मैं एक ऐसी पद्धति लेकर हिमालय से उतरा, जो मनुष्य के मन और हृदय को उन, ऊंचाइयों तक ले जा सकती है, जहां वास्तविक ज्ञान और वास्तविक मानवीय प्रकृति को पूरी तरह आत्मसात किया जा सकता है। मैं अपनी इस पद्धति को ध्यान कहता हूं, परंतु वास्तव में यह भीतर की खोज का मार्ग है। इस पद्धति द्वारा मनुष्य अपने अस्तित्व की उन अंतर्याम गहराइयों में पहुंच सकता है, जिनमें जीवन, सार-तत्त्व और समूचे अस्तित्व अर्थात् विवेक, सृजनशीलता, शांति और प्रसन्नता का निवास है। ध्यान शब्द नया नहीं है। इसके लाभ भी कुछ नये नहीं हैं। वास्तव में ध्यान की यह पद्धति पिछली कुछ शताब्दियों में मानव दृष्टि से ओझल हो गयी थी और इसके अभाव में मनुष्य जाति कष्ट पा रही थी। इस प्रकार महर्षि महेश योगी ने यह बात साफ कर दी है कि उनके द्वारा प्रतिपादित भावातीत ध्यान की पद्धति प्रमुखतः आत्मा, ईश्वर अथवा मनुष्य द्वारा अपनी इन्द्रियों से अनुभव किये जाने वाले जगत के पीछे छिपी हुई सर्वोच्च सत्ता की खोज का साधन नहीं है। भावातीत ध्यान आत्मा की चेतना के उस बुनियादी स्तर की खोज की प्रक्रिया है, जिससे कि समस्त चेतना का उदय होता है और वह चेतना जगत में विहार तथा विचरण करती है और अंततः उसी में लौटकर विलीन हो जाती है, जो समस्त संभावनाओं का क्षेत्र है।
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महर्षि महेश योगी का जन्म, स्थान, माता पिता और शिक्षा
महर्षि महेश योगी का जन्म जबलपुर में हुआ था। उनका बचपन का नाम महेश श्रीवास्तव था। वे काफी समय तक हिमालय में बद्रिकाश्रम, ज्योतिमठ के जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के साथ रहे। वे कहते हैं कि स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती उनके आध्यात्मिक गुरु थे और उन्होंने भावातीत ध्यान की पद्धति उनसे ही सीखी थी। स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के देहांत के पश्चात् महेश श्रीवास्तव, महर्षि महेश योगी बन गये और उन्होंने समाज के आध्यात्मिक स्तर को शुद्ध करने तथा ऊंचा उठाने का काम हाथ में ले लिया।
वे दक्षिण भारतीय राज्यों में काफी समय घूमते रहे। उस समय तक वे भावातीत ध्यान का प्रचार नहीं कर रहे थे, अतः अपनी दक्षिण यात्रा के दौरान न्होंने अनेक स्थानों पर आध्यात्मिक विकास केन्द्रों की स्थापना की। सन 1957 के अंत तक उन्होंने दक्षिण भारत के लोकमानस में अपने लिए जगह बना ली और उस वर्ष दिसंबर में आध्यात्मिक पनरुत्थान आंदोलन शरू किया, जिसका उदघाटन उन्होंने स्वयं किया। आरंभ से ही महर्षि महेश योगी व्यवस्थित और संगठित रीति से कार्य करते तथा विचारों के प्रचार में उन्हें समारोह और तड़क-भड़क के महत्त्व का बोध था। उनके मन में यह चेतना जाग गयी थी कि उनका जन्म मानव जाति के हित के लिए हुआ है। जनवरी, 1960 में वे पश्चिमी देशों की यात्रा पर निकले। भावातीत ध्यान शब्द का आविष्कार उन्होंने इसी समय अपनी अमरीका यात्रा के दौरान किया और उसमें से समस्त धार्मिक कर्मकाण्ड और आध्यात्मिक रहस्यवाद को निकालकर उसका लौकिकीकरण कर डाला। उन्होंने भावातीत ध्यान को मन के स्तर पर सीमित कर दिया और उसे मानवीय चेतना के विस्तार की एक वैकल्पिक पद्धति के रूप में पश्चिमी जगत के सम्मुख पेश किया।
