बोधि वृक्ष मे कपडा बॉध कर चले जाते है स्तूप नही बनाते। मुहम्मद बखत्यार खिलजी ने बोधि वृक्ष को भी नष्ट कर दिया था। इसलिए सम्राट अशोक के समय बोधि वृक्ष की जो शाखा लंका में ले जायी गई थी उसी वृक्ष की शाखा लंका से लाकर यहाँ लगाई गई।

एक समय महाबोधि मंदिर की देखभाल करने वाले 8 व्यक्ति होते थे। चार हिन्दू ओर चार बौधिष्ट। मंदिर मे बैठे हुए भगवान बुद्ध की विशाल मूर्ति है तथा शिवलिंग भी है इसलिए मंदिर मे दो पुजारी है। एक बुद्ध की पूजा करने वाला बोधिष्ट है और दूसरा शंकराचार्य जी द्वारा बनाये गये शिवलिंग की पूजा करने वाला पंडित है। इस शिवलिंग को बुद्धेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। महाबोधि मंदिर के अहाते में अशोक स्तम्भ है इसमे एक गोल पत्थर है। मान्यता है कि इस पत्थर से कमर रगडन से कमर का दर्द ठीक हो जाता है। स्तम्भ के ऊपर का कटा हुआ चक्र कलकत्ता म्यूजियम मे है। यूनेस्को द्वारा महाबोधि मंदिर को विश्व धरोहर का सम्मान दिया गया है।

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