मसानिया की दरगाह या मसानिया शरीफ भारत के पंजाब प्रांत के गुरदासपुर जिले के बटाला नगर के पास स्थित है। दरगाह मसानिया शरीफ भारत की प्रमुख दरगाहों में से एक है। यहां हजरत शाह बदर गिलानी का मजार शरीफ हैं। बड़ी संख्या में यहां श्रृद्धालु जियारत करने आते हैं।
मसानिया शरीफ दरगाह का इतिहास
हज़रत सैयद बदरुद्दीन गिलानी कादिरी बगदादी हसनी, हुसैनी, रज़ाक़ी, गिलानी सैयद हैं। लाहौर में उन्हें हज़रत शाह बदर दीवान और भारत में हज़रत शाह बदर गिलानी (रैहम०) के रूप में जाना जाता है। उनका जन्म 7 नवंबर 1457 ई. को बगदाद में हुआ था। उन्होंने 1493 ई. में अपना घर छोड़ दिया और लाहौर आ गए, जहां उन्होंने इस्लाम के प्रचार के लिए पांच साल बिताए। 18 अगस्त 1498 ई. को वह बटाला आए और मसानिया की स्थापना की। मसानिया एक हिंदी शब्द है जिसका अर्थ है ‘जो बुरी आत्माओं को दूर करता है। इसे मसानिया, मसानियन और मसुनियन के रूप में भी लिखा जाता है। और इस जगह को मसानी भी कहा जाता है। उन्होंने गांव सोहल गुरदासपुर में हजरत दाऊद बोखरी की बेटी बीबी मुरासा से शादी की और उनके चार बेटे और एक बेटी थी।
हज़रत शाह बदर दीवान कादरी बगदादी (रैहम०) की मृत्यु 12 अगस्त 1570 ईस्वी को मसानिया शरीफ में हुई थी जहाँ उनके पोते शाह अब्दुल शकूर गिलानी कादिरी द्वारा एक राजसी दरगाह का निर्माण किया गया था। 12वीं रबी-उल-अव्वल को एक वार्षिक उत्सव आयोजित किया जाता है। जिसे मसानिया शरीफ का उर्स कहते हैं।

लाहौर पाकिस्तान में उनका एक चिल्लाह है, जहां वे चालीस दिन एकांत में ध्यान करते थे। राजा अकबर ने इस चिल्ला पर एक खंघा बनवाया और इस जगह को अब चिल्ला शाह बदर दीवान कहा जाता है।
कैसे पहुंचा जाये श्री गुरु राम दास जी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे अमृतसर से मसानिया शरीफ 57 किमी और बटाला जंक्शन से 9 किमी दूर है। बटाला से मसानिया शरीफ के लिए स्थानीय टैक्सियां वह बसें उपलब्ध हैं।
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