उन्होंने पश्चिमी जगत में मनोविस्तार के विभिन्न प्रयोगों और उसके लिए चरस, गांजा और एल.एस.डी. जैसे मादक द्रव्यों के प्रयोग का गहरायी से अध्ययन करके भावातीत ध्यान की पद्धति का विकास किया। कुछ भारतीय पंडितों ने उन्हें महर्षि की पदवी प्रदान कर दी थी, अतः वे महर्षि महेश योगी बन गये। महर्षि ने पश्चिमी देशों के अपने श्रोताओं को बताया कि मनोविस्तार के लिए प्रयोग किये जाने वाले रासायनिक द्रव्य अंततः निस्सीम चेतना और समस्त शक्तियों के आदि स्रोत के द्वार खोलने में बाधक सिद्ध होंगे। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने भावातीत ध्यान पद्धति विकल्प के रूप में पेश की।

पश्चिमी देशों के लोग, विशेषतः अमेरीका के समझदार लोग इन
रासायनिक द्रव्यों के हानिकारक प्रभावों के बारे में स्वयं भी चिंतित हो उठे थे, परंतु दूसरी ओर वे एक नितांत पदार्थवादी सभ्यता के तनावों और दबावों से बचनिकलने के लिए हताशा पूर्ण प्रयास कर रहे थे। उन दिनों पश्चिमी देशों में इंग्लैंड के बीटिल्स गायकों और संगीतकारों की टोली बहुत लोकप्रिय हो गयी थी, इसका कारण केवल यह था कि अपने गैर-पारंपरिक संगीत के द्वारा वे लोगों के तनावों और दबावों को ढीला करने में कुछ सीमा तक सहायक सिद्ध हो रहे थे, लेकिन इसी समय टोली में से कुछ लोग अपने ही तनावों से मुक्त होने के लिए चरस और एल.एस.डी. आदि नशों के शिकार हो गये। जब उन्होंने यह सुना कि महर्षि महेश योगी ने एक ऐसी ध्यान पद्धति खोज निकाली है, जिसके द्वारा मादक द्रव्यों के बिना ही मन के तनावों पर विजय पायी जा सकती है तो वे महर्षि की ओर दौड़े और उन्होंने भावातीत ध्यान सीखना शुरू कर दिया। इसी समय हॉलीवुड की प्रसिद्ध सिने तारिका मिया फारो ने महर्षि को गुरु के रूप में स्वीकार कर लिया। इस सबसे महर्षि और उनकी भावातीत ध्यान पद्धति को समूचे विश्व में असाधारण ख्याति प्राप्त हो गयी। शीघ्र ही पश्चिम के लोग उनके पीछे भागने लगे और उनके पास रातों-रात दौलत का ढेर लग गया। बीटिल्स और मिया फारो उनके पीछे-पीछे भारत आ पहुंचे और उनके ऋषिकेश आश्रम में ठहरे।
राष्ट्रों की अपराजयेता
पिछले 30 वर्षों में महर्षि महेश योगी ने भावातीत ध्यान के क्षेत्र में असंख्य प्रयोग किये और अनेक मंजिलें पार कर लीं। उन्होंने सबसे बडी बुद्धिमानी यह की कि वे आत्मा-परमात्मा के चक्कर में उलझे बिना चेतना के मानसिक स्तर पर टिके रहे। अपने इस कार्य में उन्हें अनेक पश्चिमी मनोविज्ञानियों और चिकित्सा शास्त्रियों का सहयोग प्राप्त हुआ। वैज्ञानिकों ने परीक्षणों के आधार पर यह प्रमाणित कर दिया कि भावातीत ध्यान मनुष्य के मन को पूरी तरह आराम पहुंचाता है, उसमें जीवंतता उत्पन्न करता है और उसे सुबद्धता तथा सृजनशीलता प्रदान करता है। वह मनुष्य की ग्रहण शक्ति बढ़ाता है और उसकी सृष्टि तथा ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता का विस्तार कर देता है। भावातीत ध्यान से बुद्धि, ज्ञान और शैक्षणिक योग्यता में वृद्धि होती है।मनोविज्ञानियों ने यह स्वीकार किया है कि भावातीत ध्यान मनुष्य के संपूर्ण व्यक्तित्व’ के विकास में बहुत मदद करता है।
