भारतविविधताओं से भरा देश है, यहां लगभग हर 100 किलोमीटर पर लोगों की भाषा और वेषभूषा बदलाव नजर आने लगता है, आज हम बात करेंगे मणिपुर की वेशभूषा यानि मणिपुर के पहनावे की। यहां की मुख्य जनजाति मैतेई, कुकी और नागा है, अपने मणिपुर राज्य से संबंधित पिछले एक दो लेखों में कई स्थानों पर मैतेई पुरुष की वेशभूषा का उल्लेख किया है। मैतई पुरुष अक्सर धोती-कूर्ता पहनते हैं विशिष्ट अवसरो पर वे साफा भी बाँधते हैं। मैतेई स्त्रियों का पहनावा में कमर में फनेक” (तहमद) बाँधा जाता है, तो कंधों पर चादर डाली जाती है जिसको “इनाफि” कहा जाता है। पुराने समय में वक्षस्थल को भी फनेक से ही ढका जाता था, किन्तु इधर ब्लाउज का प्रचलन हो गया है।
मणिपुर की वेशभूषा – मणिपुर का पहनावा क्या है
आदिवासी जनजातीय लोगो में पुरुष कमर में लंगोटनुमा वस्त्र बाँधते हैं, ऊपर एक शाल या कम्बल ओढ़ते हैं। आदिवासी जनजातीय महिलाओं की वेशभूषा मैतेई महिला से अधिक
भिन्न नही होती। कमर में तहमद, ऊपर शाल और ब्लाउज का भी प्रचलन है।
यह परम्परागत मणिपुर का पहनावा है, किन्तु पाश्वात्य प्रभाव के कारण मैतेई एवं जनजातीय स्त्री-पुरुष की वेशभूषा मे परिवर्तन हुआ है। मैतेई महिलाओ में कभी-कभी साडी पहनने वाली महिलाएं भी दिखलाई देती हैं, तो युवा मैतेई व जनजातीय लडकियाँ पेंट शर्ट भी पहनती हैं।
नेपाली पुरुष कुर्ता-कमीज व चुश्त पजामा ओर सिर पर नेपाली टोपी पहनते हैं। नेपाली महिलाओं ने मणिपुरी महिलाओ की वेशभूषा अपना ली है, किन्तु वे साडी का प्रयोग अधिक करती हैं। अन्य प्रान्तों के लोग सामान्यत, अपनी ही पारम्परिक वेशभूषा पहनते हैं।
मणिपुर की वेशभूषामणिपुर में आए दिन उत्सव होते हैं और इन उत्सवों में भाग लेने के लिए सबको एक ही पहनावा पहनना अनिवार्य है। पुरुष सफेद रंग का धोती-कुर्ता पहनते हैं और कंधे पर एक सफेद शाल रखते हैं, किन्तु कुछ विशिष्ट अवसरो पर साफा बाँधना पड़ता है। स्त्रियां ऐसे उत्सवो मे हल्के गेरूआ रंग का “फनेक”” (तहमद) बांधती हैं और सफेद रंग का ब्लाउज व चादर ओढकर भाग लेती हैं। समान पहनावा पहनकर पूरा मैतेई समुदाय त्योहारों-पर्वो-उत्सवों में सम्मिलित होता है। वेशभूषा की एकरूपता वर्ग हीन समाज का प्रतीक हैं।
प्रत्येक उत्सव एवं पर्व-त्यौहार आदि पर सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है। भोज में बिना किसी भेदभाव के एक पगत में बेंठकर भोजन किया जाता है। पंगत में किसी से भेदभाव नही विया जाता है। इसे भी मैतेई समुदाय की वर्ग-विहीनता प्रकट होती है।
यही स्थिति पर्वतीय जन-जातियो की है। पुरुष और स्त्रियां बिना किसी भेदभाव के एक प्रकार के वस्त्र पहनते हैं। वहां सभी कार्य किए जाते हैं। कोई मालिक नहीं कोई नौकर नहीं। सभी पुरूष लंगोटनुमा वस्त्र पहनकर ऊपर शाल ओढ़ते हैं। इनकी शालें भिन्न रंगो की होती हैं। स्त्रियां फनेक वे रूप में भी रंगीन शाल बांधती है और ओढ़ भी सकती है। सप्रति जनजातीय वेशभूषा में परिवर्तन हुआ है और पाश्चात्य वेशभूषा पहनी जाती है। पुरुष और स्त्रियां पाश्चात्य वेश में सुसज्जित दिखलाई देते हैं, किन्तु प्राचीन वेशभूषा पहनने वालो की संख्या अधिक है।
उत्सव त्यौहारों के अतिरिक्त मणिपुर की मैतेई महिलाएं बहुत ही रंग-बिरगें आर्कषक वस्त्र पहनती हैं और स्वर्णाभूषण उन्हें विशेष प्रिय हैं। पर्वतीय स्त्री-पुरूष कौड़ियाँ, रंग बिरंगे कांच के मतको से बनी मालाओं से अपना श्रृंगार करते हैं। मैतेई बालकों को हाथो पेरो में चाँदी के छल्ले पहनाए जाते हैं जो बजते हैं। बच्चों के अतिरिक्त चाँदी के आभूषणों का मणिपुर में प्रचलन नहीं है। वास्तव में मैतेई हो या जनजातीय समाज इनमे पूंजीपतियों का कोई वर्चस्व नही है। कोई निर्धन भी नही क्योंकि सबके पास रहने को घर होते हैं ओर कृषि भूमि भी। अतः कोई किसी पर निर्भर नही। कोई शोषण नही। जो भी कार्य जनजातीय समाज में होते हैं, वे तो सामूहिक होते हैं।
मणिपुरी समाज में षष्ठी, विवाह एवं श्राद्ध के अवसर पर सभी मित्रों एवं परिचितों के द्वारा पहले खाद्यान्न आदि के रूप में और अब नकद भेंट दी जाती है। इससे ऐसे खर्च के अवसरों पर आयोजक को आधिक कठिनाई नही होती और न ही ऋण लेने की कोई आवश्यकता होती है। समाजवादी समाज की यह भी अनूठी प्रथा है। बेटी के विवाह में दहेज में दी जाने वाली वस्तुएं, जनजातियों में और मैतेई समाज में, मित्रों, परिचतों या संबंधियों द्वारा ही जाती है।
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