सन् 1975 में महर्षि महेश योगी ने स्विट्जरलैंड में मेरु-महर्षि यूरोपियन रिसर्च यूनिवर्सिटी स्थापित की, जिसका प्रयोजन समस्त शक्तियों के आदि स्रोत-चेतना के क्षेत्र में शोध करना है। अनेक अमरीकी विश्वविद्यालयों ने भावातीत ध्यान को अपने पाठ्यक्रमों में शामिल किया है। जेलों, श्रमिक शिविरों, कारखानों, खेतों, कार्यालयों तथा खेल संस्थानों में सामूहिक भावातीत ध्यान के प्रयोग किये गये और प्रत्येक क्षेत्र में अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुए। अमेरीका में ही नहीं अनेक यूरोपीय राज्यों और रूस में भी भावातीत ध्यान को विद्यालयों के पाठ्यक्रमों तथा सुधार-गृहों के कार्यक्रमों में शामिल किया गया।
शीघ्र ही महर्षि महेश योगी संसार के सबसे अधिक धनाढ्य व्यक्ति बन गये। महर्षि ने अब तक भावातीत ध्यान के लगभग 25 हजार शिक्षक निर्माण किये हैं, जो विश्व के 50 देशों में कोई चार हजार केन्द्रों का संचालन करते हैं। इन केन्द्रों के पास विशाल भवन, पुस्तकालय और वैज्ञानिक उपकरण हैं, जिनका मूल्य अरबों डॉलर में आंका जाता है। उन्होंने दो विश्वविद्यालयों की स्थापना की है। स्विट्जरलैंड में मेरु और अमरीका के आयोवा राज्य के फेयरफील्ड नगर में ‘महर्षि इंटरनेशल यूनिवर्सिटी उन्होंने संसार में तीन सबसे आधुनिक प्रिंटिंग प्रेस कायम किये हैं- न्ययार्क के लिविंग्स्टोन में द एज ऑफ इनलाइटमेंट प्रेस, पश्चिमी जर्मनी में मेरु प्रेस और तीसरा प्रेस अपने निवास स्थान जबलपुर में। जबलपुर में महर्षि इंस्टीट्यूट ऑफ क्रियेटिव इंटेलीजेंस का मुख्यालय भी है।
महर्षि महेश योगी ने अपने विश्व-साम्राज्य की तीन अंतर्राष्ट्रीय राज धानियां घोषित की हैं–स्विटजरलैंड में सीलिसवर्ग, न्ययार्क में साउथ फाल्सबर्ग और ऋषिकेश में शंकराचार्य नगर। इन सब स्थानों पर बड़ी-बड़ी जायदादें खरीदी गयी हैं और विशाल भवनों का निर्माण हुआ है। नई दिल्ली के पास नोएडा क्षेत्र में बहुत तेजी से महर्षि-नगर उभर रहा है, जहां दो विश्वविद्यालयों की स्थापना की गयी’ है-आयुर्वेद विश्वविद्यालय और वैदिक विज्ञान विश्वविद्यालय। दिल्ली से मदुरै तक उद्योगों की एक श्रंखला खड़ी की गयी है, जिनका उत्पादन सिद्धा-प्रोडक्ट्स के नाम से बाजारों में मिलता है। महर्षि महेश योगी के पास अनेक विमान, हैलीकॉप्टर, बड़ी-बड़ी कारें और जलपोत हैं, जिनका दाम करोड़ों डॉलर आंका गया है। उन्होंने इंग्लैंड में महर्षि इंटरनेशल रेड कॉलेज के लिए वहां की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय से बर्घिमन का विक्टोरिया-युगीन शाही महल मौंटमोर-टावर्स लगभग 25 करोड़ पौंड में खरीदा।
आचार्य रजनीश ने दावा किया है कि सन 1984 में फिलिपीन्स के तत्कालीन राष्ट्रपति फर्डीनांड मार्कोस ने उनसे भावातीत ध्यान के शिक्षकों की सेवाएं प्राप्त हो गयी। सन् 1989 में रूस के संस्कृति मंत्रालय ने सन् 1988 के भूकंप में ध्वस्त हुए आर्मीनियाई नगर की भूमि पर एक भविष्योन्मुखी गुंबदाकार बस्ती बसाने की अनुमति दी, जिसमें भावातीत ध्यान के द्वारा भावी भूकंपों को रोकने का कार्य किया जायेगा।
भावातीत ध्यान-सिद्धि कार्यक्रम
महर्षि महेश योगी ने एक नये कार्यक्रम का आविष्कार किया, जिसे उन्होंने नाम दिया-भावातीत ध्यान-सिद्धि कार्यक्रम। वे कहते हैं कि “उसका उद्देश्य व्यक्ति की संपूर्ण क्षमता को क्षण भर में उजागर करना और उसके माध्यम से पूरे राष्ट्र की संपर्ण क्षमता का द्वार खोलना है। ” उनका दावा है कि “यह संपर्ण मानव जाति को उसके परस्पर-विरोधी गुणों और मूल्यों के बावजूद प्रसन्नता और परिपर्णता की दिशा में ले जाने के लिए सुव्यवस्था स्थापित करने वाले विश्वजनीन प्रयास के लिए एक ब्रह्मांडीय योजना है। हम एक ऐसी वस्तु के लिए प्रयास कर रहे हैं, जिसका जीवन में बुनियादी महत्त्व है। विविधताएं और भिन्नताएं बुनियादी नहीं हैं। पेड़ की एक हजार शाखाएं हो सकती हैं, एक हजार पत्तियां, एक हजार फूल और 10 हजार फल भी, परंतु हमारा प्रयोजन उन सबसे नहीं वरन उस बुनियादी जीवन-रस से है, जो समूचे वृक्ष में प्रवाहित रहता है और जो एक ही प्रकार का है, हजार प्रकार का नहीं। यह जीवन-रस समूची विविधता के बीच उस एकता का द्योतक है, जो समूचे वृक्ष में विद्यमान है। उसका प्रयोजन समाज में उच्चतर चेतना का संरक्षण और पोषण तथा सृजन और पोषण करना है। भावातीत ध्यान कार्यक्रम का भी यही प्रयोजन है। अब यह प्रयोजन भावातीत ध्यान-सिद्धि कार्यक्रम के माध्यम से हजारों गुणा प्रभावशाली बन गया है। इसे नये कार्यक्रम के दौरान लोगों को भावातीत चेतना के स्तर से कार्य करने की क्षमता प्राप्त हो जाती है। भावातीत चेतना निस्सीम चेतना’है और भावातीत ध्यान-सिद्धि कार्यक्रम लोगों के मस्तिष्क को इस प्रकार संस्कारित कर देता है कि वह निस्सीम चेतना के स्तरों पर कार्य करने लगता है।
महर्षि महेश योगी का दावा है कि भावातीत ध्यान समाज में तनावों और सामंजस्य को कम कर देगा जो सामंजस्य तथा एकता के मूल्य और भाव को प्रोत्साहन देगा। महर्षि का दावा एक सीमा तक सही है। चेतना के विस्तार से मनुष्य का चरित्र निश्चय सुधर जाता है और यह बात सर्वविदित है कि प्रसन्तता और शांति का मूल स्रोत मानवीय चरित्र ही है। महर्षि के विचार से प्रगति में दो मूल्य निहित हैं-भौतिक मुल्य और बौद्धिक मूल्य। वे कहते हैं कि भावातीत ध्यान मन और शरीर अथवा बुद्धि और काया-के बीच सामंजस्य स्थापित करता है। भावातीत ध्यान मानवीय चेतना को सशक्त बनाता है। महर्षि कहते हैं व्यक्ति की चेतना वह क्षेत्र है, जहां जीवन की समग्रता निवास करती है। शरीर मन और मन के समस्त विभिन्न सुक्ष्मतर मूल्य, जिन्हें बुद्धि और अहं इत्यादि नामों से पुकारा जाता है, सब के सब-चेतना के उस ढांचे में निवास करते हैं, जिसे आत्मा कहा जा सकता है। यदि हम चेतना के उस सूक्ष्म स्तर पर जीना सीख लें तो हमें स्वयं यह ज्ञान हो जायेगा कि समूची सृष्टि की गतिविधि का किस प्रकार नियमन किया जाता है। तब हम सृष्टि चेतना के उस स्तर से, जिसे हम चेतना की सर्वसामान्य अवस्था कहते हैं, पदार्थ और चिंतन के समूचे क्षेत्र का अपनी इच्छा के अनुसार नियमन कर सकते हैं।
महर्षि का दावा है कि भावातीत ध्यान मनुष्य की छिपी हुई प्रतिभा को उजागर कर देता है। वे कहते हैं,.. प्रत्येक व्यक्ति के भीतर सक्रियता की अनंत क्षमता होती है परंतु उस विशाल भंडार को आधुनिक शिक्षा प्रणालियां सक्रिय और सजग नहीं बना पातीं। मनुष्य की प्रतिभा उसकी चेतना के मौन, अर्थात् मन की उस सूक्ष्म अवस्था में छिपी रहती है, जहां से प्रत्येक विचार का उदय होता है। संसार में जितनी भी खोजें हुई हैं, वे चेतना के इसी ढके हुए स्तर से उदय हुई हैं। सफल व्यक्तियों की सफलता का गुप्त साधन यही चेतना है। यह वह महासागर है जिसमें ज्ञान की समस्त धाराएं विलीन होती हैं और चेतना के इस अत्यंत कोमल स्तर से समूची सृष्टि का उदय होता है। भावातीत ध्यान के बारे में यह दावा किया गया है कि उसके द्वारा मनष्य की इस प्रतिभा पर जड़ा हुआ ताला खुल जाता है। महर्षि महेश योगी पूर्वी जगत के प्राचीन ज्ञान और पश्चिमी जगत की वैज्ञानिक प्रगति तथा दौलत के बीच पुल बांधने की कोशिश कर रहे हैं। वे बहुत यथार्थवादी हैं। वे मानवीय मन के गुरु हैं, वे यह दावा नहीं करते कि वे मोक्ष दिला देंगे। उनकी चिंता का मुख्य विषय मनुष्य की चेतना को उन बंधनों से मुक्त करना है, जिनमें वह जकड़ी हुई है। यह मुक्त चेतना ही मनुष्य के मन का विस्तार कर सकती है और उसके सम्मुख प्रकृति के नियमों और वरदानों के स्रोतों का रहस्य खोल सकती है। भावातीत ध्यान का लक्ष्य मनुष्य के मन से जगत का वह भाव नष्ट करना नहीं है, जिसे वैदिक धर्मग्रंथ अविद्या, मिथ्या अथवा माया कहते हैं वरन् उसका लक्ष्य एक श्रेष्ठतर जगत का निर्माण है।
महर्षि महेश योगी की मृत्यु
महर्षि महेश योगी, अपने स्वास्थ्य के बारे में चिंतित, अपने निवास के दो कमरों में तेजी से एकांत हो गए। इस अवधि के दौरान उन्होंने शायद ही कभी व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की हो और इसके बजाय उन्होंने क्लोज-सर्किट टेलीविजन द्वारा अपने अनुयायियों के साथ लगभग अनन्य रूप से संवाद किया। 12 जनवरी 2008 को, उनके नब्बे वें जन्मदिन पर, महर्षि ने घोषणा की “गुरु देव (ब्रह्मानंद सरस्वती) के चरणों में, गुरु देव का प्रकाश लेना और इसे अपने वातावरण में प्रसारित करना मेरा सौभाग्य रहा है। अब आज, मैं हूं गुरु देव के प्रति मेरे निर्धारित कर्तव्य को पूरा करना। और मैं केवल इतना कह सकता हूं, ‘दुनिया को शांति, सुख, समृद्धि और दुख से मुक्ति में लंबे समय तक जियो।
अपनी मृत्यु से एक सप्ताह पहले महर्षि ने कहा कि वह “टीएम आंदोलन के नेता के रूप में पद छोड़ रहे हैं और चुप्पी में पीछे हट रहे हैं और उन्होंने अपना शेष समय प्राचीन भारतीय ग्रंथों का अध्ययन करने में बिताने की योजना बनाई है। महर्षि महेश योगी 5 फरवरी 2008 को नीदरलैंड के व्लोड्रोप में अपने निवास पर प्राकृतिक कारणों की नींद में शांति से स्वर्ग लोक सिधार गए। गंगा और यमुना नदियों के संगम को देखते हुए, भारत में महर्षि के इलाहाबाद आश्रम में दाह संस्कार और अंतिम संस्कार किया गया। राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार साधना टीवी स्टेशन द्वारा लाइव प्रसारण किया गया था और इसकी अध्यक्षता उत्तर के शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती महाराज की सीट के दावेदारों में से एक ने की थी। अंतिम संस्कार में शामिल होने वाले भारतीय अधिकारियों में केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय शामिल थे। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के नेता अशोक सिंघल और उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और राज्य भाजपा नेता केशरी नाथ त्रिपाठी, साथ ही शीर्ष स्थानीय अधिकारी साथ ही उपस्थिति में ग्लोबल कंट्री ऑफ वर्ल्ड पीस के पैंतीस राजा, एक समय के शिष्य श्री श्री रविशंकर और डेविड लिंच थे। वर्दीधारी पुलिसकर्मियों की एक टुकड़ी ने सलामी में अपने हथियार नीचे कर लिए अंतिम संस्कार को राजकीय अंतिम संस्कार का दर्जा प्राप्त हुआ क्योंकि महर्षि शंकर द्वारा स्थापित अद्वैत वेदांत की परंपरा में एक मान्यता प्राप्त गुरु थे।